आचार्य प्रमोद कृष्णम की कांग्रेस को सलाह, जीत के लिए हिंदुत्व और राष्ट्रवाद की राह पर चले पार्टी

By अंकित सिंह | Jun 15, 2021

कांग्रेस के आचार्य प्रमोद कृष्णम आजकल सुर्खियों में हैं। हालांकि टेलीविजन पर वह लगातार पार्टी का पक्ष रखते दिखाई देते रहते हैं। साथ ही साथ अपना एक क्लियर स्टैंड भी रखा हुआ है। 2019 के लोकसभा चुनाव में उन्हें लखनऊ से राजनाथ सिंह के खिलाफ पार्टी ने उम्मीदवार बनाया था। एक वक्त अचार्य प्रमोद कृष्णम प्रियंका गांधी की एडवाइजरी कमेटी के सदस्य हुआ करते थे। हालांकि वह पार्टी को लेकर फिलहाल अपनी अलग राय रख रहे हैं जिसकी वजह से उनकी आलोचना भी हो रही है तो कुछ लोग उनकी वाहवाही भी कर रहे हैं। 

 

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दरअसल आचार्य प्रमोद कृष्णम साफगोई से यह बात लगातार स्वीकार कर रहे हैं कि भाजपा जिस पिच पर खेल रही है, अगर उस पिच पर खेलने के लिए कांग्रेस तैयार नहीं हुई तो एक बार फिर से 2024 में नरेंद्र मोदी को सत्ता में आने से कोई नहीं रोक सकता है। भाजपा हिंदुत्व और राष्ट्रवाद के मुद्दे को बढ़ चढ़कर उठाती है और इसका चुनावी लाभ लेने की भी कोशिश करती है। आचार्य प्रमोद कृष्णम का कहना है कि पार्टी को ऐसे चेहरे को आगे करना होगा जिसे देश के विभिन्न क्षेत्रों में फैले हिंदू समुदाय स्वीकार कर सकें। हालांकि कांग्रेस में कई नेता आचार्य प्रमोद कृष्णम के इस दावे से सहमत नहीं हैं। कुछ नेताओं का यह भी कहना है कि कांग्रेस गांधीवादी-नेहरू वादी विचारधारा के अनुरूप चलती है। ऐसे में किसी धर्म को आगे कर कर राजनीति करना नहीं चाहिए।

 

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आचार्य प्रमोद कृष्णम का दूसरा तर्क यह है कि उत्तर प्रदेश में किसी ब्राह्मण को सीएम पद का उम्मीदवार बनाया जाना चाहिए। हालांकि कांग्रेस के कुछ नेता इससे प्रमोद कृष्णम की महत्वाकांक्षा बता रहे हैं ताकि उन्हें उम्मीदवार बनाया जा सके। दूसरी तरफ कुछ कांग्रेसी नेता प्रमोद कृष्णम के पक्ष में गोलबंदी करने में जुटे हैं। हालांकि कुछ नेताओं का यह भी दावा है कि उत्तर प्रदेश के ब्राह्मण खुद आचार्य प्रमोद कृष्णम को ब्राह्मण नहीं मानते। 

 

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हालांकि कांग्रेस के कुछ नेताओं का यह भी कहना है कि पार्टी को किसी चेहरे को आगे करके ही चुनाव में जाना चाहिए। ऐसे में दलील यह दी जा रही है कि बीजेपी के हिंदुत्व काट को कम करने के लिए आचार्य प्रमोद कृष्णम को आगे किया जाना चाहिए। यह भी कहा जा रहा है कि जब 2017 में राज बब्बर प्रदेश अध्यक्ष थे तब उन्हें हटाए बिना शीला दीक्षित को मुख्यमंत्री का चेहरा बनाया गया था। फिलहाल कांग्रेस लीडरशिप इन तमाम मसलों को लेकर खामोश है और नेताओं के मूड को समझने की कोशिश कर रही है। 

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