अग्नीपथ योजना चुनाव में बनी अहम मुद्दा, सरकार गठन से पहले ही साथी दलों ने उठाई समीक्षा करने की मांग

By रितिका कमठान | Jun 06, 2024

18वें लोकसभा चुनावों के दौरान अग्निपथ योजना एक अहम मुद्दा बनी रही। सेना में भर्ती की ये नई स्कीम लगातार चर्चा में बनी रही। कांग्रेस ने घोषणा पत्र में दावा किया था कि सत्ता में आने पर अग्नीपथ स्कीम को ही हटा दिया जाएगा। इसकी जगह कांग्रेस ने नई योजना लाने का वादा भी किया था। चुनावों के दौरान इस योजना को लेकर मोदी सरकार पर राहुल गांधी भी हमलावर रहे थे। 

माना जा रहा है कि एनडीए को हरियाणा, राजस्थान, पंजाब और यूपी जैसे राज्यों में कम सीटें मिली है जिसका प्रमुख कारण अग्नीपथ योजना भी रही है। इसे लेकर युवाओं में काफी नाराजगी देखने को मिल रही है। वर्ष 2019 के मुकाबले वोट शेयर में भी गिरावट आई है। वहीं इस योजना के विरोध में सरकार के गठन से पहले ही एनडीए का समर्थन कर रहे दलों ने बोलना शुरू कर दिया है। ऐसे में संभावना है कि आने वाले समय में केंद्र सरकार को इस योजना पर पुनर्विचार करना पड़ सकता है।

वर्ष 2022 में संसद में मोदी सरकार ने अग्निपथ योजना को लागू किया था, जिसके बाद युवाओं की नाराजगी का सामना उसे करना पड़ा था। इस योजना का विरोध उन युवाओं ने किया था जो सेना में भर्ती होने के लिए आवेदन कर रहे थे। इस योजना के विरोध में काफी प्रदर्शन किए गए थे मगर सरकार ने इस योजना को वापस नहीं लिया था। वहीं इस योजना को विधानसभा चुनाव और लोकसभा चुनाव में मुद्दा भी बनाया गया। कांग्रेस पार्टी ने अपने घोषणा पत्र में भी वादा किया था कि इस योजना को सत्ता में आने पर हटाया जाएगा।

जदयू ने किया अग्नीपथ की समीक्षा का समर्थन
राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) के महत्वपूर्ण घटक दल जनता दल (युनाइटेड) ने केंद्र में सरकार गठन को लेकर भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की ओर से की जा रही कवायदों के बीच सेना में भर्ती की ‘अग्निपथ’ योजना की समीक्षा करने की मांग उठाई है। इस संबंध में जदयू नेता केसी त्यागी ने कहा कि अग्निपथ योजना से मतदाता काफी नाराज थे। हमारी पार्टी की सोच है कि योजना की कमियों और खामियों को दूर किया जाना चाहिए। 

बता दें कि इस योजना के समर्थन में चुनाव के दौरान अमित शाह ने कहा था कि युवाओं के लिए ‘अग्निपथ’ से अधिक आकर्षक कोई योजना हो ही नहीं सकती, क्योंकि यह चार साल के बाद सेवानिवृत्त होने वाले ‘अग्निवीरों’ के लिए सशस्त्र बलों में पूर्णकालिक सरकारी नौकरी की गारंटी देती है। शाह ने कहा था कि उन्हें कांग्रेस नेता राहुल गांधी पर तरस आता है, जिन्होंने ‘इंडिया’ गठबंधन के सत्ता में आने पर इस अल्पकालिक भर्ती योजना को खत्म करने का वादा किया है। 

शाह ने दावा किया कि चार साल के कार्यकाल के बाद सेवानिवृत्त होने वालों के लिए नौकरी के अवसर उनकी संख्या से साढ़े सात गुना अधिक होंगे, क्योंकि उनके लिए विभिन्न राज्य पुलिस बलों और केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बलों (सीएपीएफ) में आरक्षण की व्यवस्था की गई है। बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश के राजनीतिक सलाहकार और पार्टी के राष्ट्रीय प्रवक्ता त्यागी ने हालांकि यह स्पष्ट किया कि उनकी पार्टी समान नागरिक संहिता (यूसीसी) के खिलाफ नहीं है। भाजपा ने अपने चुनावी घोषणापत्र में सत्ता में आने पर यूसीसी लागू करने का वादा किया है। त्यागी ने कहा, ‘‘यूसीसी पर पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष होने के नाते मुख्यमंत्री (नीतीश कुमार) विधि आयोग के अध्यक्ष को चिट्ठी लिख चुके हैं। हम इसके विरुद्ध नहीं हैं। लेकिन जितने भी हितधारक हैं, चाहे मुख्यमंत्री हों, विभिन्न राजनीतिक दल हों या समुदाय हों, सबसे बात करके ही इसका हल निकाला जाना चाहिए। जाति आधारित जनगणना के सवाल पर जद(यू) नेता ने कहा कि देश में किसी भी पार्टी ने इसके विरोध में नहीं कहा है। 

उन्होंने कहा, ‘‘इस मामले में बिहार ने रास्ता दिखाया है। प्रधानमंत्री ने भी सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल में इसका विरोध नहीं किया। जाति आधारित जनगणना समय की मांग है। हम इसे आगे बढ़ाएंगे।’’ एक अन्य सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि जद (यू) ने राजग को बिना शर्त समर्थन दिया है लेकिन बिहार को विशेष राज्य के दर्जे की मांग ‘हमारे दिल’ में है। जद (यू) के वरिष्ठ नेता का ये बयान बुधवार को राजग की बैठक के एक दिन बाद आया है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को इस बैठक में सर्वसम्मति से राजग का नेता चुना गया था। राजग ने लोकसभा चुनाव में 293 सीटें जीती हैं जो 543 सदस्यीय सदन में बहुमत के 272 के आंकड़े से अधिक हैं। इससे मोदी के लगातार तीसरी बार प्रधानमंत्री पद की शपथ लेने का मार्ग प्रशस्त हुआ। संख्या के लिहाज से चंद्रबाबू नायडू नीत तेलुगू देशम पार्टी (तेदेपा) के बाद जद (यू) राजग का तीसरा सबसे बड़ा घटक है। तेदेपा ने इस चुनाव में 16 जबकि जबकि जद (यू) ने 12 सीटों पर जीत दर्ज की है।

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