वाशिंगटन। भारत के कुछ राज्यों द्वारा हाल में की गई कृषि ऋणमाफी पर चिंता जताते हुए मुख्य आर्थिक सलाहकार अरविंद सुब्रहमणियन ने कहा कि यदि देशभर में इसी तरह की ऋणमाफी की जाती है तो इससे सरकार का घाटा सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के दो प्रतिशत तक बढ़ जाएगा। पिछले हफ्ते यहां एक कार्यक्रम में सुब्रहमणियन ने कहा, ‘‘हमने हाल में कृषि ऋणमाफी की कई घोषणाओं को देखा है। आप जानते हैं कि यदि इसका विस्तार होता है तो इसकी लागत होगी और यह जीडीपी के दो प्रतिशत के बराबर हो सकती है जिससे (सरकार का) नुकसान बढ़ेगा।’’
गौरतलब है कि हाल ही में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने राज्य में 36,000 करोड़ रुपये के कृषि ऋण माफ करने की घोषणा की है। इस फैसले से असहमति जताते हुए सुब्रहमणियन ने कहा, ‘‘यदि इस तरह की गतिविधियां बढ़ती हैं जिसकी संभावना बनी हुई है तो मेरे हिसाब से यह एक बड़ी चुनौती होगी।’’ उन्होंने यह बात यहां पिछले हफ्ते पीटरसन इंस्टीट्यूट में एक परिचर्चा सत्र के दौरान कही जिसे यहां अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष और विश्वबैंक की वाषिर्क ग्रीष्मकालीन बैठक से इतर आयोजित किया गया था।
सुब्रहमणियन ने कहा कि इस तरह की कार्रवाइयां केंद्र के राजकोषीय सुदृढ़ीकरण के प्रयासों के लिए एक बड़ी चुनौती हैं। केन्द्र को यदि इसमें सफलता मिलती है तो राज्य उसे ऋणमाफी से निष्फल कर सकते हैं। उन्होंने कहा कि सरकार इस समय निजी क्षेत्र के ऋण को खत्म करने की चुनौती से भी जूझ रही है। यह एक राजनीतिक मुद्दा भी बन चुका है। सुब्रहमणियन ने कहा कि निजी क्षेत्र के ऋण से कैसे निपटा जाए इस पर बहुत बहस हुई है लेकिन मेरा मानना है कि इसके मूल में जाकर देखा जाए तो यह बहुत आसान है। किस प्रकार एक राजनीतिक प्रणाली में जहां भाई-भतीजावाद, एक-दूसरे को लाभ पहुंचाने की पूंजीवादी व्यवस्था की चिंताएं महत्वपूर्ण हों क्या वहां निजी क्षेत्र के ऋण को माफ कर सार्वजनिक क्षेत्र के करदाताओं पर इसका बोझ डाला जा सकता है।
उन्होंने कहा, ‘‘मेरा मानना है कि यह राजनीतिक समस्या के मूल में है और हम अभी भी इससे जूझ रहे हैं कि इसे (ऋण को खत्म) कैसे करें।’’ उन्होंने केंद्र सरकार के वस्तु एवं सेवाकर (जीएसटी) को लेकर किए गए प्रयासों को भारत में एक बड़ा विकासात्मक कदम और सर्वाधिक महत्वाकांक्षी कर सुधार बताया। उन्होंने कहा कि यह कुछ ऐसा है जिसकी अमेरिका में कल्पना भी नहीं की जा सकती। क्योंकि इसके ना सिर्फ समर्थक और विरोधी दोनों हैं बल्कि यह एक ऐसी कर व्यवस्था है जिसमें केंद्र और राज्य दोनों के बीच समन्वय से ही यह होना है।