By नीरज कुमार दुबे | Sep 10, 2019
30 मई, 2019 को प्रधानमंत्री पद की दोबारा कमान संभालने के बाद नरेंद्र मोदी ने अब तक सात विदेशी दौरे किये और इन दौरों के माध्यम से जहाँ पड़ोसी देशों के साथ सदैव खड़े रहने का संदेश दिया वहीं अमेरिका, फ्रांस, रूस आदि महाशक्तियों को वैश्विक मंचों पर भारत की बढ़ती भूमिका स्वीकारने का संकेत दिया। मात्र 100 दिनों में जिस तरह से भारतीय विदेश नीति को नयी दिशा दी गयी है यह उसी का प्रतिफल है कि आतंकवाद की फैक्ट्री पाकिस्तान आज पूरी दुनिया में अलग-थलग पड़ चुका है और मात्र चीन के अलावा उसके साथ कोई खड़ा नहीं नजर आ रहा है।
प्रधानमंत्री बनने के बाद मोदी सबसे पहले मालदीव और श्रीलंका गये। मुस्लिम बहुल देश मालदीव और बौद्ध बहुल श्रीलंका की यात्रा का एक महत्वपूर्ण संदेश चीन को भी देना था कि इस क्षेत्र में भारत ही शक्तिशाली है और अपने पड़ोसियों के सुख-दुख की चिंता भी करता है तथा उनकी मुश्किलों का हल भी निकालता है। पिछले दिनों मालदीव जिस आंतरिक राजनीतिक संकट और श्रीलंका जिस आतंकवादी घटना से मिले बड़े दर्द से गुजरा है, ऐसे कठिन समय में भारत ने अपने पड़ोसियों का हर तरह से पूरा साथ दिया। प्रधानमंत्री की इस यात्रा से भारत द्वारा ‘‘पड़ोस पहले’’ नीति को दिया जाने वाला महत्व भी प्रतिबिंबित होता है।
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प्रधानमंत्री की मालदीव यात्रा इस मायने में महत्वपूर्ण रही कि इस यात्रा के दौरान देश के सर्वोच्च सम्मान ‘रूल ऑफ निशान इज्जुद्दीन’ से मोदी को सम्मानित किया गया। प्रधानमंत्री मोदी ने मालदीव की संसद ‘मजलिस’ को भी संबोधित किया जो कि पड़ोस में भारत को दिये जाने वाले महत्व का एक संकेत है। मोदी की यात्रा के दौरान भारत और मालदीव ने रक्षा और समुद्री सुरक्षा जैसे प्रमुख क्षेत्रों में द्विपक्षीय सहयोग को मजबूत करने के लिए छह समझौतों पर हस्ताक्षर किये। मोदी और मालदीव के राष्ट्रपति इब्राहिम मोहम्मद सोलेह ने एक तटीय निगरानी राडार प्रणाली और मालदीव के रक्षा बलों के लिए एक समग्र प्रशिक्षण केंद्र का संयुक्त तौर पर उद्घाटन भी किया। सम्पर्क बढ़ाने के तहत भारत और मालदीव केरल के कोच्चि से मालदीव के लिए एक ‘नौका सेवा’ शुरू करने पर सहमत हुए हैं जिससे एक बड़े वर्ग को लाभ होगा।
श्रीलंका में तो प्रधानमंत्री रानिल विक्रमसिंघे मोदी के स्वागत के लिए एअरपोर्ट पहुँचे और उनकी पूरी यात्रा के समय उनके साथ ही मौजूद रहे। राष्ट्रपति मैत्रीपाला सिरिसेना के साथ भी उनकी मुलाकात काफी अच्छी रही और दोनों नेता इस बात पर सहमत हुए कि आतंकवाद संयुक्त खतरा है और इसके खिलाफ संयुक्त कार्रवाई की जरूरत है। प्रधानमंत्री मोदी जब श्रीलंका के राष्ट्रपति आवास पहुँचे उस दौरान बारिश हो रही थी। यह देख श्रीलंका के राष्ट्रपति मैत्रीपाला सिरिसेना हाथ में छाता लेकर सामने आये और वह खुद को तथा प्रधानमंत्री मोदी को बारिश से बचा रहे थे। भारत के प्रधानमंत्री का श्रीलंका के लिए क्या महत्व है यह इसी बात से पता लग जाता है कि मोदी के सम्मान में दिये गये दोपहर भोज के दौरान पूरी श्रीलंका कैबिनेट मौजूद थी, जिनको प्रधानमंत्री ने संबोधित किया। इसके अलावा श्रीलंका के सभी नौ राज्यों के मुख्यमंत्री भी मोदी से मिले। श्रीलंका में भी सबका साथ... के नारे पर आगे बढ़ते हुए प्रधानमंत्री ने विपक्ष के नेता महिंदा राजपक्षे और कुछ तमिल संगठनों के प्रतिनिधियों से मुलाकात की।
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मोदी की किर्गिस्तान की यात्रा इसलिए महत्वपूर्ण रही क्योंकि यहाँ भारत को शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) शिखर सम्मेलन में हिस्सा लेना था। इस बैठक में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आतंकवाद का मुद्दा बड़ी प्रमुखता के साथ उठाया और इस मंच के सदस्य देशों को यह बात समझाने में सफल रहे कि आतंकवाद की फैक्ट्री बन चुके देशों पर लगाम लगाने की जरूरत है। खास बात यह रही कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान की उपस्थिति में आतंकवाद के मुद्दे को इतनी प्रखरता के साथ उठाया। यह भारत की एक बड़ी कूटनीतिक सफलता कही जायेगी कि एससीओ ने अपने घोषणापत्र में आतंकवाद के हर स्वरूप की निंदा की और अंतरराष्ट्रीय समुदाय से आतंकवाद से मुकाबले में सहयोग बढ़ाने की अपील की।
एससीओ सम्मेलन से इतर भारत और चीन के नेताओं के बीच हुई मुलाकात में जो गर्मजोशी और रिश्तों को आगे ले जाने की सहमति दिखी वह दोनों देशों के परिपक्व होते संबंधों को दर्शाती है। चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग की भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ मुलाकात के बाद चीनी विदेश मंत्रालय ने बयान जारी कर कहा कि राष्ट्रपति शी ने कहा है कि भारत और चीन को मतभेदों से सही तरीके से निपटते हुए सहयोग बढ़ाना चाहिए। साथ ही उन्होंने कहा कि सीमा पर स्थिरता बनाए रखने के लिए विश्वास बहाली के कदम उठाये जाने चाहिए। शी जिनपिंग ने इस मुलाकात के दौरान जो सबसे बड़ी बात कही वह यह रही कि ‘‘चीन और भारत एक-दूसरे को विकास का अवसर देते हैं, और एक-दूसरे के लिए कोई खतरा नहीं हैं।’’
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एससीओ सम्मेलन से इतर रूस के राष्ट्रपति व्लादीमिर पुतिन से भी मुलाकात की और दोनों नेताओं ने रणनीतिक संबंधों को और मजबूत करने के लिए द्विपक्षीय रिश्तों के सभी पहलुओं की समीक्षा की। दोनों नेताओं की बातचीत में रक्षा और ऊर्जा के विषयों पर विशेष ध्यान दिया गया। दोनों नेताओं ने व्यापार और निवेश संबंधों की भी समीक्षा की तथा आगे की यात्रा पर बढ़ने की बात कही। रूस ने हाल ही में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को अपने सर्वोच्च राजकीय सम्मान ‘ऑर्डर ऑफ सेंट एंड्रयू द एपोस्तले’ से सम्मानित किया था।
मोदी का फ्रांस दौरा भी अहम रहा जहाँ उन्हें जी-7 बैठक में भाग लेना था। वैसे तो इस बैठक में बहुत से अहम वैश्विक मुद्दों पर चर्चा होनी थी लेकिन यहाँ सभी की नजरें भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर भी रहीं। भारत सरकार ने हाल ही में जम्मू-कश्मीर से विवादास्पद अनुच्छेद 370 हटा दिया था। भारत सरकार के इस कदम का पाकिस्तान ने विरोध किया और पूरी दुनिया में भारत के खिलाफ अनर्गल बातें कहीं। लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जी-7 बैठक से इतर संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंतानियो गुतारेस, अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप, फ्रांस के राष्ट्रपति एमैनुएल मैक्रों, ब्रिटेन के प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन आदि से मुलाकात कर भारत का पक्ष दृढ़ता के साथ रखा और पाकिस्तान के कुतर्कों को बेनकाब कर दिया।
जी-7 बैठक में भाग लेने से पहले मोदी तीन देशों- फ्रांस, संयुक्त अरब अमीरात और बहरीन की यात्रा पर भी गये और वहां भारतवंशियों से मुलाकात कर अपनी सरकार के जम्मू-कश्मीर के संदर्भ में लिये गये फैसले के औचित्य से अवगत कराया। 23 और 24 अगस्त के बीच जब प्रधानमंत्री मोदी संयुक्त अरब अमीरात के दौरे पर थे तो वहां उन्हें यूएई का सर्वोच्च 'ऑर्डर ऑफ़ ज़ायेद' सम्मान दिया गया। मोदी बहरीन के दौरे पर भी गये और यह किसी भारतीय प्रधानमंत्री का पहला बहरीन दौरा था। प्रधानमंत्री मोदी को बहरीन का 'द किंग हमाद ऑर्डर ऑफ द रेनेसां' सम्मान भी दिया गया।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अगस्त माह में पड़ोसी देश भूटान के दौरे पर भी गये। सदियों से भारत के विश्वस्त देश भूटान के साथ हाइड्रो पॉवर प्रोजेक्ट, नॉलेज नेटवर्क, मल्टी स्पेशलिएटी हॉस्पिटल, स्पेस सैटेलाइट, रूपे कार्ड के इस्तेमाल समेत 9 समझौते पर हस्ताक्षर किये गये। प्रधानमंत्री मोदी 2014 में भी प्रधानमंत्री बनने के बाद अपनी पहली विदेश यात्रा पर भूटान गये थे।
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सितंबर माह की शुरुआत में मोदी भारत के सबसे विश्वस्त और पुराने मित्र राष्ट्र रूस पहुंचे। मोदी का यह रूसी दौरा कोई सामान्य दौरा नहीं था बल्कि आर्थिक और राजनयिक कूटनीति की सफलता की नयी कहानी लिख कर आये हैं प्रधानमंत्री मोदी। भारत ने रूस के सुदूर पूर्वी क्षेत्र में चेन्नई तथा व्लादिवोस्तोक के बंदरगाह शहरों के बीच समुद्री संपर्क के विकास के लिए एक आशय-पत्र पर दस्तखत किये हैं। साथ ही भारत ने रूस के सुदूर पूर्व क्षेत्र के विकास के लिये ‘अप्रत्याशित’ एक अरब डॉलर कर्ज सुविधा देने की जो घोषणा की है वह अपने आप में अनूठी है। भारत सरकार एक्ट ईस्ट की नीति पर सक्रियता से काम कर रही है और इस ऋण राशि के ऐलान से भारत की आर्थिक कूटनीति को नया आयाम मिलना तय है।
बहरहाल, यह तो सरकार के वह प्रयास थे जिसमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी खुद आगे बढ़कर अन्य देशों के साथ संबंध प्रगाढ़ करते दिखे। इसके अलावा विदेश मंत्री पद पर एस. जयशंकर जैसे वरिष्ठ राजनयिक को लाकर उन्होंने भारतीय राजनय की सक्रियता बढ़ा दी है। जयशंकर एक देश से दूसरे देश सफर कर या विदेशी नेताओं से दिल्ली में मुलाकात कर भारत का पक्ष तो रख ही रहे हैं साथ ही पाकिस्तान को संयुक्त राष्ट्र के विभिन्न मंचों से लेकर अन्य अंतरराष्ट्रीय मंचों पर घेरने के लिए जिस तरह हमारा विदेश मंत्रालय सक्रिय नजर आ रहा है वैसा पूर्व में कभी देखने को नहीं मिला। कहा जा सकता है कि प्रधानमंत्री मोदी ने अपने शपथ ग्रहण समारोह में बिमस्टेक देशों के नेताओं को बुला कर अपनी दूसरी पारी की जो शुरुआत की थी उसमें वह तेजी से आगे बढ़ते नजर आ रहे हैं।
-नीरज कुमार दुबे