Ashfaqullah Khan Birth Anniversary: अशफाकउल्ला खां के लिए धर्म से बढ़कर था देश, इतिहास में अमर हो गया ये क्रांतिकारी

By अनन्या मिश्रा | Oct 22, 2024

आज ही के दिन यानी की 22 अक्तूबर को स्वतंत्रता सेनानी अशफाकउल्ला खान का जन्म हुआ था। अशफाक असाधारण प्रतिभा के धनी थे। छोटी उम्र से ही उनमें कुछ बहुत बड़ा करने का इरादा था। यह वही दौर था जब हमारा देश गुलामी की जंजीरों में जकड़ा हुआ था। वहीं किसी को यह भी नहीं पता था कि कब तक अंग्रेजी हुकूमत भारतीयों को अपनी ही धरती पर गुलाम बनाकर रखेगी। अशफाक ने महात्मा गांधी द्वारा चलाए गए असहयोग आंदोलन में भी हिस्सा लिया था। तो आइए जानते हैं उनके बर्थ एनिवर्सरी के मौके पर अशफाकउल्ला खान के जीवन से जुड़ी कुछ रोचक बातों के बारे में...


जन्म और परिवार

उत्तर प्रदेश के शाहजहांपुर में स्थित शहीद गढ़ में 22 अक्तूबर 1900 को अशफाकउल्ला खान का जन्म हुआ था। इनके पिता का नाम शफीक उल्ला और मां का नाम महरूननिशा था। उनका पढ़ाई-लिखाई में मन नहीं लगता था। हालांकि अशफाक को तैराकी, निशानेबाजी और घुड़सवारी में दिलचस्पी थी। उस दौरान वह महज 15 साल के होंगे, जब देश में होने वाले आंदोलनों और क्रांतिकारी परिवर्तनों से वह प्रेरित हुए और क्रांतिकारी राम प्रसाद बिस्मिल से बहुत प्रभावित हुए। 

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इसके अलावा अशफाक को कविताएं लिखकर अपनी बातें कहना पसंद था। वहीं रामप्रसाद बिस्मिल से मिलने की ख्वाहिश लिए वह उनके साथ जुड़ने की जद्दोजहद में जुड़ गए। आगे चलकर अशफाकउल्ला खान रामप्रसाद बिस्मिल से मिले और इस तरह से वह क्रांति की दुनिया में शामिल हो गए।


काकोरी कांड में दिया साहस का परिचय

ऐतिहासिक काकोरी काण्ड में अपने अदम्य उत्साह और साहस का परिचय देकर अशफाक ने अंग्रेजों को परेशानी में डाल दिया। लेकिन वह पुलिस के हाथ नहीं आए। काकोरी कांड के बाद अशफाक बनारस आ गए और इंजीनियरिंग कंपनी में काम करने लगे। इस दौरान उनको जो पैसे मिलते थे, वो अपने क्रांतिकारी साथियों की मदद में लगाते थे। काम के लिए विदेश जाने के लिए वह एख पठान मित्र के संपर्क में आए। लेकिन इस पठान मित्र ने अशफाक के साथ छल किया और पैसों के लालच में आकर अंग्रेजों को अशफाक उल्ला खां का ठिकाना देकर उन्हें पकड़वा दिया।


फांसी

अंग्रेजों द्वारा पकड़े जाने के बाद अशफाक को जेल में कठोर यातनाएं दी जाने लगीं। साथ ही उनको सरकारी गवाह बनाने की भरपूर कोशिश की गई। लेकिन अंग्रेजों द्वारा दी गई तमाम यातनाओं के बाद भी अशफाक उल्ला खां टूटे नहीं और न ही उनके क्रांति उत्साह में किसी तरह की कोई कमी आई। उन्होंने अंग्रेजी हुकूमत की तरफ से पेश किए गए हर प्रस्ताव को ठुकरा दिया। वह भारत मां के शेर सपूतों की फेहरिस्त में सबसे आगे थे। ऐसे में 19 दिसंबर 1927 को ब्रिटिश हुकूमत ने अशफाक उल्ला खां को फैजाबाद जेल में फांसी दे दी।

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