By योगेश कुमार गोयल | Nov 06, 2023
दिल्ली-एनसीआर की हवा में दीवाली से कुछ दिन पहले ही इस कदर जहर घुल चुका है और हवा इतनी दमघोंटू हो चुकी है कि लोगों को न केवल सांस लेना मुश्किल हो गया है बल्कि अन्य खतरनाक बीमारियों का खतरा भी बढ़ रहा है। केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अनुसार इस साल अक्तूबर में दिल्ली में प्रदूषण का स्तर 2020 के बाद सबसे खराब स्तर पर था लेकिन नवम्बर की शुरुआत से ही प्रदूषण के सारे रिकॉर्ड टूट रहे हैं और दिल्ली में एक प्रकार से सांसों का आपातकाल-सा दिखाई दे रहा है, जहां चारों स्मॉग की घनी चादर छाई है। यह चादर कितनी खतरनाक है, इसका अनुमान इसी से लगाया जा सकता है कि सूर्य की तेज किरणें भी इस चादर को नहीं भेद पा रही हैं। करीब एक सप्ताह से देश के राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र की वायु गुणवत्ता सूचकांक में तेजी से गिरावट आई है। इस तरह की वायु गुणवत्ता को सेहत के लिए कई प्रकार से बेहद खतरनाक माना जाता है। दिल्ली के कई हिस्सों में तो वायु गुणवत्ता सूचकांक 800 के आंकड़े को भी पार कर चुका है, जो विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा निर्धारित सीमा से कई गुना ज्यादा है। विशेषज्ञों के मुताबिक अभी अगले 15-20 दिनों तक यहां ऐसी ही स्थिति बनी रह सकती है।
वैसे तो दिल्ली के साथ-साथ देश के कई अन्य राज्यों में भी प्रदूषण का स्तर बढ़ रहा है और देश की आर्थिक राजधानी मुम्बई में भी वायु गुणवत्ता गंभीर श्रेणी में दर्ज की जा रही है लेकिन दिल्ली पिछले कई वर्षों से दुनिया के सबसे प्रदूषित शहरों में से एक बनी हुई है, जिसका सीधा-सा अर्थ है कि करीब 3.3 करोड़ लोगों में वायु प्रदूषण के कारण होने वाली स्वास्थ्य समस्याओं का गंभीर जोखिम बना हुआ है। लोगों की सांसों पर वायु प्रदूषण का खतरा इतना खतरनाक होता जा रहा है कि वैज्ञानिक अब दिल्ली में साल-दर-साल बढ़ते प्रदूषण के कारण बढ़ रहे स्वास्थ्य संबंधी गंभीर दुष्प्रभावों को लेकर चिंता जताने लगे हैं। भारत मौसम विज्ञान विभाग के अधिकारियों के मुताबिक आने वाले कुछ दिनों में दिल्ली-एनसीआर में वायु गुणवत्ता बहुत खराब रहेगी, जिसका कारण तापमान में कमी और पराली जलाने से होने वाला उत्सर्जन है। केंद्र सरकार के डिसीजन सपोर्ट सिस्टम फॉर एयर क्वालिटी मैनेजमेंट (डीएसएस) ने पराली जलाए जाने की गतिविधियों में वृद्धि की आशंका जताई है, जिससे अगले कुछ दिनों में वायु गुणवत्ता बेहद खराब होने की आशंका है। चिंता का विषय यह है कि हर साल दिल्ली सहित, हरियाणा, पंजाब, उत्तर प्रदेश इत्यादि राज्यों में इस सीजन में खेतों में बड़े स्तर पर पराली जलाई जाती है, जिसके चलते प्रदूषण का यही आलम देखने को मिलता है। यह बेहद चिंता की बात है कि किसानों से खेतों में पराली नहीं जलाए जाने के निरंतर अनुरोधों के बाद भी इस बार दशहरे के मौके पर तो जैसे किसानों में पराली फूंकने की होड़-सी लगी दिखी, वहीं करवा चौथ के मौके पर चांद के दीदार होते ही दिल्ली तथा पड़ोसी राज्यों में लोगों जमकर आतिशबाजी की, जिसने प्रदूषण की स्थिति को और विकराल बनाने में आग में घी का काम किया।
विकास के नाम पर अनियोजित तथा अनियंत्रित निर्माण कार्यों के चलते बिगड़ते हालात, खेतों में जलती पराली, खतरों को जानते-समझते हुए भी की जाने वाली भारी आतिशबाजी तथा वाहनों और औद्योगिक इकाईयों के कारण अत्यधिक प्रदूषित हो रहे वातावरण के भयावह खतरों को हम इसी प्रकार साल-दर-साल झेलने को विवश हैं। हालांकि पर्यावरण तथा प्रदूषण नियंत्रण के मामले में देश में पहले से ही कई कानून लागू हैं लेकिन उनकी पालना कराने के मामले में पर्यावरण एवं प्रदूषण नियंत्रण विभाग में सदैव उदासीनता का माहौल देखा जाता रहा है। देश की राजधानी दिल्ली तो वक्त-बेवक्त ‘स्मॉग’ से लोगों का हाल बेहाल करती रही है। न केवल दिल्ली-एनसीआर में बल्कि देशभर में वायु, जल तथा ध्वनि प्रदूषण का खतरा निरन्तर मंडरा रहा है। वायु, जल तथा अन्य प्रदूषण के कारण अब हर साल देशभर में लाखों लोग जान गंवाते हैं। एक रिपोर्ट के मुताबिक मानव निर्मित वायु प्रदूषण के ही कारण प्रतिवर्ष करीब पांच लाख लोग मौत के मुंह में समा जाते हैं।
अब देश का शायद ही कोई ऐसा शहर हो, जहां लोग धूल, धुएं, कचरे और शोर के चलते बीमार न हो रहे हों। देश के अधिकांश शहरों की हवा में जहर घुल चुका है। पयार्वरण तथा मानवाधिकारों पर संयुक्त राष्ट्र के विशेष दूत डेविड आर. बॉयड का कहना है कि विश्वभर में इस समय छह अरब से भी ज्यादा लोग इतनी प्रदूषित हवा में सांस ले रहे हैं, जिसने उनके जीवन, स्वास्थ्य और बेहतरी को खतरे में डाल दिया है और सर्वाधिक चिंता की बात यह है कि इसमें करीब एक-तिहाई संख्या बच्चों की है। अपनी बहुचर्चित पुस्तक ‘प्रदूषण मुक्त सांसें’ में मैंने विस्तार से बताया है कि वायु प्रदूषण न केवल फेफड़ों को बल्कि स्वास्थ्य को तमाम अन्य तरीकों से भी प्रभावित करता है। हवा की खराब गुणवत्ता के कारण अस्थमा, ब्रोंकाइटिस, और बैक्टीरियल संक्रमण के खतरे बढ़ सकते हैं। वायु की खराब गुणवत्ता व्यक्ति में ऑटिज्म, तनाव और स्ट्रोक जैसे तमाम न्यूरोलॉजिकल डिसऑर्डर सहित अन्य बीमारियों को भी बढ़ावा देती हैं वायु प्रदूषण के कारण हवा में कई प्रकार की हानिकारक गैसें सम्मिलित हो जाती हैं, जिनसे सिरदर्द, खांसी, ज़ुकाम और एलर्जी जैसी आम समस्याएं भी देखने को मिलती हैं। पर्यावरण, प्रदूषण और स्वास्थ्य पर विभिन्न प्रकार के प्रदूषण के भयावह खतरों के बारे में विस्तार से जानने के लिए ‘प्रदूषण मुक्त सांसें’ पुस्तक को फ्लिपकार्ट https://www.flipkart.com/pradushan-mukt-saansein-environment-nature/p/itmcc9af5e2b2adf?pid=9788193716816 से प्राप्त किया जा सकता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार वायु प्रदूषण के चलते दुनियाभर में प्रतिवर्ष करीब 70 लाख लोगों की असामयिक मृत्यु हो जाती है, जिनमें करीब छह लाख बच्चे भी शामिल होते हैं। डब्ल्यूएचओ के मुताबिक वातावरण में बढ़ रहा वायु प्रदूषण लोगों के स्वास्थ्य के लिए काफी समस्यादायक स्थिति पैदा कर सकता है, जिससे रेसपिरेटरी, न्यूरोबिहेवियरल, कार्डियोवैस्कुलर तथा इम्यून सिस्टम से संबंधित बीमारियां हो सकती हैं।
शिकागो विश्वविद्यालय के एनर्जी पॉलिसी इंस्टीट्यूट शिकागो (ईपीआईसी) के निदेशक और अर्थशास्त्र के प्रोफेसर माइकल ग्रीनस्टोन तथा उनकी टीम द्वारा किए गए एक अध्ययन के बाद कुछ समय पहले कहा जा चुका है कि भारत की कुल आबादी का बड़ा हिस्सा ऐसी जगहों पर रहता है, जहां पार्टिकुलेट प्रदूषण का औसत स्तर विश्व स्वास्थ्य संगठन के मानकों से ज्यादा है। देश में करीब 84 फीसदी व्यक्ति ऐसी स्थानों पर रहते हैं, जहां प्रदूषण का स्तर भारत द्वारा तय मानकों से अधिक है और भारत की एक चौथाई आबादी बेहद प्रदूषित वायु में जीने को मजबूर है। चूंकि वायु प्रदूषण का प्रभाव मानव शरीर पर इतना घातक होता है कि सिर के बालों से लेकर पैरों के नाखून तक इसकी जद में होते हैं, इसीलिए शिकागो विश्वविद्यालय के माइकल ग्रीनस्टोन कहते हैं कि वायु प्रदूषण पर अब गंभीरता से ध्यान देने की जरूरत है ताकि करोड़ों-अरबों लोगों को अधिक समय तक स्वस्थ जीवन जीने का हक मिल सके।
-योगेश कुमार गोयल
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार, पर्यावरण मामलों के जानकार तथा ‘प्रदूषण मुक्त सांसें’ पुस्तक के लेखक हैं)