भगवान विष्णु के पूजन और व्रत का दिन है अनंत चतुर्दशी। हिन्दू धर्म की मान्यता है कि इस दिन से शुभ काम शुरू किए जा सकते हैं। खास बात यह है कि इस दिन कोई शुभ मुहुर्त नहीं देखा जाता यानि यह पूरा दिन ही शुभ होता है और किसी भी समय कोई भी शुभ काम किया जा सकता है। पुराणों में इस दिन की महिमा का बखान किया गया है। इसमें बताया गया है कि इस दिन उदयव्यापिनी तिथि ग्रहण की जाती है। इस दिन व्रत करने वाले को नमक खाना मना है। अनंत चतुर्दशी के दिन भगवान की पूजा करके अनंत सूत्र बांधा जाता है। इस सूत्र को पुरुष दाहिने हाथ में और स्त्री बायें हाथ में बांधती हैं।
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इस दिन व्रती को इस दिन सुबह ही नहा धोकर पूजन सामग्री जुटा लेनी चाहिए। इस व्रत में पूजा दोपहर के समय की जाती है। पूजा के लिए पहले कलश की स्थापना करें। कलश पर अष्टदल कमल के समान बने बर्तन में कुश से निर्मित अनन्त की स्थापना करें। कुश के अनन्त की वंदना करें और उसमें भगवान विष्णु का सच्चे मन से आह्वान करें। इसके बाद अक्षत, पुष्प, धूप तथा नैवेद्य से पूजन करें। पूजन के दौरान अनन्त देव का ध्यान करें और शुद्ध अनन्त को अपनी दाहिनी भुजा पर बांधें। भगवान विष्णु को यह डोरा प्रिय है इसलिए इसे बांधने वाले पर वह प्रसन्न होते हैं और फल देते हैं। यदि आप पुत्र अथवा धन की कामना कर रहे हैं तो आपको इस व्रत को करना चाहिए। पूजा के बाद ब्राह्मण को यथाशक्ति दान अवश्य करें।
कथा
सतयुग में सुमन्तुनाम के एक मुनि थे। उनकी पुत्री शीला अपने नाम के अनुरूप अत्यंत सुशील थी। सुमन्तु मुनि ने उस कन्या का विवाह कौण्डिन्य मुनि से किया। कौण्डिन्य मुनि अपनी पत्नी शीला को लेकर जब ससुराल से घर वापस लौट रहे थे, तब रास्ते में नदी के किनारे कुछ स्त्रियां अनंत भगवान की पूजा करते दिखाई पड़ीं। शीला ने अनंत−व्रत का माहात्म्य जानकर उन स्त्रियों के साथ अनंत भगवान का पूजन करके अनंत सूत्र बांध लिया। इसके फलस्वरूप थोड़े ही दिनों में उसका घर धन−धान्य से पूर्ण हो गया। एक दिन कौण्डिन्य मुनि की दृष्टि अपनी पत्नी के बाएं हाथ में बंधे अनंत सूत्र पर पड़ी, जिसे देखकर वह भ्रमित हो गए और उन्होंने पूछा− क्या तुमने मुझे वश में करने के लिए यह सूत्र बांधा है? शीला ने विनम्रतापूर्वक उत्तर दिया− जी नहीं, यह अनंत भगवान का पवित्र सूत्र है।
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परंतु ऐश्वर्य के मद में अंधे हो चुके कौण्डिन्य ने अपनी पत्नी की सही बात को भी गलत समझा और अनंत सूत्र को जादू−मंतर वाला वशीकरण करने का डोरा समझकर तोड़ दिया तथा उसे आग में डालकर जला दिया। इस जघन्य कर्म का परिणाम भी शीघ्र ही सामने आ गया। उनकी सारी संपत्ति नष्ट हो गई। दीन−हीन स्थिति में जीवन−यापन करने में विवश हो जाने पर कौण्डिन्य ऋषि ने अपने अपराध का प्रायश्चित करने का निर्णय लिया। वे अनंत भगवान से क्षमा मांगने के लिए वन में चले गए। उन्हें रास्ते में जो मिलता वे उससे अनंत देव का पता पूछते जाते थे।
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बहुत खोजने पर भी कौण्डिन्य मुनि को जब अनंत भगवान का साक्षात्कार नहीं हुआ, तब वे निराश होकर प्राण त्यागने को हुए। तभी एक वृद्ध ब्राह्मण ने आकर उन्हें आत्महत्या करने से रोक दिया और एक गुफा में ले जाकर चतुर्भुज अनंत देव का दर्शन कराया। भगवान ने मुनि से कहा− तुमने जो अनंत सूत्र का तिरस्कार किया है, यह सब उसी का फल है। इसके प्रायश्चित के लिए तुम चौदह वर्ष तक निरंतर अनंत−व्रत का पालन करो। इस व्रत का अनुष्ठान पूरा हो जाने पर तुम्हारी नष्ट हुई सम्पत्ति तुम्हें पुनः प्राप्त हो जाएगी और तुम पूर्ववत् सुखी−समृद्ध हो जाओगे। कौण्डिन्य मुनि ने इस आज्ञा को सहर्ष स्वीकार कर लिया। कौण्डिन्य मुनि ने चौदह वर्ष तक अनंत व्रत का नियमपूर्वक पालन करके खोई हुई समृद्धि को पुनः प्राप्त कर लिया।
-शुभा दुबे