लीजिए, जम्मू-कश्मीर में एक और आतंकवादी हमला हो गया, जिसमें आधा दर्जन से अधिक लोग मारे गए। यह नृशंस वारदात किसकी शह पर हुई और किसकी नीतिगत लापरवाही से हुई, यह पुनः विमर्श का विषय है! क्योंकि हमारे देश में ऐसी घटनाएं आए दिन की बात हो चली हैं और राष्ट्र के किसी न किसी हिस्से में घटित होती रहती हैं। आखिर इस घटना के क्या मायने हैं, इस पर विचार करने से पहले एक सुलगता हुआ सवाल मेरे मनमस्तिष्क में कौंध रहा है कि आखिरकार 'खूनी होते जा रहे लोकतंत्र' और इसको 'संरक्षित करने वाले संवैधानिक तंत्र' के पास ऐसी वहशी वारदातों को रोकने के लिए अबतक कोई स्थायी मूलमंत्र क्यों नहीं मिला है?
आखिर कब तक ऐसी अप्रत्याशित घटनाओं के खात्मे होंगे और इसे प्रोत्साहित करने वाले लोगों और उन्हें रोकने में लापरवाही बरतने वाले जिम्मेदार लोगों पर ठोस कार्रवाई कबतक सुनिश्चित की जाएगी, ताकि ऐसी वारदातों पर पूर्ण विराम लग सके! यदि नहीं, तो क्यों नहीं? आम जनता को जवाब चाहिए। क्योंकि इस बद से बदतर स्थिति के लिए हमारी राजनीति और उसके इशारे पर थिरकने वाला प्रशासन भी कहीं न कहीं जिम्मेदार अवश्य है। बस इसके न्यायसंगत पड़ताल की जरूरत है, जो बीते कई दशकों से नहीं हो पा रही है!
उल्लेखनीय है कि जम्मू-कश्मीर के गांदरबल जिले में आतंकियों ने एक और कायराना हमला करते हुए 7 मेहनतकश लोगों की उस वक्त जान ले ली, जब वो खाना खाने के लिए मेस में बैठे हुए थे। इस आतंकी वारदात में मरने वालों में एक स्थानीय डॉक्टर और टनल निर्माण में लगे 6 कर्मचारी भी शामिल हैं, जिनमें से 5 लोग बाहरी राज्यों से थे। उनमें 2 अधिकारी वर्ग के और 3 श्रमिक वर्ग के थे। वहीं, इस नृशंस हमले में 5 अन्य कर्मचारी गंभीर रूप से घायल हो गए हैं, जिन्हें इलाज के लिए श्रीनगर के शेर-ए-कश्मीर इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज में भर्ती कराया गया है।
प्राप्त जानकारी के मुताबिक, यह हमला सोनमर्ग इलाके में हुआ और घटना के बाद सुरक्षाबलों ने जम्मू-कश्मीर पुलिस के साथ मिलकर इलाके में सर्च ऑपरेशन शुरू कर दिया है।
जम्मू-कश्मीर के गांदरबल जिले में हुए आतंकी हमले में 6 लोगों की मौके पर ही मौत हो गई, जबकि एक अन्य व्यक्ति ने अस्पताल ले जाते समय रास्ते में दम तोड़ दिया। यह हमला रात करीब 8:30 बजे हुआ, जब सभी कर्मचारी खाना खाने के लिए मेस में एकत्र हुए थे। चश्मदीदों के मुताबिक, जब कर्मचारी मेस में भोजन कर रहे थे, तभी 3 आतंकी वहां पहुंचे और अचानक गोलीबारी शुरू कर दी। इससे पहले कि कोई प्रतिक्रिया कर पाता, आतंकी हमला करके वहां से फरार हो गए। इस गोलीबारी में दो वाहन भी आग की चपेट में आकर जलकर खाक हो गए। खबरों के अनुसार, इस हमले की जिम्मेदारी लश्कर-ए-तैयबा से जुड़े संगठन ‘द रेजिस्टेंस फ्रंट’ (TRF) ने ली है। जिसकी अविलंब कमर तोड़ देनी चाहिए।
मसलन, प्रारंभिक जांच में यह तथ्य सामने आया है कि जिन श्रमिकों पर हमला हुआ, वे जेड मोड़ सुरंग परियोजना में काम कर रहे थे, जो गगनगीर घाटी को सोनमर्ग से जोड़ने वाली एक सुरंग है। इसका निर्माण उत्तर प्रदेश की एप्को नामक कंपनी द्वारा किया जा रहा है और इसे 2025 तक पूरा करने का लक्ष्य रखा गया है, जिसके चलते वहां तेजी से काम चल रहा था।
सवाल है कि जब धारा 370 के हटने के बाद जम्मू-कश्मीर में हाल ही में नई सरकार का गठन हुआ है और नेशनल कांफ्रेंस के चीफ उमर अब्दुल्ला ने घाटी में सरकार बनाई है, तब यह बड़ा सवाल है कि आखिर में आतंकियों के असल निशाने पर क्या था? क्योंकि नई सरकार बनने के बाद जम्मू-कश्मीर में यह पहली आतंकी वारदात हुई है। वहीं, दूसरा सवाल यह है कि क्या आतंकियों के निशाने पर घाटी के विकास कार्यों को रोकना है? यदि ऐसा है तो यह बेहद खौफनाक है। मेरा स्पष्ट मानना है कि घाटी के विकास को परवान चढ़ा रहे मजदूरों को निशाना बनाकर आतंकियों ने बड़ी कायरता और मूर्खता का परिचय दिया है।
सवाल है कि जम्मू-कश्मीर में धारा 370 हटाए जाने के बाद यह पहला ऐसा मौका है जब विकास की परियोजना पर आतंकियों ने सीधे हमला किया है। जिस टनल के लिए यह मजदूर काम कर रहे थे वो भारत सरकार के महत्वाकांक्षी प्रोजेक्ट में से एक है। इस साल कश्मीर में टीआरएफ का ये पहला बड़ा हमला है। इससे पहले इस साल जम्मू में इस संगठन ने आतंकी हमले को अंजाम दिया। भले ही केंद्रीय गृह सचिव ने इस आतंकी हमले की जानकारी जम्मू कश्मीर डीजीपी से ली और आतंकियों के खिलाफ चल रहे काउंटर ऑपरेशन का भी ब्योरा लिया।
जानकारों का कहना है कि इस साल जितने भी बड़े आतंकी हमले हुए हैं, वह जम्मू में हुए हैं। लेकिन यह पहली बार है जब कश्मीर में इस साल इतना बड़ा आतंकी हमला हुआ है।
वहीं, पहली बार ऐसा हुआ है कि स्थानीय (लोकल) और बाहरी (नॉन लोकल) दोनों को टारगेट किया गया है। इससे साफ है कि विकास परियोजनाओं में शामिल लोगों के हौसले को पस्त करने की खौफनाक रणनीति अब आतंकी संगठन भी अपना रहे हैं, जिसका मुंहतोड़ जवाब देने की जरूरत है। क्योंकि गांदरबल में जिस टनल के पास यह आतंकी हमला हुआ है, वह आल वेदर रोड है, जिसका निर्माण पिछले कुछ सालों से चल रहा है। यह रोड़ सीधे गांदेरबल से सोनमर्ग और वहां से लेह को कनेक्ट करता है।
एक सुलगता हुआ सवाल यह भी है कि जम्मू-कश्मीर में उमर अब्दुल्ला की सरकार के गठन के महज चार दिनों के बाद ही आतंकवादियों ने मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला के ही विधानसभा क्षेत्र गांदरबल में इतना बड़ा आतंकी हमला क्यों बोला है और इसके जरिए आतंकियों ने क्या संदेश देने की जुर्रत की है। क्योंकि जम्मू-कश्मीर में विधानसभा चुनाव के नतीजे के ऐलान और नेशनल कॉन्फ्रेंस के उमर अब्दुल्ला के नेतृत्व में सरकार गठन के मात्र चार दिनों के अंदर आतंकियों ने गांदरबल में आतंकी हमला बोला है। जहां उन्होंने गुंड इलाके में सुरंग के निर्माण पर काम कर रही एक निजी कंपनी के लोगों पर ताबड़तोड़ गोलियां चलाई।
दरअसल, यह आतंकी हमला सियासी रूप से भी काफी अहम है। क्योंकि जिस इलाके में यह हमला हुआ है, वह सीएम उमर अब्दुल्ला के विधानसभा क्षेत्र गांदरबल के अधीन आता है और यहां से उमर अब्दुल्ला ने जीत हासिल की है। विधानसभा चुनाव में उमर अब्दुल्ला की पार्टी ने बहुमत हासिल कर सरकार का गठन किया है। क्या 370 की बहाली पर चुप्पी साधकर और जम्मू-कश्मीर को राज्य का दर्जा दिलवाए जानें की सीएम उमर की रणनीति से आतंकवादी नाखुश हैं, क्योंकि जम्मूकश्मीर को पूर्ण राज्य का दर्जा दिए जाने के उमर कैबिनेट के प्रस्ताव को अब LG की मंजूरी का इंतजार है, जो देर-सबेर मिल ही जाएगी।
समझा जा रहा है कि चूंकि जम्मू-कश्मीर में सरकार गठन के बाद उमर अब्दुल्ला लगातार जम्मू-कश्मीर के लोगों की बात कर रहे हैं। उन्होंने लोगों के चेहरों पर मुस्कान लाने का वादा किया है। वो जम्मू और कश्मीर दोनों संभागों को साथ लेकर चलने की बात कर रहे हैं। साथ ही वह कश्मीर से विस्थापित हुए पंडितों की बात कर रहे हैं। इसलिए आतंकी आका उनकी इस नई चाल से परेशान हैं। जम्मू कश्मीर की सरकार के गठन के बाद कैबिनेट ने जम्मू-कश्मीर को पूर्ण राज्य का दर्जा देने के प्रस्ताव भी पारित किया है और उसे उपराज्यपाल मनोज सिन्हा ने मंजूरी भी दे दी है। इस तरह से पूर्ण राज्य के दर्जे की मांग की प्रक्रिया शुरू हो गई है और अब इस पर केंद्र सरकार को फैसला लेना है और लोकसभा और राज्यसभा में संशोधन विधेयक लाकर इसको अमलीजामा पहनाना बाकी है। केंद्र सरकार पहले ही पूर्ण राज्य के दर्जे की बात कह चुकी है।
वहीं, उमर अब्दुल्ला जम्मू-कश्मीर में शांति-अमल और विकास की बात कर रहे हैं, जिससे आतंकी बखौलाए हुए हैं। पहले जिस तरह से जम्मू-कश्मीर में तीन चरणों में शांतिपूर्ण तरीके से चुनाव हुए और लोगों ने बढ़-चढ़कर मतदान में हिस्सा लिया है, और अब सरकार भी बन गई है, इससे आतंकियों के मंसूबे ध्वस्त होते दिख रहे हैं और आतंकी इसी बौखलाहट में ताजा हमला किया है। उनकी मंशा साफ है कि वे सिर्फ दहशत पैदा करना चाहते हैं। इसलिए इस हमले की सीएम उमर अब्दुल्ला ने भी कड़े शब्दों में निंदा की और कहा कि वह पीड़ित परिवारों के साथ हैं।
समझा जा रहा है कि दूसरे राज्यों से आकर काम करने वाले, कश्मीरी पंडित और गैर मुस्लिम, सरकारी कर्मचारी और सेना के अधिकारी और गैर मुस्लिम आतंकियों के निशाने पर हैं और वे टारगेट किलिंग कर दहशत फैलाना चाहते हैं। अपनी इसी फितरत से आतंकी लगातार जम्मू-कश्मीर में अशांति पैदा करने की कोशिश कर रहे हैं और चुनकर लोगों को मार रहे हैं।
इससे पहले भी 16 अक्टूबर को शोपियां में एक युवक को आतंकियों ने गोली मार दी थी। वो लगातार गैर-कश्मीरी को निशाना बना रहे हैं। गत 22 अक्टूबर 2023 को आतंकियों ने राजौरी में एक घर पर फायरिंग कर 40 साल के मोहम्मद रज्जाक की हत्या कर दी थी। मृतक कुंडा टोपे शाहदरा शरीफ का निवासी था। मोहम्मद रज्जाक का भाई सेना में काम करता है। 19 साल पहले आतंकियों ने रज्जाक के पिता की हत्या कर दी थी। वे वेलफेयर डिपार्टमेंट में कार्यरत थे और रज्जाक को पिता की जगह नौकरी मिली थी।
इसी तरह से आतंकियों ने अप्रैल 24 में ही शोपियां जिले के पदपावन में गैर कश्मीरी ड्राइवर परमजीत सिंह की गोली मार कर हत्या कर दी थी। दिल्ली के रहने वाले परमजीत पर आतंकियों ने उस समय हमला बोला था, जब वह ड्यूटी पर तैनात थे। अप्रैल 24 में ही आतंकियों ने बिहार के एक प्रवासी शंकर शाह की गोली मार कर हत्या कर दी थी। इससे पहले फरवरी 24 में पंजाब के अमृतसर के दो युवकों अमृत पाल (31 वर्ष) और रोहित मसीह (25 वर्ष) को एके-47 राइफल से भून डाला था। हब्बा कदल इलाके में इस घटना को अंजाम दिया था।
यही वजह है कि इन आतंकी हमलों की चौतरफा निंदा भी हो रही है। खुद सीएम उमर अब्दुल्ला ने इस घटना की निंदा की है। वहीं, परिवहन एवं राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी ने रविवार को जम्मू-कश्मीर के गंदेरबल जिले में प्रवासी मजदूरों पर हुए आतंकी हमले की निंदा की है। उन्होंने कहा कि मैं जम्मू-कश्मीर के सोनमर्ग के गगनगीर में निर्दोष मजदूरों पर हुए भयानक आतंकी हमले की कड़ी निंदा करता हूं, जो एक महत्वपूर्ण बुनियादी ढांचा परियोजना में लगे हुए थे। उन्होंने शहीद मजदूरों को श्रद्धांजलि अर्पित की और घायलों को हर संभव मदद का आश्वासन दिया।
उधर, केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने भी आतंकी हमले की निंदा की और कहा कि जम्मू-कश्मीर के गगनगीर में नागरिकों पर हुआ नृशंस आतंकी हमला कायरतापूर्ण घृणित कृत्य है। जिसमें शामिल लोगों को बख्शा नहीं जाएगा और उन्हें हमारे सुरक्षा बलों की ओर से कड़ी से कड़ी प्रतिक्रिया का सामना करना पड़ेगा। वहीं, जम्मू-कश्मीर प्रदेश कांग्रेस कमेटी (जेकेपीसीसी) के अध्यक्ष तारिक हमीद कर्रा ने हमले पर गंभीर चिंता व्यक्त की और कहा कि ऐसी घटनाएं माहौल को खराब करेंगी। उन्होंने सरकार से निर्दोष मजदूरों पर इस तरह के क्रूर हमलों को रोकने के लिए तत्काल कदम उठाने का आग्रह भी किया।
इसलिए मेरा विचार है कि आतंकी, नक्सली और आपराधिक वारदातों में मारे जाने वाले शांतिप्रिय और मेहनतकश लोगों को भी 'अमर शहीद' का दर्जा दिया जाए। क्योंकि हमारी संवैधानिक, राजनीतिक, प्रशासनिक और न्यायिक नीतियों की सामूहिक विफलता/खामियों से उतपन्न अराजक परिस्थितियों के ही शिकार तो लोग हो रहे हैं, जिनके परिजनों को भी 'अमर शहीदों' की तरह सभी सुविधाएं प्राप्त करने का हक है। चूंकि ये सभी भारतीय नागरिक हैं, इसलिए उन्हें ये सुविधाएं मिलनी चाहिए। बेहतर होगा कि इसके लिए देश के तमाम धर्मस्थलों और सरकारी मुलाजिमों पर अधिशेष करारोपण किया जाए और इसके वास्ते एक स्थायी कोष बनाया जाए। धर्मस्थलों को मिल रहे अकूत दान का उपयोग ऐसे ही नैतिक कार्य के लिए किया जाए, तो यह अच्छा है, ताकि जनचेतना को एक नया विस्तार मिले और जिम्मेदारी भाव पनपे। क्योंकि लोगों में मनोमस्तिष्क में निरन्तर यह सवाल कौंध रहा है कि आखिर कबतक थमेंगे जम्मू-कश्मीर में हो रहे आतंकी हमले और यदि नहीं तो फिर सख्त उपाय क्यों नहीं अपनाते सरकारी मुलाजिम और उनके आका राजनेतागण? जवाब दीजिए!
- कमलेश पांडेय
वरिष्ठ पत्रकार व राजनीतिक विश्लेषक