त्रेता की पहली दीपावली जैसी अयोध्या का दीपपर्व

By उमेश चतुर्वेदी | Oct 30, 2024

त्रेता युग में लंका विजय के बाद अपने राम को देख अयोध्या निहाल हो गई थी। चौदह वर्ष के वनवास के बाद सरयू के तीर पर अपने राम के स्वागत में अयोध्या ने खुद को प्रकाशमान करने की जो परंपरा डाली, आज पूरी दुनिया उसे दीपावली के नाम से जानती है। अयोध्या की इस बार की दीपावली त्रेता युग की पहली दीपावली जैसी ही है। अयोध्या के पावन मंदिर में रामलला की स्थापना के बाद दीपों का पहला त्योहार आया है। राम की वापसी के बाद अयोध्या इस बार त्रेता युग की ही तरह निहाल होने जा रही है। सरयू के तीर पर स्थित पचपन घाटों पर 28  लाख से ज्यादा दीपों के जरिए अयोध्या अपने राम का स्वागत करने जा रही है। 


उत्तर प्रदेश सरकार का दावा है कि यह दीपोत्सव दुनिया में नया कीर्तिमान बनाने जा रहा है। उत्तर प्रदेश में जब से योगी सरकार आई है, तब से हर दीपावली को अयोध्या के घाट दीपों से सजाए जा रहे हैं। इस लिहाज से देखें तो यह योगी सरकार के दीपोत्सव का आठवां संस्करण है। जिसके प्रबंधन का दायित्व बाकायदा अयोध्या के ही डॉ राममनोहर लोहिया अवध विश्वविद्यालय की कुलपति प्रतिभा गोयल को दिया गया है। जो 30 हजार वालंटियर्स के सहयोग से 28 लाख से अधिक दीयों को प्रज्ज्वलित करने की तैयारी में हैं। दीपोत्सव के रिकॉर्ड को जांचने के लिए अयोध्या में मंगलवार यानी 29 अक्टूबर को ही गिनीज बुक ऑफ  वर्ल्ड रिकॉर्ड की टीम के कंसल्टेंट निश्चल बरोट अपने 30 सहयोगियों के साथ पहुंच गए। 

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दीपों के जलाते वक्त तेल बाहर ना गिरे, इसका सावधानी पूर्वक ध्यान रखने के  लिए वालंटियरों को कहा गया है। 30 अक्टूबर के दिन दीपोत्सव के दीयों में तेल डालने के लिए एक-एक लीटर के सरसों तेल की बोतलें दी जा रही हैं। हर दीप में सावधानीपूर्वक तेल डालने के लिए विशेष तौर पर दिशा-निर्देश दिए गए हैं। घाट पर तेल न गिरे, इसका विशेष ध्यान रखा जायेगा।


त्रेता युग में राम के स्वागत में पूरी अयोध्या दीपों से जगमगा उठी थी। इसके बाद से ही हर साल कार्तिक महीने की अमावस्या को पूरा सनातन समाज, उसके घर, उसकी झोपड़ियां, उसके ठीये, उसके पशुओं की नाद, उसके कुएं के चबूतरे, तुलसी के चबूतरे, मंदिरों के दरवाजे राम के स्वागत में दीपों से सजाता रहा है। सनातन समाज की हर गली, हर हर रास्ता, हर अंधियारा कोना इस दिन प्रकाश की रेखाओं से जैसे खिल उठता है। इस परंपरा में समूची अयोध्या भी इस दीपावली को इसी अंदाज में सजेगी, लेकिन योगी सरकार की डाली परंपरा के अनुसार सरयू के 55 घाट अलग ही अंदाज में नजर आएंगे। चूंकि अयोध्या के मंदिर में रामलला की स्थापना के बाद की यह पहली दीपावली है, इसलिए सरयू के घाट इस बार  28 लाख दीयों के साथ अलग ढंग से सज रहे है, जिनसे उठी रोशनियों की लंबी लकीरें सरयू की लहरों में अप्रतिम दृश्य वितान रचने जा रही हैं। 


दीपोत्सव की भव्यता विश्व पटल पर दिखे, इसके लिए सरयू नदी के दसवें नंबर के घाट पर 80 हजार दीयों के जरिए स्वास्तिक बनाया गया है। इसके जरिए दीपोत्सव की टीम पूरी दुनिया को रौशनी युक्त शुभ्रता का संदेश देने की कोशिश कर रही है। माना जा रहा है कि दीपोत्सव में यह दृश्य अद्भुत आकर्षण का केन्द्र होगा। अयोध्या के घाटों पर दीयों को सजाने और उन्हें रोशनी से जगमगाने की जिम्मेदारी 30 हजार वालंटियर को दी गयी है। घाटों को र 16 गुणा 16 दीए का ब्लाक से सजाया जा रहा है। जिनमें 256 दीए सजाये जा रहे हैं। इनमें एक वालंटियर को 85 से 90 दीए प्रज्ज्वलित करने का लक्ष्य निर्धारित है। । दीपोत्सव नोडल अधिकारी प्रो0 संत शरण मिश्र  के मुताबिक, उत्तर प्रदेश शासन के निर्देशन में अयोध्या का जिला प्रशासन दीपोत्सव के लिए विश्वविद्यालय प्रशासन को यह अप्रतिम दृश्य रचने के लिए हर संभव सहयोग दे रहा है। राम नगरी के 55 घाटों पर दीयों की सुरक्षा पुलिस प्रशासन व विश्वविद्यालय के सुरक्षा कर्मियों द्वारा की जा रही है। घाटों पर सुरक्षा सख्त कर दी गई है। बिना आई कार्ड के प्रवेश प्रतिबंधित कर दिया गया है। 


यह सच है कि रोशनी के महत्व को हम तभी समझ पाते हैं, जब हमारे सामने गहन अंधकारा होता है। बेशक अपना देश वैश्विक युद्ध से बचा हुआ है। लेकिन इजरायल-फिलीस्तीन के साथ ही रूस-यूक्रेन युद्ध के आंच की ताप में दुनिया झुलस रही है। इसकी किंचित आंच भारत और भारतीयों तक भी पहुंच रही है। त्रेता युग में राम ने रावण वध और लंका विजय के जरिए संदेश दिया था कि शांति ही दुनिया और मानव जीवन की प्रगति का आधार है। रामलला के अपने पावन घर में आ विराजने के बाद की पहली दीपावली सिर्फ दीयों की संख्या के आधार पर ही रिकॉर्ड नहीं बनाने जा रही, बल्कि वह दुनिया को एक संदेश भी देने जा रही है। संदेश यह कि रोशनियों के सामने अंधेरे को हारना ही होता है। अयोध्या की यह दीपावली दुनिया को यह भी संदेश दे रही है कि युद्ध के अंधेरे से उसे निकलना ही होगा और मानव जीवन की प्रगति के लिए रोशनियों की लहरों पर ही सवार होना होगा। 


-उमेश चतुर्वेदी

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तम्भकार हैं)

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