By अंकित सिंह | Jun 01, 2020
साल 2019 में दोबारा सत्ता में वापसी के बाद भाजपा ने देश में अपने प्रभुत्व को बरकरार रखा। 2014 में जब नरेंद्र मोदी की अगुवाई में भाजपा केंद्र की सत्ता में आई थी, उसके बाद से लगातार इस पार्टी का दबदबा देश के अन्य भागों में भी बढ़ता गया। 2014 के मुकाबले 2019 में भाजपा को अगर अधिक सीटें मिली तो उसका साफ कारण यही था कि भाजपा अपने कैडर बेस को लगातार बढ़ाने में जुटी रही। वह लोगों से संवाद करती रही और अपने विरोधियों को राजनीतिक तौर पर मात देती रही। अमित शाह की अध्यक्षता में भाजपा को असम, त्रिपुरा, उत्तर प्रदेश हरियाणा जैसे राज्यों में कमल खिलाने में कामयाबी मिली। 2019 के लोकसभा चुनाव के बाद भी भाजपा ने देश में अपना दबदबा कायम रखा। हालांकि एक बात सत्य यह भी है कि 2019 के लोकसभा चुनाव के बाद भाजपा किसी भी राज्य के विधानसभा चुनाव में जीत हासिल नहीं कर पाई। जहां जीती भी वहां प्रदर्शन उम्मीदों से कम रहा।
लोकसभा चुनाव के बाद 2019 में हुए विधानसभा चुनाव में भाजपा ने महाराष्ट्र और हरियाणा जैसे राज्यों को गंवा दिया। महाराष्ट्र में शिवसेना के साथ गठबंधन कर पार्टी चुनाव में कई तो थी पर उम्मीद के अनुसार प्रदर्शन नहीं होने के बाद शिवसेना ने अपनी मांग को लेकर गठबंधन से दूरी बना ली और ऐसे में भाजपा को सरकार से दूर होना पड़ा। बात झारखंड के करें तो राज्य के गठन के बाद से पहली बार स्थिर सरकार देने वाली भाजपा रघुवर दास के नेतृत्व में 2019 का विधानसभा चुनाव हार गई। पार्टी की इस हार के कई कारण भी बताए गए जिसमें सबसे बड़ा कारण यह रहा कि राज्य में पार्टी के अंदर अंदरूनी खींचतान हावी थी। हरियाणा में 2014 में भाजपा पहली बार सत्ता में आई थी। 2019 के विधानसभा चुनाव में भाजपा एक बार फिर मनोहर लाल खट्टर के नेतृत्व में चुनावी मैदान में उतरी पर प्रदर्शन पहले के मुकाबले बेहद ही खराब रहा। स्थिति यह रही कि भाजपा अपने दम पर सरकार तक नहीं बना सकी। बाद में दुष्यंत चौटाला की पार्टी जेजेपी के गठबंधन के साथ ही भाजपा राज्य में सत्ता काबिज हो पाई।
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लोकसभा चुनाव के बाद, एक के बाद एक विधानसभा चुनाव में मिली हार से भाजपा में निराशा के भाव बढ़ती जा रही थी। भाजपा दिल्ली को लेकर अति उत्साहित थी। दिल्ली में इस साल फरवरी में चुनाव हुए। भाजपा ने पूरा दमखम लगाया परंतु कामयाबी नहीं मिल पाई। दिल्ली में एक बार फिर उसे अरविंद केजरीवाल की पार्टी आम आदमी पार्टी से बुरी तरीके से पराजय का सामना करना पड़ा। पार्टी सिर्फ 8 सीटें ही जीत पाई। इन विधानसभा चुनाव में मिली हार के बाद पार्टी राज्यों से लगातार सिमटती गई। आलोचक यह भी कहने लगे कि नरेंद्र मोदी और अमित शाह का जादू खत्म हो रहा है। लोगों में सरकार के प्रति नाराजगी बढ़ रही है। परंतु भाजपा का यही मानना था कि राज्य के विधानसभा चुनाव स्थानीय मुद्दे पर होते हैं। केंद्र से कोई लेना-देना नहीं। पार्टी ने इन चुनाव में राम मंदिर मुद्दा, जम्मू कश्मीर से अनुच्छेद 370 के खत्म होना और तीन तलाक को लेकर कानून बनाना जैसे मुद्दे को खूब उठाया परंतु फायदा नहीं दिखा।
हालांकि राजनीतिक उठापटक के बीच पिछले 1 साल में भाजपा दो बड़े राज्यों को हासिल करने में कामयाब हुई। कर्नाटक में जेडीएस और कांग्रेस गठबंधन के बीच की खटास का भाजपा को फायदा हुआ। जेडीएस और कांग्रेस के कुछ विधायकों ने इस्तीफा दे दिया जिसके बाद भाजपा के लिए कर्नाटक में सत्ता में काबिज होने की राह आसान हो गई। भाजपा वहां बीएस येदुरप्पा के नेतृत्व में एक बार फिर से सत्ता में लौटने में कामयाब हुई। कर्नाटक बड़ा राज्य है। ऐसे वहां सत्ता में आने के बाद पार्टी ने इसे सफलता के रूप में देखा। बाद में 17 सीटों पर हुए उपचुनाव में भाजपा 13 सीटें जीतने में कामयाब रही।
2018 के आखिर में हुए मध्यप्रदेश विधानसभा चुनाव में पार्टी बेहद ही कम सीटों से कांग्रेस से पीछे रह गई। कांग्रेस का बनवास खत्म हुआ। कमलनाथ सत्ता में आए और लगभग 1 साल तक उनकी सरकार चली। लेकिन 2020 के शुरुआत से ही कांग्रेस के आंतरिक गुटबाजी के कारण मध्य प्रदेश की सरकार लड़खड़ाने लगी थी। भाजपा ने यहां भी कांग्रेस की कमियों का फायदा उठाया। ज्योतिरादित्य सिंधिया को अपने पाले में किया और एक बार फिर से मध्य प्रदेश की सत्ता हासिल करने में कामयाबी पाई। मध्यप्रदेश में पार्टी के वरिष्ठ नेता शिवराज सिंह चौहान चौथी बार राज्य की कमान संभाली। यहां पर कांग्रेस के दो बड़े नेता कमलनाथ और ज्योतिरादित्य सिंधिया में टकराव हुआ। सिंधिया समर्थक 22 विधायकों ने पार्टी के विधायक पद से इस्तीफा दे दिया। सिंधिया भाजपा में शामिल हो गए। सिंधिया को पार्टी में शामिल करना भाजपा की बड़ी कामयाबी मानी गई। राजनीतिक पंडितों ने इससे भाजपा की रणनीति का हिस्सा बताया और केंद्रीय नेतृत्व किस तरीके से काम करती है इसका भी उदाहरण बताया। कुल मिलाकर हम यह जरूर कह सकते हैं कि भले ही पार्टी को विधानसभा चुनाव में नुकसान झेलने पड़े हो परंतु कर्नाटक और मध्य प्रदेश जैसे बड़े राज्यों को अपने पाले में लाकर पार्टी ने अपना दबदबा कायम रखा।
लोकसभा चुनाव के बाद से पार्टी की नजर पश्चिम बंगाल पर भी खूब रही। पश्चिम बंगाल के कई पूर्व विधायक और वर्तमान विधायक भी तृणमूल कांग्रेस छोड़कर भाजपा का दामन थाम लिया। कई शहरों के पार्षदों ने भी भाजपा में अपना भविष्य देखते हुए पार्टी का दामन थाम लिया। पश्चिम बंगाल में पार्टी नरेंद्र मोदी और अमित शाह की अगुवाई में अपना जनाधार बढ़ाने में जुटी रही।
पिछले 1 सालों में भाजपा की राजनीतिक सफलता का जिक्र करें तो पार्टी अपने मूल एजेंडे को अमल में लाने में कामयाबी हासिल की। जिस विचारधारा और एजेंडे के दम पर भाजपा का गठन हुआ उस एजेंडे को लागू करा पाने में भाजपा ने कामयाबी हासिल की। सबसे पहला और बड़ा एजेंडा था अखंड भारत का। जम्मू कश्मीर से अनुच्छेद 370 के हटने के साथ ही पार्टी ने अपने सबसे बड़े एजेंडे को लागू करने में सफलता हासिल की। राम मंदिर का फैसला भी पार्टी के विचारों के अनुरूप ही रहा। ऐसे में पार्टी ने भी इसे अपनी सफलता के रूप में देखा। वहीं तीन तलाक को लेकर कानून बनाने में भी पार्टी ने राजनैतिक तौर पर कामयाबी हासिल की। मुस्लिम महिलाओं को अधिकार दिलाने का भी पार्टी ने अहम जिम्मेदारी उठा रखी थी।
मोदी सरकार ने पिछले 1 सालों में राज्यपालों की भी नियुक्तियों में बड़ी सावधानी बरती है। उत्तर प्रदेश के राज्यपाल के तौर पर राम नाईक के रिटायर होने के बाद आनंदीबेन पटेल को यहां का राज्यपाल बनाया गया। आनंदीबेन पटेल इससे पहले मध्य प्रदेश की राज्यपाल थीं। बिहार के राज्यपाल के तौर पर जिम्मेदारी संभाल रहे लालजी टंडन को मध्य प्रदेश भेजा गया। वहीं, लालजी टंडन की जगह बिहार में फगु चौहान को राज्यपाल बनाया गया। पश्चिम बंगाल के राज्यपाल केसरीनाथ त्रिपाठी का कार्यकाल खत्म हो जाने के बाद जगदीप धनखड़ को वहां की जिम्मेदारी दी गई। त्रिपुरा के राज्यपाल के तौर पर कप्तान सिंह सोलंकी का भी कार्यकाल खत्म हुआ जिनकी जगह रमेश बैंस को वहां की जिम्मेदारी मिली। नागालैंड के भी राज्यपाल के तौर पर आरएन रवि की नियुक्ति हुई।
इसके अलावा महाराष्ट्र में विद्यासागर राव के राज्यपाल के तौर पर रिटायर होने के बाद उत्तराखंड के पूर्व सीएम भगत सिंह कोश्यारी को यहां का राज्यपाल बनाया गया। वहीं, गोवा में मृदुला सिन्हा का कार्यकाल खत्म हुआ जिसके बाद उनकी जगह जम्मू कश्मीर में राज्यपाल रहे सत्यपाल मलिक को जिम्मेदारी दी गई। केरल के राज्यपाल के तौर पर पी सदाशिवम का कार्यकाल भी समाप्त हो गया। उनकी जगह आरिफ मोहम्मद खान को वहां का राज्यपाल बनाया गया। राजस्थान में कल्याण सिंह का कार्यकाल खत्म होने के बाद वहां कलराज मिश्र को राज्यपाल के तौर पर भेजा गया। हिमाचल प्रदेश के राज्यपाल के तौर पर बंडारू दत्तात्रेय को वहां भेजा गया। छत्तीसगढ़ के राज्यपाल के तौर पर अनुसूया उइखे को भेजा गया।
- अंकित सिंह