अमेरिका और रूस के बीच यूक्रेन को लेकर तनाव अपने चरम पर है। रूस के पौने दो लाख सैनिक यूक्रेन के बाहर तंबू लगाकर खड़े हो गए और देखते ही देखते राजधानी कीव पर चढ़ाई भी कर दी। द्वितीय विश्व युद्ध के बाद से यूरोप में लड़ाकू सेना का सबसे बड़ा जमावड़ा है। बदले में अमेरिका और उसके सहयोगी देशों ने रूस पर प्रतिबंधों की झड़ी लगा दी है। लेकिन पुतिन इस बार पूरे आर-पार के मूड में दिख रहे हैं। वहीं संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में यूक्रेन पर हमले को लेकर रूस के खिलाफ प्रस्ताव लाया गया। एक तरफ जहां भारत, चीन और यूएई ने रूस के खिलाफ प्रस्ताव पर वोटिंग से किनारा किया तो वहीं इस प्रस्ताव पर अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस, नार्वे, आयरलैंड, अल्बानिया, गबोन, मैक्सिको, ब्राजील, घाना और केन्या जैसे देशों ने अपनी मुहर लगाई।
पुतिन के नाराजगी की वजह
1990 में पश्चिम जर्मनी और पूर्वी जर्मनी का विलय हो गया। माना जाता है कि इस विलय के समय मौखिक समझौता हुआ था कि नाटो अपना विस्तार पूर्वी यूरोप में नहीं करेगा, लेकिन पश्चिमी देशों ने यह वादा नहीं निभाया। 1999 में पोलैंड, हंगरी और चेक रिपब्लिक नाटो में शामिल हो गए। नाटो ने रूस को बड़ा झटका 2002 में दिया। जब सोवियत संघ के सदस्य रहे लिथुआनिया, लातविया और ऍस्तोनिया जैसे पांच देश नाटो में शामिल हो गए। अब जब नाटो ने यूक्रेन के जरिये रूस के दरवाजे पर दस्तक देने की योजना बनाई तो पुतिन ने यूक्रेन पर हमला ही कर दिया।
कोल्ड वॉर 2 की वापसी
रूस के राष्ट्रपति की ओर से युद्ध के ऐलान के बाद सबसे ज्यादा चर्चा विश्व युद्ध को लेकर हो रही है। पूरे विश्व के दो भागों में बंटने के अनुमान लगाए जा रहे हैं। आज के समय जितने खतरनाक हथियार तमाम देशों के पास हैं, उतने पहले और दूसरे युद्ध के समय के नहीं थे। ऐसे में हालात बहुत गंभीर हो सकते हैं। अमेरिका और सोवियत संघ के बीच 80 और 90 के दशक से पहले भी कई दशकों तक कोल्ड वॉर चला। अस्सी के दशक और आज के हालात पूरी तरह अलग हैं। तब विश्व पूरी तरह दो धड़ों में बंटा था और अमेरिका-रूस के इर्द-गिर्द दुनिया घूम रही थी। तब चीन की इतनी ताकत नहीं थी तब और अब में कई देशों के समीकरण भी पूरी तरह से बदल चुके हैं। इस बार रूस उस कोल्ड वॉर का बदला भी लेना चाहता है।
विरोधी की सेना को नष्ट करना लेकिन वास्तविक विजय से दूर
पुतिन अपने अब तक के लाभ से संतुष्ट होंगे। कुछ लोग पूर्वी यूक्रेन में अलग हुए क्षेत्रों डोनेट्स्क और लुहान्स्क को रूस की मान्यता को उन पश्चिमी नेताओं के लिए एक अग्रिम चेतावनी के रूप में मानते हैं जिन्होंने रूसी सुरक्षा चिंताओं को बार-बार नजरअंदाज किया है। एक अन्य दृष्टिकोण से पता चलता है कि पुतिन उसी हाइब्रिड रणनीति का चयन करेंगे जैसी जॉर्जिया के साथ 2008 के युद्ध में रूस ने अपनाई थी : बल प्रयोग करने की धमकी देना, अलग होने वाले क्षेत्रों को मान्यता देना और अपने विरोधी की सेना को नष्ट करना - लेकिन वास्तविक विजय से दूर रहना।
पूरी दुनिया पर आर्थिक नजरिए से असर
नाटो 12 देशों से शुरू हुआ था। एक तरह से आज उसमें 65 देश जुड़े हैं जो कुल मिलाकर देश के सैन्य बलों का 57% हैं। इनकी शक्ति बहुत प्रभावी है। रूस को लगता है कि उसे नाटो ने चारों तरफ से घेर लिया है इसलिए जो उससे हो पाएगा, वह करेगा। यूक्रेन की सीमाओं पर उनकी विशाल सेना(रूस की कुल युद्ध शक्ति का लगभग 60%) का जमावड़ा रूस पर नाटो और संभावित पश्चिमी आक्रमण पर उनकी चिंताओं को कम करता है। उन्होंने यह भी आदेश दिया है कि बेलारूस में 30,000 रूसी सैन्यकर्मी अनिश्चितकाल तक रहेंगे, यह सुनिश्चित करते हुए कि मिन्स्क भी मास्को से कसकर बंधे रहे। यह प्रभावी रूप से नए क्षेत्र को जोड़ता है जहां पुतिन सैन्य बलों और यहां तक कि संभावित परमाणु हथियारों को तैनात कर सकते हैं। पुतिन ने आर्थिक जोखिमों की गणना की है। लेकिन इसका पूरी दुनिया पर आर्थिक नजरिए से असर होगा। पहले कोल्ड वॉर में प्रॉक्सी वॉर होता था लेकिन आज सीधी लड़ाई है।
- अभिनय आकाश