राष्ट्रीय पुनर्निर्माण के घोषित लक्ष्य के साथ आगे बढ़ती अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद

By प्रो. संजय द्विवेदी | Apr 08, 2022

किसी भी राष्ट्र के निर्माण में उसकी छात्र- युवा शक्ति का बहुत बड़ा योगदान होता है। बदलाव और परिर्वतन की कथाएं युवा शक्ति ही संभव करती है। आजादी के आंदोलन से लेकर जेपी आंदोलन, असम आंदोलन, कश्मीर आंदोलन, तीन बीघा आंदोलन, भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलनों की तमाम कहानियां इसे बताती हैं। अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद ऐसा ही संगठन है, जिसने अपने स्थापना वर्ष 1949 से ही भारतबोध की चेतना के साथ कार्य प्रारंभ किया। इसी महत्वपूर्ण छात्र आंदोलन पर केंद्रित पुस्तक ‘ध्येय यात्रा’ दो खंडों में प्रकाशित हुई है। किताब के माध्यम से हम विद्यार्थी परिषद के इतिहास और विकास क्रम से अवगत होते हैं।

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आजाद भारत का इतिहास भी अभाविप के इतिहास के साथ-साथ चलता है। 1947 में आजाद हुए इस महादेश के सपनों, उसकी आकांक्षाओं को लेकर, छात्र-युवाओं की जरूरतों को लेकर अनेक आंदोलन हुए हैं। अभाविप उन मुद्दों और आंदोलनों में शामिल होकर अपने भारतप्रेमी रूझानों से समाज को प्रभावित करती रही है। अभाविप आज देश का सबसे बड़ा छात्र संगठन है। जिसने राष्ट्रीय पुनर्निर्माण को ही अपना लक्ष्य घोषित किया है। यह एक ऐसा छात्र संगठन है जिसने अपने को किसी राजनैतिक दल के साथ नत्थी नहीं किया बल्कि राष्ट्रीय भावधारा के साथ चलने और समकालीन राजनीति को राष्ट्रीय विचारों के अनुरूप बदलने का निर्णय लिया। इस नाते अभाविप की सांगठनिक और वैचारिक भावधारा का अवगाहन करना एक सामयिक कार्य है।


विद्यार्थी परिषद के तीन पूर्व कार्यकर्ताओं सर्वश्री मनोजकांत, प्रदीप राव और उमेंद्र दत्त द्वारा संपादित तथा दो खंडों में प्रकाशित यह किताब इस छात्र संगठन के इतिहास और वर्तमान विस्तार को सही तरीके से बताती है। विद्यार्थी परिषद यह मानती है कि ‘छात्र कल का नहीं बल्कि आज का नागरिक’ है। इस चेतना को वह अपने कार्यकर्ताओं में बिठाकर पहले दिन से नागरिकता का पाठ पढ़ाती है। उन्हें अधिकारबोध के साथ कर्तव्यबोध का भी एहसास कराती है। अभाविप का ऐसा करना साधारण नहीं है। आंदोलनकारी संगठन आमतौर पर “चाहे जो मजबूरी हो हमारी मांगें पूरी हों” के मंत्र पर काम करते हैं। अभाविप इससे अलग हटकर अपने राष्ट्रीय कर्तव्यबोध को रेखांकित करती रही है। शिक्षा परिसरों में संघर्ष के बजाए संवाद, हठधर्मिता के बजाए सुझाव का मंत्र लेकर वह चली। इसलिए शिक्षाविद्, शिक्षक और विद्यार्थी यहां अलग-अलग नहीं हैं। ये एक ही ‘शैक्षिक परिवार’ से जुड़कर संवाद को सहज और प्रेरक बनाते हैं। अभाविप सिर्फ छात्रों की मांगों को लेकर मैदान में नहीं उतरती, उसके लिए राष्ट्र प्रथम है। वह सिर्फ छात्रसंघों पर कब्जे और राजनीतिक दलों का हस्तक बनने के बजाए, परिर्वतन और बदलाव के मंत्र पर काम करती आई है। पुस्तक के आमुख में संघ के अखिल भारतीय प्रचार प्रमुख सुनील आंबेकर ने पुस्तक के आमुख में लिखा है कि-“यह पुस्तक अभाविप के कार्यों का वर्णन या उसका महिमामंडन करने के लिए नहीं अपितु स्वाधीन भारत के छात्र-युवाओं की वह कहानी है जो हमें उनके भविष्य से जोड़ती है और बताती है कि कैसे एक देश अपने भविष्य की पीढ़ी को स्वदेश के सपनों से जोड़ देता है।”


इन अर्थों में अभाविप की कार्यशैली विलक्षण है। यह एक अलग तरह का संगठन है जिसमें शिक्षा परिवार केंद्र में है, किंतु समाज की स्वीकृति और सहकार भी साथ जुड़े हैं। इसलिए रचनात्मक कार्य अभाविप की कार्यप्रणाली का अनिवार्य हिस्सा है। अपने अनेक रचनात्मक प्रकल्पों, शैक्षिक प्रकल्पों, निःशुल्क कक्षाओं, रक्तदान, पौधारोपण से लेकर सेवा के कामों तक अभाविप की एक बड़ी दुनिया है। पूर्वोत्तर के साथ शेष राष्ट्र के भावनात्मक संबंधों का विस्तार करते हुए अभाविप ने ‘अंतरराज्यीय छात्र जीवन दर्शन’ के माध्यम से जो काम किया उसका एक प्रेरक इतिहास है। आप देखें तो असम में जो घुसपैठ के विरोध में आंदोलन चला उसने किस तरह देश का ध्यान एक बड़ी समस्या की ओर खींचा। इसी प्रकार देश के तमाम संकटों पर अभाविप की प्रतिक्रिया हमें चेताती रही है और संकटों की ओर ध्यानाकर्षित करती रही है। सामाजिक समरसता के लिए, स्त्री शक्ति को संयोजित करके सुयोग्य नेतृत्व का विकास एक बहुत बड़ा काम रहा है। अभाविप ने विश्व विद्यार्थी युवा संघ के माध्यम से दुनिया भर के विद्यार्थियों को जोड़कर ‘सारा विश्व एक है’ और ‘वसुधैव कुटुम्बकम्’ का भाव साकार किया। ऐसी अनेक गतिविधियों से परिचित कराती यह किताब हमारे समय का जीवंत इतिहास है। पुस्तक की भूमिका में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबाले ने ठीक ही लिखा है-“स्वतंत्र भारत के इतिहास में सामाजिक संगठनों के योगदान के संदर्भ में विद्यार्थी परिषद के कार्यों का स्थान अनुपम है। उसने राष्ट्र सर्वोपरि की भावना से अपने जीवन व्रत को निभाया है और इसी मार्ग पर आगे चलने का उसका पवित्र संकल्प भी है। ”

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पुस्तक के पहले खंड में स्थापना की पृष्ठभूमि और वैचारिक अधिष्ठान की बात करते हुए संगठन के विस्तार और वैचारिक विकास को विस्तार से बताया गया है। छात्र आंदोलन की रचनात्मक दिशा नामक अध्याय संगठन की अनेक गतिविधियों का विहंगावलोकन है। इसी तरह शिक्षा क्षेत्र के लिए किए गए कामों का वर्णन भी है। साहसिक प्रयास नामक खंड में अभाविप द्वारा किए गए आंदोलनों का जिक्र है।


किताब के दूसरे खंड में छात्र नेतृत्व के विकास के लिए अभाविप के प्रयासों का जिक्र है। साथ ही वैश्विक पटल पर किए गए कार्यों, इसी खंड में परिषद के अधिवेशनों में पारित प्रस्तावों के साथ राष्ट्रीय, सामाजिक एवं शैक्षिक मुद्दों की चर्चा है। एक अन्य खंड में अभाविप की बहुमुखी गतिविधियों, आयामों का वर्णन किया गया है। कुल मिलाकर यह किताब बहुत परिश्रम से लिखी गयी है और इतिहास के साथ न्याय करती हुई नजर आती है। अभाविप जैसे राष्ट्रव्यापी और अनुपम छात्र संगठन पर काम करना आसान नहीं है, जिसकी सात दशक से अधिक की यात्रा और उसकी गतिविधियां देश भर में फैली पड़ी हैं। इस ग्रंथ के बहाने हम भारत और उसकी युवाशक्ति की रचनात्मक चेतना से रूबरू होते हैं। मुझे उम्मीद है यह किताब आने वाले भारत को गढ़ने में लगी छात्र शक्ति को भी सकारात्मक प्रकल्पों और प्रयासों के लिए प्रेरित करेगी। इस विरल परिश्रम के लिए संपादकों को साधुवाद।


पुस्तकः ध्येय यात्रा (2 खंड)

संपादकः मनोजकांत, प्रदीप राव, उमेंद्र दत्त

दोनों खंडों का मूल्य- 699 रूपए

प्रकाशकः प्रभात प्रकाशन, 4/19, आसफ अली रोड, नई दिल्ली-110002

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