चिकित्सा क्षेत्र में नयी क्रांति का शंखनाद है फरीदाबाद का अमृता अस्पताल

By ललित गर्ग | Sep 01, 2022

अध्यात्म और मानव कल्याण की दिशा में सराहनीय प्रयासों के लिये श्री माता अमृतानन्दमयी देवी (अम्मा) दुनियाभर में मशहूर हैं। वे सारे विश्व में अपने निःस्वार्थ प्रेम और करुणा के लिये जानी जाती हैं। उन्होंने अपना जीवन गरीबों तथा पीड़ितों की सेवा व जन साधारण के आध्यात्मिक उद्धार के लिये समर्पित कर दिया है। अपने निःस्वार्थ प्रेमपूर्ण आश्लेष से, गहन आध्यात्मिक सारसिक्त वचनों से तथा संसार में व्याप्त अपनी सेवा संस्थाओं के माध्यम से अम्मा मानव का उत्थान कर रही हैं, उन्हें प्रेरणा दे रही हैं, उनका संबल बन रही हैं और समाज में सकारात्मक परिवर्तन ला रही हैं। इसका एक नवीन एवं प्रेरक उदाहरण है एशिया का सबसे बड़ा प्राइवेट अमृता अस्पताल। जो न केवल दिल्ली-एनसीआर के लोगों के लिये बल्कि देश के तमाम रोगियों के लिये अनुपम तोहफा है।


प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने फरीदाबाद में लगभग 6,000 करोड़ रुपये की लागत से 133 एकड़ क्षेत्र में बने 2,600 बेड वाले अमृता अस्पताल का उद्घाटन किया। अत्याधुनिक सुविधाओं से लैस इस अस्पताल का प्रबंधन माता अमृतानन्दमयी मठ की ओर से किया जाएगा। अब तक इसमें कुल 4,000 करोड़ रुपये खर्च किये जा चुके हैं। लगभग 1 करोड़ वर्ग फुट के इस क्षेत्र में न केवल एक बड़ा सुपर-स्पेशियलिटी अस्पताल बल्कि एक फोर स्टार होटल, मेडिकल कॉलेज, नर्सिंग कॉलेज, संबद्ध स्वास्थ्य विज्ञान के लिए एक कॉलेज, एक पुनर्वास केंद्र, रोगियों के लिए एक हेलीपैड और कई अन्य सुविधाओं के साथ रोगियों के परिवार के लोगों के लिए 498 कमरों वाला गेस्टहाउस भी होगा। इस देश में चिकित्सा सुविधाओं के लिये तरसते लोगों के लिये यह एक राहत का माध्यम बनेगा।


इस अस्पताल का निर्माण माता अमृतानंदमयी मिशन ट्रस्ट की ओर से किया गया है हालांकि यह निजी क्षेत्र का अस्पताल हैं, लेकिन ट्रस्ट की प्रमुख आध्यात्मिक गुरु मां अमृतानंमयी की जिस तरह से सेवा भावना वाली छवि है, उसे देखते हुए इस अस्पताल का लाभ आर्थिक रूप से कमजोर एवं जरूरतमंदों को बेहद रियायती दर पर देने की बात भी कही जा रही है। अस्पताल के रेजीडेंट मेडिकल निदेशक डॉ. संजीव के. सिंह के अनुसार अम्मा यानी माता अमृतानंदमयी के आशीर्वाद से दो साल बाद अस्पताल में बेड की संख्या बढ़कर 750 और पांच साल में एक हजार बेड की हो जाएगी। इसमें 534 क्रिटिकल केयर बेड भी शामिल होंगे। फिर चरण दर चरण इसमें विस्तार करते हुए 2600 बेड का अस्पताल जनता को समर्पित होगा। ट्रस्ट की ओर से पहले से ही 11 बड़े अस्पताल संचालित हैं और इनमें कोच्चि में सबसे बड़ा 1350 बेड का अस्पताल है। अब यह 2600 बेड का अस्पताल होगा।

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प्रधानमंत्री मोदी के अनुसार हमारे यहां कहा गया है वसुधैव कुटुंबकम। अम्मा प्रेम, करुणा, सेवा और त्याग की प्रतिमूर्ति हैं। वो भारत की आध्यत्मिक परंपरा की वाहक है।’ यही कारण 1987 में, अपने श्रद्धालुओं के अनुरोध पर, अम्मा विश्व के सभी देशों में भारतीय संस्कृति एवं आध्यात्मिक उन्नयन के कार्यक्रम आयोजित करने लगीं। उनमे निम्न देश शामिल हैं- ऑस्ट्रेलिया, ऑस्ट्रिया, ब्राजील, कनाडा, चिली, दुबई, इंग्लैंड, फिनलैंड, फ्रांस, जर्मनी, होलैंड, आयरलैंड, इटली, जापान, केन्या, कुवैत, मलेशिया, मॉरिशस, रीयूनियन, रशिया, सिंगापुर, स्पेन, श्रीलंका, स्वीडेन, स्विटजरलैंड और संयुक्त राज्य अमेरिका। वे केवल विदेशों में ही नहीं बल्कि भारत के कोने-कोने में भी भ्रमण करते हुए सेवा एवं परोपकार की गंगा को प्रवाहमान करती हैं।


अम्मा के विश्वव्यापी धर्मार्थ मिशन में बेघर लोगों के लिए 100,000 घर, 3 अनाथ आश्रम बनाने का कार्यक्रम और 2004 में भारतीय सागर में सुनामी जैसी आपदाओं से सामना होने की अवस्था में राहत-और-पुनर्वास, मुफ्त चिकित्सकीय देखभाल, विधवाओं और असमर्थ व्यक्तियों के लिए पेंशन, पर्यावरणीय सुरक्षा समूह, मलिन बस्तियों का नवीनीकरण, वृद्धों के लिए देखभाल केंद्र और गरीबों के लिए मुफ्त वस्त्र और भोजन आदि कार्यक्रम सम्मिलित हैं। ये परियोजनाएं उनके द्वारा संस्थापित संगठनों द्वारा संचालित की जाती हैं जिसमें माता अमृतानंदमयी मठ (भारत), माता अमृतानंदमयी सेंटर (संयुक्त राज्य अमेरिका), अम्मा-यूरोप, अम्मा-जापान, अम्मा-केन्या, अम्मा-ऑस्ट्रेलिया आदि शामिल हैं। यह सभी संगठन संयुक्त रूप से एम्ब्रेसिंग द वर्ल्ड (विश्व को गले लगाने वाले) के रूप में जाने जाते हैं। वह समाज में लैंगिक समानता को बढ़ावा देने, सामाजिक उत्थान और समाज के आखिरी इंसान तक के चेहरे पर मुस्कान लाने के लिये प्रयासरत हैं। वे विश्व आध्यात्मिक गुरु होने के साथ-साथ समाज सुधारक हैं। महिला होने के नाते वह औरतों के प्रति समाज में हो रहे अत्याचारों से बहुत दुखी हैं और महिला उत्थान के अनेक कार्यक्रम संचालित कर रही हैं। जिससे महिला सशक्तिकरण हो सके और समाज में उनका मान बढ़ सके। पिछले चार दशकों से भी ऊपर से चलाये जा रहे ये कार्यक्रम न सिर्फ भारत बल्कि विदेशों में भी एक नव क्रांति और नये दर्शन का संचार कर रहे हैं। अमृता अस्पताल श्रृंखला चिकित्सा-जगत में एक क्रांति का शंखनाद है।


जब 2004 में उनसे यह पूछा गया कि उनके धर्मार्थ मिशन का विकास कैसा चल रहा है तो अम्मा ने कहा, सब कुछ सहज रूप से होता है। गरीबों और व्यथित लोगों की दुर्दशा देखकर एक कार्य ही दूसरे कार्य का माध्यम बना। अम्मा प्रत्येक व्यक्ति से मिलती हैं, वे प्रत्यक्ष ही उनकी समस्याओं को देखती हैं और उनके कष्टों को दूर करने का प्रयास करती हैं। लोकाः समस्ताः सुखिनो भवन्तु, यह सनातन धर्मं के प्रमुख मन्त्रों में से एक है, जिसका अर्थ होता है, इस संसार के सभी प्राणी प्रसन्न और शांतिपूर्ण रहें।’ इस मंत्र की भावना को ही अम्मा ने अपने जीवन का लक्ष्य बनाया है। अम्मा की इच्छा है कि उनके सभी शिष्य इस विश्व में प्रेम और शांति के प्रसार के लिए अपना जीवन समर्पित कर दें। अम्मा कहती हैं ‘गरीबों तथा पीड़ितों के लिए सच्ची करुणा ही ईश्वर के प्रति सच्चा प्रेम और भक्ति है।’ ‘मेरे बच्चे उन्हें भोजन कराते हैं जो भूखे हैं, गरीबों की सहायता करते हैं, दुखी लोगों को सांत्वना देते हैं, पीड़ितों को राहत पहुंचाते हैं और सभी के प्रति दानशील हैं।’ माता अमृतानंदमयी की सफलता और विकास का रहस्य यही है कि वे न तो अपनी महानता को लादे फिरती हैं और न ही अपने बारे में विशेष सोचती हैं। उनकी महानता की आधारशिला है समर्पण, सेवा, सादगी और विनय। वे समर्पण की प्रतिमूर्ति हैं, विनय का पर्याय हैं। सब कुछ करते हुए भी वे इस भाषा में कभी नहीं सोचती कि मैं कर रही हूं। इस अकर्ता भाव ने उनकी कार्यक्षमता को और अधिक निखारा है, पखारा है।


अम्मा का संगठन, माता अमृतानंदमयी मठ यह दावा करता है कि अम्मा ने इस दुनिया के 29 मिलियन से भी अधिक लोगों को अपने गले से लगाया है। अम्मा का लोगों को गले लगाने का दर्शन ही उनके जीवन का केंद्र है क्योंकि 1970 के उत्तर्रार्ध से वह लगभग प्रतिदिन ही लोगों से मिलती हैं। इसके साथ ही अम्मा का आशीर्वाद पाने के लिए आने वाले लोगों की संख्या में निरंतर वृद्धि हो रही है, कभी-कभी तो ऐसा भी होता है कि वह लगातार 20 घंटों तक दर्शन देती रहती हैं। 2004 की एक पुस्तक फ्रॉम अम्माश्ज हार्ट, में अंकित संवाद में अम्मा कहती हैं जब तक मेरे ये हाथ जरा भी हिल पाने और मेरे पास आने वाले लोगों तक पहुंच पाने में समर्थ रहेंगे और जब तक मुझमें रोते हुए व्यक्ति के कंधे पर अपना हाथ रखने और पर प्रेम से हाथ फेरने तथा उनके आंसू पोंछने की शक्ति रहेगी, तब तक यह अम्मा दर्शन देती रहेगी। इस नश्वर संसार का अंत होने तक, लोगों पर प्रेम से हाथ फेरना, उन्हें सांत्वना देना और उनके आंसू पोंछना, यही अम्मा की इच्छा है।


माता अमृतानंदमयी का धर्म केवल आत्मकल्याण का ही प्रेरक नहीं बल्कि जनकल्याण का भी अनूठा उदाहरण है। यही कारण है कि अम्मा अपनी साधना के साथ-साथ अनेक परोकाकारी कार्य, रचनात्मक एवं सृजनात्मक गतिविधियां संचालित करती हैं। वे माता अमृतानंदमयी मठ की संस्थापक और अध्यक्ष, संस्थापक, अमृता विश्वविद्यापीठम विश्वविद्यालय की कुलाधिपति, अमृता इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज अस्पताल की संस्थापक, पार्लियमेंट ऑफ द वर्ल्ड रिलीजन्स, इंटरनैशनल एड्वाइसरी कमेंटी मेंबर द एलिजाह इंटरफेथ इंस्टीट्यूट, मेंबर ऑफ द एलिजाह बोर्ड ऑफ वर्ल्ड रिलीजियस लीडर्स और अनेक देशों में माता अमृतानंदमयी मठ की संस्थापक हैं। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के शब्दों के अनुरूप ‘सही विकास होता ही वह है जो सब तक पहुंचे, जिससे सबको लाभ हो। गंभीर बीमारी के इलाज को सब तक पहुंचाने की भावना अमृता अस्पताल की है। सेवाभाव का यह संकल्प लाखों परिवारों को आयुष्मान बनाएगा।


-ललित गर्ग

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तम्भकार हैं)

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