By अनुराग गुप्ता | Apr 04, 2022
बेंगलुरू। कर्नाटक में हिजाब के बाद अब हलाल मीट को लेकर बवाल मचा हुआ है। हिंदू नववर्ष के पहले शुरू हुए हलाल मीट विवाद को लेकर लोग आमने-सामने हैं और यह मामला ठंडा पड़ने का नाम ही नहीं ले रहा है। वहीं एक सरकारी आदेश ने इस मामले में आग में घी डालने का काम किया है। आपको बता दें कि कर्नाटक पशु पालन और पशु चिकित्सा सेवा ने बृहद बेंगलुरु महानगर पालिका (बीबीएमपी) से कहा है कि वह सभी कसाईखानों और चिकन की दुकानों को निर्देश दे कि वे मीट के लिए जानवर का वध करने से पहले सुनिश्चित करें कि उन्हें अचेत किया जाए।
अब आसानी से नहीं मिलेगा लाइसेंस !
विभाग ने नगर निकाय को कहा है कि कसाईखानों और चिकन की दुकानों में जानवरों को अचेत करने के लिए करंट की सुविधा होनी चाहिए। विभाग ने नगर निकाय से कहा कि लाइसेंस देने से पहले यह सुनिश्चित करना होगा कि कसाईखानों और चिकन की दुकानों में जानवरों को अचेत करने की सुविधा है या नहीं।
विभाग ने अपने आदेश में कहा कि पहले जानवरों को करंट दिया जाना चाहिए और जब वह अचेत हो जाए तब उनकी जान ली जानी चाहिए। यह आदेश ऐसे वक्त में आया है जब प्रदेश में दक्षिणपंथी समूह हलाल मीट का बहिष्कार करने की मांग कर रहे हैं।
विभाग ने बताया कि उन्हें कुछ शिकायतें मिली हैं जिसके मुताबिक नियमों का अनुपालन नहीं किया जा रहा है। ऐसे में विभाग ने एक अप्रैल 2022 को पशु क्रूरता निषेध अधिनियम-2001 का हवाला देते हुए जानवरों के वध से पहले उन्हें अचेत किया जाए, ऐसा सुनिश्चित करने का निर्देश दिया है।
क्या है हलाल मीट ?
हलाल की तकनीक विशिष्ट समुदाय (मुस्लिम) के निपुण लोग करते हैं। इसके लिए जानवर की गर्दन को तेज धार चाकू से रेता जाता है। जिसकी वजह से कुछ वक्त बाद जानवर की मौत हो जाती है। इस प्रक्रिया में जानवर के शरीर का एक-एक कतरा निकलने का इंतजार किया जाता है। कहा जाता है कि हलाल में जानवर के शरीर से खून का एक-एक कतरा निकलने तक उसका जिंदा रहना जरूरी है।
इस्लामिक मान्यताओं के अनुसार हलाल होने वाले जानवर के सामने दूसरा जानवर नहीं ले जाना चाहिए। एक जानवर के हलाल होने के बाद ही दूसरा ले जाना चाहिए। अगर मार्केट की भाषा में समझें तो हलाल का मतलब वह प्रोडक्ट है, जो शरिया कानूनों के मुताबिक है।
झटका क्या होता है?
मुस्लिम समुदाय में हलाल मीट ही खाया जाता है। इसके अलावा झटका मीट की बातें भी सभी ने सुनी होगी। झटका प्रक्रिया के तहत जानवर की गर्दन को धारदार हथियार से एक बार में ही काट दिया जाता है। ताकि जानवर तड़पे ना और एक झटके में ही जानवर की मौत हो जाए।
गौरतलब है कि कुछ दक्षिणपंथी संगठनों ने उगाडी के अगले दिन मनाए जाने वाले वर्षाडोडकु को हलाल मीट का बहिष्कार करने की अपील की थी। आपको बता दें कि कर्नाटक के कई समुदाय वर्षाडोडकु के दिन मीट का सेवन करते हैं। भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव सीटी रवि ने तो हलाल खाने को आर्थिक जिहाद तक की संज्ञा दी है। हालांकि कांग्रेस और बाकी के दल इसे गलत बता रहे हैं।