उत्पन्ना एकादशी व्रत करने से सभी पापों का होता है नाश

By प्रज्ञा पाण्डेय | Dec 11, 2020

हिन्दू धर्म में एकादशी का विशेष महत्व है, उत्पन्ना एकादशी भगवान विष्णु को समर्पित व्रत है तथा इसको करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है, तो आइए हम आपको उत्पन्ना एकादशी व्रत के महत्व तथा पूजा विधि के बारे में बताते हैं।

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उत्पन्ना एकादशी के बारे में जानकारी 

हिन्दू धर्म के पंचांग के अनुसार उत्पन्ना एकादशी प्रत्येक वर्ष अगहन माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि को मनाई जाती है। यह व्रत भगवान विष्णु को समर्पित माना जाता है। मान्यता है कि उत्पन्ना एकादशी के दिन भगवान विष्णु की आराधना करने से मनोवांछित फलों की प्राप्ति होती है। एकादशी का व्रत एक माह में दो बार आता है एक कृष्ण पक्ष की एकादशी तथा दूसरी शुक्ल पक्ष की एकादशी। 


उत्पन्ना एकादशी में इन नियमों का पालन होता है फलदायी 

हिन्दू धर्म में ऐसी मान्यता है कि इस व्रत को करने से अश्वमेघ यज्ञ, कठिन तपस्या, तीर्थों में स्नान-दान से मिलने वाले फल से भी अधिक लाभ प्राप्त होता है। यह उपवास, उपवासक का मन निर्मल करता है, शरीर को स्वस्थ करता है, हृदय शुद्ध करता है तथा भक्त को सदमार्ग की ओर प्रेरित करता है। इस व्रत में तामसिक वस्तुओं का सेवन करना निषेध माना जाता है। साथ ही मांस, मदिरा, प्याज व मसूर दाल से भी परहेज करना चाहिए। ब्रह्मचर्य व्रत का पालन करना चाहिए। इस दिन दैनिक कार्यों से निवृत्त होकर स्नान करने के पश्चात सूर्य देव को जलअर्पण करके भगवान विष्णु जी का ध्यान करना चाहिए। इसके बाद धूप, दीप, नैवेद्ध से भगवान की पूजा करनी चाहिए।


उत्पन्ना एकादशी से जुड़ी पौराणिक कथा

उत्पन्ना एकादशी के विषय में एक कथा प्रचलित है कि इसकी कहानी को स्वयं श्रीकृष्ण ने युधिष्ठिर को एकादशी माता के जन्म की कथा सुनाई थी। इस कथा के अनुसार सतयुग में मुर नाम का राक्षस था। उसने अपनी ताकत से स्वर्ग पर विजय प्राप्त कर ली। ऐसे में इंद्रदेव को बहुत समस्या थी तथा उन्होंने विष्णुजी से सहायता मांगी। विष्णुजी का मुर दैत्य से युद्ध आरंभ हो गया तथा यह कई वर्षों तक चलता रहा। अंत में विष्णु भगवान को नींद आने लगी तब वह बद्रिकाश्रम में हेमवती नामक गुफा में विश्राम करने लगे।

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सोते हुए विष्णु जी के पास मुर भी पहुंचा और भगवान को मारने के लिए बढ़ा ही रहा था तभी अंदर से एक कन्या निकली और उसने मुर से युद्ध किया। मुर तथा कन्या के बीच घमासान युद्ध हुआ। उस युद्ध में कन्या ने मुर का मस्तक धड़ से अलग कर दिया। इसी बीच जब विष्णु की नींद टूटी तो उन्हें आश्चर्य व्यक्त किया। इस पर कन्या ने यह कहानी बतायी। युद्ध की बात सुनकर विष्णु जी प्रसन्न हुए और उन्होंने कन्या को वरदान मांगने के लिए कहा। कन्या ने वरदान मांगा कि अगर कोई मनुष्य मेरा उपवास करे तो उसके सारे पाप नाश हो जाएं और उसे बैकुंठ लोक प्राप्त हो। तब भगवान ने उस कन्या को एकादशी नाम दिया और वरदान दिया कि इस व्रत के पालन से मनुष्य जाति के पापों का नाश होगा और उन्हें विष्णु लोक मिलेगा।


जानें उत्पन्ना एकादशी व्रत का महत्व

हिन्दू धर्म में उत्पन्ना एकादशी का विशेष महत्व होता है। ऐसी मान्यता प्रचलित है कि उत्पन्ना एकादशी का व्रत विधिपूर्वक करने से सभी तीर्थों का फल तथा भगवान विष्णु का धाम प्राप्त होता है। इस दिन दान देना विशेष फलदायी होता है। निर्जल संकल्प लेकर उत्पन्ना एकादशी व्रत रखने वाले भक्त को मोक्ष की प्राप्ति होती है। उत्पन्ना एकादशी व्रत करने से व्यक्ति के सभी प्रकार के पापों का नाश होता है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार इस व्रत को करने से अश्वमेघ यज्ञ, तीर्थ स्नान व दान आदि करने से भी ज्यादा पुण्य मिलता है।


- प्रज्ञा पाण्डेय

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