आजादी के अमृतकाल में नारीशक्ति का जागरण बहुत सुखद संकेत है

By बृजनन्दन राजू | Sep 28, 2023

अमृतकाल में नये संसद भवन में प्रवेश करते ही महिलाओं को सक्षम बनाने के उद्देश्य से 'नारी शक्ति वंदन अधिनियम 2023' पारित कर भारत सरकार ने इतिहास रचने का काम किया है। निश्चित ही यह नये व विकसित भारत का प्रतिबिम्ब है। महिलाओं के लिए लोकसभा व विधानसभाओं में 33 प्रतिशत आरक्षण के विधेयक का सभी दलों ने एकजुट होकर समर्थन किया। महिलाओं के लिए यह गौरव का क्षण है। विधेयक के पक्ष में 454 और विपक्ष में मात्र दो वोट पड़े। यह भारतीय लोकतंत्र की महिलाओं के प्रति कृतज्ञता को दर्शाता है। महिला आरक्षण बिल के विरोध में एआईएमआईएम के असद्दुदीन ओवैसी व इम्तिआज जलीन ने ही वोट किया। इस बिल के विरोध में आने से उनकी मानसिकता उजागर होती है। ऐसे लोग महिलाओं को अपना गुलाम समझते हैं। वह उन्हें उपभोग की वस्तु समझते हैं।


जबकि भारत के अन्य दलों ने जिस प्रकार महिला सशक्कतीकरण के मुद्दे पर दुनिया को एकजुटता का संदेश दिया है। इससे भारत का मस्तक ऊंचा हुआ है। महिला आरक्षण बिल पिछले 27 वर्षों से लंबित था। 2024 के लोकसभा चुनाव के बाद जनगणना और परिसीमन दोनों का काम शुरू हो जायेगा। इसके पूरा होने के बाद विधानसभा और लोकसभा के चुनाव महिलाओं के लिए आरक्षित सीटों के साथ होंगे। सरकार इस विधेयक पर सुझावों को खुलेमन से स्वीकार करने को भी तैयार है। जरूरत पड़ने पर इसमें आवश्यक संशोधन भी किया जायेगा। स्वाधीनता के अमृतपर्व पर महलाओं को यह सुअवसर प्रदान करने के लिए राष्ट्र सेविका समिति, दुर्गा वाहिनी, वीरांगना वाहिनी ने भारत सरकार का अभिनंदन किया है। राष्ट्र सेविका समिति की प्रमुख संचालिका शांतक्का ने भारत सरकार व प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का आभार व्यक्त करते हुए कहा कि संसद व विधान सभाओं में महिलाओं को जो सुअवसर प्राप्त हो रहे हैं, यह महिलाओं के लिए गौरव का क्षण है। क्योंकि आज निश्चित ही महिलाओं के लिए आरक्षण की आवश्यकता है। जब से केन्द्र में मोदी की सरकार बनी है तब से महिलाओं के लिए अनेक योजनाएं बनाई गयी हैं। उन योजनाओं का लाभ महिलाओं मिल भी रहा है।

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राष्ट्र की आधारशक्ति नारी है। प्राचीनकाल में भारत में महिलाओं की स्थिति अच्छी थी। नारी को उपनयन का अधिकार प्राप्त था। नारियां गुरुकुलों में जाती थी और उन्हें वेदों की शिक्षा दी जाती थी। राजाओं के राज्याभिषेक के समय रानियों की महत्वपूर्ण भूमिका होती थी। धर्म व अध्यात्म के विषयों पर व पुरूषों से शास्तार्थ करती थीं। हमारे यहां महिला व पुरूष में भेद नहीं था। महिलाएं भी युद्ध कौशल में प्रवीण होती थीं और समरांगण में भी जाती थीं।  


भारतीय नारी अबला नहीं सबला है। नारी शक्ति समाज को शुद्ध और प्रबुद्ध करने में सक्षम है। राष्ट्र निर्माण में उनकी भूमिका को नजरंदाज नहीं किया जा सकता। गीता में भगवान श्रीकृष्ण ने समाज धारणा के लिए नारी की सुप्त शक्तियोंको आधार रूप माना है। हम देखते है की प्रत्येक कार्य में शक्ति अंतरनिहीत होती है। स्वामी विवेकानन्द जी ने कहा था महिलाएं अपनी समस्याएं हल करने में खुद तो सक्षम हैं ही साथ ही समाज की समस्याओं को हल करने में अपना योगदान दे सकती हैं।


संघ के द्वितीय सरसंघचालक माधवराव सदाशिवराव गोलवलकर उपाख्य श्रीगुरुजी भी कहते थे कि महिलाओं को केवल घर तक सीमित रखना ठीक नहीं है। श्रीगुरुजी स्त्रियों को शक्तिस्वरूपा मानते थे। वे कहते थे कि महिलाएं अपनी समस्याओं को सुलझाने में स्वयं सक्षम हैं। महिलाओं को अपने घर की चहारदीवारी से बाहर के समाज में भी अपने मातृप्रेम के वर्षा करनी चाहिए। समाज की निर्धन बहनों की सेवा का दायित्व भी माताओं पर ही है। बच्चों पर संस्कार डालने का काम माताओं का होता है। माता अपने बच्चों को वीरों के रूप में ढ़ाल सकती है। देश प्रेम व समाज सेवा की भावना भर सकती है। छत्रपति शिवाजी को शिवाजी बनाने में उनकी माता जीजाबाई का महान योगदान था।


राष्ट्रस्य सुदृढ़ा शक्ति समाजस्य च धारिणी।

भारते संस्कृते नारी,माता नारायणी सदा।। 


अर्थात भारत में नारी शक्ति राष्ट्र को मजबूत करती है तथा समाज को धारण करती है और देवी मां की भांति सदा—सर्वदा उसका पालन पोषण एवं संस्कारित करती है। महिलाओं में अपार क्षमता एवं अद्वितीय शौर्य का भाव विद्यमान है। यदि महिलाएं देश को आगे ले जाने का संकल्प ले लें तो दुनिया की ऐसी कोई शक्ति नहीं जो उन्हें परास्त कर सके। नारीशक्ति के आगे यमराज को भी परास्त होना पड़ता है। नारीशक्ति का जागरण करने में अगर हम सफल हुए तो भारत क्या दुनिया में हमारी कीर्ति का डंका बजेगा। 


आधी जनसंख्या महिलाओं की है। भारतीय महिलाएं विश्व में सर्वोच्च स्थान रखती हैं। हमारे इतिहास में केवल पुरुषों की गौरव गाथा का ही वर्णन नहीं है। भारतीय समाज में प्राचीनकाल से नारी का गौरवपूर्ण स्थान रहा है। यत्र नार्यस्तु पूजन्ते रमन्ते तत्र देवता। नारी के बिना कोई भी धार्मिक अनुष्ठान पूर्ण नहीं होता। देवताओं को भी असुरों का संहार करने के लिए शक्ति की आराधना करनी पड़ी थी। महिलाओं का उनके अधिकारों के प्रति जागरूक करने और राष्ट्र निर्माण में बराबर की सहभागिता से एक आदर्श समाज तथा राष्ट्र का निर्माण संभव है। नारी ही स्वयं प्रकृति है, सृष्टी की आद्य शक्ति है। इस संसार में जो कुछ भी है वह उसी आद्यशक्ति से ही है। इस आद्याशक्ति को हम महालक्ष्मी, महासरस्वती, महाकाली और उस परब्रह्म की शक्ति के रुप में मानते है। प्रत्येक स्त्री उस शक्तितत्त्व का अंश है इस संकल्पना से प्रेरणा लेकर भारतीय संस्कृति सतत प्रवाहित है। 


किसी भी राष्ट्र की उन्नति वहां रहने वाले महिला व पुरूष के परिश्रम से होती है। स्त्री एक प्रेरक शक्ति है। यही परिवार समाज व राष्ट्र को चैतन्य बनाती है। बीच के कालखण्ड में हमने उन्हें दीनहीन बनाया। महिलाएं स्व संरक्षण करने में सक्षम बने यह आज की महती आवश्यकता है। संस्कृति को बचाये रखने में महिलाओं का बड़ा योगदान होता है। जिस देश की महिलाएं अपनी संस्कृति छोड़कर विदेशी संस्कृति अपनाने लगें तो उस देश का कोई भविष्य नहीं है। भारत और उसकी संस्कृति को विश्व में सर्वश्रेष्ठ बनाकर एक आदर्श प्रस्तुत करना है। इस काम में महिलाओं का योगदान अपेक्षित है। आज महिलाएं हर क्षेत्र में पुरुष से कंधे से कंधा मिलाकर चलने में सक्षम है। भारतीय समाज में स्त्री पुरूष शिव शक्ति का रूप है। विस्मृत हो चुकी शक्ति को पुन: प्राप्त करने की आवश्यकता है। इस समय में भारत में नव निर्माण का का काल चल रहा है। आगे आने वाले समय में नारी ही नेतृत्व करेगी। भारत में ऋषि मुनियों की परम्परा को जीवंत करना होगा। भारत में राष्ट्रपति के रूप में द्रौपदी मुर्मू भारत को आभा प्रदान कर रही हैं। माता अमृतानन्दमयी मां और साध्वी ऋतम्भरा जैसी दिव्य विभूति सम्पूर्ण मानवता को धर्म, संस्कृति, प्रेम, त्याग, पवित्रता एवं माधुर्य का संदेश दे रही हैं।


-बृजनन्दन राजू

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