By अनन्या मिश्रा | Jun 26, 2024
आज ही के दिन यानी की 26 जून को भारत के लोकप्रिय उपन्यासकार, कवि और पत्रकार बंकिमचंद्र चट्टोपाध्याय का जन्म हुआ था। उन्होंने देश का राष्ट्रीय गीत 'वंदे मातरम' लिखा था। बता दें कि बंकिमचंद्र को बांग्ला में साहित्य सम्राट के नाम से भी जाना जाता है। आजादी की लड़ाई में सक्रिय रहे साहित्य मनीषियों ने वंदे मातरम जैसे अमर और महान रचनाओं से आजादी की लड़ाई में नई जान फूंकने का काम किया था। आइए जानते हैं उनकी बर्थ एनिवर्सरी के मौके पर बंकिमचंद्र चटर्जी के जीवन से जुड़ी कुछ रोचक बातों के बारे में...
जन्म और परिवार
बंगाल स्थित कंथालपाड़ा में 26 जून 1838 को बंकिमचंद्र चटर्जी का जन्म हुआ था। वह बांग्ला भाषा के शीर्षस्थ व ऐतिहासिक उपन्यासकार थे। बता दें कि उनको भारत का एलेक्जेंडर ड्यूमा भी माना जा सकता है। उन्होंने साल 1865 में अपना पहला बांग्ला उपन्यास लिखा था। जिसका नाम 'दुर्गेश नंदिनी' था। इस दौरान बंकिम की उम्र महज 27 साल थी।
वंदे मातरम की रचना
साल 1876 में बंकिमचंद्र चट्टोपाध्याय ने वंदे मातरम गीत की रचना की थी। उस दौरान देश में ब्रिटिश शासन था। दरअसल, शिक्षा पूरी होने के बाद उनको डिप्टी मजिस्ट्रेट पद पर नौकरी मिल गई। कुछ सालों बाद वह तत्कालीन बंगाल सरकार में सचिव पद पर काम करने लगे। इसी दौरान ब्रिटिश सरकार ने एक नया फरमान जारी किया कि भारत के हर सरकारी समारोह में ‘गॉड! सेव द क्वीन’ गीत को गाना अनिवार्य होगा। यह बात बंकिमचंद्र को नापसंद गुजरी। वह ब्रिटिश शासन के इस तुगलकी फरमान से बेहद नाराज हुए और उन्होंने भारत के गुणगान करने वाला गीत लिखने का फैसला किया।
ब्रिटिश शासन के इस फैसले से नाराज होकर साल 1874 में बंकिमचंद्र चटर्जी ने वंदे मातरम शीर्षक से एक गीत की रचना की। इस गीत के मुख्य भाव में भारत भूमि को भारत माता कहकर संबोधित किया गया। फिर साल 1882 में यह गीत उपन्यास आनंदमठ में भी शामिल किया गया। बता दें कि ऐतिहासिक और सामाजिक तानेबाने से बुने हुए उपन्यास आनंदमठ ने देश में राष्ट्रीयता की भावना जागृत करने में बहुत योगदान दिया।
राष्ट्रभक्ति के नजरिए से बात करें, तो आनंदमठ बंकिमचंद्र का सबसे लोकप्रिय उपन्यास है। सबसे पहले इसी उपन्यास में वंदे मातरम गीत प्रकाशित हुआ था। इसके अलावा महज 27 साल की उम्र में उन्होंने दुर्गेशनंदिनी उपन्यास लिखा था। जोकि काफी लोकप्रिय हुआ। बंकिमचंद्र, टैगोर से पहले ऐसे बांग्ला साहित्यकारों में शामिल थे, जिन्होंने अपने लेखन से आम जनमानस में अपनी पैठ बनाई थी।
मृत्यु
लेखन के अलावा बंकिमचंद्र चटर्जी सरकारी सेवा में रहे। साल 1891 में वह सरकारी सेवा से रिटायर हुए। बंकिमचंद्र को रायबहादुर और सीआईई की उपाधियों से भी नवाजा गया था। वहीं 8 अप्रैल 1894 को बंकिमचंद्र चटर्जी ने हमेशा के लिए इस दुनिया को अलविदा कह दिया।