By नीरज कुमार दुबे | May 16, 2023
कर्नाटक के मुख्यमंत्री पद के लिए वरिष्ठ नेता सिद्धारमैया से कड़े मुकाबले के बीच कांग्रेस की प्रदेश इकाई के अध्यक्ष डीके शिवकुमार राज्य में सरकार गठन के मुद्दे पर पार्टी के केंद्रीय नेतृत्व से चर्चा करने के लिए दिल्ली पहुँच गये हैं। वहीं, सिद्धारमैया सोमवार से दिल्ली में हैं। हम आपको यह भी बता दें कि शिवकुमार तथा सिद्धारमैया को समर्थन दे रहे विधायकों की संख्या के बारे में अटकलों के बीच प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष ने सोमवार को कहा था कि उनका संख्या बल 135 है क्योंकि उनके नेतृत्व में ही पार्टी ने 135 सीटें जीती हैं।
गहन मंत्रणा जारी
हम आपको यह भी बता दें कि कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने कर्नाटक में पार्टी विधायक दल का नेता चुनने को लेकर तीनों पर्यवेक्षकों के साथ सोमवार को गहन मंत्रणा की, लेकिन कोई फैसला नहीं हो सका था। खरगे और पार्टी के अन्य वरिष्ठ नेता आज फिर इस विषय पर विस्तार से चर्चा कर रहे हैं। कांग्रेस अध्यक्ष खरगे ने कर्नाटक में कांग्रेस विधायक दल का नेता चुनने के लिए वरिष्ठ नेता सुशील कुमार शिंदे, जितेंद्र सिंह और दीपक बाबरिया को पर्यवेक्षक नियुक्त किया था। तीनों पर्यवेक्षकों ने पार्टी के नवनिर्वाचित विधायकों से अलग-अलग बात कर उनकी राय जानी थी। तीनों पर्यवेक्षक सोमवार शाम खरगे के आवास पर पहुंचे और फिर लंबी बैठक हुई। इस बैठक में कांग्रेस के संगठन महासचिव केसी वेणुगोपाल और पार्टी के कर्नाटक प्रभारी रणदीप सिंह सुरजेवाला भी मौजूद रहे। बैठक खत्म होने के बाद सुरजेवाला ने संवाददाताओं से कहा, ''पर्यवेक्षकों ने अपनी रिपोर्ट कांग्रेस अध्यक्ष को सौंपी है... वह राज्य के नेताओं और पार्टी के अन्य वरिष्ठ नेताओं के साथ विचार विमर्श के बाद कोई फैसला करेंगे।"
कैसे ली गयी विधायकों की राय?
कांग्रेस सूत्रों का कहना है कि कुछ विधायकों ने विधायक दल की बैठक के दौरान पर्यवेक्षकों के साथ मुलाकात के दौरान मुख्यमंत्री पद को लेकर अपनी पसंद बताई, हालांकि विधायक सबके सामने अपनी पसंद बताने में झिझक रहे थे, जिसके बाद उन्हें लिखित रूप से अपनी राय बताने के लिए कहा गया। वहीं, एक विधायक ने नाम नहीं जाहिर करने की शर्त पर कहा, ‘‘सिद्धारमैया और शिवकुमार तथा किसी अन्य नेता को चुनना था या फिर निर्णय आलाकमान पर छोड़ना था। यह एक तरह से गोपनीय मतदान था।’’ कहा जा रहा है कि विधायकों का एक धड़ा नेता चुनने के लिए हाथ उठाकर फैसला करने के पक्ष में था, लेकिन पार्टी ने ऐसा फैसला नहीं किया, क्योंकि इससे सरेआम विभाजन की स्थिति पैदा हो जाती। पता चला है कि सिद्धारमैया ने इस बात पर जोर दिया कि पार्टी की ओर से विधायक दल का नया नेता चुनने से पहले सभी विधायकों की राय ली जाए।
बहरहाल, ऐसे में जबकि कांग्रेस कर्नाटक में 135 सीटों पर शानदार जीत के बाद अब इस सवाल में उलझी हुई है कि सिद्धारमैया या शिवकुमार में से किसे कमान सौंपी जाये तो आइये एक नजर डालते हैं इन दोनों नेताओं की ताकत और कमजोरियों पर। इसके लिए स्वॉट विश्लेषण विधि का प्रयोग करेंगे। हम आपको बता दें कि स्वॉट विश्लेषण एक ऐसी विधि है जिसमें शामिल व्यक्तियों की ताकत, कमजोरी, अवसरों और जोखिम का मूल्यांकन किया जाता है। इसलिए मुख्यमंत्री पद के दोनों प्रमुख दावेदारों सिद्धारमैया और शिवकुमार की ‘ताकत, कमजोरी, अवसर और जोखिम’ का विश्लेषण कुछ इस प्रकार है-
सिद्धारमैया:
ताकत
* राज्य भर में व्यापक प्रभाव
* कांग्रेस विधायकों के एक बड़े वर्ग के बीच लोकप्रिय
* मुख्यमंत्री (2013-18) के रूप में सरकार चलाने का अनुभव।
* 13 बजट प्रस्तुत करने के अनुभव के साथ सक्षम प्रशासक।
* अहिंदा (अल्पसंख्यकों, पिछड़े वर्गों और दलितों के लिए कन्नड़ में संक्षिप्त नाम... एएचआईएनडीए) पर पकड़।
* मुद्दों पर भाजपा और जनता दल (सेक्युलर) को घेरने की ताकत। सबसे महत्वपूर्ण प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और उनकी सरकार का मुकाबला करने की मजबूत क्षमता।
* राहुल गांधी के करीबी माने जाते हैं। जाहिर तौर पर उन्हें उनका समर्थन प्राप्त है।
कमजोरी:
* सांगठनिक रूप में पार्टी के साथ इतना जुड़ाव नहीं है।
* उनके नेतृत्व में 2018 में कांग्रेस की सरकार की सत्ता में वापसी कराने में विफलता।
* अभी भी कांग्रेस के पुराने नेताओं के एक वर्ग द्वारा उन्हें बाहरी माना जाता है। वह पूर्व में जद (एस) में थे।
* आयु भी एक कारक हो सकता है। सिद्धरमैया 75 वर्ष के हैं।
अवसर:
* निर्णायक जनादेश के साथ सरकार चलाने के लिए हर किसी को साथ लेकर चलने और 2024 के लोकसभा चुनावों के लिए कांग्रेस को मजबूत करने की स्वीकार्यता, अपील और अनुभव।
* मुख्यमंत्री पद पर नजर गड़ाए बैठे राजनीतिक प्रतिद्वंद्वी शिवकुमार के खिलाफ आयकर विभाग (आईटी), प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) और केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई) के मामले दर्ज हैं इसलिए सिद्धारमैया को अवसर मिल सकता है।
* आखिरी चुनाव और मुख्यमंत्री बनने का आखिरी मौका।
जोखिम :
* मल्लिकार्जुन खरगे, जी परमेश्वर जैसे वरिष्ठ कांग्रेसी नेताओं को एकजुट करना, जो सिद्धरमैया के कारण मुख्यमंत्री बनने से चूक गए थे। बीके हरिप्रसाद और केएच मुनियप्पा भी उनके विरोधी माने जाते हैं।
* दलित मुख्यमंत्री की मांग।
* शिवकुमार की संगठनात्मक ताकत, पार्टी का ‘संकटमोचक’ होना, वफादार होने की छवि और गांधी परिवार, विशेष रूप से सोनिया गांधी और प्रियंका गांधी वाद्रा के साथ निकटता।
शिवकुमार:
ताकत:
* मजबूत सांगठनिक क्षमता और चुनावों में पार्टी को जीत दिलाने में अहम भूमिका।
* पार्टी के प्रति वफादारी के लिए जाने जाते हैं।
* मुश्किल समय में उन्हें कांग्रेस का प्रमुख संकटमोचक माना जाता है।
* साधन संपन्न नेता।
* प्रमुख वोक्कालिगा समुदाय, उसके प्रभावशाली संतों और नेताओं का समर्थन।
* गांधी परिवार से निकटता।
* आयु उनके पक्ष में, कोई कारक नहीं।
* लंबा राजनीतिक अनुभव। उन्होंने विभिन्न विभागों को संभाला भी है।
कमजोरी:
* आईटी, ईडी और सीबीआई में उनके खिलाफ मामले।
* तिहाड़ जेल में सजा।
* सिद्धारमैया की तुलना में कम जन अपील और अनुभव।
* कुल मिलाकर प्रभाव पुराने मैसुरू क्षेत्र तक सीमित है।
* अन्य समुदायों से ज्यादा समर्थन नहीं।
अवसर:
* पुराने मैसुरू क्षेत्र में कांग्रेस के वर्चस्व की मुख्य वजह उनका वोक्कालिगा समुदाय से होना है।
* कर्नाटक प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष के रूप में मुख्यमंत्री पद की स्वाभाविक पसंद। एसएम कृष्णा और वीरेंद्र पाटिल के मामले में भी ऐसा ही हुआ था।
* पार्टी के पुराने नेताओं का उन्हें समर्थन मिलने की संभावना।
जोखिम :
* सिद्धारमैया का अनुभव, वरिष्ठता और जन अपील।
* बड़ी संख्या में विधायकों के सिद्धारमैया का समर्थन करने की संभावना।
* केंद्रीय एजेंसियों द्वारा दायर मामलों के कारण कानूनी बाधाएं।
* दलित या लिंगायत मुख्यमंत्री की मांग।
* राहुल गांधी का सिद्धारमैया को स्पष्ट समर्थन।