Bihar के पूर्व सीएम कर्पूरी ठाकुर को भारत रत्न, पिछड़े वर्गों के हितों की करते रहे थे वकालत

By अंकित सिंह | Jan 23, 2024

कर्पूरी ठाकुर को भारत रत्न (मरणोपरांत) से सम्मानित किया गया। वह बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री थे और पिछड़े वर्गों के हितों की वकालत करने के लिए जाने जाते थे। कर्पूरी ठाकुर को बिहार की राजनीति का एक बड़ा नाम माना जाता है। कर्पूरी ठाकुर अपनी साधारण जीवन के लिए जाने जाते हैं। नीतीश कुमार की पार्टी जदयू लगातार कर्पूरी ठाकुर को अपना आदर्श मानती रही है। कर्पूरी ठाकुर बिहार के 11वें मुख्यमंत्री रहे हैं। 22 दिसंबर 1970 से लेकर 2 जून 1971 तक वह बिहार के मुख्यमंत्री रहे। कर्पूरी ठाकुर को भारत रत्न से सम्मानित कर भाजपा कहीं ना कहीं बिहार के ओबीसी और पिछड़ों के वोट पर नजर रखने की कोशिश करेगी।


राष्ट्रपति भवन ने विज्ञप्ति जारी कर बताया कि कर्पूरी ठाकुर को (मरणोपरांत) भारत रत्न के लिए चुना गया है। ठाकुर देश के सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार से सम्मानित किए जाने वाले 49वें व्यक्ति हैं। वर्ष 2019 में यह पुरस्कार दिवंगत राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी को प्रदान किया गया था। नाई समाज से संबंध रखने वाले ठाकुर का जन्म 24 जनवरी, 1924 को हुआ था। उन्हें बिहार की राजनीति में 1970 में पूरी तरह शराब पाबंदी लागू करने का श्रेय दिया जाता है। समस्तीपुर जिले में जिस गांव में उनका जन्म हुआ था, उसका नामकरण कर्पूरी ग्राम कर दिया गया था। ठाकुर ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के लिए कॉलेज की पढ़ाई छोड़ दी थी और उन्हें 1942 से 1945 के दौरान ‘भारत छोड़ो आंदोलन’ में शामिल होने के लिए गिरफ्तार किया गया था। वह राम मनोहर लोहिया जैसे नेताओं से प्रभावित थे जिन्होंने स्वतंत्र भारत में समाजवादी आंदोलन चलाया था। वह जयप्रकाश नारायण के भी करीबी थे। मुख्यमंत्री के रूप में ठाकुर के कार्यकाल को मुंगेरी लाल आयोग की सिफारिशें लागू करने के लिए भी याद किया जाता है जिसके तहत राज्य में पिछड़े वर्गों के लिए आरक्षण लागू किया गया था।

 

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कहा कि यह हाशिए पर पड़े लोगों के लिए एक योद्धा और समानता व सशक्तीकरण के दिग्गज के रूप में समाजवादी नेता के स्थायी प्रयासों का एक प्रमाण है। मोदी ने सोशल मीडिया मंच एक्स पर एक पोस्ट में कहा, ‘‘मुझे खुशी है कि भारत सरकार ने सामाजिक न्याय के प्रकाश स्तंभ महान जननायक कर्पूरी ठाकुर जी को भारत रत्न देने का निर्णय लिया है और वह भी ऐसे समय में जब हम उनकी जन्म शताब्दी मना रहे हैं।’’ प्रधानमंत्री ने कहा कि दलितों के उत्थान के लिए उनकी अटूट प्रतिबद्धता और उनके दूरदर्शी नेतृत्व ने भारत के सामाजिक-राजनीतिक ताने-बाने पर एक अमिट छाप छोड़ी है। उन्होंने कहा, ‘‘यह पुरस्कार न केवल उनके उल्लेखनीय योगदान का सम्मान करता है बल्कि हमें एक अधिक समावेशी और न्यायसंगत समाज बनाने के उनके मिशन को जारी रखने के लिए भी प्रेरित करता है।’’

 

 

कर्पूरी ठाकुर का जन्म 24 जनवरी 1924 को बिहार के समस्तीपुर जिले के पितौंझिया (अब कर्पूरी ग्राम) गाँव में गोकुल ठाकुर और रामदुलारी देवी के घर नाई जाति में हुआ था। वह जन नायक के नाम से मशहूर थे। 1942 से लेकर 1946 तक समाजवादियों का आजादी के आंदोलन में महत्वपूर्ण योगदान रहा। कर्पूरी ठाकुर पढ़ाई बीच में ही छोड़कर राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के नेतृत्व में चल रहे स्वतंत्रता संग्राम में कूद गये थे। उन्होंने 1942 के भारत छोड़ो आन्दोलन के समय  26 महीने जेल में बिताए थे। 

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