2+2 वार्ता के बाद नागरिकता संशोधन कानून पर बदल गये अमेरिकी सुर

By संतोष पाठक | Dec 19, 2019

नागरिकता संशोधन कानून को लेकर नरेंद्र मोदी सरकार को देश के अंदर और देश के बाहर के कई मोर्चों से लगातार आलोचना का सामना करना पड़ा रहा है। देश के अंदर तो माहौल लगातार खराब होता ही जा रहा है। कांग्रेस समेत तमाम विरोधी दलों की लामबंदी की वजह से धरना-प्रदर्शन बढ़ता जा रहा है। देश के कई विश्वविद्यालयों में जो हो रहा है, उसने भी सरकार की चिंता बढ़ा दी है। कोई यह कल्पना भी नहीं कर सकता था कि देश की राजधानी दिल्ली स्थित जामिया इस्लामिया विश्वविद्यालय में भी इस तरह के हालात पैदा हो सकते थे, दिल्ली की सड़कों पर प्रदर्शनकारी दिल्ली पुलिस के जवानों को दौड़ा-दौड़ा कर पीटते नजर आए, यह सोचा भी नहीं जा सकता था। लेकिन ऐसा हुआ।


अमेरिका ने किया था भारत के कानून का विरोध

 

देश के बाहर भी दुनिया के कई देशों, यहां तक कि संयुक्त राष्ट्र ने भी भारत सरकार के इस कानून पर कई सवाल खड़े किए। अमेरिका ने भी नागरिकता संशोधन कानून की जोरदार शब्दों में आलोचना की। वहां तो यहां तक कहा गया कि इस कानून को लाने के लिए जिम्मेदार भारतीय गृह मंत्री अमित शाह के अमेरिकी प्रवेश पर बैन लगा देना चाहिए लेकिन अमेरिका को जल्द ही जमीनी हकीकत का अहसास हो गया और बुधवार को अमेरिका के वाशिंगटन से ऐसी खबर आई जिसने मोदी सरकार के स्टैंड को दुनियाभर में और ज्यादा मजबूती से स्थापित कर दिया। अमेरिका ने साफ तौर पर कहा कि वह भारतीय लोकतंत्र का सम्मान करता है और इस कानून को लागू करने का फैसला काफी सोच-विचार कर ही लिया गया है।

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नागरिकता संशोधन कानून के मुद्दे पर अब अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भी भारत को समर्थन मिल रहा है तो इसे भारतीय कूटनीति की बड़ी जीत कहा जा सकता है क्योंकि धीरे-धीरे ही सही अब दुनिया के कई देशों के सुर इस कानून को लेकर बदल रहे हैं। बुधवार को भारत और अमेरिका के बीच वॉशिंगटन में हुई दूसरी 2+2 वार्ता के बाद अमेरिकी विदेश मंत्री माइक पोम्पियो ने भी अमेरिका का पक्ष रखते हुए यह साफ कर दिया कि अमेरिका नागरिकता कानून के मसले पर भारत के लोकतंत्र का सम्मान करता है।


नागरिकता संशोधन कानून पर अमेरिका का नया सुर

 

अमेरिकी विदेश मंत्री ने कहा कि हम हमेशा अल्पसंख्यकों के हितों के लिए चिंता करते हैं। हर जगह उनके धार्मिक अधिकारों की रक्षा के लिए खड़े रहेंगे लेकिन साथ ही हम भारत के लोकतंत्र का सम्मान करते हैं। उन्होंने इस मुद्दे पर विस्तार से, पर्याप्त और सशक्त बहस की। इस मुद्दे पर ना सिर्फ भारत बल्कि पूरी दुनिया में संयुक्त राष्ट्र का एक ही रुख रहता है। जाहिर तौर पर अमेरिका का यह बदला सुर भारतीय कूटनीति की बड़ी जीत है।

 

दरअसल, भारत और अमेरिका ने आपसी सहयोग को और ज्यादा मजबूत बनाने के उद्देश्य से 2+2 वार्ता के नये स्वरूप को जन्म दिया है। इसके तहत दोनों देशों के दो-दो मंत्री अपने-अपने प्रतिनिधिमंडल के साथ बैठते हैं और तमाम द्विपक्षीय, क्षेत्रीय और अंतर्राष्ट्रीय मुद्दों पर चर्चा करते हैं। इसी के तहत बुधवार को अमेरिका के वॉशिंगटन में दूसरी 2+2 वार्ता का आयोजन किया था। इस बैठक में भारत की तरफ से रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह और विदेश मंत्री एस. जयशंकर शामिल हुए थे जबकि अमेरिका की तरफ से वहां के विदेश मंत्री माइक पोम्पियो और रक्षा मंत्री मार्क एस्पर अपने अधिकारियों के साथ शामिल हुए थे। दोनों देशों के बीच पहली टू प्लस टू वार्ता पिछले साल नई दिल्ली में हुई थी।

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अफगानिस्तान पर अमेरिका को भारत की है जरूरत

  

अमेरिका के सुर में आए इस बदलाव को उसकी सदिच्छा से ज्यादा उसकी मजबूरी के तौर पर देखा जाना चाहिए। अमेरिका अफगानिस्तान में बुरी तरह फंसा हुआ है। अमेरिकी राष्ट्रपति किसी भी तरह से राष्ट्रपति चुनाव से पहले-पहले अपनी सेना को अफगानिस्तान से सुरक्षित निकाल कर ले जाना चाहते हैं। अमेरिका की यह मंशा तभी पूरी हो सकती है जब भारत अफगानिस्तान में अपनी भूमिका बढ़ाए। इसलिए टू प्लस टू वार्ता में भी चारों मंत्रियों के बीच अफगानिस्तान के मुद्दें पर काफी चर्चा हुई। अमेरिका यह चाहता है कि अफगानिस्तान के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा भारत वहां की सुरक्षा चुनौतियों और शांति स्थापित करने के प्रयासों में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाए। इसलिए अमेरिकी विदेश मंत्री माइक पोम्पियो ने अपनी तरफ से इस मुद्दे को उठाते हुए अफगानिस्तान में भारत के योगदान की सराहना की और कहा कि अफगानिस्तान का भविष्य भारत और अमेरिका दोनों के लिए अहम है। इसलिए अमेरिका ने अफगानिस्तान के लिए फायदेमंद चाबहार प्रॉजेक्ट का भी जोरदार समर्थन किया।

 

भारत के सख्त स्टैंड ने अमेरिका को दिया कड़ा संदेश

 

नागरिकता संशोधन कानून पर अमेरिका का बयान आते ही भारत ने सख्त और कड़े शब्दों में अमेरिका को संदेश दे दिया। भारतीय विदेश मंत्रालय ने कड़ा जवाब देते हुए कहा कि नागरिकता संशोधन विधेयक पर अमेरिकी आयोग का बयान न तो सही है और न ही इसकी जरूरत थी। भारत ने अमेरिका की आलोचना करते हुए कहा था कि अमेरिकी आयोग का बयान हैरान नहीं करता क्योंकि उसका रिकॉर्ड ही ऐसा है। भारत ने साफ तौर पर कहा कि अमेरिकी आयोग को जमीनी स्तर पर कम जानकारी है। मानवाधिकार के मोर्चे पर भारत के रिकॉर्ड की बात कहते हुए विदेश मंत्रालय ने यह भी कहा कि अमेरिका सहित हर देश को अपने यहां की नीतियों के तहत नागरिकता से जुड़े हर मुद्दें पर फैसला लेने का हक है। भारत के इस सख्त स्टैंड और पलटवार से अमेरिका हैरान हो गया और उसे मजबूरी में अपने सुर को भी बदलना पड़ गया। अमेरिका को यह अच्छी तरह से पता है कि आतंकवाद और व्यापार के मोर्चे पर अब उसे भारत की जरूरत है। इसलिए टू प्लस टू बैठक में दोनों देशों के बीच अफगानिस्तान, पाकिस्तान, नेपाल, श्रीलंका समेत तमाम क्षेत्रीय, अंतर्राष्ट्रीय, रक्षा संबंध, आतंकवाद और व्यापारिक संबंधों पर खुलकर विस्तार से बातचीत की गई।

 

-संतोष पाठक

 

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