By रेनू तिवारी | May 20, 2022
नयी दिल्ली। समाजवादी नेता आजम खान आखिरकार 27 महीने के लंबे समय के बाद जेल से बाहर आ गए। रामपुर (सदर) विधानसभा सीट से समाजवादी पार्टी के विधायक खान को सुप्रीम कोर्ट द्वारा उनके खिलाफ दर्ज 89वें मामले में अंतरिम जमानत दिए जाने के बाद उन्हें रिहा कर दिया गया है। आजम खान के स्वागत के दौरान राजनीति भी देखने के मिली। आजम खान और अखिलेश यादव काफी करीबी माने जाते थे लेकिन इस दौरान आजम खान को मिलने के लिए अखिलेश यादव उनके आवास पर नहीं पहुंचे लेकिन इस दौरान शिवपाल यादव को आजम खान के आवास पर देखा गया। आजम खान से मिलने के बाद शिवपास यादव ने कहा कि मैं कैसे मिलने नहीं आता, आजम खान सामाजवादी पार्टी का हिस्सा है।
शिवपाल और आजम खान के बेटे अब्दुल्ला आजम आजन खान को रिसीव करने के लिए सीतापुर जेल पहुंचे। हालांकि, अखिलेश यादव या कोई अन्य प्रमुख सपा नेता इस अवसर नहीं दिखाई दिया हालांकि समाजवादी पार्टी के कुछ स्थानीय नेता उनके स्वागत के लिए जेल पहुंचे थे। आजम खान की रिहाई के बाद, अखिलेश यादव ने हालांकि, एक ट्वीट में कहा कि 'झूठ के क्षण होते हैं, सदियां नहीं'। उन्होंने जेल से नेता की रिहाई की सराहना की और कहा कि जमानत देकर सुप्रीम कोर्ट ने न्याय के नए मानक दिए हैं।
उच्चतम न्यायालय ने कथित धोखाधड़ी के एक मामले में जेल में कैद समाजवादी पार्टी के नेता आजम खान को बृहस्पतिवार को अंतरिम जमानत दे दी, जिससे उनकी रिहाई की राह आसान हो गई है। शीर्ष न्यायालय ने कहा कि संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत उसे (न्याालय को) मिले विशेषाधिकार का उपयोग करने के लिए यह एक उपयुक्त मामला है। न्यायमूर्ति एल. नागेश्वर राव, न्यायमूर्ति बी. आर. गवई और न्यायमूर्ति ए. एस. बोपन्ना की पीठ ने कहा, ‘‘याचिकाकर्ता को भारतीय दंड संहिता की धारा 420 (धोखाधड़ी) और 120बी (आपराधिक साजिश) के तहत दंडनीय अपराधों के लिए पुलिस थाना कोतवाली, रामपुर, उत्तर प्रदेश में 2020 के अपराध कांड संख्या 70 को लेकर दर्ज प्राथमिकी के संदर्भ में निचली अदालत द्वारा उपयुक्त पाये जाने वाले नियम व शर्तों पर अंतरिम जमानत पर रिहा करने का निर्देश दिया जाता है।’’ पीठ ने इस बात का जिक्र किया, ‘‘सामान्य परिस्थितियों में, हम मौजूदा रिट याचिका पर सुनवाई नहीं करते। याचिकाकर्ता को कानून में उपलब्ध उपायों का सहारा लेने का निर्देश दिया जाता। हालांकि, मौजूदा मामले में तथ्य बहुत असमान्य हैं। ’’
शीर्ष न्यायालय ने कहा कहा कि हालांकि इस मामले में प्राथमिकी18 मार्च 2020 को दर्ज की गई और आरोपपत्र 10 सितंबर 2020 को दाखिल किया गया, जबकि खान को एक साल सात महीने बाद, अतिरिक्त मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट-रामपुर द्वारा छह मई 2022 को जारी आदेश के बाद अब जाकर आरोपी बनाया गया।’’ न्यायालय ने कहा, ‘‘ऐसा नहीं है कि जो आरोप याचिकाकर्ता के खिलाफ अब लगाये गये हैं वे उस वक्त नहीं लगाये जा सकते थे। याचिकाकार्ता के खिलाफ 2020 की प्राथमिकी संख्या 70 में मुख्य आरोप यह है कि प्रमाणपत्र जाली हैं। यह आरोप भी है कि जिस व्यक्ति ने प्रमाणपत्र जारी किये थे वह उन्हें जारी करने के लिए अधिकृत नहीं था। ’’ पीठ ने कहा, ‘‘याचिकाकर्ता को 2020 की प्राथमिकी संख्या 70 में आरोपी बनाने में विलंब और उसमें लगाये गये आरोपों की प्रकृति पर विचार करते हुए हमारा मानना है कि याचिकाकर्ता को उसकी व्यक्तिगत स्वतंत्रता से वंचित करना न्याय के हित में नहीं होगा। खासतौर पर तब, जब 87 आपराधिक मामलों/प्राथमिकियों के सिलसिले में, जो रिट याचिका (आपराधिक) संख्या 39 (वर्ष 2022) के विषय हैं, जिनमें उन्हें पहले ही जमानत मिल चुकी है।’’
शीर्ष न्यायालय ने इस बात का भी जिक्र किया कि इस तरह का जमानत आदेश पिछली बार 10 मई 2022 को इलाहाबाद उच्च न्यायाल के एकल न्यायाधीश ने आदेश को सुरक्षित रखने के कई महीने के अंतराल के बाद जारी किया था। पीठ ने उत्तर प्रदेश सरकार की यह दलील भी खारिज कर दी कि खान ने मामले में जांच अधिकारी को धमकी दी। न्यायालय ने खान को दो सप्ताह के भीतर नियमित जमानत के लिए याचिका दायर करने का निर्देश दिया तथा निचली अदालत से कहा कि वह शीर्ष न्यायालय की किसी भी टिप्पणी से प्रभावित हुए बगैर याचिका के गुण-दोष के आधार पर इस पर निर्णय करे। शीर्ष न्यायालय ने कहा कि नियमित जमानत के लिए याचिका पर फैसला आने तक खान अंतरिम जमानत पर रहेंगे।
पीठ ने कहा, ‘‘ संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत मिले विशेषाधिकार का उपयोग करने के लिए यह एक उपयुक्त मामला है और याचिकाकर्ता को अंतरिम जमानत दी जाती है।’’ आजम खान, उत्तर प्रदेश के रामपुर जिले में जमीन हड़पने सहित कई अन्य मामलों में सीतापुर जेल में कैद हैं। संविधान का अनुच्छेद 142 उच्चतम न्यायालय के अपने अधिकार क्षेत्र का उपयोग करने और अपने समक्ष लंबित किसी भी मामले या मामलों में पूर्ण न्याय करने के लिए आदेश जारी करने की शक्ति से संबंधित है। इससे पहले, उत्तर प्रदेश सरकार ने खान की जमानत याचिका का विरोध करते हुए उन्हें ‘‘भूमि कब्जा करने वाला’’ और ‘‘आदतन अपराधी’’ बताया था। उत्तर प्रदेश सरकार की ओर से पेश हुए अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल (एएसजी) एस वी राजू ने न्यायालय से कहा था कि खान ने जमीन हड़पने के मामले में जांच अधिकारी को कथित रूप से धमकी दी थी।
वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने याचिकाकर्ता की ओर न्यायालय में पेश होते हुए दलील दी कि तथ्यों से यह स्पष्ट है कि सत्तारूढ़ दल खान को एक के बाद एक प्राथमिकी में फंसा कर उन्हें जेल में रखने की हर कोशिश कर रही है। उन्होंने दलील कि मौजूदा मामला राजनीतिक प्रतिशोध का है। शीर्ष न्यायालय ने 17 मई को मामले पर सभी पक्षों की दलील सुनने के बाद अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था। न्यायालय ने इससे पहले खान की जमानत अर्जी पर सुनवाई में देरी पर अप्रसन्नता व्यक्त करते हुए कहा था कि यह न्याय का मजाक उड़ाने जैसा है। इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने मोहम्मद अली जौहर विश्वविद्यालय परियोजना के लिए शत्रु संपत्ति हड़पने के मामले में खान की जमानत याचिका पर पांच मई को अपना आदेश सुरक्षित रख लिया था।
खान और अन्य के खिलाफ कथित तौर पर शत्रु संपत्ति हड़पने और करोड़ों रुपये से अधिक के सार्वजनिक धन के दुरुपयोग के मामले में प्राथमिकी दर्ज की गई थी।
प्राथमिकी में यह आरोप लगाया गया था कि देश के विभाजन के दौरान इमामुद्दीन कुरैशी नामक एक व्यक्ति पाकिस्तान चला गया था और उसकी जमीन को शत्रु संपत्ति के रूप में दर्ज किया गया था, लेकिन खान ने अन्य लोगों की मिलीभगत से भूखंड पर कब्जा कर लिया।
भारतीय दंड संहिता और सार्वजनिक संपत्ति नुकसान रोकथाम कानून के तहत रामपुर के अजीम नगर थाने में खान और अन्य के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज की गई थी।