मुलायम को पद्म विभूषण दिये जाने की घोषणा ने यूपी की राजनीति में बड़ा उलटफेर कर दिया

By अजय कुमार | Jan 27, 2023

क्या लोकतंत्र की यही खूबी है कि भारतीय जनता पार्टी की उस केंद्र सरकार द्वारा पूर्व सपा प्रमुख और उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव जैसे नेता का नाम पद्म विभूषण के लिए चुना गया जिनकी विचारधारा भाजपा की सोच से एकदम विपरीत थी? कौन भूल सकता है 1990 के उस दौर को जब भारतीय जनता पार्टी अयोध्या में प्रभु श्री राम का मंदिर बनाने का संकल्प लेकर पूरे देश में यात्राए कर रही थी, तब तत्कालीन मुलायम सरकार ताल ठोंक रही थी कि बाबरी मस्जिद को बचाएगी। अयोध्या में परिंदा भी पर नहीं मार पाएगा। ऐसा हुआ भी। 1990 में जब कुछ राम भक्त कारसेवक 'सौगंध राम की खाते हैं मंदिर वहीं बनाएंगे' का नारा लगाते हुए अयोध्या पहुंचे तो तत्कालीन सरकार के मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव ने विवादित ढांचे को बचाने के लिए उग्र हो रहे कारसेवकों पर गोली चलाने से भी परहेज नहीं किया था। जिसमें सरकारी आंकड़ों के अनुसार 16 कार सेवकों मौत हो गई थी लेकिन गैर सरकारी आंकड़ों के अनुसार यह संख्या काफी अधिक थी।


इतना ही नहीं, बाद में भी वह निःसंकोच कहते रहे कि बाबरी मस्जिद को बचाने के लिए उन्हें और गोली चलाने से भी परहेज नहीं होता। भले ही 16 की जगह 16 सौ कारसेवक मर जाते। मुलायम सिंह यादव ने अपने पूरे जीवन में कभी इस बात का पछतावा नहीं किया कि उनके आदेश के चलते दर्जनों राम भक्त मारे गए थे। इसको लेकर भारतीय जनता पार्टी हमेशा मुलायम सिंह यादव पर आक्रामक रहती थी। कारसेवकों पर गोली चलाने के कारण मुलायम सिंह हमेशा बीजेपी के कट्टर राजनैतिक दुश्मन बने रहे। लेकिन इसका मुलायम सिंह यादव के व्यक्तिगत जीवन पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा, उनके सभी पार्टियों के नेताओं से अच्छे संबंध थे। अटल बिहारी वाजपेयी से लेकर नरेंद्र मोदी तक से वह अपने दिल की बात खुलकर कहते थे। इतने अच्छे संबंध तो उनके कांग्रेस की चेयरपर्सन सोनिया गांधी तक से नहीं रहे थे। सब जानते थे कि मुलायम सिंह की तुष्टिकरण की राजनीति के चलते हिंदुओं का एक बड़ा वर्ग उनसे हमेशा नाराज रहता था और उनके खिलाफ वोटिंग करता था।


मुलायम सिंह को मुल्ला मुलायम कहकर पुकारा जाता था लेकिन इस सब बातों से बेफिक्र मुलायम हमेशा मुसलमानों के प्रिय बने रहे। यहां तक की कई मुस्लिम नेताओं पर उनकी बिरादरी के लोग इतना भरोसा नहीं करते थे जितना मुलायम सिंह पर उनको भरोसा था। ऐसे नेता को जब मोदी सरकार में पद्म विभूषण से नवाजा जाता है तो सवाल तो उठेंगे ही।


बहरहाल, इसके विपरीत कुछ बुद्धिजीवियों का अपना तर्क है। वे कहते हैं पद्म विभूषण, पद्म भूषण और पद्मश्री जैसे राष्ट्रीय सम्मान को राजनीतिक दृष्टिकोण से नहीं देखना चाहिए, लेकिन इस घोषणा के दूरगामी परिणाम से इंकार भी नहीं किया जा सकता। गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या पर केंद्र सरकार ने वैचारिक तौर पर धुर विरोधी और उत्तर प्रदेश में पिछड़ों की राजनीति के प्रमुख चेहरे रहे पूर्व मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव को पद्म विभूषण सम्मान देने की घोषणा कर लोकसभा चुनाव 2024 के लिए अपने प्रबल प्रतिद्वंद्वी समाजवादी पार्टी के प्रमुख और मुलायम के पुत्र अखिलेश यादव के लिए मुश्किल तो खड़ी कर ही दी है। सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव के सामने भी भाजपा की इस चाल की काट तलाशना आसान नहीं होगा। फिलहाल समाजवादी के कई बड़े नेता और मुलायम की सांसद बहू डिंपल यादव ने अपने ससुर को दिए गए  पद्म विभूषण पुरस्कार को नाकाफी बताते हुए नेताजी को भारत रत्न देने की मांग शुरू कर दी है। जबकि आज से पहले सपा की तरफ से कभी कोई ऐसी बात नहीं होती थी।


खैर, यह कड़वी हकीकत है कि समाजवादी पार्टी का कोई भी नेता चाहते हुए भी मुलायम को पद्म विभूषण से नवाजे जाने का विरोध नहीं कर सकता है। केंद्र सरकार की तरफ से की गई यह घोषणा उत्तर प्रदेश में भाजपा की पिछड़ों की लामबंदी और उनको और करीब लाने के मुहिम में मददगार साबित होगी। यहां मुलायम से जुड़े एक और घटनाक्रम पर भी चर्चा करना जरूरी है। मुलायम सिंह उत्तर प्रदेश में मंडल और कमंडल की राजनीति के बीच न सिर्फ कांग्रेस का यूपी से बोरिया बिस्तर समेटने में प्रमुख किरदार रहे, बल्कि अयोध्या आंदोलन में उनकी भूमिका ने हिंदुत्व की विचारधारा से जन्मी भाजपा को भी अपने राजनीतिक प्रभाव क्षेत्र को बढ़ाने में मदद की थी। धुर विरोधी होने के बावजूद कई मौकों पर मुलायम और भाजपा के बीच काफी नजदीकी रिश्ते भी देखने को मिले।

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इन रिश्तों ने न सिर्फ प्रदेश बल्कि देश की राजनीति में भी काफी उथल-पुथल की। कांग्रेस की पूर्व अध्यक्ष सोनिया गांधी की विदेशी नागरिकता का मुद्दा उठाकर उन्हें प्रधानमंत्री बनाने का विरोध हो या लखनऊ का साड़ी कांड, मुलायम ने बतौर मुख्यमंत्री पूरा मामला शांत कराकर लोकसभा चुनाव में पर्दे के पीछे से अटल बिहारी वाजपेयी के मददगार की भूमिका निभाई थी। वैचारिक व राजनीतिक दोनों ही स्तर पर विरोधी होने के बावजूद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ भी कई मौकों पर मुलायम की नजदीकी खबरों की सुर्खियां बनती रहीं। 2017 में योगी आदित्यनाथ के शपथ ग्रहण समारोह में भरे मंच पर सबके बीच नरेंद्र मोदी के कान के पास जाकर मुलायम के कुछ फुसफुसाने  की घटना को कौन भूल सकता है? मोदी ने पहली बार जब शपथ ली तो मुलायम ना केवल शपथ ग्रहण समारोह में पहुंचे थे बल्कि मोदी ने भी उनको हाथों-हाथ लिया था। यह भी लोगों को याद ही होगा कि 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले मुलायम सिंह यादव ने लोकसभा में खुद जिस तरह नरेंद्र मोदी को फिर जीतकर आने और सरकार बनाने की शुभकामनाएं दी थीं उसने भी राजनीतिक क्षेत्र में बहुत हलचल पैदा की थी। प्रधानमंत्री मोदी मुलायम के परिवारिक फंक्शन में भी मौजूद रह चुके हैं। यह घटनाएं बताती हैं कि मुलायम और मोदी कितने करीब थे।


बात समाजवादी पार्टी के मौजूदा प्रमुख और पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव की मोदी और भाजपा के साथ रिश्तों की करी जाए तो उनके रिश्तों में पिता मुलायम सिंह की तरह बीजेपी के प्रति नरम रुख नज़र नहीं आता। इसकी सबसे बड़ी वजह है कि बीजेपी और मोदी तमाम चुनावों में लगातार अखिलेश को पटखनी दे रहे हैं, जबकि मुलायम सिंह के रहते भारतीय जनता पार्टी, समाजवादी पार्टी पर कभी भारी नहीं पड़ पाई थी। कुल मिलाकर मुलायम को पद्म विभूषण सम्मान अखिलेश और उनके चाहने वालों के लिए गले की फांस साबित हो सकता है।


-अजय कुमार

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