Vishwakhabram: US Colleges के विदेशी छात्रों के मन में बैठा डर, कई छुट्टी बीच में छोड़कर कैम्पस लौट रहे, कुछ ने घर जाने की योजना टाली

By नीरज कुमार दुबे | Nov 30, 2024

नवनिर्वाचित राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप अगले साल 20 जनवरी को अमेरिका की कमान संभालेंगे। राष्ट्रपति चुनाव प्रचार के दौरान ट्रंप ने जनता से जो वादे किये थे उसमें सबसे बड़ा और अहम वादा यह था कि अवैध रूप से देश में रह रहे लोगों को अमेरिका से बाहर निकाला जायेगा। इसलिए अवैध रूप से या बिना दस्तावेजों के अमेरिका में रह रहे लोगों के मन में इस समय खौफ देखा जा रहा है। उन्हें लग रहा है कि यदि उन्हें अमेरिका से वापस भेजा गया तो क्या होगा? इस बीच खबर आई है कि अमेरिका में कई विश्वविद्यालयों ने विदेशी छात्रों से कहा है कि वह ट्रंप के पद संभालने से पहले ही अपनी छुटि्टयां समाप्त कर परिसर में वापस लौट आयें। विदेशी छात्रों और कर्मचारियों से कहा जा रहा है कि वह किसी संभावित परेशानी से बचने के लिए परिसर में जल्द लौटने की योजना बनाएं।


हम आपको बता दें कि कमला हैरिस के खिलाफ 2024 का राष्ट्रपति चुनाव जीतने वाले डोनाल्ड ट्रंप ने अमेरिकी इतिहास में सबसे बड़ा निर्वासन अभियान चलाने का वादा किया है और इस प्रक्रिया में सहायता के लिए सेना को तैनात किये जाने की भी खबरें हैं। इस सबके चलते विदेशी छात्रों और कर्मचारियों के मन में भय का माहौल है। उन्हें लग रहा है कि यदि वह अपने देश जायेंगे तो फिर कभी वापस अमेरिका नहीं आ पायेंगे इसलिए कई लोगों ने तो अपने यात्रा कार्यक्रम रद्द भी कर दिये हैं। इस बारे में कोलोराडो डेनवर विश्वविद्यालय के प्रोफेसर क्लोई ईस्ट ने बताया, "इस समय सभी अंतरराष्ट्रीय छात्र चिंतित हैं।" उन्होंने कहा कि आव्रजन को लेकर अनिश्चितता के परिणामस्वरूप छात्र इस समय अविश्वसनीय रूप से तनावग्रस्त हैं। उन्होंने कहा कि चिंताएं बढ़ गयी हैं क्योंकि डोनाल्ड ट्रंप के आने वाले प्रशासन के अधिकारियों ने बिना दस्तावेजों के रह रहे अप्रवासियों को रखने के लिए बड़े हिरासत केंद्र बनाने का प्रस्ताव दिया है। उन्होंने कहा कि बॉर्डर सीज़र के लिए डोनाल्ड ट्रंप की पसंद टॉम होमन ने भी कहा है हिंसक अपराधियों और राष्ट्रीय सुरक्षा खतरों से निबटने को प्राथमिकता दी जाएगी।

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हम आपको बता दें कि हायर एड इमीग्रेशन पोर्टल के अनुसार, वर्तमान में 400,000 से अधिक गैर-दस्तावेजी छात्र अमेरिकी कॉलेजों और विश्वविद्यालयों में नामांकित हैं। जाहिर-सी बात है कि इन सभी छात्रों को अपने भविष्य की चिंता सता रही होगी। इसके अलावा, विदेशी छात्र अपने वीज़ा को लेकर भी चिंतित हैं। उनके मन में सवाल उठ रहा है कि क्या उन्हें अपनी शिक्षा जारी रखने की अनुमति दी जाएगी? बताया जा रहा है कि मैसाचुसेट्स विश्वविद्यालय ने एक यात्रा सलाह जारी की है जिसमें अंतरराष्ट्रीय छात्रों और संकाय से 20 जनवरी को ट्रंप के कार्यभार संभालने से पहले शीतकालीन अवकाश से परिसर में लौटने का आग्रह किया गया है। मैसाचुसेट्स विश्वविद्यालय ने कहा है कि वह 2016 में पहले ट्रंप प्रशासन में लागू किए गए यात्रा प्रतिबंधों के पिछले अनुभव के आधार पर, अत्यधिक सावधानी बरतते हुए यह सलाह दे रहा है। इसके अलावा, मैसाचुसेट्स इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी (एमआईटी) और वेस्लेयन विश्वविद्यालय सहित अन्य विश्वविद्यालयों ने भी इसी तरह की यात्रा सलाह जारी की है। यही नहीं, येल विश्वविद्यालय में आव्रजन नीति में संभावित बदलावों के बारे में चिंताओं को दूर करने के लिए एक वेबिनार का आयोजन भी किया गया।


बताया जा रहा है कि पर्याप्त दस्तावेज नहीं रखने वाले छात्र तो भयभीत हैं ही साथ ही डेफर्ड एक्शन फॉर चाइल्डहुड अराइवल्स (डीएसीए) जैसी योजना के तहत संरक्षित लोग भी सहमे हुए हैं। हम आपको बता दें कि यह योजना बच्चों के रूप में अमेरिका लाए गए व्यक्तियों को निर्वासन से बचाती है। ट्रंप ने पहले भी ओबामा के कार्यकाल की इस योजना को समाप्त करने का प्रयास किया था इसलिए माना जा रहा है कि वह इस बार भी इस योजना को खत्म करने का प्रयास करेंगे।


हम आपको याद दिला दें कि डोनाल्ड ट्रंप के पहले कार्यकाल के दौरान आप्रवासन नीतियों ने अंतर्राष्ट्रीय छात्रों के जीवन पर गंभीर प्रभाव डाला था। जनवरी 2017 में डोनाल्ड ट्रंप ने सात मुस्लिम देशों के यात्रियों पर प्रतिबंध लगाने वाले एक कार्यकारी आदेश पर हस्ताक्षर किए थे। प्रतिबंध के कारण हवाई अड्डों पर अफरा-तफरी मच गई थी और छात्र एवं शिक्षक विदेश में फंस गए थे। बाद में प्रतिबंध को वेनेजुएला और उत्तर कोरिया जैसे देशों तक बढ़ा दिया गया था।


बहरहाल, अमेरिका में चूंकि बड़ी संख्या में भारतीय छात्र भी पढ़ते हैं इसलिए भारत भी इस मुद्दे पर नजर रखे हुए है। हम आपको बता दें कि ओपन डोर्स की एक रिपोर्ट के अनुसार 2023-2024 शैक्षणिक वर्ष के लिए भारत अमेरिका में अंतरराष्ट्रीय छात्रों का प्रमुख स्रोत बन गया। भारतीय छात्रों ने चीन की जगह अमेरिका को वरीयता दी और वहां भारतीय छात्रों के नामांकन में 23 प्रतिशत की वृद्धि देखी गयी है। देखना होगा कि ट्रंप के पद संभालने के बाद अमेरिका में क्या स्थिति बनती है।


-नीरज कुमार दुबे

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