लाल किले की प्राचीर से अटलवाणी, जय जवान, जय किसान से जय विज्ञान तक...

By अभिनय आकाश | Aug 15, 2020

लाल किले की दीवारों ने हिन्दुस्तान के हर बदलते हुए सियासी रंग को बहुत करीब से देखा है। आज़ाद हिन्दुस्तान में बनते-बिगड़ते वक़्त को ही नहीं बल्कि उस दौर को भी देखा है जब देश अंग्रेजों का गुलाम था। साढ़े तीन सौ साल में हिन्दुस्तान का वक़्त बदलता रहा और उस वक़्त की गवाही देता रहा लालकिला। कभी शाहजहां की सल्तनत थी आज लोकतंत्र के मंदिर की इस चौखट पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी खड़े हैं। दिल्ली का मशहूर किला जिसने अपने हर दरवाजे, हर दीवार, हर मेहराब, हर मीनार पर इतिहास को संजोया हुआ है, जिसकी बुनियाद से आज भी हिन्दुस्तानी मजदूरों के खून-पसीने की महक आती हैं,मुगल बादशाह द्वारा बनवाई गई लाल किले की हर ईंट जहां सैलानियों को ललचाती है, वहीं नेताओं में सत्ता का ख़्वाब भी जगाती है। जिसकी प्राचीर से देश के सुल्तान का संबोधन होता है। आज़ाद हिन्दुस्तान की उंगली पकड़ कर अतीत की उन गलियों में चलिए जब 40 बरस की अथक साधना के बाद अटल बिहारी वाजपेयी लाल किले की प्राचीर पर पहुंचे।

वह शख्स जो प्रधानमंत्री बना था, जिसने इस देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू को यहीं पर भाषण देते हुए, यहीं बैठ कर सुना था। अब वह शख्स देश का प्रधानमंत्री था। बहुत सारी उम्मीदें थी, बहुत आस थी और तो और अटल बिहारी वाजपेयी को सुनने के लिए तांता लग गया था उस दिन और कहते हैं कि नेहरू के बाद इतनी भीड़ उसी दिन थी जिस दिन पहली बार लाल किले की प्राचीर से अटल बिहारी वाजपेयी की ओजस्वी वाणी पूरे देश ने सुनी थी। 15 अगस्त 1998 को लाल किले की प्राचीर से पहली मर्तबा एक ऐसे प्रधानमंत्री ने भाषण दिया जिनका कांग्रेस से कभी कोई रिश्ता नहीं रहा। जब पहली बार बतौर प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी लाल किले से बोले तो पोखरण में 11 और 13 मई को हुए परमाणु परीक्षण की धमक साफ-साफ सुनाई पड़ी।

जब वो बोलते थे तो सारा जमाना दम साध कर उन्हें सुनता था। उनकी चुटकियों पर हर कोई लाजवाब हो जाता था। सियासत की काली कोठरी में पांच दशक बिताने के बाद भी उनके दामन पर कभी भी एक दाग तक नहीं लगा। जिन्होंने कभी अपने सिद्धांतों से समझौता नहीं किया। ये कहानी है एक पुकार की एक यल्गार की ये कहानी है समूचे हिन्दुस्तान की। ये कहानी है राजनीतिक क्षितिज पर पहुंचे ऐसे किरदार की जो पहले भी अटल थे, आज भी अटल हैं और कल भी अटल रहेंगे।

वह शख्स जिसने 40 बरस की अथक साधना की और प्रधानमंत्री बना तो उनके सामने कई विषम चुनौतियां थी खास तौर से बार-बार यह कहना पड़ोसी कैसे बदल सकते हैं और बार-बार यह सोचना कि आतंकवाद पर नकेल दोस्ती के जरिए कैसे गांठी जा सकती है। 

इसे भी पढ़ें: भारत के अलावा 15 अगस्त को कौन-कौन से देश हुए थे आजाद ?

जय जवान, जय किसान के नारे से जय विज्ञान तक

11 मई 1998 को पोखरण में परीक्षण कर दुनिया को चौंका दिया था। शास्त्री जी ने जय जवान-जय किसान का नारा दिया था और वाजपेयी ने उसमें जय विज्ञान जोड़कर उसे एक नया क्षितिज दिया। विज्ञान की शक्ति को बढ़ावा देने के लिए वाजपेयी जी ने लाल बहादुर शास्त्री के नारे 'जय जवान जय किसान' में बदलाव किया और 'जय जवान, जय किसान, जय विज्ञान' का नारा दिया। कहा जाता है कि दिन लाल किले में इतनी भीड़ एकत्र हुई थी जितनी कभी जवाहरलाल नेहरू के भाषण पर हुआ करती थी। अटल का यह भाषण कई मायनों में ऐतिहासिक था। इस दिन उन्होंने अपने भाषण में देश के बच्चों के लिए सरकारी खजाना खोलकर इस बात का अहसास फिर से करवाया था कि क्यों उन्हें सियासत का अटल किरदार कहा जाता हैं। 

बारिश के बीच हजारों बच्चे सुन रहे थे अटल का भाषण

15 अगस्त 1998 को जब तत्कालिक प्रधानमंत्री अटल बिहारी देश को संबोधित कर रहे थे तो उस वक्त बारिश हो रही थी। देश हजारों बच्चे लाइव अटल का भाषण बड़े ही तत्परता से सुन रहे थे। आज वो बच्चे कामयाबी की बुलंदियों पर होंगे। लेकिन देश के बच्चों के लिए अटल ने जो किया वो इतिहास बन गया। बारिश की बूंदों के साथ अटल बिहारी वाजपेयी ने देश के बच्चों पर नोटों की बरसात कर दी थी। उन्होंने बच्चों का भविष्य संवारने के करोड़ों रुपयों को खर्च करने का ऐसा ऐलान कर दिया था जो जेहन से आज भी नहीं उतरता है।

बच्चों की पढ़ाई के लिए 550 करोड़ रुपए की घोषणा

अपने भाषण में पोखरण की कामयाबी, पाकिस्तान के साथ दोस्ती का हाथ, और जय किसान, जय विज्ञान से आगे बढ़े तो उन्हें देश के उन बच्चों का ख्याल आया जिनके पास प्राथमिक शिक्षा प्राप्त करने के लिए किताबें नहीं होती थी। रुपयों की तंगी की वजह से उनका परिवार अपने बच्चों को प्राथमिक शिक्षा तक दिला पाते थे। जिसे देखते हुए उन्होंने ऐलान किया कि देश के सभी प्राथमिक शिक्षा प्राप्त करने वाले बच्चों को केंद्र सरकार मुफ्त किताबें देगी। जिसके लिए उन्होंने देश के खजाने से उस समय 550 करोड़ रुपए खर्च करने का ऐलान किया था। 

इसे भी पढ़ें: खुदीराम बोस ने आजादी की लड़ाई के दौरान महज 18 की उम्र में फांसी का फंदा चूमा था

लाहौर बस यात्रा, कारगिल युद्ध और ऑपरेशन विजय के बाद लालकिल से वाजपेयी

प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के कार्यकाल का एक निर्णायक लम्हा था फरवरी 1999 में उनकी लाहौर बस यात्रा। यह ऐसा फैसला था जो हिंदुस्तान और पाकिस्तान के रिश्तों में आमूलचूल बदलाव लाने की संभावना से वाबस्ता था। तपे-तपाए सियासतदां वाजपेयी में इसे समझने की चतुराई भी थी और हर चीज में बुरा देखने वालों को कायल करने की बहादुरी भी। जब अटल बिहारी वाजपेयी 1999 में बस से लाहौर गये थे और अपने पाकिस्तानी समकक्ष नवाज शरीफ को गले लगाकर अपनी प्रिय छवि की छाप छोड़ी, तब द्विपक्षीय संबंधों में जो आस जगी थी वह महज कुछ समय के लिए थी। वाजपेयी के करीबी लोगों का कहना है कि उनका मिशन पाकिस्तान के साथ संबंधों को सुधारना था और इसके बीज उन्होंने 70 के दशक में मोरारजी देसाई की सरकार में बतौर विदेश मंत्री रहते हुए ही रोपे थे। लेकिन अपनी हरकतों के आगे मजबूर पाकिस्तान ने कारगिल युद्ध के रूप में घात दिया तो पाकिस्तान के छल और धोखे के जवाब में भारतीय जवानों ने ऑपरेशन विजय के रूप में उसे ऐसा घाव दिया जिसकी टीस आज भी उसके जेहन में जिंदा है। विजय दिवस को सफलता पूर्वक अंजान दिए जाने के बाद हर किसी को इंतजार था कि स्वतंत्रता दिवस पर प्रधानमंत्री वाजपेयी लालकिले से क्या बोलेंगे। 

अटल बिहारी वाजपेयी ने तब देश को गांधी जी के एक मंत्र की याद दिलाई। महात्मा गांधी का मंत्र था कि यदि कभी किसी को कोई दुविधा हो कि उसे क्या करना और क्या न करना तो उसे भारत के सबसे गरीब और असहाय व्यक्ति के बारे में सोचना चाहिए। उये ये सोचना चाहिए कि जो वो करने जा रहा है। उससे उस व्यक्ति की भलाई होगी या नहीं होगी। गांधी जी के इस विचार से आगे बढ़कर अटल बिहारी वाजपेयी ने कहा कि कारगिल युद्ध ने हमें एक दूसरा मंत्र दिया है ये मंत्र था कोई महत्वपूर्ण निर्णय लेने से पहले हम ये सोचे कि क्या हमारा ये कदम उस सैनिक के सम्मान के अनुरूप है? जिसने उन दुर्गम पहाड़ियों में अपने प्राणों की आहुति दी थी। 

इसे भी पढ़ें: लाल किले से PM मोदी का चीन और पाकिस्तान को कड़ा संदेश, पढ़िए संबोधन की अहम बातें

साल 2000

वाजपेयी की ही अगुवाई में देश ने बीसवीं से 21वीं सदी में प्रवेश किया। लेकिन प्रवेश की वो रात बड़ी काली थी जब आतंकवादियों ने नेपाल से आ रहे विमान का अपहरण कर लिया। वाजपेयी के लिए एक बड़ी चुनौती थी। 24 दिसंबर 1999 की वो तारीख नेपाल से उड़े इंडियन एयरलाइंस के विमान IC 814 के अपहरण का दिन था। 8 दिन तक चले विमान अपहरण के ड्रामे के बाद 3 खंखार आंतकियों को छोड़ना पड़ा था। नरसिम्हा राव के समय में अमेरिका से रिश्ते सुधारने की जो कोशिश हुई उसे वाजपेयी ने परवान चढ़ाया और 21वीं सदी के पहले साल में बिल क्लिंटन को भारत बुलाया। तब तक भारत के लिए ये एक बड़ी कामयाबी मानी जा रही थी। हालांकि अमेरिका से करीबी के बाद पाकिस्तान से रिश्तों में खटास इस कदर बढ़ी जिसकी झलक वाजपेयी को आतंकवाद पर बार-बार चिंता जतानी पड़ी। 

वाजपेयी ने साल 2000 में लाल किले से पाकिस्तान को संदेश देते हुए साफ कहा कि 21वीं सदी इस बात की इजाजत नहीं देती की मजहब के नाम पर या तलवार के जोर पर देश की सीमाएं बदली जाएं। जम्मू कश्मीर और लद्दाख की जनता खून खराबे से तंग आ गई और वो अमन चाहती है। 

इसे भी पढ़ें: स्वतंत्रता दिवस पर मोदी का दुनिया को संदेश- 'भारत जो ठान लेता है उसको कर दिखाता है'

 साल 2001

वाजपेयी शासन का लंबा दौर कभी पाकिस्तान से दोस्ती तो कभी उस दोस्ती में हुई चूक को रफ्फू करने में गुजरा। 90 के दशक में कमंडल की राजनीति से बीजेपी को ताकत मिली थी। लेकिन वाजपेयी ने उस ताकत को धर्मनिरपेक्षता की डोर से बांध दिया। वाजपेयी ने विरोधियों से गरीबी, बेरोजगारी, बीमारी और पिछड़ेपन से लड़ने की सीख दी। 

साल 2002

प्रधानमंत्री के तौर पर ये वाजपेयी के पूर्ण कार्यकाल का दौर था जब 13 दिसंबर, 2001 को पांच चरमपंथियों ने भारतीय संसद पर हमला कर दिया। ये भारतीय संसदीय इतिहास का सबसे काला दिन माना जाता है। इस हमले में भारत के किसी नेता को कोई नुकसान नहीं पहुंचा था लेकिन पांचों आतंकवादी और कई सुरक्षाकर्मी मारे गए थे। अटल बिहारी वाजपेयी ने लाल किले से साल 2002 को अपने ऐतिहासिक भाषण में 13 दिसंबर को शहीद हुए सुरक्षाकर्मियों को नमन करते हुए पाकिस्तान को आईना भी दिखाया था। उन्होंने कहा कि आतंकवाद एक नासूर बन चुका है और मानवता का दुश्मन है। हमारा पड़ोसी अंतरराष्ट्रीय स्तर पर तो आतंकवाद का विरोध करने का दावा करता है लेकिन इस क्षेत्र में उसके दोहरे मापदंड हैं। 

 15 अगस्त 2003 को लाल किले की प्राचीर से दिया अंतिम भाषण

साल 2003 में जब अटल बिहारी वाजपेयी ने लाल किले की प्राचीर से तिरंगा लहराया तो गैर कांग्रेसी सरकार के पहले मुखिया बन गए जिन्हें छह बार ऐसा ऐतिहासिक मौका मिला। अटल जी ने 15 अगस्त 2003 को लाल किले की प्राचीर से अपना अंतिम भाषण दिया था। जिसमें सूखे से लड़ने के लिए किसानों को बधाई, पाकिस्तान को अमन के रास्ते पर साथ चलने का न्यौता समेत कश्मीर में स्वतंत्र चुनाव और बातचीत के जरिए ही इसे सुलझाये जाने की बात कही। 

सूखे से लड़ने के लिए किसानों को बधाई देते हुए वाजपेयी ने कहा कि देश में सूखा रहा, हमने सभी सूखाग्रत्स इलाकों को प्रयाप्त मदद दी और पर्याप्त अन भेजा, किसानों को बधाई जिन्होंने अपनी कड़ी मेहनत से देश के अन्न के भंडार भर दिए, आज भारत की अर्थव्यवस्था विश्व की चौथी बड़ी अर्थव्यवस्था बन गई है। सभी, वैज्ञानिकों, शिक्षकों, साहित्यकारों और कलाकारों तथा बच्चों को इसके लिए बधाई।

पाकिस्तान को अमन के रास्ते पर साथ चलने का न्यौता

5 सालों में हमारी विदेश नीति ने विश्व में भारत की प्रतिष्ठा बढ़ाई है, पाकिस्तान के साथ रिश्तों में हाल के दिनों में कुछ प्रगति हुई है लेकिन आतंकी गतिविधियां अब भी जारी है। पाकिस्तान के मित्रों से मैं कहता रहा हूं कि लड़ते-लड़ते 50 साल हो गए हैं, और कितना खून बहाना बाकी है? लाहौर से आई 2 साल की बच्ची नूर को हिंदुस्तान में जो प्यार मिला उसमें ऐसा पैगाम जिसे पाकिस्तान को समझना जरूरी है, दोनो देशों के स्वाधीनता दिवस के मौके पर मैं पाकिस्तान को अमन के रास्ते पर साथ चलने का न्यौता देता हूं।

कश्मीर में स्वतंत्र चुनाव

स्वतंत्र चुनाव ने फिर एक बार साबित कर दिया है कि कश्मीर की जनता ने सीमा पार आंतक को ठुकरा दिया है। जम्मू-कश्मीर की गुत्थी को बातचीत के जरिए ही सुलझाया जा सकता है।

कर्ज लेने वाले देश भारत अब कर्ज दे रहा है, विदेशी मुद्रा भंडार 100 अरब डॉलर के पार

पिछले कुछ सालों में देश ने जो प्रगति की है उसने मुझे नई आशा और विश्वास दिया है, कर्ज लेने वाला भारत आज कर्ज दे रहा है, हमेशा विदेशी मुद्रा की कमी झेलने वाले भारत ने आज 100 अरब डॉलर विदेशी मुद्रा कमा ली है। जरूरत की चीजों की कीमतें काबू में और बाजार में किसी चीज का आभाव नहीं है, गरीबी घट रही है और तेजी से घटाने का हमारा संकल्प है।

6 बार लाल किले से स्पीच

अटल बिहारी वाजपेयी ने छह बार लाल किले से स्पीच दी। साल 2002 में 25 मिनट और 2003 में 30 मिनट की स्पीच दी थी। उनकी सबसे लंबी स्पीच 30 मिनट की रही। 

स्वतंत्रता दिवस के भाषणों में विकास पर रहा जोर

इंडिया टुडे डेटा इंटेलीजेंस यूनिट की एक रिपोर्ट के अनुसार अटल बिहारी वाजपेयी के सभी स्वतंत्रता दिवस भाषणों में 'विकास' शब्द पर सबसे ज्यादा जोर रहा। 15 अगस्त 1999 से 15 अगस्त 2003 तक उनके भाषणों में 'विकास' 38 बार आया। 'विकास' के बाद वाजपेयी के भाषणों में 'आर्थिक' (36), 'शांति' (35), 'स्वतंत्रता' (28), 'पाकिस्तान' (26), 'युवा' (25) और 'भविष्य' (24) बार इस्तेमाल हुआ।

जो कल थे वो आज नहीं हैं, जो आज हैं वो कल नहीं होंगे। होने नहीं होने का क्रम यूं ही चलता रहेगा। हम हैं, हम रहेंगे, ये भ्रम भी पलता रहेगा। पर अटल थे, अटल हैं और अटल रहेंगे। वो दिलों में अटल हैं, राजनीति में अटल हैं, कविताओं में अटल हैं मिसालों में अटल हैं प्रेरणाओं में अटल हैं। हमारे मन में अटल हैं। जिसने राजनीति को एक नए सिरे से रंगा, लिखा, समझा और हिन्दुस्तान को विश्व में एक ऐसी ताकत साबित किया जिसकी नींव पर ये देश आगे बढ़ रहा है। - अभिनय आकाश

प्रमुख खबरें

Amit Shah ने ग्रामीण बैंकिंग में सहकारिता की भावना को पुनर्जीवित करने का आह्वान किया

दिसंबर के महीने में लक्षद्वीप का करें प्लान, जानें कितना होगा खर्च, रोमांच से कम नहीं होगी यात्रा

ICC Rankings: जसप्रीत बुमराह बने टेस्ट क्रिकेट के नंबर 1 गेंदबाज, यशस्वी जायसवाल को भी हुआ बड़ा फायदा

पाकिस्तान में हिंसा के कारण श्रीलंकाई टीम ने बीच में छोड़ा दौरा, चैंपियंस ट्रॉफी की मेजबानी पर उठे सवाल