नवरात्रि पर कलश स्थापना का शुभ मुहूर्त, ऐसे करें माता को प्रसन्न

By शुभा दुबे | Sep 20, 2017

मां दुर्गा के नौ विभिन्न रूपों की पूजा का उत्सव नवरात्रि पर्व इस वर्ष 21 सितम्बर से शुरू हो रहा है। शारदीय नवरात्रि के बारे में कहा जाता है कि सर्वप्रथम भगवान श्रीरामचंद्रजी ने इस पूजा का प्रारंभ समुद्र तट पर किया था और उसके बाद दसवें दिन लंका विजय के लिए प्रस्थान किया और विजय प्राप्त की। मान्यता है कि तभी से असत्य पर सत्य की जीत तथा अर्धम पर धर्म की विजय की जीत के प्रतीक के रूप में दशहरा पर्व मनाया जाने लगा।

आइए जानते हैं इस बार शारदीय नवरात्रि पर कलश स्थापना का शुभ मुहूर्त, पूजन विधि और इन नौ दिनों में ऐसा क्या करें कि माता की कृपा आप और आपके परिवार पर बरसती रहे।

 

कलश स्थापना

 

कलश स्थापना के लिए सर्वोत्तम समय 21 सितम्बर, 2017 को प्रातः 6.18 से प्रातः 8.10 तक है और अभिजीत मुहूर्त 11.55 से लेकर 12.43 तक है। अभिजीत मुहूर्त दोपहर के दौरान का ऐसा शुभ समय होता है जो लगभग 48 मिनट तक रहता है। अभिजीत मुहूर्त असंख्य दोषों को नष्ट करने में सक्षम है और इसे सभी प्रकार के शुभ कार्य शुरू करने के लिए एक बेहतरीन मुहूर्त माना जाता है। 

 

नवरात्रि के नौ दिनों में माता को ऐसे करें प्रसन्न

 

-प्रथम दिन माँ शैलपुत्री का होता है। माँ शैलपुत्री को सफेद चीजों का भोग लगायेंगे तो रोगों से मुक्ति मिलेगी।

-द्वितीय दिन माँ ब्रह्मचारिणी को मिश्री, चीनी और पंचामृत का भोग लगाएं इससे आयु लंबी होती है।

-तृतीय दिन माँ चंद्रघंटा को दूध और उससे बनी चीजों का भोग लगाएंगे तो सभी दुःखों का नाश होगा।

-चतुर्थ दिन माँ कुष्मांडा को मालपुए का भोग लगाएं और इनमें से कुछ खुद खाएँ और कुछ ब्राह्मण को दान दें इससे आपकी बुद्धि का विकास होगा।

-पंचम दिन माँ स्कंदमाता को केले का भोग लगाएँ और उसे ब्राह्मण को दान दे दें।

-षष्ठी तिथि को माँ कात्यायनी के प्रसाद में मधु यानि शहद का उपयोग करें।

-सप्तमी को माँ कालरात्रि को गुड़ का नैवेद्य अर्पित करें।

-अष्टमी के दिन माँ महागौरी को नारियल का भोग लगाने से मनोकामना पूर्ण होती है। इस दिन नारियल को सिर से घुमाकर बहते हुए जल में प्रवाहित कर दें।

-नवमी के दिन माँ सिद्धिदात्री को हलवा, चना-पूरी, खीर आदि का भोग लगा कर उसे गरीबों में बाँटें। इससे आपके जीवन में सुख और शांति बनी रहेगी।

 

पूजन विधि− 

 

वेदी पर रेशमी वस्त्र से आच्छादित सिंहासन स्थापित करें।

वेदी के ऊपर चार भुजाओं तथा उनमें आयुधों से युक्त देवी की प्रतिमा स्थापित करें।

भगवती की प्रतिमा रत्नमय भूषणों से युक्त, मोतियों के हार से अलंकृत, दिव्य वस्त्रों से सुसज्जित, शुभलक्षण सम्पन्न और सौम्य आकृति की हो। वे कल्याणमयी भगवती शंख−चक्र−गदा−पद्म धारण किये हुये हों और सिंह पर सवार हों अथवा अठारह भुजाओं से सुशोभित सनातनी देवी को प्रतिष्ठित करें।

पीठ पूजा के लिये पास में कलश भी स्थापित कर लें। वह कलश पंचपल्लव युक्त, तीर्थ के जल से पूर्ण और सुवर्ण तथा पंचरत्नमय होना चाहिये। घटस्थापन के स्थान पर केले का खंभा, घर के दरवाजे पर बंदनवार के लिए आम के पत्ते, हल्दी की गांठ और 5 प्रकार के रत्न रखें। 

नवरात्रि के पहले दिन ही जौ, तिल को मिट्टी के बरतन में बोया जाता है, जो कि मां पार्वती यानी शैलपुत्री के अन्नपूर्णा स्वरूप के पूजन से जुड़ा है।

पास में पूजा की सब सामग्रियां रखकर उत्सव के निमित्त गीत तथा वाद्यों की ध्वनि भी करानी चाहिये।

हस्त नक्षत्र युक्त नन्दा तिथि में पूजन श्रेष्ठ माना जाता है। 

कथा सुनने के बाद माता की आरती करें और उसके बाद देवीसूक्तम का पाठ अवश्य करें।

 

- शुभा दुबे

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