उत्तर और दक्षिण का तालमेल बनाकर केजरीवाल ने शुरू कर दी 2024 की तैयारी

By नीरज कुमार दुबे | Apr 01, 2022

कांग्रेस पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव क्या हारी, वह 2024 में होने वाले लोकसभा चुनावों की रेस से भी बाहर होती दिख रही है। 2024 में विपक्ष का नेता कौन होगा इसके लिए वैसे तो कई नेताओं ने अपने-अपने स्तर पर तैयारी शुरू कर दी है। लेकिन फिलहाल दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल इस दौड़ में सबसे आगे नजर आ रहे हैं। पंजाब में आम आदमी पार्टी की सरकार बनवा पाने में सफल रहने के बाद केजरीवाल ने 2024 के चुनावों की तैयारी शुरू कर दी है। केजरीवाल ने आम आदमी पार्टी को गुजरात, हिमाचल प्रदेश और राजस्थान में विधानसभा चुनाव लड़वाने के लिए तैयार करना शुरू कर दिया है और कांग्रेस के साथ खड़े दलों को अपने साथ लाने की कवायद भी तेज कर दी है।

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संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन यानि यूपीए में शामिल झारखंड मुक्ति मोर्चा के नेता और झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के बाद अब तमिलनाडु में सत्तारुढ़ द्रमुक को भी आम आदमी पार्टी का दिल्ली मॉडल भा रहा है। माना जा रहा है कि द्रमुक प्रमुख और तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन कांग्रेस की निष्क्रियता के चलते अब उससे पीछा छुड़ाना चाहते हैं इसीलिए वह अपने लिए दिल्ली में दूसरा विकल्प तलाशने में जुट गये हैं। उत्तर भारत में अपना प्रभाव तेजी से बढ़ा रही आम आदमी पार्टी और दक्षिण में ताकत रखने वाली द्रमुक यदि साथ आते हैं तो दिल्ली में एक बड़ी ताकत बन सकते हैं। तमिलनाडु के मुख्यमंत्री इस समय दिल्ली की यात्रा पर हैं और इस दौरान उन्होंने आम आदमी पार्टी सरकार के मोहल्ला क्लीनिक जाकर वहां की व्यवस्थाओं का जायजा लिया और दिल्ली के सरकारी स्कूलों के प्रबंध को भी देखा। इस दौरान दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल और उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया भी स्टालिन के साथ थे।


वैसे भी तृणमूल कांग्रेस अध्यक्ष और पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी कह चुकी हैं कि अब यूपीए जैसी कोई चीज नहीं है। वर्तमान में सोनिया गांधी यूपीए की अध्यक्ष हैं लेकिन लंबे समय से इस गठबंधन की कोई बैठक नहीं हुई है। संसद में भी यूपीए में शामिल दल अलग-अलग राह पकड़ते हुए दिखते हैं। एनसीपी चाह रही है कि यूपीए अध्यक्ष का पद शरद पवार को मिले। हालांकि पार्टी के बड़े नेता इस मुद्दे पर बयान देने से बच रहे हैं लेकिन एनसीपी की युवा इकाई ने यह मांग कर दी है। इसके साथ ही एनसीपी नेता शरद पवार ने दिल्ली में अपनी ताकत दिखाने के लिए गुरुवार को पार्टी के अल्पसंख्यक मोर्चे के एक कार्यक्रम को संबोधित किया। यह कार्यक्रम दिल्ली में एनसीपी के अब तक हुए बड़े कार्यक्रमों में से एक था। एनसीपी राष्ट्रीय राजधानी में 10 जून को अपना स्थापना दिवस मनाने के लिए एक बड़ी सभा करने की भी योजना बना रही है।

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ममता बनर्जी भी संसद के हर सत्र से पहले दिल्ली का दौरा कर पार्टी की संसद में रणनीति को तय कर रही हैं और विपक्ष शासित विभिन्न राज्यों के मुख्यमंत्रियों से मुलाकात कर या फिर उन्हें पत्र लिखकर अपने साथ जोड़ने की कवायद में जुटी हुई हैं। तेलंगाना के मुख्यमंत्री के. चंद्रशेखर राव भी दिल्ली का सपना देखने लगे थे लेकिन फिलहाल उनकी प्राथमिकता अगले साल होने वाले तेलंगाना विधानसभा चुनाव हैं। शिवसेना भी महाराष्ट्र से बाहर निकलने और दिल्ली में अपना स्थान बनाने की कोशिश में है लेकिन फिलहाल वह कांग्रेस के नेतृत्व में काम करने की ज्यादा इच्छुक नजर आ रही है। जहां तक बात अगले लोकसभा चुनावों में विपक्ष के नेतृत्व कर सकने वाले नेता की है तो केजरीवाल इसलिए भी आगे हैं क्योंकि जहां ममता बनर्जी, शरद पवार, के. चंद्रशेखर राव, उद्धव ठाकरे की पार्टी की एक-एक राज्य में ही सरकार है वहीं केजरीवाल के नेतृत्व वाली आम आदमी पार्टी दो राज्यों में सरकार चला रही है इसके अलावा कांग्रेस के अलावा दिल्ली की दौड़ में शामिल विपक्षी पार्टियों में सिर्फ आम आदमी पार्टी ही है जिसने ज्यादातर राज्यों में चुनावों में अपनी किस्मत आजमाई है और कई राज्यों में अपने पार्टी संगठन का ढांचा भी खड़ा कर चुकी है।


बहरहाल, अब देखना होगा कि केजरीवाल और स्टालिन की यह सियासी दोस्ती क्या रंग लाती है। फिलहाल तो केजरीवाल कह रहे हैं कि हम सभी एक दूसरे के अच्छे कार्यों से सीख ले रहे हैं लेकिन सीखों का यह आदान-प्रदान राजनीतिक समझौतों तक भी शीघ्र पहुँच जाये तो कोई बड़ी बात नहीं होगी।


-नीरज कुमार दुबे

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