भारी पड़ते भजनलाल और रफ्तार पकड़ता राजस्थान

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By निरंजन परिहार | Mar 17, 2025

भारी पड़ते भजनलाल और रफ्तार पकड़ता राजस्थान

भजनलाल शर्मा ने सियासत के शिखर की राह पकड़ ली हैं। ताकत के तेवर तीखे कर लिए हैं और अफसरशाही के करतबों पर कसावट की कला भी जान गए हैं। मुख्यमंत्री के तौर पर सवा साल पूरा कर लेने के साथ ही भजनलाल शर्मा ने विधायकों को अपना बनाने के गुर भी उन्होंने सीख लिए और संगठन को साधने की कला भी अपना ली है। बीजेपी के अपने पूर्वज मुख्यमंत्रियों, भैरोंसिंह शेखावत और वसुंधरा राजे के राज करने की राह पर भजनलाल भी चल पड़े हैं। आजकल कुछ अलग लग रहे हैं और उनकी पैनी नजरों में सत्ताधीश होने के तेवर तैरने लगे हैं। सवा साल पहले जब राजस्थान की कमान सम्हाली थी, तो उनकी अपनी बीजेपी में ही उनके मुख्यमंत्री बनने को, कोई अनुभवहीन को सत्ता सौंपना बता रहा था, तो किसी को वे कमजोर होने की वजह से ज्यादा लंबे न चलने वाले मुख्यमंत्री लग रहे थे। लेकिन तस्वीर बदल गई है। पार्टी पर उन्होंने पकड़ बना ली है, केंद्र का विश्वास भी जीत लिया है और राजनीति के दांव पेंच में भी भजनलाल भारी पड़ने लगे हैं। बड़े और बड़बोले मंत्रियों की बोलती बंद करना सीख लिया है, और मजबूत विधायकों के जरिए सरकार की ताकत बढ़ाने करने के रहस्य भी उन्होंने जान लिए हैं। सत्ता के शक्ति संचार से शर्मा उस समय सर्वाधिक समर्थ हो गए, जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 'राइजिंग राजस्थान ग्लोबल इन्वेस्टमेंट समिट' के उद्घाटन समारोह में भजनलाल की पीठ थपथपा कर सीधा संदेश दे दिया था कि ‘पंडितजी’ कहीं जाने वाले नहीं हैं। तभी से राजनीति की फसलों, सत्ता से विवादों के फासलों और सरकार के फैसलों और में भी भजनलाल शर्मा की छाप मजबूत दिखने लगी है। 

 

पहली बार विधायक और पहली ही बार मुख्यमंत्री भी बन गए भजनलाल शर्मा। इसीलिए विरोधी उनको अनुभवहीन और कमजोर बताकर निशाने पर लेते रहे। हालांकि, एक व्यक्ति के तौर पर शर्मा भले ही सीधे हैं, सरल स्वभावी भी हैं और सादगी पसंद भी। लेकिन सरकार के मुखिया के तौर पर अब वे अपने पूर्ववर्ती मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की तरह ही, अप्रत्याशित तो हैं ही, असरकारक भी हैं और असाधारण भी। राजस्थान में वे अपनी ही पार्टी में, भले ही बहुत बड़े नेता कभी नहीं रहे, लेकिन 6 प्रदेश अध्यक्षों के साथ संगठन की सियासत सम्हालने के अनुभव ने उनको इतना धारदार तो बना ही दिया था कि किसको, कब, कहां, कितना और किसके जरिए कैसे साधना है, यह वे मुख्यमंत्री बनने से पहले ही अच्छी तरह जान गए थे। इसीलिए, मुख्यमंत्री पद पर काम करते हुए भजनलाल शर्मा, सवा साल पहले जैसे थे, वैसे तो अब कतई नहीं है। शासनकर्ता के सर्वोच्च शिखर पर स्थापित होने के संदेश देने उन्होंने सीख लिए हैं और अपने स्वभाव की सियासी तासीर भी बदल डाली है। वे शेखावत और राजे की राह पर चल रहे हैं, तो किसी की भी ना सुनने वाले मनमौजी अफसर भी अब उनका कहना मानने लगे हैं, और वरिष्ठ होने के दम भरने वाले अफसर भी उनसे दबने लगे हैं। सियासत के समीकरण शर्मा ने ऐसे साध रखे हैं कि विधायकों की एक बड़ी संख्या उनकी व्यक्तिगत टीम का हिस्सा बनने को बेताब है और मंत्रिमंडल में तो सरताज वे हैं ही। 

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राजस्थान में बहुत ही कम समय में वे प्रदेश के निर्विवाद नेता के रूप में उभरे हैं, और बीजेपी में किसी अन्य शक्ति केंद्र की धारणा को वे पूरी तरह से समाप्त करने में भी कामयाब रहे है, यही मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा की खास बात है। एक और खास बात यह भी है कि उनमें न तो मुख्यमंत्री पद का कभी घमंड दिखा है और न ही किसी तरह का अहंकार। अपनी पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष मदन राठौड़ के साथ उनका बेहतर तालमेल है और प्रभारी डॉ राधामोहन दास अग्रवाल के विवादित बयानों के संभावित नुकसान पर भी रोक लगाने में वे सफल रहे हैं। अशोक गहलोत के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार द्वारा बनाए गए 9 जिलों को उनके द्वारा भंग करने से उपजे विवाद को शांत करने में भी मुख्यमंत्री पूरी तरह से सफल रहे हैं, तो कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा के विधानसभा अध्यक्ष पर स्तरहीन बयान पर विपक्ष के नेता से माफी मंगवाने का जो रणनीतिक दांव भजनलाल शर्मा ने खेला, उसको भी उनकी बढ़ती राजनीतिक ताकत का संकेत माना जा रहा है। बीजेपी की राजनीति में ही नहीं, बल्कि समूचे प्रदेश भर में शर्मा की छवि नेक इरादों वाले एक ईमानदार मेहनती नेता की रही है, लांछन अब तक कोई लगा नहीं सका और पेपर लीक जैसी घटना भी उनके कार्यकाल में अब तक तो नहीं हुई।

 

राजस्थान की राजनीति में तेजी से मजबूती पाने की सफलता में भजनलाल शर्मा का व्यक्तित्व और स्वभाव सबसे बड़ा सहायक रहा है। मुख्यमंत्री के तौर पर भजनलाल शर्मा की ताकत को राजस्थान में केवल इसी से समझा जा सकता है कि देश भर में योगी आदित्यनाथ सबसे लोकप्रिय और ताकतवर मुख्यमंत्री गिने जाते हैं। मगर, योगी को तो फिर भी उत्तर प्रदेश की राजनीति में ही उनके साथी नेताओं द्वारा ही चुनौती मिलती रही हैं, मगर भजनलाल शर्मा के लिए कोई नेता राजस्थान में चुनौती नहीं बन पा रहा है। शर्मा ने सरलता से सबको अपना बनाने की कोशिश की है और वरिष्ठों के प्रति आदर व अवमानना का तो सवाल ही नहीं है। वसुंधरा राजे से पहली बार मिलने वाले लोग, पहली नजर में तो उनके व्यक्तित्व में राजवंश का रौबदाब ही देख पाते थे, उसके अलावा उनके व्यक्तित्व में और कुछ और भी देखे, तब तक तो मुलाकात का वक्त भी खत्म भी हो जाता। जबकि भजनलाल शर्मा से मिलने वाले कहते हैं कि मुख्यमंत्री अपने सदभावनापूर्ण व्यवहार के जरिए पहली ही मुलाकात में हर किस का दिल जीत लेते हैं। राजस्थान और देश भर में, मुख्यमंत्री शर्मा के बेहद सहज व सरल राजनीतिक आचरण ने विरोधियों के अपने बारे में इस प्रचार को लगभग खारिज कर दिया है, जिसमें उनके नए होने को राजनीतिक रूप से कमजोरी बताया जा रहा था। 

 

वैसे तो, मुख्यमंत्री का पद संभालने के बाद से ही भजनलाल शर्मा ने स्वयं को राजस्थान में सत्ता के एकमात्र केंद्र के रूप में स्थापित कर लिया था, लेकिन प्रशासनिक निर्णयों के अधिकार की अपनी ताकत को भी अब प्रभावी ढंग से स्थापित कर दिया है। हालांकि फिर भी, राजस्थान कांग्रेस के अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा अक्सर यह कहते रहे हैं कि मुख्यमंत्री नहीं, असल में सरकार तो अफसर चला रहे हैं, लेकिन मुख्यमंत्री ने कांग्रेस का यह नरेटिव ही फेल कर दिया है। सरकार में फैसले वे खुद लेते हैं और उन पर अफसरों से अमल भी वे अपनी तरह से करवाते हैं। हाल ही में मुख्यमंत्री ने राज्य में औद्योगिक विकास और निवेश बढ़ाने के लिए मजबूत कदम उठाते हुए प्रदेश में हर महीने 1000 करोड़ से अधिक के निवेश प्रस्तावों पर अमल के लिए अफसरों पर लगाम कसी है। ‘राइजिंग राजस्थान समिट’ में राजस्थान में लगभग 20 लाख करोड़ रुपए के निवेश प्रस्ताव आए थे, उनको साकार करने को प्राथमिकता पर रखते हुए वरिष्ठ अफसरों को उन्होंने सख्त निर्देश दिए हैं कि सभी एमओयू को प्रैक्टिकल स्टेज तक पहुंचाया जाए, जिसके परिणाम भी आने शुरू हो गए हैं। मुख्य सचिव सुधांश पंत और मुख्य सलाहकार शिखर अग्रवाल जैसे ताकतवर अफसरों का निश्चित रूप से महत्वपूर्ण प्रशासनिक मामलों के परामर्श लाजमी है, मगर अंतिम निर्णय तो पूरी तरह से मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा के पास ही सुरक्षित है। भजनलाल शर्मा की इस कार्यप्रणाली ने यह सुनिश्चित कर दिया है कि प्रशासनिक कार्यक्रम तो मुख्यमंत्री कार्यालय के एजेंडे के अनुरूप ही चलेंगे।

 

राजस्थान में मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा ने अपने विधायकों की भावनाओं को समायोजित करने और उनके जरिए प्रदेश के विकास को अंजाम देने के लिए भी कुछ खास कदम उठाए हैं, जिससे जमीनी स्तर की राजनीतिक गतिशीलता के प्रति उनका प्रभाव और जवाबदेही दोनों मजबूत हुई है। विरोधी विधायकों के शमन के इंतजाम भी उनके पास हैं। माना जा रहा है कि सत्ता और संगठन में शर्मा का यह सर्वसमावेशी दृष्टिकोण प्रदेश के कई चुनाव क्षेत्रों में बीजेपी का समर्थन पहले से ज्यादा मजबूत बनाने में महत्वपूर्ण नतीजे देगा। निष्कर्ष यही है कि राजस्थान में सरकार के निर्णय लेने की प्रक्रिया को शेखावत, वसुंधरा और गहलोत की तरह ही अपने अधिकारों को केंद्रीकृत करते हुए प्रशासनिक मामलों पर पकड़ बनाने के भजनलाल शर्मा के कदम उनकी मजबूत पकड़ को दिखा रहे हैं। वक्त जैसे-जैसे बीत रहा है, राजस्थान में बीजेपी मजबूत हो रही है और यह भी स्पष्ट होता जा रहा है कि मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा राजस्थान के राजनीतिक और प्रशासनिक परिदृश्य को आकार देने वाले शिल्पकार साबित हो रहे हैं। अब, विरोधी चाहे उनको पर्ची सीएम कहें या कमजोर, और या फिर अनुभवहीन, लेकिन राजस्थान रफ्तार पकड़ रहा है और मुख्यमंत्री के तौर पर भजनलाल शर्मा भारी पड़ रहे है, जो सभी को साफ दिख भी रहा है। हां, यह सब उनके विरोधियों को अगर नहीं दिख रहा हो, तो वे अपनी दृष्टि की शल्य क्रिया करवाने को स्वतंत्र हैं!  


- निरंजन परिहार

(लेखक राजनीतिक विश्लेषक हैं)


(इस लेख में लेखक के अपने विचार हैं।)

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