संघ पर आरोप लगाने से पहले राहुल इतिहास पढ़ लेते तो ठीक रहता

By डॉ. मोहनलाल गुप्ता | Aug 26, 2017

मेरा दागिस्तान की भूमिका में, कज्जाक लेखक रसूल हमजातोव ने अबू तालिब का एक कोटेशन लिखा है- यदि तुम अतीत पर पिस्तौल से गोली चलाओगे तो भविष्य तुम पर तोप से गोले बरसाएगा। यह एक साहित्यकार द्वारा जीवन के अनुभव के आधार पर लिखा गया दार्शनिक सत्य है। मेरा विश्वास है कि कांग्रेसी मित्र इसमें किसी हिंसा के दर्शन नहीं करेंगे। आजकल कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी बार-बार इतिहास पर गोलियां दाग रहे हैं। उन्होंने कहा है कि आरएसएस ने भारत के स्वतंत्रता आंदोलन में अपनी जिम्मेदारियों से मुंह मोड़ा। उन्होंने कहा है कि आरएसएस ने हमेशा अपने वैचारिक प्रतिद्वंद्वियों को निशाना बनाया। उन्होंने यह भी आरोप लगाया है कि आरएसएस हर स्थान पर अपने आदमियों को बैठा रही है। उन्होंने कहा है कि आरएसएस-बीजेपी मिलकर भारत के संविधान को बदलना चाहते हैं। उन्होंने वीर सावरकर का नाम लिए बिना उन पर भी कीचड़ उछाला है। 

 

राहुल गांधी द्वारा लगाए गए आरोपों पर सिलसिलेवार बात होनी चाहिए। आरएसएस का जन्म 1925 में हुआ। उस समय बाल गंगाधर तिलक के निधन को पांच साल हो चुके थे और कांग्रेस का नेतृत्व पूरी तरह गांधीजी और उनके साथियों के हाथों में था। उस समय जलियांवाला बाग में 484 लोगों को शहीद हुए 6 साल हो चुके थे और कांग्रेस गांधीजी के नेतृत्व में अहिंसा का राग अलाप रही थी। कांग्रेस की पिलपिली नीतियों के कारण बंगाल और पंजाब में क्रांतिकारियों का आक्रोश अपने चरम पर पहुंच रहा था और वे भारत को स्वतंत्र कराने के लिए मरने-मारने पर आमादा थे।

 

उन दिनों मुस्लिम लीग पाकिस्तान की मांग को लेकर सड़कों पर हिन्दुओं का खून बहाने की तैयारियां जोर-शोर से कर रही थी। लीग की अपनी एक निजी सेना थी जिसमें लड़ने, चाकू मारकर हत्या करने और धावा बोलने का प्रशिक्षण दिया जाता था। हथियार एकत्र किये जा रहे थे और भारतीय सेना के विघटित मुस्लिम सैनिकों को लीग की सेना में भर्ती किया जा रहा था। उसके दो संगठन बनाये गये, एक था मुस्लिम लीग वालंटियर कॉर्प तथा दूसरा था मुस्लिम नेशनल गार्ड। नेशनल गार्ड मुस्लिम लीग का गुप्त संगठन था। उसकी सदस्यता गुप्त थी और उसके अपने प्रशिक्षण केंद्र एवं मुख्यालय थे जहाँ उसके सदस्यों को सैन्य प्रशिक्षण और दंगों के समय लाठी, भाले और चाकू के इस्तेमाल के निर्देश दिये जाते थे। मुस्लिम नेशनल गार्ड के यूनिट कमाण्डरों को ‘‘सालार’’ कहा जाता था।

 

ऐसी विचित्र परिस्थितियों में हिन्दु समाज की रक्षा के लिए आरएसएस का जन्म हुआ। खाकी नेकर पहनने वाले ये लोग हाथ में लाठी लेकर व्यायाम आदि करने के लिए एकत्रित होते थे और हिन्दू धर्म रूपी रत्न की मंजूषा की सुरक्षा के लिए अलख जगाने को तत्पर थे। आरएसएस के संस्थापक डॉ. केशव बलिराम हेडगवार का उद्देश्य आरएसएस के रूप में राजनीतिक संगठन खड़ा करना नहीं था, क्योंकि ऐसा करने से आरएसएस के रूप में कांग्रेस के समानांतर हिन्दुओं का अलग राजनीतिक संगठन खड़ा हो जाता और इससे देश के स्वतंत्रता आंदोलन में फूट जैसी स्थिति उत्पन्न हो जाती। 1925 से 1940 तक डॉ. हेडगवार और 1940 से 1973 तक माधव सदाशिव गोलवलकर आरएसएस के माध्यम से हिन्दू समाज के सांस्कृतिक उत्थान के लिए कार्य करते रहे। यह कार्य आज भी जारी है। यही कारण था कि हेडगवार सहित आरएसएस के हजारों स्वयं सेवक व्यक्तिगत रूप से देश की आजादी के आंदोलन में शामिल हुए।

 

1947 में जब भारत का विभाजन हुआ तो आरएसएस के स्वयं सेवक हिन्दू जनता को मुस्लिम आक्रमणों से बचाने के लिए देश की सीमाओं पर जाकर खड़े हो गए। इस कारण हजारों निरीह हिन्दुओं के प्राण बचाए जा सके। काश्मीर रियासत का भारत में विलय करवाने में आरएसएस की महत्वपूर्ण भूमिका रही। सरदार पटेल के कहने पर गुरु गोलवलकर ने हरिसिंह को भारत में सम्मिलन के लिए तैयार किया। आगे चलकर जवाहर लाल नेहरू, लाल बहादुर शास्त्री और इंदिरा गांधी ने देश पर आई विपत्तियों में आरएसएस की सेवाएं लीं।

 

1962 के भारत-चीन युद्ध में आरएसएस ने देश की सेना के साथ-कंधे से कंधा मिलाया। सैनिक मार्गों के रक्षण का कार्य आरएसएस को सौंपा गया। सेना को रसद उपलब्ध कराने तथा शहीदों के परिवारों को संभालने में आरएसएस की प्रमुख भूमिका रही। इस योगदान के परिणाम स्वरूप जवाहरलाल नेहरू ने आरएसएस को 1963 की दिल्ली की गणतंत्र दिवस परेड में भाग लेने के लिए आमंत्रित किया। 1962 के चीन युद्ध में हालात ऐसे थे कि कम्यूनिस्ट पार्टियां भारत की हार और चीन की जीत का स्वप्न देख रही थीं और चीनी सेनाओं के लिए विजय मालाएं हाथ में लिए बैठी थीं। नेहरू के निमंत्रण पर आरएसएस के 3500 मजबूत स्वयं सेवकों ने परेड में भाग लेकर देश की नागरिक इच्छा शक्ति का अनूठा प्रदर्शन किया। उस परेड के चित्र आज भी उपलब्ध हैं।

 

1965 के भारत-पाक युद्ध के समय प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री ने सेना को युद्ध सामग्री उपलब्ध कराने में आरएसएस से सेवाएं प्राप्त कीं। शास्त्रीजी ने दिल्ली की यातायात व्यवस्था एवं कानून व्यवस्था आरएसएस के हाथों में सौंप दी। 1971 के भारत-पाक युद्ध में इंदिरा गांधी के समय आरएसएस देश का पहला और एक मात्र सबसे बड़ा संगठन था जिसने घायल सैनिकों के लिए रक्तदान शिविरों का आयोजन किया तथा घायल सैनिकों को रक्त की कोई कमी नहीं होने दी। गोलवलकर जी के निधन पर, प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने जिन भाव-भीने शब्दों में उन्हें श्रद्धांजलि दी थी, उन शब्दों को कभी भुलाया नहीं जा सकता।

 

राहुल गांधी ने बीजेपी और आरएसएस पर संविधान बदलने की मंशा रखने का आरोप लगाया है। यह तो राहुल गांधी ही जानें कि ऐसा वे क्यों कह रहे हैं किंतु क्या जवाहरलाल नेहरू से लेकर इंदिरा गांधी और राजीव गांधी ने देश का संविधान नहीं बदला। इंदिरा गांधी ने तो संविधान से राजा राम, सीता और हिन्दू देवी देवताओं के चित्र हटा दिए। राजीव गांधी ने शाहबानो केस में संविधान में संशोधन कर दिया। तो क्या नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में देश की प्रबल बहुमत से चुनी हुई सरकार को संविधान में संशोधन करने का अधिकार नहीं ?

 

वीर सावरकर को लेकर राहुल गांधी ने जो कुछ कहा है, उसके सम्बन्ध में केवल इतना कहना पर्याप्त होगा कि दो-दो काले पानी की सजा भुगतने वाला तथा अपने सम्पूर्ण परिवार को राष्ट्र की स्वतंत्रता के लिए बलि चढ़ाने वाला देश का यह स्वतंत्रता सेनानी अपनी तरह का पूरे विश्व इतिहास में अकेला उदाहरण है। वीर सावरकर के लिए कहा जाता है कि गांधीजी ने उतना चरखा नहीं चलाया होगा जितना वीर सावरकर ने अण्डमान की जेल में कोल्हू चलाया। संक्षेप में यही कहा जा सकता है कि राहुल गांधी के झूठ बोलने से देश और आरएसएस का इतिहास नहीं बदल जाएगा।

 

डॉ. मोहनलाल गुप्ता

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार एवं विचारक हैं।)

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