ब्रिटिश काल से ही इस्लामिक कट्टरपंथ की चपेट में रहा है बांग्लादेश

By चेतनादित्य आलोक | Aug 17, 2024

बांग्लादेशी सेना प्रमुख के द्वारा प्रधानमंत्री शेख हसीना से त्याग−पत्र लेने और उन्हें 45 मिनट के भीतर देश छोड़कर भागने के लिए मजबूर करने के बाद वहां की परिस्थितियां जितनी तेजी से बदली हैं, उससे दुनिया भर में आश्चर्य का माहौल बना हुआ है। विशेष रूप से उक्त घटना के बाद से मुस्लिम देशों के शासकों के पसीने यह सोचकर छूटने लगे हैं कि न मालूम अगला नंबर किसका लगने वाला है... कहीं उनके देश में भी तो ऐसा कुछ नहीं हो जाएगा... कहीं उनकी सत्ता का सिंहासन भी तो उनसे नहीं छिन जाएगा। वहीं, दूसरी ओर लोकतंत्र के हिमायतियों और लोकतांत्रिक देशों के शासकों को आश्चर्य हो रहा है कि हाल तक एक समावेशी लोकतांत्रिक देश प्रतीत होने वाला बांग्लादेश अचानक इस कदर इस्लामिक कट्टरपंथियों के हाथों का खिलौना कैसे बन गया। तमाम घटनाओं को उनकी संपूर्णता में स्वीकार कर उन पर गहराई से विचार करने से मालूम होता है कि वास्तव में बांग्लादेश अचानक इस्लामिक कट्टरपंथियों के हाथों का खिलौना नहीं बन गया, बल्कि सन् 1971 में बांग्लादेश के स्वतंत्र होने के बाद से ही वहां पर लगातार इस्लामिक कट्टरपंथी, आतंकवादी एवं अन्य उग्रवादी समूहों और संगठनों ने अपनी शक्ति और आकार बढ़ाने का कार्य किया है। सबसे बड़ी आश्चर्य की बात तो यह कि उन्होंने अपना यह अभियान चोरी−छुपे नहीं चलाया, बल्कि वे हमेशा से मुखर रहे हैं।

 

इसे भी पढ़ें: बांग्लादेश की अपदस्थ प्रधानमंत्री Sheikh Hasina के खिलाफ हत्या का एक और मुकदमा दर्ज


गौरतलब है कि इन तमाम इस्लामिक कट्टरपंथी एवं आतंकवादी समूहों और संगठनों को पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आइएसआइ अपना खुला समर्थन और सहयोग प्रदान करती रही है। बांग्लादेशी इस्लामिक कट्टरपंथी एवं आतंकवादी समूहों और संगठनों तथा पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आइएसआइ का यह गंठजोड़ इतना घातक है कि इसने बांग्लादेश की धरती पर मानवता को तार−तार करने का कोई अवसर नहीं छोड़ा। इसी घातक समीकरण की दो प्रमुख कडि़यां जमात−उल−मुजाहिदीन एवं जमात−ए−इस्लामी नामक कट्टरता फैलाने वाले संगठन हैं। बता दें कि ये दोनों संगठन हमेशा से ही बांग्लादेश के मूल राजनीतिक, सामाजिक, सांस्कृतिक एवं आर्थिक ढांचे के विरूद्ध कार्य करते रहे हैं। दरअसल, इन संगठनों का लोकतांत्रिक पद्धति और शासन से कभी कुछ भी लेना−देना नहीं रहा है। ये तो बांग्लादेश का पूर्ण इस्लामीकरण करने के उद्देश्य से वहां पर लोकतंत्र तथा देश के समावेशी विकास के आधारस्वरूप सामाजिक ताने−बाने को ध्वस्त करने के प्रयास हमेशा से करते रहे हैं। ये वही इस्लामिक रैडिकल संगठन हैं, जिन्होंने बांग्लादेश को रैडिकलाइज कर उसकी 'अनेकता में एकता' की जड़ें खोदने का कार्य करते रहे हैं। इनमें 'जमात−उल−मुजाहिदीन, बांग्लादेश' (जेएमबी) एक सक्रिय स्वदेशी आतंकवादी संगठन है, जिसका उद्देश्य बांग्लादेश को एक इस्लामी राज्य बनाना और वहां शरिया के आधार पर चलने वाली सरकार का गठन करना रहा है।


बता दें कि अप्रैल 1998 में ढाका प्रभाग के जमालपुर में अब्दुर रहमान द्वारा इसको स्थापित किया गया था और इसकी आतंकी गतिविधियों के लिए पहली बार 2001 में बांग्लादेश में इसकी पहचान सार्वजनिक हुई थी। हालांकि गठन के बाद से ही इस आतंकवादी संगठन ने देश के उत्तरी और दक्षिणी क्षेत्रों में आतंकियों की भर्ती करने, उन्हें प्रशिक्षण देने, धन जुटाने और अपने सदस्यों को संगठित करने का कार्य आरंभ कर दिया था। गौरतलब है कि 2005 में पूरे बांग्लादेश में धार्मिक हिंसा भड़काने के लिए तत्कालीन शेख हसीना सरकार ने इस संगठन को प्रतिबंधित कर दिया था, लेकिन यह संगठन अब तक काफी शक्तिशाली हो चुका था। इसलिए इसने सरकारी प्रतिबंध को धत्ता बताते हुए हार मानकर चुप बैठने के बजाए पलटवार किया और बांग्लादेश में शरिया कानून लागू करने की मांग को लेकर तत्कालीन बांग्लादेश के कुल 64 में से 63 जिलों में बम विस्फोट कराकर दहशत फैला दी थी। बांग्लादेश के इतिहास में जहरीले आतंकवाद के काले अध्याय की शुरूआत का वह दिन 17 अगस्त 2005 का था, जब 'जमात−उल−मुजाहिदीन, बांग्लादेश' ने पूरे बांग्लादेश में 300 स्थानों पर 500 बम विस्फोट किए थे। हालांकि उसके बाद शेख हसीना सरकार की सख्ती के कारण यह संगठन कमजोर होता गया, किंतु 2016 में एक बार पुनरू इस आतंकवादी संगठन के गुर्गे संगठित हुए।

इस बार अपनी ताकत का प्रदर्शन करते हुए उन्होंने बांग्लादेश में पंथनिरपेक्षतावादियों पर आक्रमण किए। उस दौरान उत्तरी बांग्लादेश में इसके गूर्गों ने कई सार्वजनिक हत्याएं भी कीं। इसी प्रकार 'जमात−ए−इस्लामी' इस्लामिक कट्टरता फैलाने वाला बांग्लादेश का एक राजनीतिक दल है, जिसका गठन इस्लामिक विचारक सैयद अबुल अला मौदूदी ने ब्रिटिश भारत के दौरान ही सन् 1941 में की थी। गठन के समय यह एक सामाजिक संगठन था, जिसका उद्देश्य मुस्लिम जनता को रैडिकलाइज कर एकीकृत इस्लामिक राष्ट्र बनाने का था, लेकिन उसका सपना पूरा होने से पहले ही टूट गया, जब सन् 1947 में भारत का विभाजन हुआ। बता दें कि विभाजन ने न केवल दो राष्ट्रों को, बल्कि भिन्न विचारधाराओं पर आधारित भारत और पाकिस्तान दो पृथक राज्यों को भी जन्म दिया। भारत एक पंथनिरपेक्ष राष्ट्र बना, जिसमें हिंदू बहुसंख्यक और बड़ी संख्या में मुस्लिम तथा जैन, बौद्ध, पारसी, सिक्ख, इसाई आदि कई अल्पसंख्यक समुदाय के लोग भी थे, जबकि पाकिस्तान एक मुस्लिम राज्य बना। जाहिर है कि विभाजन के बाद मौदूदी पाकिस्तान चले गए और वहां पर अपना एजेंडा चलाने लगे। फिर 16 दिसंबर 1971 को जब बांग्लादेश स्वतंत्र होकर एक अलग राष्ट्र बना, तब जमात ए−इस्लामी पार्टी भी दो फाड़ हो गई। इसका एक हिस्सा पाकिस्तान में रहा और दूसरा यानी पूर्वी धड़ा बांग्लादेश में फलने−फूलन लगा।


फिलहाल, जमात−ए−इस्लामी बांग्लादेश की सबसे बड़ी इस्लामिक राजनीतिक पार्टी है, जो हमेशा से बांग्लादेशी राष्ट्रवादियों के विरोध में रही है। जमात−ए−इस्लामी वही संगठन है, जिसने 1971 के 'बांग्लादेश मुक्ति संग्राम' में बांग्लादेशी राष्ट्रवादियों के विरूद्ध पाकिस्तानी सेना को अपना समर्थन और सहयोग दिया था। यह वही पार्टी है, जिस पर बांग्लादेश में अल्पसंख्यकों, विशेषकर हिंदुओं पर हमले और अत्याचार करने के आरोप हमेशा से लगते रहे हैं। यहां तक कि वर्ष 2010 में 'अंतरराष्ट्रीय अपराध टि्रब्यूनल' ने जमात−ए−इस्लामी पार्टी के आठ नेताओं को 1971 युद्ध के अपराध का दोषी बताकर सजा सुनाई थी। वहीं, भारत में अयोध्या स्थित बाबरी विवादास्पद ढांचे के विध्वंस कर दिए जाने के बाद इस पार्टी के नेताओं और छात्र संगठन पर बांग्लादेश में हिन्दू विरोधी दंगे भड़काने तथा हिंदुओं को जान−माल की क्षति पहुंचाने और हिंदू मंदिरों आदि में तोड़−फोड़ एवं लूटपाट करने के भी आरोप लगते रहे हैं। देखा जाए तो पाकिस्तान स्थित इस्लामिक आतंकवादियों एवं आइएसआइ की शह, समर्थन और सहयोग के बल पर बांग्लादेशी कट्टरपंथी और आतंकवादी संगठन अवसर मिलते ही जी−भर उपद्रव करते... उत्पात मचाते और हिंदुओं के खिलाफ क्रूरता की हद तक हिंसक कार्रवाइयों को अंजाम देते रहे हैं। हालांकि यह भी सच है कि शेख हसीना के प्रधानमंत्री रहते भर में उनकी दाल नहीं गल पाती थी, क्योंकि वह यथासंभव उन्हें रोकने, नियंत्रित करने और कमजोर करने के प्रयास करती रहती थीं।

 

इसे भी पढ़ें: Bangladesh Unrest: मोहम्मद यूनुस ने पीएम मोदी से की फोन पर बात, हिंदुओं की सुरक्षा का दिया भरोसा


दूसरी ओर पूर्व प्रधानमंत्री तथा साम्राज्यवादी देश चीन और आतंक परस्त देश पाकिस्तान की हमदर्द एवं शेख हसीना की दुश्मन नंबर एक मानी जाने वाली और बांग्लादेश की मुख्य विपक्षी पार्टी 'बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी' की अध्यक्ष खालिदा जिया के शासन काल में बांग्लादेश के तमाम कट्टरपंथी और आतंकवादी संगठनों को खूब प्रश्रय मिलता रहा है। दरअसल, ये तमाम कट्टरपंथी और आतंकवादी संगठन खालिदा जिया के लिए एक 'राजनीतिक टूल किट' की तरह कार्य करते रहे हैं। इस प्रकार देखा जाए तो एक तरफ बांग्लादेश में 'नकारात्मक राजनीति की बेगम' खालिदा जिया हैं, जिन्हें तमाम कट्टरपंथी और आतंकवादी संगठनों का समर्थन और सहयोग प्राप्त है, तो दूसरी ओर 'सकारात्मक राजनीति की बेगम' शेख हसीना हैं, जिन्हें तमाम बांग्लादेशी राष्ट्रवादियों का साथ और सहयोग तो प्राप्त है ही, वहां की एक करोड़ से भी अधिक की हिंदू आबादी सहित तमाम अल्पसंख्यक समुदाय के लोग, जो बांग्लादेश को एक खूबसूरत पंथनिरपेक्ष राष्ट्र बनाए रखना चाहते हैं, शेख हसीना के समर्थन में हमेशा ताल से ताल मिलाकर चलने के लिए तैयार रहते हैं।


−चेतनादित्य आलोक, 

वरिष्ठ पत्रकार, साहित्यकार एवं राजनीतिक विश्लेषक, रांची, झारखंड.

प्रमुख खबरें

दोस्त इजरायल के लिए भारत ने कर दिया बड़ा काम, देखते रह गए 193 देश

Nawada Fire: CM Nitish के निर्देश के बाद पुसिल का एक्शन, 16 लोगों को किया गिरफ्तार, पीड़ितों के लिए मुआवजे की मांग

Ukraine पहुंचे भारत के हथियार, रूस हो गया इससे नाराज, विदेश मंत्रालय ने मीडिया रिपोर्ट को बताया भ्रामक

Waqf Board case: आप विधायक अमानतुल्लाह खान की याचिका, दिल्ली हाईकोर्ट ने ईडी से रिपोर्ट मांगी