भारत किलों का देश है। राजाओं ने सुरक्षा व्यस्था को मजबूत करने के लिए पूरे देश में जगह-जगह दुर्गों का निर्माण कराया। अनेक दुर्गों के बीच इतिहास की गवाही देता मैं हूं आगरा का लाल किला। लाल बलुआ पत्थरों से बना होने की वजह से मेरी रंगत लाल दिखाई देती है इसी लिए मुझे लाल किला कहा जाता है। करीब 940 वर्षो के इतिहास के उतार-चढ़ाव को समेटे मुझे देखने के लिए दुनियां भर के लोग हर साल मेरे द्वार पर आते हैं। मेरी मजबूत संरचना, स्थापत्य, कारीगरी और मेरे कई आकर्षणों को निहारते हैं। मुझे गर्व है कि मेरे महत्व को जान कर मुझे वर्ष 1983 ई. में यूनेस्को की विश्व धरोहर में शामिल किया गया,जिस से मेरा मान और भी बढ़ गया है। कई काल के शासकों ने मझे भारत की राजधानी होने का गौरव प्रदान किया और यहीं से देश के शासन का संचालन किया। कलात्मक झरोखों से ताजमहल को निहारना मेरी विशेषता हैं। देश के कई शासकों के उत्थान और पतन के इतिहास की गवाही है मेरी आन बान और शान। यहीं से जहाँगीर का न्याय लोकप्रिय हुआ और उन्होंने आम जन के लेते घण्टियों की श्रंखला बनाई, जिसे न्याय पाने वाला इसे बजा कर अपनी फरियाद कर सकता था।
संरचना-स्थापत्य
अर्धवृताकार आकृति में मेरा निर्माण 2.4 किलोमीटर की परिधि में करवाया गया है तथा किलेनुमा 70 फीट ऊंची चारदीवारी दोहरे परकोटे युक्त है। दीवार के बीच-बीच में भारी बुर्जियां बराबर अंतराल पर बनी हैं, जिन पर सुरक्षा छतरियां बनाई गई हैं। इनके साथ-साथ तोपों के झरोखें एवं रक्षा चौकियाँ भी बनाई गई हैं। दीवार के चार कोनों पर चार द्वार बनाये गए हैं। एक खिजड़ी द्वार है जो यमुना नदी की और खुलता है। दूसरा दिल्ली द्वार एवं तीसरा लाहौर द्वार या अकबर द्वार कहलाता है। लाहौर द्वार का नाम आगे चल कर अमरसिंह द्वार कर दिया गया, इसी द्वार से दर्शक भीतर प्रवेश करते हैं। शहर की दिशा में दिल्ली द्वार भव्य स्वरूप लिए हुए है। इस के अंदर एक चौथा द्वार हाथी पोल कहलाता है। इस द्वार के दोनों और दो हाथी सवार रक्षकों के साथ मूर्तियां बनी हैं जो द्वार की शोभा को बढ़ाती हैं। स्मारक स्वरूप दिल्ली द्वार औपचारिक द्वार था जिसे भारतीय सेना हेतु किले के उत्तरी भाग के लिए छावनी के रूप में काम में लिया जा रहा है। दोहरी सुरक्षा की दृष्टि से किले की दीवार को 9 मीटर चौड़ी एवं 10 मीटर गहरी खाई घेरे हुए है।
किले का स्थापत्य अत्यंत महत्वपूर्ण हैं। उस समय के अबुल फजल ने लिखा है कि किले में बंगाली एवं गुजरात शैली की करीब पांच सौ सुंदर इमारतें बनी थीं। कइयों को सफेद संगमरमर से बनाने के लिए तोड़ा गया और अधिकांश को ब्रिटिश शासन में बैरकें बनाने के लिए तोड दिया गया। आज किले के दक्षिण-पूर्व की और मुश्किल से 30 भवन या इमारतें ही बची हैं। अकबर की प्रतिनिधि इमारतों में आज बंगाली महल, लाहौर द्वार एवं दिल्ली द्वार ही शेष रह गए हैं। किले में कई निर्माणों को हिन्दू-इस्लामिक स्थापत्यकला के समिश्रण से सज्जित किया गया हैं। इस्लामिक अलंकरण ज्यामितीय नमूने, आयतें एवं सुलेख ही फलकों में देखने को मिलते हैं। मुगल स्थापत्य का सुंदर उदहारण होने का मुझे गर्व है।
मुथम्मन बुर्ज
किले में शाहबुर्ज और झरोखा यह खूबसूरत महल पूर्व की ओर स्थित नदी के किनारे आगरा किले का सबसे बड़ा गढ़ है। यह मूल रूप से अकबर द्वारा लाल पत्थर से बनाया गया था। जहाँगीर ने इसे झरोखा के रूप में भी इस्तेमाल किया, जैसा कि 1620 में बनाई गई उनकी पेंटिंग में दिखाया गया है। उन्होंने इसके दक्षिण में अपनी न्याय की श्रृंखला स्थापित की थी। इसकी अष्टकोणीय योजना के कारण इसे मुथम्मन बुर्ज कहा जाता था। इसका उल्लेख फारसी इतिहासकारों और विदेशी यात्रियों द्वारा शाह बुर्ज शाही या राजा की मीनार के रूप में भी किया गया है। शाहजहाँ द्वारा इसे सफेद संगमरमर से बनाया गया था। उन्होंने इसका उपयोग झरोखा दर्शन के लिए भी किया था जो कि दरबर के रूप में एक अपरिहार्य मुगल संस्थान था। यह एक अष्टकोणीय इमारत है जिसके पांच बाहरी हिस्से नदी के ऊपर एक डालन बनाते हैं। हर तरफ पिलर और ब्रैकेट खुले हुए हैं। एक झरोखा राजसी तरीके से है। शाहजहाँ ने गद्दी पर बैठते ही तख्ते-ताउस बनवाया जो तीन गज लंबा ढाई गज चौड़ा एवं पांच गज ऊंचा था और इसमें हीरे-जवाहरात जड़े थे। कहते हैं इसी में कोहिनूर हीरा भी जड़ा था जिसे अंग्रेजी शासन काल के समय ब्रिटेन की महारानी विक्टोरिया के ताज में जड़ ने के लिए भेज दिया गया।
इस महल के पश्चिमी भाग में शाह नासिन एल्कॉव्स के साथ एक विशाल दालान है। यह दालान एक अदालत पर खुलता है जिसमें एक जाली स्क्रीन है जो इसके उत्तरी तरफ शीश महल की ओर जाने वाले कमरों की एक श्रृंखला के आधार पर बनाई गई है। इस प्रकार यह सफेद संगमरमर से निर्मित एक बड़ा परिसर है। खंभों पर नक्काशीदार पौधे कोष्ठक और लिंटेल भी बेहद खूबसूरती से जड़े हुए हैं । यह शाहजहाँ की सबसे अलंकृत इमारतों में से एक है। यह महल सीधे दीवान-ए-खास, शीश महल, खास महल और अन्य महलों से जुड़ा हुआ है। और यहीं से मुगल बादशाह ने पूरे देश पर शासन किया। यह बुर्ज ताजमहल का पूर्ण और राजसी उद्देश्य प्रस्तुत करता है और शाहजहाँ ने इस परिसर में अपने कारावास के आठ वर्ष बिताए और कहा जाता है कि उसकी मृत्यु यहीं हुई। उनके शव को नाव से ताजमहल ले जाया गया और दफनाया गया।
शीश महल
मुगल सम्राट शाहजहाँ ने ग्रीष्मकालीन महल के एक भाग के रूप में शीश महल बनवाया था। इसकी सबसे विशिष्ट विशेषता इसकी दीवारों और छत पर किया गया ग्लास मोजेक है। कांच के टुकड़ों में उच्च दर्पण गुणवत्ता होती है जो अर्ध-अंधेरे इंटीरियर में हजार तरीकों से चमकती और टिमटिमाती है। कांच को सीरिया के हलेब से आयात किया गया था। शाहजहाँ ने लाहौर और दिल्ली में भी कांच के महल बनवाए लेकिन यह सब से उम्दा है।
शाहजहानी महल
यह सफेद संगमरमर खस महल और लाल पत्थर जहाँगीर महल परिसर के बीच स्थित है। यह मुगल बादशाह शाहजहाँ की जल्द एक लाल पत्थर की इमारत को उसके स्वाद के अनुसार परिवर्तित करने का सबसे पहला प्रयास है और यह आगरा के किले में उसका सबसे पुराना महल था। इसमें एक बड़ा हॉल, साइड रूम और नदी के किनारे एक अष्टकोणीय टॉवर है। ईंट और लाल पत्थर के ढांचे के निर्माण को एक मोटी सफेद प्लास्टर के साथ फिर से तैयार किया गया था और फूलों के डिजाइन में चित्रित किया गया। पूरा महल एक बार सफेद संगमरमर की तरह चमक उठा। खस महल की ओर एक विशाल विशाल सफेद संगमरमर का दालान है जो पांच मेहराबों से बना है, दोहरे स्तंभों पर स्थित है और छज्जा द्वारा बाहरी रूप से संरक्षित है। इसके बंद पश्चिमी खाड़ी के घर गजनीन गेट, बाबर की बावली और इसके नीचे एक कुँआ स्थित है।
जहाँगीर के न्याय की श्रृंखला
यह वह स्थान है जहाँ मुगल राजा जहाँगीर ने 1605 ई. में अपनी न्याय की श्रृंखला (जंजीर-ए-अदल) को स्थापित किया था। उन्होंने अपने संस्मरण में लिखा है कि उनके अभिगमन के बाद पहला आदेश उन्होंने दिया नयाय की श्रृंखला के बन्धन के लिए था ताकि न्याय के प्रशासन में लगा कोई भी व्यक्ति देरी या पाखंड का अभ्यास करें तो आफत आ सकती है। इस घंटे को हिलाएं ताकि इसका शोर मेरा ध्यान आकर्षित कर सके। यह शुद्ध सोने से बना था। इसकी लंबाई 80 फीट थी और इसमें 60 घंटियाँ थीं। इसका वनज एवं क्विंटल था। एक छोर को शाह.बुर्ज की लड़ाई के लिए और दूसरे को नदी के किनारे एक पत्थर की चौकी पर रखा गया था। विलियम हॉकिन्स जैसे समकालीन विदेशी यात्रियों ने व्यक्तिगत रूप से इसे देखा। यह 1620 में बनाई गई एक समकालीन पेंटिंग में भी चित्रित किया गया है। यह उन लोगों की शिकायतों का निवारण करने का एक तरीका था जो राजा साम्राज्य के सर्वोच्च न्यायिक अधिकार सीधे बिना शुल्क, भय या औपचारिकता के तत्काल राहत के लिए संपर्क कर सकते थे। फरियाद सुनने में जाति , धर्म या गरीब और अमीर के बीच कोई भेद नहीं था।
गजनन गेट
यह गेट मूल रूप से गजनी में महमूद गजनवी की कब्र से संबंधित था। इसे वहां से अंग्रेजों द्वारा 1842 ई. में लाया गया था। ऐतिहासिक उद्घोषणा में गवर्नर जनरल लॉर्ड एलेनबोरो ने दावा किया कि ये सोमनाथ के चंदन द्वार थे जिन्हें महमूद ने 1025 ई. में गजनी ले जाया था और अंग्रेजों ने 800 साल पहले के अपमान का बदला लिया था। यह द्वार वास्तव में गजनी की स्थानीय देवदार की लकड़ी से बना है। ऊपरी हिस्से पर नक्काशीदार एक अरबी शिलालेख भी है। इसमें महमूद के बारे में उल्लेख है। सर जॉन मार्शल ने यहां एक नोटिस-बोर्ड लगाया था जिसमें इस गेट के बारे में पूरे प्रकरण का वर्णन था। यह 16’5 फीट ऊँचा और 13 ’5 फीट चोड़ा है। यह ज्यामितीय हेक्सागोनल और अष्टकोणीय पैनलों से बना है और एक कमरे में संग्रहीत है।
जहाँगीर का हौज
जहाँगीर का हौज अखंड टैंक का इस्तेमाल 1610 ई. में नहाने के लिए किया जाता था। यह 5 फीट ऊंचाए 8 फीट व्यास और 25 फीट की परिधि में है। बाहरी हिस्से में फारसी में एक शिलालेख है जिसमें हौज-ए-जहाँगीर का उल्लेख है। इसकी खोज सबसे पहले अकबर के महल के प्रांगण के पास की गई थी। बाद में 1843 ई. में इसे दीवान--ए-आम के सामने रखा गया, जहां इसे बहुत नुकसान हुआ। बाद में सर जॉन मार्शल ने इसे आगरा के किले में वापस लाया और वहां रखा। इस हौज के कारण महल जहाँगीरी महल के रूप में प्रसिद्ध हो गया। हालांकि यह अकबर के बंगाली महल का हिस्सा है।
नगीना मस्जिद
नगीना मस्जिद को शाहजहाँ ने एक ऐसे स्थान के रूप में बनवाया था जहाँ जाकर निजी रूप से अपनी धार्मिकता, आध्यात्मिकता, पूजाअर्चना की जा सके। अपनी वास्तुकला के लिए चर्चित यह मस्जिद आकर्षक संगमरमर से बनी है जिसकी सादगी पूर्ण अपार सुंदरता आपको निशब्द कर देगी। यह मस्जिद 10’21 मीटर चौड़ा व 7’39 मीटर गहरी है। इसे खासतौर पर शाही घराने की महिलाओं के लिए बनाया गया था।
अंगूरी बाग
अंगूरी बाग के 85 वर्ग मीटर ज्यामितिय प्रबंधित क्षेत्र में दीवान-ए-आम में मयूर सिंहासन या तख्ते ताउस स्थापित था। इसका प्रयोग आम जनता से बात करने और उनकी फरयाद सुनने के लिये होता था। दीवान-ए-खास का प्रयोग और उसके उच्च पदाधिकारियों की गोष्ठी और मंत्रणा के लिये किया जाता था। जहाँगीर का काला सिंहासन इसकी विशेषता थी।
स्वर्ण मंडप
गाली झोंपड़ी के आकार की छतों वाले सुंदर मंडप जहाँगीरी महल अकबर द्वारा अपने पुत्र जहाँगीर के लिये निर्मित कराया, मछली भवन-तालाबों और फव्वारों से सुसज्जित अन्तःपुर जनानखाना के उत्सवों के लिये बड़ा घेरा, नौबत खाना- जहाँ राजा के संगीतज्ञ वाद्ययंत्र बजाते थे, एवं रंग महल- जहाँ राजा की पत्नी और उपपत्नी रहती थी किले के अन्य दर्शनीय स्थल हैं।
इतिहास
आगरा के लाल किले को 1983 ई. में यूनेस्को ने विश्व विरासत स्थल की सूची में शामिल किया गया। यमुना किनारे स्थित आगरे के लाल किले का निर्माण मुगल बादशाह अकबर ने 1565 ई. में कराया था। आगरे का लाल किला 380,000 वर्ग मीटर अर्थात 94 एकड़ में अर्धवार्ताकार रूप में फैला हुआ है। यह मूलतः एक ईंटों का किला था जो सिकरवार वंश के पास था। किले का प्रथम विवरण 1080 ई. में आता है, जब महमूद गजनवी की सेना ने इस पर कब्जा किया था। सिकंदर लोदी (1487-1517) दिल्ली सल्तनत का प्रथम सुल्तान था जिसने आगरा की यात्रा की तथा इसने 1504 ई. में इस किले की मरम्म्त करवायी और वह इस किले में रहा था। सिकंदर लोदी ने इसे 1506 ई. इसे अपनी राजधानी बनाया और यहीं से देश पर शासन किया। उसकी मृत्यु भी इसी किले में हुई थी। बाद में उसके पुत्र इब्राहिम लोदी ने नौ वर्षों तक यहाँ राज्य किया। वह पानीपत के प्रथम युद्ध 1526 ई. में मारा गया। उसने अपने कार्यकाल में यहां कई स्थान, मस्जिदें व कुएं बनवायें। पानीपत के बाद मुगलों ने इस किले पर एवं अगाध सम्पत्ति पर कब्जा कर लिया। इस एक हीरा भी था जो कि बाद में कोहिनूर हीरा के नाम से प्रसिद्ध हुआ। इब्राहिम के बाद यहाँ बाबर आया। उसने यहां एक बावली बनवायी। सन् 1530 ई. में यहीं हुमायूं का राजतिलक भी किया गया। हुमायुं इसी वर्ष बिलग्राम युद्ध में शेरशाह सूरी से हार गया व किले पर शेरशाह का कब्जा हो गया। इस किले पर अफगानों का कब्जा पांच वर्षों तक रहा, जिन्हें अन्ततः मुगलों ने 1556 ई. में पानीपत के द्वितीय युद्ध में हरा दिया। इस की केन्द्रीय स्थिति को देखते हुए अकबर ने इसे अपनी राजधानी बनाना निश्चित किया व सन् 1558 ई. में यहां आ गया। उस समय के इतिहासकार अबुल फजल ने लिखा है कि यह किला एक ईंटों का किला था, जिसका नाम बादलगढ़ था। यह तब खस्ता हालत में था और अकबर को इसे दोबारा बनवाना पड़ा, जिसका निर्माण उसने लाल बलुआ पत्थरों से करवाया। बड़े वास्तुकारों ने इसकी नींव रखी। इसे अंदर से ईंटों से बनवाया गया एवं बाहरी आवरण हेतु लाल बलुआ पत्थर लगवाया गया। किले के निर्माण में चौदह लाख चवालीस हजार कारीगर व मजदूरों लगे जिन्होंने आठ वर्षों तक कार्य किया एवं 1573 ई. में यह बन कर तैयार हुआ।
अकबर के पौत्र शाहजहां ने इस स्थल को वर्तमान स्वरूप प्रदान किया। उसने किले के निर्माण के समय कई पुरानी इमारतों व भवनों को तुड़वा भी दिया, जिससे कि किले में उसकी बनवायी इमारतें हैं। अपने जीवन के अंतिम दिनों में शाहजहां को उसके पुत्र औरंगजेब ने इसी किले में बंदी बना दिया था। शाहजहां की मृत्यु किले के मुसम्मन बुर्ज में ताजमहल को देखेते हुए हुई थी।
यह किला 1857 ई. का प्रथम भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के समय युद्ध स्थली भी बना। इसके बाद भारत से ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी का राज्य समाप्त हुआ एवं लगभग शताब्दी तक ब्रिटेन का सीधे शासन चला। जिसके बाद सीधे स्वतंत्रता ही मिली।
लोकप्रियता
आगरा किले को 2004 में वास्तुकला के लिए आगा खान पुरस्कार दिया गया। इंडिया पोस्टल विभाग ने इस कार्यक्रम को मनाने के लिए एक डाक टिकट जारी किया। सर आर्थर कॉनन डॉयल द्वारा आगरा किला शेरलॉक होम्स रहस्य द साइन ऑफ द फार में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। मिस्त्र के पॉप स्टार हिशम अब्बास के एक हिट गीत, हबीबी दा के लिए संगीत वीडियो में आगरा किले को चित्रित किया गया था। शिवाजी 1666 में पुरन्दर की संधि के अनुसार आगरा आए और उन्होंने मिर्जा राजा जयसिंह के साथ दीवान-ए-खास में औरंगजेब से मुलाकात की। प्रतिवर्ष लाखों पर्यटक ऐतिहासिक किले को देखने आते हैं।
आगरा किले के सबसे पास स्थित रेलवे स्टेशन आगरा फोर्ट है। इसके अलावा आगरा के किसी भी रेलवे स्टेशन पर उतरकर यहाँ पहुँचा जा सकता है। देश के सभी प्रमुख पर्यटक स्थलों से आगरा बस, रेल एवं हवाई सेवाएं उपलब्ध हैं।
डॉ. प्रभात कुमार सिंघल
लेखक एवं पत्रकार