मौसम विभाग का कहना है कि मॉनसून आ गया है। तय समय से 15 दिन पहले। मैं उलझन में हूं कि ऐसे कैसे हो सकता है ? इस देश में समय से चलने का रिवाज नहीं है तो मॉनसून समय से पहले कैसे आ सकता है ? आप सोचिए, आज़ादी के 74 साल में कभी ट्रेनें समय से नहीं चलीं। ट्रेनों का घंटा-दो घंटा विलंब से चलना इतना आम है कि कई यात्री ट्रेन के तय वक्त से घंटा भर बाद घर से निकलते हैं। वक्त पर परियोजनाओं के पूरा होने का तो सवाल ही नहीं। कई दफा एक राजनेता जिस पुल का टेंडर पास करता है, उसका पुत्र उस पुल का उद्घाटन करता है। हज़ारों बार ऐसा हुआ कि कोई परियोजना जिस सरकार ने शुरु की, वो उसके विपक्ष में जाने के बाद पूरी हुई। इसके बाद श्रेय लेने के चक्कर में ‘दोनों पार्टियों’ ने रिश्वत में ली गई रकम का खुलासा कर दिया।
समय से चलना हमारे संस्कारों में नहीं है। आप देखिए, कोई नेता किसी उद्घाटन समारोह में समय से नहीं पहुंचा। पहले उसके चेले कार्यकर्ता कार्यक्रम में पहुंचते हैं। वे भीड़ का अनुमान बताते हैं। इसके बाद नेताजी फीता काटने कार्यक्रम में आते हैं। कई बार भीड़ नहीं पहुंचती तो घर से निकलने के ऐन समय पर उनकी तबीयत खराब हो जाती है। वैसे, नेताओं को क्या दोष देना ? आप ईमानदारी से किसी सरकारी दफ्तर में अपनी फाइल को आगे बढ़वाने की कोशिश कीजिए। वो फाइल कभी समय से सही बाबू की मेज तक नहीं पहुंच सकती। फाइल में हरे-गुलाबी नोटों का चुंबक लगा दीजिए तो जरुर फटाफट सरकती है।
आम लोग भी कहां समय से चलते हैं? कोई शादी-समारोह वगैरह में समय से नहीं जाता। लोगों का मानना है कि कार्ड में यदि सात बजे का समय दिया गया है तो कार्यक्रम 9 बजे आरंभ होगा। मेजबान मानता है कि कार्ड में यदि 9 बजे का समय छपवाया गया तो मेहमान 11 बजे से पहले नहीं आएंगे।
इस देश में समय से पुरस्कार नहीं मिलते। कई बंदों का नंबर तब आता है, जब वे या तो कब्र में टांग फँसाए बैठे होते हैं या स्वर्ग में बैठकर अप्सराओं का नृत्य देख रहे होते हैं। दोनों ही स्थितियों में उन्हें अवॉर्ड से कोई फर्क नहीं पड़ता। इसी तरह, यहां परीक्षाओं के नतीजे समय से नहीं आते। गड्ढ़े समय से नहीं भरे जाते। सरकारी अस्पताल में डॉक्टर समय से नहीं आते। उम्मीदवार कितना भी आलाकमान के दर पर समय से नाक रगड़ आए, समय से टिकट का बंटवारा नहीं होता। कई उम्मीदवारों को तो उस दिन टिकट मिलता है, जिस दिन वो विपक्षी पार्टी को टिकट के लिए नोटों से भरा बैग पहुंचा आता है। एक ज़माना था, जब हवाई जहाज समय से गंतव्य पर पहुंचते थे। आजकल वो भी हवा में ही देर कर देते हैं। रन-वे पर इतने हवाई जहाज खड़े होते हैं कि ऊपर उड़ते जहाज को हवा में ही कुछ देर टहलने का निर्देश दे दिया जाता है। जब सब कुछ देर से चलने को हम स्वीकार कर चुके हैं तो मॉनसून समय से पहले आकर हमारी आदत क्यों बिगाड़ना चाहता है। वैसे, मुझे उम्मीद है कि मॉनसून भी समय से पहले आने के संकेत देकर आएगा देर से ही क्योंकि इतने साल में उसे भी मालूम हो गया होगा कि समय से चला तो कोई भाव नहीं देगा।
- पीयूष पांडे