By अशोक मधुप | Sep 20, 2022
शंघाई कोऑपरेशन ऑर्गेनाइजेशन एसोसिएशन के दो दिवसीय शिखर सम्मेलन में भाग लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भारत वापस लौट आए। वे सम्मेलन के एक हॉल में, एक छत के नीचे चीन और पाकिस्तान के राषट्राध्यक्षों के साथ मौजूद तो रहे किंतु रिश्तों में जमी बर्फ नहीं पिघली। रिश्तों की खटास में कोई कमी नहीं आई। आमने−सामने रहकर भी न आंखें मिलीं, न हाथ मिले। न किसी ने एक दूसरे को नमस्ते की, न सुप्रभात कहा। एक संगठन के एक छत के नीचे हुए कार्यक्रम में संगठन के आठ सदस्य देशों में से तीन सदस्य देशों का एक दूसरे से अपरिचित बने रहना, ये बताता है कि इन तीनों देशों में आपस में दूरी बहुत है। रिश्ते बहुत खराब हैं। चीन और पाकिस्तान से दूरी बनाकर भारत और उसके प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने स्पष्ट संकेत दे दिया कि भारत अब बदल गया है। वह दूसरे देश से दबकर नहीं, नजर से नजर मिलाकर बात करता है।
उज़्बेकिस्तान के समरकंद में शंघाई कोऑपरेशन ऑर्गेनाइजेशन एसोसिएशन का दो दिवसीय शिखर सम्मेलन था। शंघाई कोऑपरेशन ऑर्गेनाइजेशन एसोसिएशन (एससीओ) एक आठ सदस्यीय सुरक्षा समूह है। इसमें चीन, रूस, कजाकिस्तान, किर्गिस्तान, ताजीकिस्तान, उज्बेकिस्तान, भारत और पाकिस्तान शामिल हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इसमें भाग लेने के लिये गए। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग जब शंघाई सहयोग संगठन के मंच पर दिखे तो दूरियां भी साफ नजर आईं। सम्मेलन के फोटो सत्र में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी एक छोर पर खड़े हैं तो पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शाहबाज शरीफ दूसरे छोर पर। चीन के राष्ट्रपति और मोदी के बीच में शंघाई सहयोग संगठन के चार सदस्य खड़े थे। गलवान घाटी में भारत और चीन के सैनिकों के बीच 2020 में हुई झड़प के बाद यह पहला मौका था, जब भारत के प्रधानमंत्री और चीन के राष्ट्रपति एक मंच पर आमने-सामने थे। लेकिन एक छत के नीचे की नजदीकी भी दिलों की दूरियां नहीं मिटा पाई और दोनों नेता औपचारिक मुलाकात से भी बचते दिखे।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सम्मेलन में हिस्सा लेने पहुंचने पर उज्बेकिस्तान के राष्ट्रपति शावकत मिर्जियोयेव ने उनका गर्मजोशी से स्वागत किया। समरकंद के आसमान में रोशन होते सतरंगी पटाखों के बीच भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी समरकंद पहुंचे थे। प्रधानमंत्री मोदी का स्वागत करने खुद उज्बेकिस्तान के प्रधानमंत्री अब्दुल्ला अरिपोव एयरपोर्ट पहुंचे थे। इसके साथ ही भारतीय प्रतिनिधिमंडल के स्वागत में बॉलीवुड संगीत भी बजाया गया। उज्बेकिस्तान में भारत का ये जोरदार स्वागत दूसरे दिन भी जारी रहा। जब भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सम्मेलन में हिस्सा लेने पहुंचे तो उज्बेकिस्तान के राष्ट्रपति शावकत मिर्जियोयेव ने तब भी गर्मजोशी से स्वागत किया। सम्मेलन की बैठक के बाद प्रधानमंत्री मोदी ने शंघाई सहयोग संगठन के सदस्य देशों को संबोधित किया।
इस कार्यक्रम के दौरान पूरे समय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हिंदी में बोले। वह अंग्रेजी में बोल सकते थे, किंतु उन्होंने ऐसा नहीं किया। अब तक होता यह रहा है कि देश के नेताओं का इस तरह के कार्यक्रम में अंग्रेजी प्रेम झलकने लगता है। वे अपना भाषण अंग्रेजी में देते हैं। किंतु प्रधानमंत्री मोदी ने हिंदी में बोलकर पूरी दुनिया को संदेश दिया। उन भारतीयों को भी संदेश दिया जो राजनीति के लिए अंग्रेजी का पक्ष लेते हैं। प्रधानमंत्री ने हिंदी में बोलकर बता दिया कि कोई कुछ भी कहे, भारत की स्वीकार्य भाषा, मातृभाषा तो हिंदी ही है।
प्रधानमंत्री मोदी ने शुक्रवार को सुबह से दोपहर तक एससीओ के दो आधिकारिक कार्यक्रमों में हिस्सा लिया। उनकी राष्ट्रपति पुतिन, ईरान के राष्ट्रपति डॉ. इब्राहिम रईसी, तुर्की के राष्ट्रपति रिसेप तैयप एर्दोगेन और उज्बेकिस्तान के राष्ट्रपति शौकत मिरजियोएव के साथ द्विपक्षीय मुलाकात हुई। रूस के राष्ट्रपति पुतिन से तो निर्धारित समय से ज्यादा देर तक बातचीत हुई। सम्मेलन की बैठक के बाद प्रधानमंत्री मोदी ने शंघाई सहयोग संगठन के सदस्य देशों को पांच बड़े मंत्र दिए। दुनिया के महाबली देशों के मंच से प्रधानमंत्री मोदी ने बताया कि भारत किस प्रकार हर क्षेत्र में मजबूती से अपने पांव जमा रहा है। उन्होंने कहा कि भारत को मैन्युफैक्चरिंग हब बनाना है। 70 हजार स्टार्टअप वाला भारत इनोवेशन में सभी की सहायता करेगा, एससीओ के देशों के बीच सप्लाई चेन, ट्रांजिट बढ़ाना होगा, मोटे अनाज उपजाकर खाद्य संकट से निपटना होगा और एससीओ के सदस्य देश भी पारंपरिक इलाज शुरू करें।
प्रधानमंत्री मोदी और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग सम्मेलन में एक ही जगह, एक ही हॉल में तो मौजूद थे, लेकिन दोनों के बीच कोई भी बातचीत नहीं हुई। लेकिन शिखर सम्मेलन में जिनपिंग ने भारत की मेजबानी का समर्थन किया है। चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने भारत को अगले साल एससीओ की मेजबानी करने के लिए बधाई दी। उन्होंने कहा कि हम अगले साल भारत की अध्यक्षता का समर्थन करेंगे। उज्बेकिस्तान ने आठ सदस्यीय शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) की अध्यक्षता भारत को सौंपी।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की एक विशेषता है कि वह कार्यक्रम में अपनी महत्ता बताना जानते हैं। उन्होंने अपनी भेंट में जहां रूस के राष्ट्रपति और यूक्रेन का इस बात के लिए आभार व्यक्त किया कि रूस-यूक्रेन संकट के काल के शुरू में जब हमारे हजारों छात्र यूक्रेन में फंसे थे तब उनकी और यूक्रेन की मदद से हम उन्हें निकाल पाए। वहीं मोदी ने पुतिन से यह कह कर पूरी दुनिया का दिल भी जीत लिया कि आज का युग जंग का नहीं है। हमने फोन पर कई बार इस बारे में बात भी की है कि लोकतंत्र कूटनीति और संवाद से चलता है। पुतिन ने मोदी से कहा, 'मैं यूक्रेन से जंग पर आपकी स्थिति और आपकी चिंताओं से वाकिफ हूं। हम चाहते हैं कि यह सब जल्द से जल्द खत्म हो। हम आपको वहां क्या हो रहा है, इसकी जानकारी देते रहेंगे। इस युद्ध को लेकर अब तक रूस की आलोचना न करने के लिए पश्चिमी देशों की नाराजगी का शिकार होते रहे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पुतिन से यह कह कर कि आज का समय युद्ध का नहीं है, अमेरिकन मीडिया की प्रशंसा भी पा ली। अमेरिकन मीडिया मोदी की तारीफ करते नहीं अघा रही।
चीन के राष्ट्रपति को कार्यक्रम में नजरअंदाज कर भारत ने चीन को संदेश दिया कि पूर्वी लद्दाख से जुड़े वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर विवाद खत्म करने के लिए चीन को हालात पूरी तरह सामान्य करने होंगे। लद्दाख सीमा के छोटे से भाग से सेना हटाने से द्विपक्षीय संबंध मधुर नहीं होंगे। इस एससीओ सम्मेलन से पहले चीन ने जी-20 के समय की मेजबानी का पांच साल पुराना दांव आजमाया था, वह वही अब फिर आजमाना चाहता था। तब चीन ने सम्मेलन से ठीक पहले डोकलाम में महीनों से जारी विवाद को खत्म करने के लिए अपनी सेना पीछे हटा ली थी। एक तरह से चीन की उस समय की कूटनीति सफल रही थी। सम्मेलन से पहले ये चर्चाएं थीं कि विवाद के हल हुए बिना प्रधानमंत्री चीन में होने वाले इस सम्मेलन में भाग लेने नहीं जाएंगे। चीन के सेना हटाने के बाद पीएम मोदी न सिर्फ जी-20 सम्मेलन में चीन गये बल्कि जिनिपिंग के साथ अलग से द्विपक्षीय वार्ता भी की थी। लेकिन इस बार उसका यह दांव नहीं चला। एससीओ बैठक से पहले भी चीन ने पुराना दांव चल कर भारत को साधने की कोशिश की। सूत्र कहते हैं कि एलएसी के कुछ इलाकों से सेना हटाने के बाद चीन को उम्मीद थी कि वह फिर से भारत को साधने में कामयाब हो जाएगा। इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि चीन ने अपनी ओर से मोदी-जिनपिंग के बीच द्विपक्षीय वार्ता की तैयारी भी कर ली थी। चूंकि पीएम को चीनी राष्ट्रपति से नहीं मिलना था, इसलिए वह इस सम्मेलन में सबसे देरी से पहुंचे। साथ ही उन्होंने चीन के राष्ट्रपति को नजरअंदाज कर अपनी नाराजगी भी स्पष्ट कर दी।
भारत और उसके प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के व्यवहार ने यह स्पष्ट कर दिया कि जब तक चीन नहीं सुधरेगा, भारत अपना रवैया नहीं बदलेगा। भारत चीन की दुखती रग पर हाथ रखता रहेगा। भारतीय बाजार में चीन के लिए मुश्किलें बनाता रहेगा, साथ ही दक्षिण चीन सागर और ताइवान मामले में भारत चीन विरोधी देशों के साथ खड़ा रहेगा। आज पाकिस्तान की आर्थिक हालत बहुत खराब है। वहां महंगाई आसमान छू रही है। दुनिया के देश उसको कर्ज देने और मदद करने को तैयार नहीं हैं। हाल में आई बाढ़ ने पूरी तरह से उसकी कमर तोड़ दी। ऐसे में भारत उसकी मदद कर सकता था, किंतु उसने अभी तक चुप्पी साध रखी है। भारत चाहता है कि पाकिस्तान कश्मीर से दूरी बनाए और आतंकवाद को खत्म करने की अपनी प्रतिबद्धता पूरी करके दिखाए। ऐसा न होने पर वह उसकी कोई मदद नहीं करेगा।
-अशोक मधुप
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)