By अभिनय आकाश | Sep 03, 2021
भारत यूं तो अपने शांत स्वभाव और भाईचारे के लिए जाना जाता है। हमेशा से वो अटैक की बजाय डिफेंस पर ही भरोसा करता है। लेकिन भारत की इस नीति को पड़ोसी देश समेत कई मुल्क उसकी कमजोरी समझ इसका फायदा उठाने की कोशिश करते हैं। जिसका उन्हें करारा जवाब भी मिलता है और मुंह की खानी भी पड़ती है। भारत ने साल 2019 के फरवरी के महीने में पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान में छिपे आतंकवादियों को भारत ने सबक सिखाया था। भारत के बालाकोट एयर स्ट्राइक के बाद पाकिस्तान पूरी तरह कांप गया था। चीन लगातार कई मौकों पर भारत को आंखे दिखाने की कोशिश करता रहता है। गलवान से शुरू हुई ड्रैगन-चीन तकरार में चीन ये तो समझ चुका है कि युद्ध हुआ तो न ही उसकी पैदल सेना काम आने वाली है और न ही हवाई लड़ाके। लेकिन अब भारतीय सेना को बालाकोट टाइप मिशन के लिए 100 से ज्यादा स्काई स्ट्राइकर मिलने वाले हैं। जिसके आ जाने के बाद भारत के पास ऐसी क्षमता मौजूद होगी, जिसके जरिये भारतीय सेना दुश्मन देश के लगभग 100 किलोमीटर के अंदर सटीक हमला कर सकेगी। इस सिस्टम का नाम है स्काई स्ट्राइकर। भारतीय सेना की तरफ से ऐसे 100 सिस्टम बेंगलुरू स्थित एक प्राइवेट कंपनी से खरीदे जा रहे हैं। भारतीय सेना आपातकालीन खरीद शक्तियों के तहत 100 से अधिक विस्फोटकों से लैस ड्रोन के लिए एक अनुबंध पर हस्ताक्षर किए हैं। जिनका निर्माण बेंगलुरु में किया जाना है। इस सिस्टम का प्रयोग बालाकोट के तरह के मिशनों में किया जाता है। इसकी रेंज लगभग 100 किलोमीटर होती है।
स्काई स्ट्राइकर इजरायली कंपनी एल्बिट सिस्टम द्वारा बनाया जाता है और इसकी ज्वाइंट वेंचर कंपनी भारत में है। जिसे अल्फा डिजाइन एलबेट सिस्टम इस लॉयेट्री म्यूनेशन को भारत में बनाने वाली है। थल सेना की तरफ से इस ज्वाइंट वेंचर कंपनी को 100 से भी ज्यादा ऐसे लॉयेट्री म्यूनेशन का ऑर्डर दिया गया है। माना जा रहा है कि सपोर्ट सिस्टम और ट्रेनिंग को मिला कर इस सपोर्ट सिस्टम अनुबंध की कुल कीमत 100 करोड़ के आसपास होगी। एल्बिट सिस्टम्स की वेबसाइट के अनुसार, स्काई स्ट्राइकर लंबी दूरी की सटीक सामरिक हमलों में सक्षम एक लागत प्रभावी लॉयेट्री म्यूनेशन है। ड्रोन युद्धाभ्यास करने वाले सैनिकों और विशेष बलों को सटीक हवाई फायर क्षमता प्रदान करता है। अल्फा-एल्बिट जेवी पहले ही लगभग 100 ऐसे ड्रोन निर्यात कर चुका है - जो एल्बिट की तकनीक पर आधारित है और उसके पास अन्य 100 निर्यात के ऑर्डर हैं। संयुक्त उद्यम में अल्फा की 51 फीसदी हिस्सेदारी है।
अगर स्काई स्ट्राइक सिस्टम की स्पेशिफिकेशन की बात करें तो यह दो वेरिएंट में आता है। पहला सिस्टम पांच किलोग्राम तक का भार उठा सकता है और दूसरा सिस्टम 10 किलोग्राम का वारहेड उठा सकता है। ये सिस्टम का आकार काफी कम है और इसे बनाने के लिए इस्तेमाल किया जाने वाला मैटेरियल कॉमपोजिट मैटेरियल है। इसी वजह से ये रडार वेब को ज्यादा रिफलेक्ट नहीं करता है। अल्फा डिजाइन के सीएमडी कर्नल (सेवानिवृत्त) एचएस शंकर ने अंग्रेजी अखबार टीओआई को बताया कि लॉन्च से पहले जीपीएस ड्रोन पर लोड किया जाएगा। लॉन्च होने पर यह क्षेत्र के चारों ओर मंडराएगा, लक्ष्य को उठाएगा, सूचना को वापस रिले करेगा। ग्राउंड कंट्रोल उपकरण के लिए और मंजूरी मिलने के बाद ही स्ट्राइक करेगा। ग्राउंड कंट्रोल लॉन्च के बाद लक्ष्य बदल सकता है, और यहां तक कि अगर किसी मिशन को रद्द करना पड़ता है तो उसे वापस भी बुला सकता है।