By अभिनय आकाश | Jan 27, 2021
राजनीति की अमर कथा, सियासत की अमरवाणी। जब कभी ये वाक्य कहे जाते हैं तो सभी को पता होता है कि बात किसकी हो रही है। अमर सिंह राजनीति के गलियारों में ऐसा नाम जिसे दोस्तों का दोस्त और संकटमोचक कहा जाता था। कभी अखाड़ों में अपने विरोधियों को चित करने वाला एक पहलवान जो साइकिल से चढ़कर संसद तक पहुंचा। समाजवाद के आंदोलन से शुरुआत की तो समाजवादी पार्टी बना ली। समाजवाद से सियासत तक के सफर में नेताजी का यादववंश राजनीति का सबसे बड़ा कुनबा रहा। मैनपुरी से लोकसभा का चुनाव जीतकर मुलायम पहली बार संसद पहुंचे और देवगौड़ा की यूनाइटेड फ्रंट सरकार में रक्षा मंत्री बने। यहीं से एक ऐसी दोस्ती की नींव पड़ी जिसके बाद तो राजनीति में उन दोनों की दोस्ती के कई किस्से चर्चा-ए-आम बने। दरअसल, मुलायम सिंह औ अमर सिंह के रिश्ते की नींव एचडी देवगौड़ा के प्रधानमंत्री बनने के साथ ही शुरू हुई। एचडी देवगौड़ा को हिंदी नहीं आती थी और मुलायम सिंह अंग्रेजी नहीं जानते थे। उस वक्त देवगौड़ा और मुलायम के बीच संवादवाहक की भूमिका अमर सिंह की अदा करते थे।
अमर सिंह को यूं ही संकटमोटक और दोस्तों का दोस्त नहीं कहा जाता था। उन्होंने मुश्किल वक्त में गिरती हुई सरकार और लड़खड़ाते हुए दोस्तों बखूबी संभाला था। अमर सिंह को 2008 में यूपीए की नेतृत्व वाली मनमोहन सरकार बचाने के लिए हमेशा याद किया जाएगा। गठबंधन की राजनीती वाले दौर में समाजवादी पार्टी जैसी 20-30 लोकसभा सीटें हासिल करने वाली पार्टियों की अहमियत को बढ़ा दिया। इसके साथ ही अमर सिंह की भूमिका में भी इजाफा हुआ। साल 1999 में सोनिया गांधी ने बहुमत के आंकड़े वाले 272 के जादुई नंबर का दावा तो कर दिया, लेकिन ऐन मौके पर सपा ने कांग्रेस को अपना सरर्थन नहीं दिया। जिसके बाद सोनिया गांधी की खूर किरकिरी भी हुई थी। साल दर साल बीता और 2008 में भारत के परमाणु करार के दौरान लेफ्ट पार्टियों ने यूपीए से अपना समर्थन वापस लेकर मनमोहन सरकार को अल्पमत में ला दिया। उ वक्त अमर सिंह संकट मोचक की भूमिका में सामने आए और समाजवादी पार्टी के सांसदों के अलावा कई निर्दलीय सांसदों को भी मनमोहन सरकार के पाले में ला कर खड़ा कर दिया।
जुदा हुई राहें
2009 के लोकसभा चुनाव से पहले अमर सिंह ने राजनीति के दो विपरीत ध्रुव मुलायम सिंह और कल्याण सिंह को एक साथ ला दिया। लेकिन राजनीति और क्रिकेट में हर किसी का दिन एक जैसा नहीं रहता। कल्याण सिंह की मुलायम से नजदीकी सपा को भारी पड़ी। मुलायम के कोर मुस्लिम वोट बैंक सपा से छिटकने लगे और पार्टी के 12 मुस्लिम प्रत्याशी चुनाव हार गए। चुनाव परिणाम के बाद पार्टी में उठते सवालों के बीच 6 जनवरी 2010 को अमर सिंह ने पार्टी से इस्तीफा दे दिया। बाद में 2 फरवरी 2010 को मुलायम सिंह ने उन्हें पार्ची से ही बाहर का रास्ता दिखा दिया। बाद में अमर सिंह ने लोकमंच नाम से एक नई पार्टी का गठन किया और 14 छोटे दलों का सहयोग भी लिया। अमर सिंह अपने अंदाज में मुलायम सिंह को लगातार घेरते रहे लेकिन मुलायम ने उनके खिलाफ कुछ भी नहीं कहा। साल 2011 में अमर सिंह का वक्त न्यायिक हिरासत में बीता। साल 2012 में उत्तर प्रदेश की 403 सीटों में से 360 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे। लेकिन एक भी सीट पर अमर सिंह की पार्टी को सफलता नहीं मिली। साल 2014 के लोकसभा चुनाव में अमर सिंह ने राष्ट्रीय लोक दल में शामिल होकर चुनाव लड़ा। लेकिन इस बार भी निराशा ही हाथ लगी। कहा तो ये भी जाता है कि उन्होंने कांग्रेस में भी शामिल होने की खूब कोशिश की लेकिन बात नहीं बनी। आखिर में अमर सिंह की निगाहें वहीं आकर रूकी जिसके रंग ढंग को उन्होंने बगला था। 2016 में उनकी समाजवादी पार्टी में पुन: वापसी हुई।
कैश फाॅर वोट कांड
2008 में संसद का मानसून सत्र चल रहा था। सदन में बीजेपी के तीन सांसद पहुंचे और नोटों की गड्डी लहराते हुए विरोध जताना शुरू किया। उस वक्त लोकसभा के स्पीकर सोमनाथ चटर्जी हुआ करते थे। सांसदों ने अमर सिंह पर दलबदल को बढ़ावा देने का आरोप लगाया। आरोप लगाने वाले सांसदों के नाम - फग्गन सिंह कुलस्ते, महावीर भगोरा और अशोक अर्गल थे। जिन्होंने दावा किया कि मनमोहन सरकार के पक्ष में वोट देने के लिए उनको पैसे दिए गए। अमर सिंह पर दिल्ली पुलिस का शिकंजा कसा और उन्हें संसद कांड में मुख्य आरोपी बताकर तिहाड़ जेल भेज दिया गया। हालांकि बाद में अमर सिंह को इन आरोपों से बरी कर दिया गया।
राज्यसभा के लिए चयन
16 मई 2016 को सपा की संसदीय बोर्ड की बैठक में अमर सिंह के राज्यसभा जाने पर मुहर लगी। हालांकि अमर सिंह के नाम को लेकर पार्टी में विरोध की आवाजें भी उठी। लेकिन पार्टी मुलायम सिंह यादव के कड़े रुख को देखते हुए ये स्वर उस वक्त प्रखर नहीं हो सके।
अखिलेश से टकराव
मुलायम सिंह द्वारा अमर सिंह को राज्यसभा भेजे जाने के बाद कहा जाता है कि अमर सिंह ने कई बार अखिलेश से मिलने की कोशिश की। लेकिन अखिलेश ने उन्हें मिलने का वक्त तक नहीं दिया, जिसके बाद अमर सिंहृ की कुछ बयानबाजी आखिलेश को रास नहीं आई। अखिलेश को लगने लगा कि पार्टी में हो रहे विवाद के सूत्रधार अमर सिंह ही हैं। अमर सिंह उनके पिता मुलायम को भड़का रहे हैं। बाद में फिर से अमर सिंह को पार्टी से बाहर का रास्ता दिखाया गया।
बिल क्लिंटन लखनऊ भोज में हुए शामिल
समाजवादी पार्टी में फिल्म और ग्लैमर का तड़का लगाने वाले अमर सिंह ही थे। चाहे वो जया प्रदा को सांसद बनाना हो या जया बच्चन को राज्यसभा पहुंचाना। ये अमर सिंह का ही करिश्मा था। अमिताभ बच्चन के साथ तो अमर सिंह के ऐसे रिश्ते थे कि दोनों एक दूसरे को परिवार का सदस्य मानते थे। कहा तो ये भी जाता है कि अमिताभ बच्चन की मुश्किल परिस्थितियों में अमर सिंह ने मदद की थी। हालांकि समाजवादी पार्टी से अमर सिंह के निकाले जाने के वक्त उनके कहने पर जया बच्चन ने राज्यसभा की सदस्यता से इस्तीफा नहीं दिया। इसके बाद से ही दोनों के रास्ते अलग हो गए। व्यापार जगत में भी उनके संबंध अनिल अंबानी से लेकर सुब्रत राय सहारा से अच्छे लिंक थे। ये अमर सिंह का ही करिश्मा था कि पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति बिल क्लिंटन 2005 में लखनऊ के एक भोज में शामिल हुए थे।
पीएम मोदी को समर्पित है जीवन
योगी सरकार की ग्राउंड सेरेमनी का मौका था अमर सिंह अपने मित्र बोनी कपूर के साथ बैठे थे। प्रधान मंत्री मुस्कुराते हुए कहते हैं अमर सिंह बैठे हैं, सबकी हिस्ट्री निकाल देंगे। उस वक्त प्रधानमंत्री मोदी उद्योगपतियों और राजनेताओं के संबंध की बात कर रहे थे। अमर सिंह ने सपा से मोहभंग होने के बाद सार्वजनिक तौर पर कहा था कि मेरा अब समाजनादी पार्टी से कोई लेना देना नहीं। मेरा जीवन नरेंद्र मोदी को समर्पित है। अमर सिंह ने योगी आदित्यनाथ से भी मुलाकात की थी। कहा तो ये भी जाता है कि लोकसभा चुनाव 2019 के वक्त अमर सिंह के कहने पर ही जया प्रदा को रामपुर से टिकट दिया गया था। हालांकि जया प्रदा इस चुनाव में रामपुर से हार गईं थीं।
बीच में अमर सिंह के मौत की खबर वायरल हुई जिसके बाद सिंगापुर से वीडियो जारी करते हुए अमर सिंह ने का था कि मैं अच्छा हूं या बुरा, लेकिन मैं आपका हूं। मैंने अपने तरीके से जिंदगी जी ली है मैं वापस लौटूंगा। हालांकि अमर सिंह नहीं लौट सके। अमर सिंह का 1 अगस्त 2020 को सिंगापुर के अस्पताल में निधन हो गया।