आज संकष्टी चतुर्थी व्रत है। यह संकष्टी चतुर्थी व्रत साल की अंतिम संकष्टी चतुर्थी है। बुधवार को होने के कारण इस चतुर्थी का खास महत्व है। बुधवार के दिन गणेश जी की पूजा से सभी बाधाएं दूर होती हैं तो आइए हम आपको संकष्टी चतुर्थी व्रत के बारे में बताते हैं।
जाने संकष्टी चतुर्थी के बारे में
हर महीने में दो चतुर्थी व्रत आते हैं। संकष्टी चतुर्थी, जिसे संकटहारा चतुर्थी के नाम से भी जाना जाता है। गणेश को समर्पित हिंदू कैलेंडर के प्रत्येक चंद्र महीने में एक दिन है। यह दिन कृष्ण पक्ष के चौथे दिन पर पड़ता है। साल 2021 की अंतिम संकष्टी चतुर्थी 22 दिसंबर को मनाई जा रही है। संकष्टी चतुर्थी के दिन व्रत रखकर गणेश जी की पूजा की जाती। श्री गणेश सभी कष्टों का निवारण करते हैं। चतुर्थी बुधवार को होने पर काफी शुभ होती है, क्योंकि बुधवार का दिन गणपति का होता है। इस दिन, भक्त कठिन उपवास रखते हैं। वे गणेश की पूजा से पहले चंद्रमा के शुभ दर्शन के बाद रात में उपवास तोड़ते हैं।ऐसा माना जाता है कि इस व्रत को करने से समस्याएं कम होती हैं, क्योंकि गणेश सभी बाधाओं को दूर करने वाले और बुद्धि के सर्वोच्च स्वामी हैं।
संक्रांति चतुर्थी पूजा मुहूर्त:- चतुर्थी तिथि– 22 दिसंबर 2021, बुधवार पूजा मुहूर्त– रात 08.15 बजे से रात 09.15 बजे तक (अमृत काल)
संकष्टी चतुर्थी के हैं कई नाम
संकष्टी चतुर्थी भक्तों के बीच में कई नामों से प्रसिद्ध है। कहीं इसे संकट चौथ कहा जाता है तो कोई इसे संकटहारा के नाम से जानता है। मंगलवार को पड़ने वाला चतुर्थी को अंगारकी चतुर्थी कहा जाता है। अंगारकी चतुर्थी छः महीने में एक बार आती है। इस दिन व्रत रहने से पूर्ण संकष्टी का फल मिलता है। दक्षिण भारत में यह व्रत बहुत हर्ष के साथ मनाया जाता है।
संकष्टी चतुर्थी से जुड़ी पौराणिक कथा
संकष्टी चतुर्थी से सम्बन्धित कई कथाएं प्रचलित है। एक बार शिवजी और माता पार्वती एक दूसरे साथ समय व्यतीत कर रहे थे। तब मां पार्वती को चौपड़ खेलने की इच्छा हुई। लेकिन इस खेल में सवाल यह उठा कि दोनों के बीच हार-जीत का फैसला कौन करेगा। इस समस्या से निपटने के लिए भगवान शिव ने घास-फूंस का एक बालक बनाया और उसमें प्राण डाल दिए। इसके बाद पुतले से कहा कि अब हार-जीत का फैसला करना।
चौपड़ खेलने के दौरान पार्वती तीन बार जीतीं। लेकिन बालक से पूछने पर उसने उत्तर दिया कि महादेव जीते। इस पर माता पार्वती बहुत क्रुद्ध हुईं और उन्होंने उसे कीचड़ में पड़ने रहने का अभिशाप दे दिया। इससे बालक दुखी हो गया उसने देवी से प्रार्थना की। तब देवी ने कहा कि आज से एक साल बाद यहां नागकन्याएं आएंगी उनके कहे अनुसार तुम गणेश जी की पूजा करना। ऐसा करने तुम्हारे सारे कष्ट दूर हो जाएंगे। उस बालक ने गणेश जी का व्रत किया। उपवास से देवता प्रसन्न हुए और उन्होने बालक से वर मांगने को कहा। बालक ने कहा कि मुझे अपने माता-पिता से मिलने कैलाश पर्वत जाना है। आप मुझे आर्शीवाद दें। इसके बाद वह बालक कैलाश पर्वत पर पहुंच गया। इसके बाद उसने माता पार्वती को प्रसन्न करने के लिए 21 दिन तक गणेश जी का व्रत करने से माता पार्वती प्रसन्न हो गयीं।
गणेश जी का भोग भी होता है बहुत खास
भगवान गणेश की पूजा में उनके सबसे प्रिय प्रसाद मोदक या लड्डू जरूर चढ़ाएं।
संकष्टी चतुर्थी के दिन ऐसे करें पूजा
संकष्टी चतुर्थी का दिन खास होता है, इसलिए इस दिन खास पूजा करें। सबसे पहले ब्रह्ममुहूर्त में स्नानआदि करके स्वच्छ वस्त्र धारण करें। पूजा के लिए ईशान कोण में चौकी पर भगवान गणेश की मूर्ति स्थापित करें। उसके बाद चौकी पर लाल या पीले रंग का कपड़ा बिछाएं। भगवान के सामने हाथ जोड़कर पूजा और व्रत का संकल्प लें। गणेश जी को जल, अक्षत, दूर्वा घास, लड्डू, पान, धूप आदि अर्पित करें। ॐ 'गं गणपतये नमः' मंत्र का जाप करते हुए भगवान गणेश से प्रार्थना करें। इसके उपरांत एक केले का पत्ता लें, इस पर आपको रोली से चौक बनाएं। चौक के अग्र भाग पर घी का दीपक रखें। पूजा के बाद चंद्रमा को शहद, चंदन, रोली मिश्रित दूध से अर्घ्य दें और व्रत का पारण करें।
संकष्टी चतुर्थी से पूरी होंगी सभी मनोकामनाएं
गणपतिजी का इस दिन सच्चे दिल से उनकी पूजा और व्रत करता है तो सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं। परिवार के सभी कष्ट दूर होते हैं और कर्ज खत्म हो जाता है।
- प्रज्ञा पाण्डेय