By अभिनय आकाश | Apr 29, 2024
"280 करोड़ निगाहें हर पल मोदी को देख कर सही गलत का फैसला करते हैं। अनुभव के बाद 10 साल की कठोर कसौटी से निकलकर आज जब मोदी आया है तो आपका जाना हुआ मोदी है, आपका परखा हुआ मोदी है। आपके लिए जिंदगी खपाने वाला मोदी है। जो 14 में नहीं देखा जो 19 में नहीं देखा वो 24 के चुनाव में मैं भरपूर देख रहा है।" लोकसभा चुनाव के दो चरणों का समापन हो चुका है और अब तक कुल 190 सीटों पर वोट डाले जा चुके हैं। सेकेंड फेज की वोटिंग के बाद चर्चाएं तेज हो गई हैं। वैसे तो 4 जून को ही सही नतीजों का पता चलेगा। इसको लेकर कोई भविष्वाणी कर पाना फिलहाल संभव नहीं है। लेकिन इंडी गठबंधन काउंटिंग से पहले ही वोटिंग से जुड़ी भविष्यवाणी करने लगा है। लालू यादव के सुपुत्र तेजस्वी यादव जिनका पिछले लोकसभा चुनाव में खाता भी नहीं खुला था वो दावा करते हुए कहते नजर आए कि बीजेपी का 400 पार का नारा अब मोदी जी भूल गए हैं। पहले फेज में ही 400 पार वाली फिल्म फ्लॉप हो गई। वहीं 2019 के चुनाव में 421 सीटों पर उम्मीदवार उतारकर 52 सीट जीतने वाली कांग्रेस के नेता राहुल गांधी भविष्यवाणी करते नजर आए कि मुझे लग रहा था कि बीजेपी 180 तक जाएगी। लेकिन अब 150 सीट तक जाएंगे। हर राज्य में हमें रिपोर्ट मिल रही है कि हमारा चुनाव इंप्रुव कर रहा है और हम अंडरकरंट है। अब तक दो चरण की वोटिंग हो चुकी है। सभी पार्टियों के अपने अपने दावे हैं। अपने अपने गणित हैं। कम वोटिंग पर्सेंटेज को लेकर भी गुणा-भाग हो रहा है। इस गुणा-भाग को लेकर हर दलों के अपने अपने फॉर्मूले हैं। वहीं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एनडीए को 400 पार सीटें मिलने का लक्ष्य रखा है। वोटर टर्नाउट कम हुआ है और इसका असर बीजेपी के प्रदर्शन पर पड़ सकता है और मोदी हार सकते हैं। इस तरह के नैरेटिव सोशल मीडिया ट्रोलर और मीडिया के कुछ वर्गों द्वारा गढ़ने की कोशिश की जा रह है। लेकिन हकीकत क्या है? ये आप भी जानना चाह रहे होंगे।
क्या बीजेपी के वोटर्स नहीं आ रहे बाहर?
18वीं लोकसभा चुनाव के लिए सेकेंड फेज में 26 अप्रैल को 13 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों की 88 सीटों पर 68.49% वोटिंग हुई। पिछले लोकसभा चुनाव में दूसरे चरण में 13 राज्यों की 95 लोकसभा सीटों पर 67 फीसदी वोटिंग हुई थी। केरल की सभी 20 सीट, कर्नाटक की 28 में से 14 सीट, राजस्थान की 13 सीट, महाराष्ट्र और उत्तर प्रदेश की आठ-आठ सीट, मध्य प्रदेश की छह सीट, असम और बिहार की पांच-पांच सीट, छत्तीसगढ़ और पश्चिम बंगाल की तीन-तीन सीट तथा मणिपुर, त्रिपुरा और जम्मू-कश्मीर में एक-एक सीट पर 26 अप्रैल को वोट डाले गए। कहा जा रहा है कि सेकेंड फेज में कम हुई वोटिंग का असर बीजेपी पर ही पड़ेगा और उसके वोटर्स नहीं बाहर आ रहे हैं। लेकिन कोई ये नहीं बता रहा कि इन 88 सीटों के ऊपर कांग्रेस पार्टी को कितने में जीत मिली थी। इस बार उसकी स्थिति क्या है? एक नैरेटिव मीडिया के वर्ग की तरफ से भी गढ़ने की कोशिश की जा रही है कि बीजेपी की सीटें कम हो रही है और वो हार रही है। लेकिन ये नहीं बता रही कि फिर जीत कौन रहा है? किस किस सीट पर कांग्रेस जीत ला रही है। इसलिए हमने पहले फेज के चुनाव के बाद भी फेक नैरेटिव को ध्वस्त करने के लिए एक विश्लेषण किया था और ऐसे खोखले दावों का एमआरआई स्कैन करके आपको सही तस्वीर बताई थी। एक बार फिर से हम सेकेंड फेज की वोटिंग के बाद प्रोपगैंडा को डिकोड करने के लिए आपके सामने ये विश्लेषण लेकर आए हैं।
तस्वीर कुछ हद तक साफ हो जाएगी
सबसे पहले तो सेंकेंड फेज में जिन 88 सीटों पर वोटिंग हुई थी उसमें साल 2019 में किस पार्टी के पास कितनी सीटें थी ये आपको बता देते हैं। पिछली बार बीजेपी ने 52 सीटें हासिल की थी। जबकि कांग्रेस पार्टी के हिस्से में केवल 19 सीटें मिली थी। ये तो हमें नहीं पता कि इस बार के परिणाम क्या होंगे और क्या बीजेपी घटकर 40 पर आ जाएगी या फिर कांग्रेस 10 सीटें भी हासिल करने की स्थिति में रहेगी या नहीं ये तो 4 जून के नतीजों पर ही पता चलेगा। लेकिन पुराने आंकड़ों से मेल कर पूरे खेल को समझने की कोशिश तो हम कर ही सकते हैं। फिर सारी तस्वीर कुछ हद तक साफ हो जाएगी।
असम
असम में पांच सीटों पर 77.35 फिसदी वोटिंग हुई है। इन पांच सीटों में से दो सीट नवगोंग और कलियाबोर कांग्रेस के पास है। जबकि करीमगंज, सिलचर, मंगलदोई पर बीजेपी का कब्जा है। एक सीट तो कांग्रेस के दिग्गज नेता तरुण गोगोई के पुत्र गौरव गोगोई ने जीत दर्ज की थी। लेकिन असम में पिछली बार कांग्रेस पार्टी का ऑल इंडिया यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट (एआईयूडीएफ) के साथ गठबंधन था। इस बार बदरुद्दीन अजमल ने अपने उम्मीदवार खड़े किए हैं। ऐसे में असम में इस बार बीजेपी के साथ ही कांग्रेस को एआईयूडीएफ से भी लड़ना पड़ रहा है जो सार्वजनिक मंचों पर कहते नजर आ रहे हैं कि राहुल गांधी असम में कांग्रेस को जिंदा नहीं कर सकते।
बिहार
बिहार में जिन पांच सीटों पर वोट डाले गए, उनमें से एक सीट किशनगंज कांग्रेस के पास थी। ये एक मात्र ऐसी सीट थी जहां विपक्ष का खाता खुला था, वरना 40 में से 39 सीट एनडीए के खाते में गए थे। गौर करने वाली बात है कि बिहार की जिन पांच सीटों पर दूसरे फेज में वोट डाले गए हैं उनमें से किसी पर भी बीजेपी के उम्मीदवार नहीं थे। बल्कि ये सभी सीटें सहयोही जदयू की है। ऐसे में जदयू को कितनी सीटे आएगी ये अलग बहस का हिस्सा है।
छत्तीसगढ़
राज्य में तीन सीटों पर वोट डाले गए हैं। आपको याद होगा कि कुछ मीडिया के वर्गों में ये दिखाया या प्रस्तुत किया जा रहा था कि छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव में तो कांग्रेस बेहद मजबूत स्थिति में है और बीजेपी का कोई स्कोप नहीं है। कांग्रेस बड़े मार्जिन से विधानसभा चुनाव जीत रही है। लेकिन कांग्रेस का क्या हश्र हुआ ये तो आपको पता ही है। पिछली दफा छत्तीसगड़ की इन तीनों सीटों पर बीजेपी ने जीत हासिल की थी। राजनंदगांव सीट पर 2019 की तुलना में करीब 5 फीसदी कम वोटिंग हुई है। बीजेपी के संतोष पांडे ने 1,11,966 वोटों से जीत दर्ज की थी।
कर्नाटक
पिछली बार कांग्रेस और जेडीएस का गठबंधन था। लेकिन इस बार स्थिति बिल्कुल उलट है। जिससे बीजेपी और मजबूत स्थित में है। कर्नाटक में जिन 14 सीटों के ऊपर वोटिंग हुई है उन 14 सीटों में मात्र एक सीट कांग्रेस पार्टी के पास थी। वो डीके शिवकुमार के भाई डीके सुरेश की बैंगलुर रुरल की सीट थी। कर्नाटक में वोक्लिंगा वोट का पूरा खेल चल रहा है। इस टी पर वोक्कालिगा के सबसे बड़े नेता जनता दल (सेक्युलर) सुप्रीमो एचडी देवेगौड़ा के दामाद डॉ. सीएन मंजूनाथ मैदान में हैं। जेडीएस और कांग्रेस के बीते रिश्ते, कुमारस्वामी का सीएम पद छोड़ना और तमाम तरह की पुरानी बातों के बीच वोक्कालिगा वोट किसके पास जाएगा ये आप खुद ही अंदाजा लगा सकते हैं। कर्नाटक की राजनीति लिंगायत और वोक्कालिगा दो जातियों के ईर्द गिर्द ही घूमती है। दोनों के बड़े नेता बीजेपी से जुड़े हैं। इसके साथ ही नेहा ह्त्या कांड ने भी राज्य के माहौल को कुछ हद तक बदला है।
केरल
दावा किया जा रहा है क केरल को लेकर कहा जाता है कि 20 की 20 सीटें कांग्रेस पार्टी के पास जाएंगी। बीजेपी के अंदर बदलाव देखने को मिल रहा है। एके एंटनी के बेटे की बीजेपी में एंट्री हुई। भाजपा का वोट प्रतिशत 2009 में 6.3 से बढ़कर 2019 में 13 हो गया। 2014 में तिरुअनंतपुरम में भाजपा के ओ राजगोपाल से कांग्रेस के शशि थरूर 14 हजार मतों से जीते थे। पथानामथिट्टा से अनिल एंटोनी को बीजेपी ने मैदान में उतारा है। वहीं पिछली बार महज 14 हजार वोट से जीत दर्ज करने वाले शशि थरूर खुद पार्टी के नेताओं द्वारा दरकिनार कर दिए गए हैं। 2019 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने कुल 20 में से 15 सीटें जीती थीं। यूडीएफ गठबंधन को 19 सीटों पर सफलता मिली थी। तमाम सर्वे यूडीएफ को 14 सीटें दे रही हैं। केरल में कांग्रेस इस बार 16 सीटों पर चुनाव लड़ रही है।
मध्य प्रदेश
एमपी की 6 सीटों पर 58 फीसदी वोटिंग हुई है। राज्य में पिछली बार बीजेपी के अधिकांश सीटों पर दो से तीन लाख जीत का अंतर रहा था। चाहे वो खजुराहो जहां बीजेपी ने 4 लाख 92 हजार, सतना में ढाई लाख, रीवा में तीन लाख 12 हजार, होशंगाबाद में पांच लाख से अधिक, बैतुल में तीन लाख साठ हजार वोट से जीत रही है। ऐसे में कितना प्रतिशत कम वोट आने से ढाई लाख से ऊपर के अंतर से जीती गई सीट पर असर डाल सकता है।
उत्तर प्रदेश
राज्य की ओवरऑल सीटों पर वोटिंग प्रतिशत तो कम हुआ है। लेकिन कुछ कुछ सीटों पर वोटिंग प्रतिशत बढ़ गया है। जहां मुकाबला बहुत कड़ी प्रतिस्पर्धा वाला हो वहां वोटिंग प्रतिशत बड़ जाता है। वहीं जहां मुकाबला एकतरफा नजर आता है वहां दोनों ही पक्ष से लोक वोट देने नहीं आते। एक तरफ से लोग सोचते हैं कि ये तो वैसे भी हार रहा है। जीतने वाला है नहीं, तो क्या वोट करें। जो जीत रहा होता है उसे भी लगता है कि जीत तो रहे मेरे एक वोट से क्या फर्क पड़ेगा।
ऐसे में इस बात में कोई संदेह नहीं है कि वोटिंग अगर कम हो रही है तो ये चुनाव एकतरफा होता जा रहा है। इसलिए लोग घर से बाहर नहीं निकल रहे हैं। जहां कहीं भी मार्जिन दो से ढाई लाख हो उसे कवर करना बहुत मुश्किल है। एक बात और गौर करने वाली बात है कि कांग्रेस पार्टी के कार्यकर्ता और उसके नेता क्या आपको पूरा दम लगाते और सड़क पर संघर्ष करते नजर आ रहे हैं। उदाहरण के लिए दिल्ली ही लेकर देखें तो आपस में ही मतभेद और गुत्थम गुत्थी करती नजर आ रही है। जय, विजय, फतह चुनाव हो, पक्ष हो विपक्ष हो, देश हो या विदेश मोदी का लोहा हर कोई मानता है। पिच कोई भी हो मोदी विरोधियों पर हावी रहते हैं। मोदी ने दिखाया कैसे चुनाव जीता जाता है। मोदी ने दिखाया कैसे विरोधियों को हराया जाता है। मोदी ने दिखाया जीत का जश्न कैसे मनाया जाता है। दिल्ली में पार्टी हेडक्वार्टर हो। बनारस की चौक या गलियां हो। गुजरात हो, राजस्थान हो, मध्य प्रदेश या बिहार, या फिर बंगाल ही क्यों न हो। मोदी चुनाव के मैदान में उतरते ही जीत की गारंटी देते हैं। चुनाव में जनता को जर्रादन मानने वाले नरेंद्र मोदी हर बार जीत को जनता, कार्यकर्ता और पार्टी के नाम कर देते हैं।