Bankim Chandra Chatterjee Death Anniversary: महान साहित्य रचनाकार बंकिम चंद्र चटर्जी ने वंदे मातरम लिखकर जगाई थी राष्ट्रभक्ति की लौ

By अनन्या मिश्रा | Apr 08, 2024

भारत की आजादी में राजनेताओं व राजा-महाराजाओं का ही नहीं बल्कि वकीलों, कवियों, साहित्यकारों और विद्यार्थियों का भी विशेष योगदान था। महान साहित्य रचनाकार और स्वतंत्रता सेनानी बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय उर्फ बंकिम चंद्र चटर्जी ने भी भारत की आजादी में विशेष योगदान दिया था। आज ही के दिन यानी की 08 अप्रैल को अमर गीत वंदे मातरम की रचना करने वाले बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय उर्फ बंकिम चंद्र चटर्जी का निधन हो गया था। आइए जानते हैं उनकी डेथ एनिवर्सरी के मौके पर बंकिम चंद्र चटर्जी के जीवन से जुड़ी कुछ रोचक बातों के बारे में।


जन्म और शिक्षा

पश्चिम बंगाल के 24 परगना जिले के कांठलपाड़ा गांव में 26 जून 1838 को बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय का जन्म हुआ था। वह बंगला भाषा के शीर्षस्थ व ऐतिहासिक उपन्यासकार थे। अपनी शुरूआती शिक्षा पूरी कर साल 1857 में उन्होंने बीए पास किया था। बता दें कि वह पहले भारतीय थे, जिन्होंने प्रेसीडेंसी कॉलेज से बीए की उपाधि प्राप्त की थी। फिर साल 1869 को चटर्जी ने कानून की डिग्री प्राप्त की। इसके बाद उनको डिप्टी मजिस्ट्रेट पद पर नियुक्ति मिल गई। वहीं कुछ सालों तक बंकिम चंद्र ने बंगाल सरकार में सचिव पद पर काम किया। वहीं साल 1891 में उन्होंने सरकारी नौकरी से सेवानिवृत्ति ले ली।

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लेखन कार्य

बंकिम चंद्र चटर्जी ने साल 1865 में अपना पहला बांग्ला उपन्यास दुर्गेश नंदिनी लिखा था। इस दौरान वह 27 साल के थे। फिर उन्होंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। इसके अलावा उनको बंगला साहित्य को जनमानस तक पहुंचाने वाला पहला साहित्यकार भी माना जाता है। बंकिम चंद्र ने हिंदी और बांगला दोनों भाषाओं में अपनी लेखनी से अलग पहचान कायम की थी।


वंदे मातरम की रचना

बता दें कि साल 1874 में बंकिम चंद्र चटर्जी ने राष्ट्रगीत 'वंदे मातरम' की रचना की थी। प्राप्त जानकारी के मुताबिक अंग्रेजी हुकूमत ने हर कार्यक्रम में इंग्लैंड की महारानी के सम्मान वाले गीत- गॉड! सेव द क्वीन को गाना जरूरी कर दिया था। जिससे बंकिम चंद्र समेत कई देशवासी बेहद आहत हुए थे। इसके जवाब में साल 1874 में बंकिम ने वंदे मातरम शीर्षक से एक गीत की रचना की। इस गीत में भारत भूमि को मां कहकर संबोधित किया गया था। बंकिम चंद्र द्वारा रचित इस गीत ने देश में राष्ट्रीयता की भावना जागृत करने में बहुत योगदान दिया।


पहली बार गाया वंदे मातरम 

साल 1896 में कलकत्ता में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अधिवेशन में पहली बार वंदे मातरम गीत गाया गया था। कुछ ही समय बाद यह गीत भारतीय क्रांतिकारियों का पसंदीदा गीत और मुख्य उद्घोष बन गया। देशभर में न सिर्फ क्रांतिकारियों बल्कि बच्चे, बड़े-बूढ़े, युवा और भारतीय महिलाओं की जुबां पर सिर्फ वंदे मातरम का नारा गूंजता था। 


टैगोर ने दी वंदे मातरम की धुन

बताया जाता है कि बंकिम चंद्र के रचित वंदे मातरम गीत को उनके जीवनकाल में अधिक ख्याति नहीं मिल पाई थी। हांलाकि इस बात में कोई दोराय नहीं है कि आज आजाद भारत के करोड़ों युवा दिलों में यह गीत उसी अमर राष्ट्र भाव के साथ धड़कता है। इस गीत की धुन ठाकुर रवींद्रनाथ टैगोर ने बनाई थी। जिसके बाद भारत के पहले राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद ने 24 जनवरी 1950 को वंदे मातरम को राष्ट्रगीत का दर्जा दिए जाने की घोषणा की थी।


मृत्यु

अपनी रचनाओं से युवा और क्रांतिकारियों के मन में आजादी की अलख जगाने वाले महान रचनाकार का 56 साल की आयु में 8 अप्रैल 1894 को निधन हो गया था। 19वीं सदी के इस महान क्रांतिकारी उपन्यासकार की मृत्यु हो गई थी।

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