Prabhasakshi NewsRoom: Work-Life Balance पर बोले Gautam Adani- 8 घंटे घर पर रहोगे तो बीवी भाग जायेगी

By नीरज कुमार दुबे | Jan 01, 2025

नया साल शुरू हो चुका है। नये साल में सभी के अपने नव-संकल्प हैं और उसे सिद्ध करने के लिए लोग प्रतिबद्ध भी दिख रहे हैं। लेकिन कोई भी संकल्प तभी सिद्ध हो सकता है जब कार्य-जीवन संतुलन सही हो। कार्य-जीवन संतुलन कैसा हो? इसकी सही परिभाषा क्या है? इन विषयों पर आजकल खूब चर्चा सुनने को मिलती है। इस चर्चा में नया बयान शामिल हुआ है प्रसिद्ध उद्योगपति गौतम अडाणी का। हम आपको बता दें कि गौतम अडाणी का एक हालिया वीडियो तेजी से वायरल हो रहा है जिसमें उन्होंने कहा है कि काम और व्यक्तिगत जीवन के बीच सामंजस्यपूर्ण संतुलन बनाना चाहिए।


अडाणी समूह के चेयरमैन गौतम अडाणी ने कहा है कि आपका कार्य जीवन संतुलन मुझ पर थोपा नहीं जाना चाहिए और न ही मेरा कार्य जीवन संतुलन आप पर थोपा जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि अगर कोई व्यक्ति अपने परिवार के साथ चार घंटे समय बिताकर खुश है या फिर कोई आठ घंटे समय बिता कर खुश है तो यह उनका संतुलन है। उन्होंने मजाक में कहा कि अगर आप आठ घंटे घर पर बिताते हैं तो आपकी बीबी भाग जाएगी। गौतम अडाणी ने साथ ही कहा कि व्यक्ति यह मान ले कि जीवन नश्वर है तो उसके लिए जीवन जीना भी मुश्किल हो जाता है।

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गौतम अडाणी ने अपने संबोधन में व्यक्तिगत पसंद के महत्व पर प्रकाश डालते हुए इस बात पर जोर दिया कि व्यक्तियों को यह निर्धारित करना चाहिए कि उन्हें किससे क्या खुशी मिलती है। उन्होंने कहा कि कार्य-जीवन संतुलन का असली सार आपसी खुशी में निहित है। उन्होंने कहा, "अगर इससे आपको खुशी मिलती है और दूसरा व्यक्ति भी खुश होता है, तो यही कार्य-जीवन संतुलन की सही परिभाषा है।" हम आपको बता दें कि गौतम अडाणी की टिप्पणी इंफोसिस के संस्थापक नारायण मूर्ति के 70 घंटे के कार्य सप्ताह वाली टिप्पणी के बाद शुरू हुई बहस के बाद आई है। नारायण मूर्ति ने युवा पीढ़ी से 70 घंटे के कार्य सप्ताह के लिए प्रतिबद्ध होने की वकालत की थी। मूर्ति अपने कॅरियर के दौरान प्रति सप्ताह 90 घंटे तक काम करने की बात कह चुके हैं। मूर्ति की टिप्पणियों को मिश्रित प्रतिक्रियाओं का सामना करना पड़ा था। जहां कुछ लोगों ने सामाजिक बेहतरी के प्रति उनके समर्पण की सराहना की थी वहीं अन्य ने इस सुझाव की आलोचना करते हुए इसे अव्यवहारिक और मानसिक स्वास्थ्य के लिए हानिकारक बताया था। ओला के सीईओ भाविश अग्रवाल द्वारा मूर्ति के विचारों का समर्थन करने पर भी ऑनलाइन प्रतिक्रिया देखी गयी थी।


देखा जाये तो कार्य-जीवन संतुलन के मुद्दे पर लोगों के अलग-अलग विचार हैं। पुरानी पीढ़ी अक्सर कड़ी मेहनत और लंबे समय तक काम करने को प्राथमिकता देती है जबकि युवा पेशेवर लचीलेपन, मानसिक स्वास्थ्य और प्रियजनों के साथ गुणवत्तापूर्ण समय को ज्यादा महत्व देते हैं। हालांकि अडाणी का दृष्टिकोण एक मध्य मार्ग प्रदान करता है, जो व्यक्तियों को सामाजिक मानदंडों के बजाय उनकी व्यक्तिगत परिस्थितियों के आधार पर संतुलन को परिभाषित करने के लिए प्रोत्साहित करता है।

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