धार्मिक कार्यक्रम में होने वाले हादसे रोकने होंगे

By अशोक मधुप | Jul 16, 2024

अभी हाथरस के धार्मिक आयोजन में मरने वालों के खून के छींटे साफ भी नहीं हुए थे कि जगन्नाथ पुरी में निकलने वाली भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा में एक श्रद्धालु की मौत हुई। चार सौ घायल हुए। मुख्यमंत्री ने मरने वाले के परिवार को चार लाख रूपये की सहायता देने की घोषणा की। तो घायलों को मुफ्त इलाज के निर्देश दिए। घटना की जांच के आदेश भी दिये गए हैं। देश में हम धार्मिक आयोजनों को  रोक नही सकते। ये हमारी आस्थाओं से जुड़े हैं। धार्मिक आयोजन रोज होतें हैं। गली−गली होते हैं। मुहल्ले−मुहल्ले होते हैं। देश काफी बड़ा है। कहीं न कही से बड़े आयोजन की खबरें आती रहती है। इन आयोजनों पर नजर रखनी होंगी, ऐसी व्यवस्था बनानी होंगी कि इनमें भगदड़ न मचें। अव्यवस्था न फैले। भगदड़ और अव्यवस्था फैलने की हालत में ऐसी व्यवस्था बनी हो कि दर्शक आराम में आयोजन स्थल से सुरक्षित निकल सके। हम धार्मिक कार्यक्रम के आयोजन नहीं रोक सकते किंतु उन्हें हादसों रहित जरूर बना सकते हैं। इसी दिशा में कार्य होना चाहिए।


धार्मिक कार्यक्रमों में हादसेः-

 

- दो जुलाई को हाथरस में प्रवचन के दौरान भगदड़ में 121 मरे। गवाह का दावा कि गुरू जी के सेवक ने कहा चरण रज लेकर जाना। तब भगदड़ मची। 

− इंदौर में राम नवमी के अवसर पर एक मंदिर में हो रहे हवन में पुरानी बावडी का स्लेब टूटने से 36 मरे। 

− 2022 में माता वैष्णो देवी मंदिर में हुई भगदड़ में 22 श्रद्धालु मरे।

− 2015 में आंध्रप्रदेश के गोदावरी नदी के घाट पर भगदड़ में 27 मरे।

- 15 अक्टूबर 2016 को वाराणसी में भीड़भाड़ वाले राजघाट गंगा पुल पर मची भगदड़ में 25 लोगों की मौत हो गई।

- तीन अक्तूबर 2014 को पटना के गांधी मैदान में दशहरा समारोह के समाप्त होने के बाद भगड़ में 32 जानें गई थीं।

− चार मार्च 2010 को यूपी के प्रतापगढ़ जिले में स्थित मनगढ़ में कृपालु महाराज के राम जानकी मंदिर में मची भगदड़ में 63 लोगों की जान चली गई थी।

− 10 फरवरी, 2013 को प्रयागराज में रेलवे स्टेशन पर भगदड़ मच गई थी, जिसमें 40 से ज़्यादा लोग मारे गए। 

− पटना में गंगा के तट पर 19 नवंबर 2012 को छठ पूजा के दौरान अचानक अस्थायी पुल ढहने से भगदड़ मच गई थी, इसमें 20 लोगों की मौत हो गई थी., इससे पहले आठ नवंबर 2011 को हरिद्वार में गंगा किनारे हरकी पैड़ी पर मची भगदड़ में कम से कम 20 लोगों की जान चली गई थी।

− 4 मार्च 2010 को प्रतापगढ़ के राम जानकी मंदिर में भगदड़ मचने से 63 लोगों की मौत हो गई और 100 से ज़्यादा लोग घायल हो गए।

− 2008 में राजस्थान के जयपुर के चामुंडा मंदिर में बम की अफवाह के बाद मची भगदड़ में 250 लोग मरे।

− 2003 में महाराषट्र के नासिक के कुंभमेले में मची भगदड़ में 39 मरे। 

− महाराष्ट्र के सतारा में साल 2005 की 25 जनवरी को मंधारदेवी मंदिर में सालाना तीर्थयात्रा के दौरान मची भगदड़ में 340 से अधिक श्रद्धालुओं की कुचलने से मौत हो गई थी।


यूपी के हाथरस स्थित सिकंदराराऊ थाना क्षेत्र के फुलरई में आयोजित भोले बाबा के सत्संग में मची भगदड़ से 121 लोगों की मौत के बाद कई तरह के सवाल खड़े हो रहे हैं। मृतकों में ज्यादातर महिलाएं और बच्चे हैं। ऐसा नहीं है, पहले भी भीड़भाड़ वाले स्थलों खासकर धार्मिक आयोजनों या धार्मिक स्थलों पर ऐसे हादसे होते रहे हैं। जिसके बाद जांच और कार्रवाई तो होती है पर कोई जिम्मेदार सबक लेते नहीं दिखाई देते।

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सनातन धर्म में 33 करोड देवी देवता हैं। हिंदू समाज की मान्यता है कि कण−कण में भगवान हैं। हम इतने आस्थावान है कण−कण में भगवान खोजते हैं। स्टोव तक हमारे देवता बन गए। दरअसल हमारे यहां हर गली मुहल्ले में ओझा हैं। भगत है। साधु हैं। सन्त हैं। ज्ञानी हैं। ओलिया हैं। फकीर है। जिसका जितना बड़ा मायाजाल और प्रचार तंत्र है, उसके उतने ज्यादा भक्त और शिष्य हैं। बड़ी बात यह है कि हिंदू समाज में पुरूषों से ज्यादा महिलाएं आस्थावान है। वे ही इन हादसों की शिकार होती है। हाथरस के धार्मिक कार्यक्रम में मची भगदड़ में मरने वालो में महिलाओं की ही संख्या ज्यादा है। इस कार्यक्रम के भक्त गुरू जी के प्रति इतने आस्थावान दिखाई दिए कि उन्हें हादसे का कोई मलाल नही। कुछ महिलाएं तो मीडिया से बात करते कहती नजर आंई कि वे भी मर जाती तो अच्छा होता। सीधे स्वर्ग मिलता। यहां भक्तों की इतनी श्रद्धा हो, वहां सरकार की सख्ती से ही इन हादसों को रोका जा सकता है।

    

आमतौर पर धार्मिक आयोजनों या धर्मस्थलों पर भारी भीड़ उमड़ती है। गहरी आस्था के चलते लोग अपने आराध्य के दर्शन करने या उनके बारे में सत्संग-प्रवचन सुनने के लिए बड़ी संख्या में पहुंचते हैं। एक जनवरी 2022 को माता वैष्णो देवी के दर्शन के लिए इतनी बड़ी संख्या में श्रद्धालु उमड़ पड़े थे, जिससे भगदड़ मच गई थी। इस हादसे में 12 लोगों की जान चली गई थी, जबकि एक दर्जन घायल हुए। अपनी-अपनी आस्था के कारण धार्मिक स्थलों या आयोजन में शामिल होना चाहते हैं। इसके लिए वे किसी बात की परवाह नहीं करते, जरा सी भी ऊंच-नीच अफवाह भगदड़ का कारण बन जाती है। भारी भीड़ के बीच छोटी सी अफवाह भी बड़ा रूप ले लेती है। साल 2011 की 14 जनवरी को केरल के इडुक्की जिले में एक जीप सबरीमाला मंदिर में दर्शन कर रहे श्रद्धालुओं से टकरा गई थी। इसके बाद अफवाह फैली अफवाह से  ऐसी भगदड़ मच गई कि इसमें 104 श्रद्धालुओं की जान चली गई थी। इसी तरह से बताया जा रहा है कि हाथरस में सत्संग स्थल पर सवा लाख लोग मौजूद थे। इतनी बड़ी संख्या में श्रद्धालुओं के पहुंचने का अंदाजा न तो आयोजकों को था और न ही जिला प्रशासन को। इसलिए इस संख्या के हिसाब से मौके पर व्यवस्था ही नहीं की गई थी, जबकि सत्संग स्थल के अंदर की व्यवस्था आयोजकों को संभालनी थी और बाहर कानून-व्यवस्था पर प्रशासन और पुलिस को नजर रखनी थी। इस आयोजन के लिए जिला प्रशासन से बाकायदा अनुमति ली गई थी, इसके बावजूद सत्संग स्थल पर न तो श्रद्धालुओं के प्रवेश और निकासी के लिए अलग-अलग द्वार थे और न ही वीआईपी यानी भोले बाबा को भीड़ से सुरक्षित अलग रास्ते से निकालने के इंतजाम किए गए थे। ऐसे में बाबा जब सामने दिखे तो भीड़ उनके पैरे छूने के लिए आगे बढ़ने लगी और बेकाबू हो गई। चश्मदीदों के हवाले से यह भी बताया जा रहा है कि सत्संग स्थल पर जमीन ऊबड़-खाबड़ थी। इसे समतल करने तक की जहमत नहीं उठाई गई थी। ऐसे में जब भीड़ निकलने लगी तो पैर ऊपर-नीचे होने से लोग गिरने लगे। इससे भगदड़ की स्थिति और भी गंभीर हो गई। देश के कई धार्मिक स्थलों के परिसर तो काफी बड़े हैं पर मुख्य दर्शन या पूजा स्थल काफी छोटे हैं। इसमें एक साथ भीड़ का रेला आता है तो धक्के के कारण लोग एक-दूसरे के ऊपर चढ़ने लगते हैं। इस दौरान लोग खुद के शरीर को ही नियंत्रित नहीं कर पाते हैं। अगर एक व्यक्ति भी भीड़ में गिर जाता है तो लोग चाहते हुए भी खुद को रोक नहीं पाते हैं और उस पर चढ़ जाते हैं। नतीजा यह होता है कि भीड़ में किसी के गिरने, बेहोश होने या मौत की अफवाह फैलती है और बचने के लिए लोग भागने लगते हैं। भीड़ में शामिल लोग, खासकर बुजुर्ग, बच्चे और महिलाएं इस भगदड़ का सबसे ज्यादा शिकार होते हैं। इसके लिए स्थानीय प्रशासन भी कहीं न कहीं जिम्मेदार होता है, जो आस्था के आगे हाथ खड़े कर देता है। छोटे स्थल पर अधिक लोगों की भीड़ बढ़ने पर भी वह लोगों को रोकता नहीं है। हाथरस के मामले में भी ऐसा ही देखने को मिला। कहा जा रहा है कि हाथरस में अनुमति और आकलन से कहीं ज्यादा भीड़ पहुंच गई थी। इसके बावजूद प्रशासन तमाशबीन बना रहा और न तो आयोजन निरस्त किया और न ही लोगों को रोकने की कोशिश की।


धार्मिक आयोजन में कई ऐसी हस्तियां पहुंचती हैं, जिनके कारण भारी भीड़ इकट्ठा हो सकती है तो आयोजक खुद को वीआईपी से भी बड़ा मानने लगते हैं। इसके कारण वे लोगों के साथ मनमानी करते हैं। उन्हें रोकते-टोकते हैं। इसके कारण लोगों में गुस्सा पनपने लगता है। कई बार पत्थरबाजी और तोड़फोड़ होती है तो कई बार वीआईपी के लिए बनाए गए मंच आदि पर भीड़ चढ़ जाती है। हाथरस की घटना में भी इस तरह का नजारा सामने आया। बताया जा रहा है कि बाबा के काफिले को निकालने के लिए वहां मौजूद श्रद्धालुओं को आयोजन की व्यवस्था संभालने लगे लोगों ने रोक दिया था, जबकि वे किसी भी कीमत पर बाबा के पास पहुंचना चाहते थे और मस्तक पर गुरूजी की चरणरज लगाना चाहते थे। इसी से भगभड़ मची।


हाथरस जनपद के सिंकराराऊ क्षेत्र में स्थित फुलरई मुगलगढ़ी में साकार नारायण विश्वहरि उर्फ भोले बाबा के सत्संग का मंगलवार को आखिरी दिन था। बाबा सत्संग खत्म कर बाहर जाने के लिए निकल रहे थे। उसी दौरान बाबा के पैर छूने के लिए भीड़ उमड़ पड़ी। इसमें बड़ी संख्या में महिलाएं और बच्चे भी थे, जो भीड़ के धक्के से गिर गए और लोग उनको कुचलते हुए निकलने लगे। इसके कारण भगदड़ मच गई और 121 से ज्यादा लोगों की जान चली गई। इनमें बच्चों और महिलाओं की संख्या सबसे ज्यादा बताई जा रही है।


इस घटना के लिए जिला प्रशासन और पुलिस से लेकर आयोजक तक कठघरे में हैं। व्यवस्था पर भी सवाल उठाए जा रहे हैं। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने जांच के लिए एक कमेटी बना दी। एडीजी आगरा और कमिश्नर अलीगढ़ की अगुवाई में पूरी घटना की जांच होगी। इससे स्पष्ट होगा कि आखिर इतने बड़े हादसे के लिए कौन जिम्मेदार है?


हर हादसे की जांच होती है किंतु उससे सबक नहीं लिखा जाता। सीख नहीं ली जाती है। इसी का कारण है कि हादसे होते रहते हैं। रथयात्रा के मृतक को सरकार ने चार लाख रूपये दिए। घायलों के उपचार की व्यवस्था की। हाथरस के हादसे में उत्तर प्रदेश सरकार ने प्रत्येक मृतक को दो लाख और घायल को पचास हजार रूपया मुआवजा दिया है। यह मुआवजे की राशि सत्संग के आयोजकों और कार्यक्रम के गुरू जी से वसूली जानी चाहिए। धार्मिक कार्यक्रम में सरकारी स्तर से होने वाली व्यवस्था का खर्च भी आयोजकों से लिया जाना चाहिए। जांच में दोषी पाये गए आयोजकों पर कानून के तहत कठोर कार्रवाई  होनी चाहिए। ऐसा होने पर ही हादसे रूक पाएंगे। अन्यथा नहीं।


- अशोक मधुप

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)

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