किसानों की नहीं अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रही है भारतीय किसान यूनियन

By अजय कुमार | Dec 19, 2020

मोदी सरकार द्वारा पास किये गये नये कृषि कानून को लेकर जो नाराजगी पंजाब और हरियाणा के किसानों में दिखाई दे रही है, वैसी नाराजगी पूरे देश के किसानों में देखने को नहीं मिल रही है। नया कृषि कानून वापस लिए जाने की मांग को लेकर पंजाब और हरियाणा के किसान सबसे अधिक उग्र रूप धारण किए हुए हैं। पंजाब और हरियाणा के किसानों की भारी भीड़ दिल्ली के सिंधु और टीकरी बार्डर पर जमा है। उक्त दोनों राज्यों के आंदोलनकारी किसानों के अलावा नये कृषि कानून का विरोध करने के नाम पर एक और चेहरा, जो सबसे अधिक सुर्खियां बटोर रहा है वह है भारतीय किसान यूनियन के नेता राकेश टिकैत का, जो लगातार भाई नरेश टिकैत के साथ धरने पर बैठे हुए हैं, लेकिन मोदी सरकार है कि झुकने को तैयार ही नहीं है। ऐसा लग रहा है कि भाकियू नेता टिकैत बंधु अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहे हैं।

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भारतीय किसान यूनियन कभी किसानों का बहुत बड़ा संगठन हुआ करता था, इसके नेता महेन्द्र सिंह टिकैत (अब दिवंगत) की एक आवाज पर किसान दिल्ली से लेकर लखनऊ तक की सत्ता हिला देने की ताकत रखते थे। महेन्द्र सिंह टिकैत का नाम एक नहीं कई बार केन्द्र और राज्य सरकारों को घुटने के बल खड़ा कर देने के लिए जाना जाता रहा है, लेकिन महेन्द्र सिंह टिकैत वाली बात उनके बेटों नरेश या राकेश टिकैत में नहीं है। दोनों नेता न तो अपनी साख बचा पा रहे हैं, न संगठन को ही मजबूती दे पा रहे हैं।


उधर, भाकियू नेता महेन्द्र सिंह टिकैत की मौत के बाद भाकियू कई गुटों में बंट चुकी है। भाकियू के कई बड़े नेताओं ने अपना अलग संगठन बना लिया है। चौधरी महेंद्र सिंह टिकैत के जाने के बाद दर्जनों किसान संगठन बन गए हैं तो राजनीतिक पार्टियों ने भी किसानों को जातियों और धर्मों में बांट दिया है। इससे किसान आंदोलन कमजोर हो रहा है। गन्ने की वजह से पश्चिमी यूपी में आ रही समृद्धि भी अब किसानों को आंदोलनों से दूर कर रही है।


बहरहाल, बदले हालातों के बीच अगर यह कहा जाए कि राकेश सिंह टिकैत और नरेश सिंह टिकैत अपनी किसान नेता वाली छवि बचाए रखने के लिए नये कषि कानून की मुखालफत कर रहे हैं तो यह गलत नहीं होगा। ऐसा इसलिए कहा जा सकता है क्योंकि राकेश टिकैत वाली भारतीय किसान यूनियन का पश्चिमी उत्तर प्रदेश में सबसे अधिक दबदबा है और यहां सबसे अधिक गन्ना उत्पादन होता है। इसीलिए यहां के गन्ना किसानों को नये कृषि कानून से कोई नुकसान होता नहीं दिख रहा है, जिसके चलते वेस्ट यूपी के किसान इस आंदोलन से न केवल दूरी बनाए हुए हैं, बल्कि यहां के किसान इस बात को नहीं समझ पा रहे हैं टिकैत बंधु नये कृषि कानून का विरोध करने के लिए इतनी आगे क्यों निकल गए। हालात यह हैं कि टिकैत बंधु पंजाब-हरियाणा के आंदोलनकारी किसानों की हाथ की कठपुतली नजर आने लगे हैं।

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इसी वजह से पश्चिमी उत्तर प्रदेश के किसानों की वैसी भीड़ दिल्ली के गाजीपुर बॉर्डर पर यूपी गेट पर नहीं दिखाई दे रही है, जैसी भीड़ दिल्ली के सिंधु और टीकरी बॉर्डर पर जमा है। जबकि यहां (गाजीपुर बॉर्डर पर यूपी गेट पर) किसानों का नेतृत्व अपने आप को पश्चिमी यूपी के किसानों का मसीहा समझने वाले भाकियू नेता चौधरी नरेश टिकैत व राकेश टिकैत कर रहे हैं। नये कृषि कानून के विरोध में पश्चिमी यूपी के किसानों की कम भागीदारी के पीछे का कारण किसान गन्ने पर कृषि कानून का असर न होना मान रहे हैं। वहीं कुछ किसानों का कहना है कि अब किसान नेताओं में चौधरी महेंद्र सिंह टिकैत जैसी ईमानदारी और सादगी नहीं है, इसीलिए पश्चिम यूपी के किसान आंदोलन में ज्यादा दिलचस्पी नहीं ले रहे हैं। भाकियू से लंबे समय तक जुड़े रहे ब्रजपाल सिंह पाथौली का कहना है कि पश्चिमी यूपी गन्ने की बेल्ट है और इसे चीनी का कटोरा कहा जाता है। केंद्र सरकार द्वारा बनाए गए तीन कृषि कानून गन्ने को प्रभावित नहीं कर रहे हैं। गन्ना किसी मंडी में नहीं बल्कि गन्ना एक्ट के तहत गन्ना समितियों के माध्यम से बेचा जाता है। अगर इन कानूनों में गन्ना भी प्रभावित होता तो पश्चिमी के किसान जोरशोर से आंदोलन करते।


हालात यह हैं कि टिकैत बंधु अपने दबदबे वाले इलाके में भी अपनी चमक खोते जा रहे हैं। किसान आंदोलन के दौरान यूपी गेट पर हुई भाकियू की महापंयायत में बागपत-मेरठ से ही बहुत कम किसान पहुंचे। केवल भाकियू पदाधिकारी ही अपने साथ कुछ किसानों को लेकर महापंचायत में शामिल हुए, जब मेरठ-बागपत के गांवों के किसान ही आंदोलन में शिरकत नहीं कर रहे हैं तो पूरे पश्चिमी उत्तर प्रदेश की क्या स्थिति होगी यह समझा जा सकता है। बात यहीं तक सीमित नहीं है। राष्ट्रीय लोकदल भी इस आंदोलन से दूरी बनाए हुए है। लोकदल के नेता चौधरी अजित सिंह अब सार्वजनिक कार्यक्रमों में दिखते नहीं हैं और उनके बेटे जयंत भी कुछ खास करते नहीं दिख रहे हैं। पार्टी लगातार गर्दिश में जा रही है।


एक तरफ टिकैत बंधु अपनी सियासी जमीन बचाने में लगे हैं तो मोदी सरकार ने गन्ना किसानों को चीनी के निर्यात में सब्सिडी देकर टिकैत बंधुओं को ‘खबरदार’ करने का काम कर दिया है। नए कृषि कानूनों को लेकर चल रहे आंदोलन के बीच केंद्र सरकार ने देश के गन्ना किसानों को 3500 करोड़ रुपये निर्यात सब्सिडी और 18 हजार करोड़ रुपये निर्यात लाभ के साथ ही दूसरी सब्सिडी देने का फैसला देकर पश्चिमी यूपी के गन्ना किसानों को खुश कर दिया है। इस साल सरकार ने 60 लाख टन चीनी निर्यात करने का फैसला किया है। इस पर सब्सिडी सीधे गन्ना किसानों के बैंक अकाउंट में ट्रांसफर की जाएगी। मोदी सरकार का कहना है कि किसानों और शुगर मिलों की समस्याओं से निपटने के लिए कैबिनेट की आर्थिक मामलों की समिति ने 60 लाख टन चीनी निर्यात करने को मंजूरी दी है। दरअसल, सरकार को यह पता है कि किसान शुगर मिल को गन्ना बेचते हैं। फिर शुगर मिलों में अतिरिक्त शुगर स्टॉक पड़े रहने के कारण मिल मालिक गन्ना किसानों का भुगतान समय पर नहीं कर पाते हैं। इस समस्या को ध्यान में रखते हुए मोदी सरकार ने चीनी के अतिरिक्त स्टॉक को निकालने और किसानों को समय पर गन्ना भुगतान कराने के लिए ही चीनी निर्यात का फैसला लिया है। मोदी सरकार के इस फैसले से सबसे अधिक गन्ना उगाने वाले उत्तर प्रदेश और खासकर पश्चिमी यूपी के किसान काफी गद्गद हैं।


रही सही कसर उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ पूरी करने में लगे हैं। योगी ने जिस दिन से प्रदेश की सत्ता संभाली है, उसी दिन से वह किसानों की समस्याओं को लेकर तत्पर दिखाई देते हैं। किसानों के हित में योगी सरकार कई महत्वपूर्ण फैसले ले चुकी है। जबसे नये कृषि कानून के खिलाफ किसान आंदोलन की सुगबुगाहट सुनाई दी है तबसे उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री लगातार किसानों को लेकर कुछ ज्यादा ही सोचने लगे हैं। वह लगातार किसानों को समझा रहे हैं कि उनके राज में किसानों का अहित नहीं होगा। गन्ना किसानों को चीनी मिल मालिकों पर बकाये का भुगतान तेजी से किया जा रहा है, जो चीनी मिल मालिक भुगतान में लापरवाही कर रहे हैं, उनके खिलाफ कार्रवाई भी हो रही है। गेहूं की सरकारी खरीद भी जोरों पर चल रही है।


-अजय कुमार

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