इतनी FIR के बावजूद फिलहाल रामपुर उपचुनाव में आजम खान भारी नजर आ रहे

By संजय सक्सेना | Oct 05, 2019

योगी सरकार द्वारा भूमाफिया घोषित किए गए बदजुबान नेता और सांसद आजम खान आजकल कोर्ट−कचहरी से लेकर थाने तक के चक्कर लगा रहे हैं। आम चुनाव के समय अपनी प्रतिद्वंद्वी और पूर्व सिने तारिका जयाप्रदा के वस्त्रों पर टिप्पणी करने वाले आजम, भारत माता से लेकर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, अमित शाह, लोकसभा की कार्यवाही का संचालन कर रहीं रमा देवी, उत्तर प्रदेश के राज्यपाल राम नाईक, भारतीय सेना, ब्यूरोक्रेसी, संजय और राजीव गांधी की असामयिक मृत्यु सहित तमाम मसलों पर विवादित बयानबाजी के चलते खूब सुर्खियां बटोरते रहे हैं। कुछ मामलों में जब 'पानी सिर से ऊपर' चला गया तो आजम को माफी मांग कर पीछा छुड़ाना पड़ा। सत्ता में रहते और सत्ता से बाहर रहने के दौरान भी आजम कभी डरे नहीं, डिगे नहीं। उन्हें अपनी कही बातों पर कभी पछतावा भी नहीं हुआ, लेकिन योगी राज में नजारा काफी बदल गया है। बड़बोले आजम घुटने के बल आ गए हैं। आजम ने न केवल समाजवादी सरकार के समय वाला 'इकबाल' खो दिया है, बल्कि सत्ता में रहते उनके द्वारा जो काले कारनामे किए गए थे उसकी भी परत−दर−परत खुलने लगी है। अब आजम की हनक−धमक वाली बातें बेमानी हो गई हैं। आजम ही नहीं उनकी पत्नी, बेटा और कुछ करीबी भी अदालतों से लेकर थाना−पुलिस के चक्कर में फंसे हुए हैं। जांच एजेंसी एसआईटी लगातार आजम परिवार से पूछताछ कर रही है। आजम को एसआईटी के सवालों का जवाब देने में पसीने छूट रहे हैं।

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आजम के काले कारनामों का सच जानकर लोग हैरान हैं तो ऐसे लोगों की संख्या भी कम नहीं है जो इसे (आजम पर मुकदमे) योगी सरकार की साजिश बताकर आजम का बचाव कर रहे हैं। यहां तक कि समाजवादी पार्टी के संरक्षक मुलायम सिंह यादव भी ऐसा ही सोचते हैं। इसीलिए पिछले माह उन्होंने प्रेस कांफ्रेंस करके कार्यकर्ताओं से आजम के समर्थन में आंदोलन चलाने तक का आह्वान किया था। यह और बात थी कि नेताजी की बात को न तो पार्टी कार्यकर्ताओं ने और न ही अखिलेश यादव ने गंभीरता से लिया। हाँ, एक बार आजम के समर्थन में जरूर अखिलेश रामपुर पहुंचे थे, परंतु उनके कार्यक्रम में वह धार नहीं दिखाई दी जो सपा के आंदोलन में देखने को मिलती है। सब तरफ से निराशा−हताश आजम खान के लिए अंतिम सहारा अदालत थी। योगी सरकार की कथित 'साजिश' को आधार बनाकर आजम कोर्ट पहुंच गए, लेकिन कोर्ट भी इस बात से सहमत नहीं दिखी कि आजम 'दूध के धुले' हैं। हालांकि कुछ समय के लिए आजम को अग्रिम जमानत जरूर मिल गई। यह जमानत आजम के लिए 'डूबते को तिनके का सहारा' जैसी रही। आजम खान सबसे अधिक जौहर विश्वविद्यालय के लिए अनाप−शनाप तरीके से जमीन का जुगाड़ करने के अलावा समाजवादी सरकार में मंत्री रहते अपने अधीनस्थ जल निगम में कानून कायदे ताक पर रख कर अपने चहेतों को नियुक्तियां दिलाने के कारण फंसे हुए हैं।

 

आपराधिक, भ्रष्टाचार और जबरन जमीन कब्जाने के 85 से अधिक मामलों में मुकदमों में फंसे सपा सांसद आजम खान को एक अक्टूबर 2019 को जल निगम भर्ती घोटाले में पूछताछ के लिए एसआईटी के कहने पर लखनऊ आना पड़ा। अखिलेश यादव सरकार में कैबिनेट मंत्री रहे आजम जल निगम भर्ती घोटाले में प्रमुख आरोपी हैं। एसआईटी ने आजम के साथ इस मामले में रिटायर्ड आईएएस अफसर एसपी सिंह तथा तीन अन्य अफसरों को भी नामजद किया है। सूत्रों का कहना है कि फर्जी भर्ती घोटाले में एसआईटी ने काफी पुख्ता सुबूत इकट्ठा कर लिए हैं। फॉरेंसिक रिपोर्ट आने के बाद जांच और तेजी के साथ आगे बढ़ना तय है। मालूम हो कि सपा के शासनकाल में 2016 के अंत में हुई जल निगम में 1300 पदों पर भर्तियां निकली थीं। इसमें 122 सहायक अभियंता, 853 अवर अभियंता, 335 नैतिक लिपिक और 32 आशुलिपिकों की भर्ती हुई थी। जल निगम विभाग के ही कुछ अधिकारियों ने इस संबंध में धांधली की शिकायत की थी, जिसके बाद जांच शुरू हुई। सरकार इस मामले में 122 सहायक अभियंताओं को पहले ही बर्खास्त कर चुकी है।

     

जल निगम में भर्ती घोटाला के साथ−साथ आजम के तमाम काले कारनामों और उसमें बेटा और पत्नी की भी भागीदारी खुलकर सामने आ रही है। वहीं आजम का बेटा अब्दुल्ला दो पैन कार्ड रखने का भी आरोपी है। दो पैन कार्ड रखने का मामला साबित हो गया तो अब्दुल्ला की विधायकी भी जा सकती है। हालात यह हैं कि आजम खान की पत्नी और राज्यसभा सांसद तंजीन फातिमा जो पति आजम खान के सांसद बनने के बाद उनकी खाली हुई रामपुर सदर विधान सभा सीट से समाजवादी पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़ रही हैं वह तब अपना नामांकन दाखिल कर पाईं जब उन्होंने बिजली विभाग के खाते में 30 लाख रुपए के जुर्माने की राशि जमा करा दी।

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दरअसल, आजम खान के हमसफर रिजॉर्ट में रेड के दौरान 5 केवी के मीटर पर लगभग 33 केवी का लोड पाया गया। बिजली का कनेक्शन तंजीन के नाम था। रिजॉर्ट में बिजली सप्लाई के लिए अलग से एक पावर लाइन लगाई गई थी। बिजली विभाग ने जानकारी मिलने के बाद जब छापा मारा तो बिजली चोरी का खुलासा हुआ। छापे के बाद बिजली विभाग ने आजम खान के रिजॉर्ट का कनेक्शन काट दिया था और आजम खान की पत्नी तंजीम फातिमा पर बिजली चोरी अधिनियम के तहत 30 लाख रुपए का जुर्माना लगाया गया था। यह रकम जमा करे बिना तंजीन नामांकन करने पहुंच गई थीं, लेकिन नियम यह है कि कोई भी सरकारी बकाया होने पर प्रत्याशी का नामांकन स्वीकार नहीं किया जाता है। इसलिए तंजीन को पहले 30 लाख रुपए जमा करने पड़े, इसके बाद उनका नामांकन स्वीकार हुआ।

 

रामपुर सदर विधान सभा उप−चुनाव आजम परिवार के लिए नाक का सवाल बन गया है। अगर यह सीट बच गई तो आजम को इससे काफी राहत मिलेगी। इस सीट की अहमियत का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि रामपुर से दूरी बना कर चल रहे आजम को पत्नी तंजीन फातिमा के नामांकन के समय उनके साथ देखा गया। भू−माफिया घोषित होने और 85 मुकदमे दर्ज होने के दो महीने बाद सपा सांसद आजम खान 30 सितंबर 2019 को पहली बार रामपुर पहुंचे थे। बता दें कि 13 सितंबर को जब समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव रामपुर पहुंचे थे, तब भी आजम खान नहीं आए थे। अखिलेश यादव, आजम के समर्थन में ही रामपुर गए थे। आजम को अपने बीच देखकर सपा कार्यकर्ताओं में भी जोश भर गया। इस दौरान आजम खान जिंदाबाद के नारे भी लगे।

 

समाजवादी पार्टी ने अपने मजबूत किले रामपुर सदर की विधान सभा सीट को बचाने की जिम्मेदारी आजम खान को सौंपी है। आजम खान इस सीट से 9 बार विधायक रहे हैं। इतना ही नहीं 1993 के बाद से समाजवादी पार्टी यह सीट कभी नहीं हारी। लेकिन इस बार परिस्थितियां अलग हैं। 85 से ज्यादा मुकदमों में फंसे आजम खान और उनके परिवार के लिए यह सीट प्रतिष्ठा का भी विषय बन गई है। जहां एक ओर पार्टी को लगता है कि मुस्लिम बाहुल्य इस सीट पर आजम के खिलाफ हो रही कार्रवाई से सपा प्रत्याशी को सहानुभूति का लाभ मिलेगा, वहीं वह बीजेपी के साथ−साथ बसपा व कांग्रेस को भी करारा जवाब देने में सफल होगी।

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खैर, यहां भू−माफिया घोषित किए जा चुके और 85 से अधिक मामलों में फंसे आजम खान के प्रति अखिलेश की नरमी और उनकी पत्नी तंजीन फातिमा को रामपुर सदर विधान सभा सीट से मैदान में उतारे जाने की समाजवादी पार्टी की रणनीति को भी समझना जरूरी है। रामपुर सदर सीट से तंजीन फातिमा सपा प्रत्याशी जरूर हैं, लेकिन उनके नाम पर फैसला काफी बाद में लिया गया। पहले यहां से डिंपल यादव और धमेन्द्र यादव के भी चुनाव लड़ने की चर्चा चली थी। मगर हमीरपुर विधान सभा उप चुनाव के नतीजों के बाद सब कुछ बदल गया। अखिलेश ने अंतिम समय में तंजीन फातिमा के नाम पर मोहर लगा दी। इसकी वजह थी, हमीरपुर चुनाव में बड़ी संख्या में सपा को मिले मुस्लिम वोट। हमीरपुर विधान सभा चुनाव से पूर्व तक समाजवादी पार्टी को काफी कमजोर माना जा रहा था, लेकिन हमीरपुर से सपा के लिए उम्मीद की नई किरण निकली। नतीजों ने साफ कर दिया है कि मुसलमान वोटर का समाजवादी पार्टी से विश्वास कम नहीं हुआ है। सपा से गठबंधन तोड़ने के बाद बहुजन समाज पार्टी सुप्रीमो मायावती मुस्लिम वोटरों का साथ मिलने का जो भरोसा लगाए बैठीं थी, उनका वह भरोसा पूरी तरह से टूट गया। ऐसा लगता है कि मुस्लिम वोटरों को मायावती की हालिया राजनीति जिसमें चाहे कश्मीर से धारा 370 हटाए जाने का समर्थन की बात हो या फिर अन्य मुद्दों पर बीजेपी के साथ खड़ा दिखना हो, यह सब रास नहीं आया। ताजा घटनाक्रमों में आजम खान के खिलाफ जो आपराधिक मुकदमे दर्ज किए जा रहे हैं, उन पर भी अखिलेश यादव साफ कह चुके हैं कि उनकी सरकार बनते ही इन तमाम मुकदमों को वापस लिया जाएगा। जिसके बाद समझा जा सकता है कि उत्तर प्रदेश और सपा की राजनीति में रामपुर के 'फन्ने खाँ' की क्या हैसियत है। इसीलिए तो तमाम किन्तु−परंतुओं और कई मामलों में जांच के दायरे में फंसे आजम खान की सियासी शख्सियत को अनदेखा नहीं किया जा सकता है। आजम आज योगी सरकार की आंख की किरकिरी बने हैं तो पूर्व में भी उन पर कई बार आरोपों की बौछार होती रही है।

 

आजम का सियासी सफरनामा

 

1970 के दशक में आजम ने विश्वविद्यालय की राजनीति से सियासत में कदम रखा था। अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी में महासचिव का चुनाव जीतने के बाद आजम अक्सर तमाम राजनैतिक मंचों पर नजर आने लगे थे। 1980 से 1992 के बीच आजम ने चार विधानसभा चुनावों के लिए जनता पार्टी सेक्युलर, लोकदल, जनता दल और जनता पार्टी का सहारा लिया था। हालांकि वह हर बार चुनाव हार गए। समाजवादी पार्टी के शीर्ष स्तर के नेताओं में शुमार आजम खान ने 1993 में मुलायम सिंह से प्रभावित होकर समाजवादी पार्टी का दामन थामा। राजनीति में आने से पहले आजम ने वकालत भी की थी। इमरजेंसी के दौरान महीनों तक आजम को जेल में रहना पड़ा था। जेल में एकान्त कारावास या कालकोठरी में रखे जाने वाले चुनिंदा कैदियों में आजम का भी नाम शामिल था।

 

नेताजी के लिए भी आसान नहीं था आजम को संभालना

 

पूर्व सपा प्रमुख मुलायम सिंह यादव के करीबी माने जाने वाले आजम ने अपनी आदत के अनुसार सपा के भीतर भी बागी तेवरों से परहेज नहीं किया। अमर सिंह को तवज्जो, जया प्रदा की उम्मीदवारी और कल्याण सिंह के पार्टी में आने की चर्चाओं जैसे मुद्दों पर आजम ने पार्टी से सीधा टकराव मोल लिया था, जिसके चलते उन्हें सपा से बाहर का भी रास्ता देखना पड़ा। आजम की अहमियत जानने वाले मुलायम ने जरूरत पड़ने पर आजम को वापस लेने में भी गुरेज नहीं किया।

 

पश्चिमी उत्तर प्रदेश की सियासत को जो लोग समझते हैं, उन्हें पता है कि कोई यों ही नहीं आजम खान बन जाता है। आजम ने रामपुर को उत्तर प्रदेश का सबसे खूबसूरत शहर बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी। दबंग सियासी छवि के साथ ही लगातार जीतने और नामी उम्मीदवारों को हराने जैसी कई वजहों से आजम को एक बड़ा वर्ग 'रामपुर की सरकार' की उपाधि से नवाजता है। आजम खान अपने सियासी कॅरियर में नामचीनों से लोहा लेने में कभी पीछे नहीं रहे। कांग्रेस ने जब रामपुर के नवाब खानदान के वारिसों को टिकट दिया तब भी खान ने बाजी मारी और बीते लोकसभा चुनाव में भाजपा ने जब सेलिब्रेटी और पूर्व सांसद जयाप्रदा को चुनाव मैदान में उतारा तो भी आजम ने एक लाख से ज्यादा वोटों से जीत दर्ज की। स्थानीय स्तर हो या प्रदेश स्तर, आजम खान अपनी ताकत और रसूख साबित करने में कभी कतराए नहीं। आजम के करीबियों का कहना है कि वह (आजम) एक बार फिर हीरे की तरह चमकते हुए नजर आएंगे। वर्ष 2013 में मुजफ्फरनगर कांड के समय आजम के रवैये के चलते अखिलेश सरकार को काफी बदनामी झेलनी पड़ी थी।

 

-संजय सक्सेना

 

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