By अनन्या मिश्रा | Nov 05, 2024
आज ही के दिन यानी की 05 नवंबर को भूपेन हजारिका का निधन हो गया था। वह असमी से लेकर हिंदी सिनेमा की म्यूजिक इंडस्ट्री के एक ऐसे दिग्गज थे, जिन्होंने न जाने ही कितनी फिल्मों के लिए संगीत तैयार किया था। साथ ही न जाने कितने गानों में अपनी आवाज दी थी। संगीत के क्षेत्र में अद्भुत योगदान के लिए उनको कई पुरस्कारों से भी नवाजा गया था। भले ही भूपेन हजारिका आज हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन उनकी उत्कृष्ट रचनाएं आज भी लोगों के दिलों में जिंदा हैं। तो आइए जानते हैं उनकी डेथ एनिवर्सरी के मौके पर भूपेन हजारिका के जीवन से जुड़ी कुछ रोचक बातों के बारे में...
ऐसे मिली गाने की प्रेरणा
असम में 08 सितंबर 1926 को भूपेन हजारिका का जन्म हुआ था। वह अपने 10 भाई-बहनों में सबसे बड़े थे। संगीत में अद्भुत योगदान देने वाले हजारिका को गाने की प्रेरणा उनकी मां से मिली थी। यही वजह थी कि उन्होंने महज 10 साल की उम्र से अपने करियर की शुरूआत कर दी थी। उस दौरान वह असमिया भाषा में गाना गाया करते थे। बहुमुभी प्रतिभा के धनी हजारिका ने महज 12 साल की उम्र में दो फिल्मों के लिए गाने लिखे थे। साथ ही इन गानों को रिकॉर्ड भी किया था।
शिक्षा
स्कूली शिक्षा पूरी करने के बाद भूपेन हजारिका ने बनारस हिंदू विश्वविद्यालय से आगे की पढ़ाई की। फिर साल 1952 में कोलंबिया यूनिवर्सिटी से पीएचडी की डिग्री ली। वहीं पढ़ाई पूरी होने के बाद हजारिका ने गुवाहाटी में ऑल इंडिया रेडियो में गाना शुरूकर दिया। हजारिका ने न सिर्फ गानों में अपनी आवाज दी बल्कि उन्होंने करीब 1 हजार गाने और 15 किताबें भी लिखीं।
संगीत को बनाया साथी
बता दें कि भूपेन हजारिका को कई भाषाओं का ज्ञान था। वहीं बंगाली के गानों को हिंदी में अनुवाद कर अपनी आवाज देते थे। पहली पत्नी से अलग हो जाने के बाद हजारिका ने संगीत को ही अपना सच्चा साथी बना लिया था। उन्होंने 'रुदाली','साज', 'मिल गई मंजिल मुझे','दरमियां', 'गाजगामिनी' जैसी सुपरहिट फिल्मों में गीत दिए।
पुरस्कार
संगीत के क्षेत्र में उत्कृष्ट योगदान के लिए साल 1975 में भूपेन हजारिका को राष्ट्रीय पुरस्कार, 1992 में सर्वोच्च पुरस्कार दादा साहेब फाल्के अवार्ड दिया गया। इसके अलावा वह असोम रत्न और पद्म भूषण से भी सम्मानित थे। वहीं मरणोपरांत साल 2019 में सरकार के द्वारा भूपेन हजारिका को भारत रत्न से नवाजा गया था।