Yes Milord Year Ender 2023: आर्टिकल 370, समलैंगिक विवाह... सुप्रीम फैसलों से भरा साल, 2024 में अहम मामलों की सुनवाई पर देश की नजर

By अभिनय आकाश | Dec 30, 2023

2023 में सुप्रीम कोर्ट ने कई अहम फैसले दिए जिनका राजनीतिक और सामाजिक तौर पर दूरगामी असर देखने को मिलेगा। सुप्रीम कोर्ट ने इस साल अब तक 52 हजार 191 केसों का निपटारा किया है। ये सुप्रीम कोर्ट में इस साल दर्ज 49 हजार 191 मामलों से 3000 अधिक है। सुप्रीम कोर्ट द्वारा जारी आंकड़ों से ये बात सामने आई है। जबकि 79 हजार 896 मामले अभी तक कोर्ट में लंबित हैं। सुप्रीम कोर्ट ने इस साल कई अहम और सालों से लंबित मामलों में फैसला सुनाया। इनमें जम्मू कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाने के सरकार के फैसले को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर फैसला भी शामिल है। इसके अलावा नए साल 2024 में भी सुप्रीम कोर्ट अहम मामलों की सुनवाई करने वाला है जिन पर देशभर की नजर होगी। 

2023 में ये फैसले यादगार रहे

समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देने से इनकार

समलैंगिक शादी को सुप्रीम कोर्ट ने मान्यता नहीं दी। लेकिन पसंद के अधिकार को संवैधानिक आधार करार दिया। ये संवैधानिक बेंच का फैसला था। 17 अक्टूबर को सुप्रीम कोर्ट ने समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देने से इनकार कर दिया और कहा कि इसे सक्षम करने के लिए कानून बनाना संसद पर निर्भर है। पांच जजों की संविधान पीठ ने सर्वसम्मत फैसले में कहा कि शादी करना कोई मौलिक अधिकार नहीं है। हालाँकि, भारत के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति संजय किशन कौल ने समलैंगिक साझेदारी को मान्यता देने की वकालत की, और LGBTQIA+ व्यक्तियों के अधिकारों की रक्षा के लिए भेदभाव-विरोधी कानूनों पर भी जोर दिया।

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आर्टिकल 370 पर ऐतिहासिक फैसला 

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जम्मू कश्मीर को स्पेशल दर्जा देने वाला अनुच्छेद 370 अस्थायी प्रावधान है। स्पेशल दर्जा निरस्त करने के राष्ट्रपति के फैसले को बरकरार रखा।  चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली बेंच ने आर्टिकल 370 को अस्थाई प्रावधान भी बताया। संवैधानिक रूप से भारत की शासन संरचना अर्ध-संघीय है। इससे इतर एकात्मक व्यवस्था में कानून बनाने की शक्ति केंद्र में केंद्रित होती है। भारतीय संदर्भ में जबकि राज्यों को स्वायत्तता प्राप्त है। जस्टिस कौल ने अपना फैसला सुनाते हुए कहा, सेनाएं राज्य के दुश्मनों के साथ लड़ाई लड़ने के लिए होती हैं, न कि वास्तव में राज्य के भीतर कानून और व्यवस्था की स्थिति को नियंत्रित करने के लिए, लेकिन तब ये अजीब समय था।जस्टिस खन्ना ने फैसला सुनाते हुए कहा कि आर्टिकल 370 असममित संघवाद का उदाहरण है। 

अफसरों की ट्रांसफर पोस्टिंग का अधिकार

सुप्रीम कोर्ट के 5 जजों की संविधान पीठ ने सर्वसम्मति से ये फैसला दिया है कि दिल्ली में अफसरों की ट्रांसफर पोस्टिंग का अधिकार केजरीवाल सरकार के पास ही रहेगा। 11 मई को दिए गए फैसले में कहा गया कि दिल्ली सरकार के कंट्रोल में प्रशासनिक सेवा होगी। कहा गया कि चुनी हुई सरकार के पास ही ब्यूरोक्रेसी का नियंत्रण होना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि दिल्ली की विधानसभा प्रतिनिधि लोकतंत्र के सिद्धांत का प्रतीक है, उसे जन आकांक्षाओं का प्रतिनिधित्व करने के लिए कानून बनाने की शक्तियां दी गई हैं। 

शाही ईदगाह और कृष्ण जन्मभूमि मंदिर विवाद

इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने हाल ही में फैसला सुनाया कि मथुरा में तीन गुंबद वाली मस्जिद शाही ईदगाह के लिये एक सर्वेक्षण किया जाएगा। सर्वेक्षण की मांग के लिये याचिका हिंदू देवता, श्री कृष्ण की ओर से सात लोगों द्वारा दायर की गई थी, जिन्होंने न्यायालय के समक्ष लंबित अपने मूल मुकदमे में दावा किया था कि मस्जिद का निर्माण वर्ष 1670 में मुगल सम्राट औरंगज़ेब के आदेश पर श्री कृष्ण के जन्मस्थान पर किया गया था। शाही ईदगाह मस्जिद की कमेटी ऑफ मैनेजमेंट ट्रस्ट ने जब उच्च न्यायालय से सर्वे पर रोक लगाने की मांग की तो न्यायालय ने कोई राहत नहीं दी।

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चुनाव आयुक्त की नियुक्ति पर सुप्रीम कोर्ट 

सुप्रीम कोर्ट की 5 सदस्यीय संवैधानिक बेंच ने मार्च में ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए कहा कि मुख्य चुनाव आयुक्त और चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति एक पैनल करेगा। इस पैनल में प्रधानमंत्री, सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश और लोकसभा के नेता प्रतिपक्ष (सबसे बड़े विपक्षी दल के नेता) शामिल रहेंगे। जस्टिस केएम जोसेफ, जस्टिस अजय रस्तोगी, जस्टिस अनिरुद्ध बोस, जस्टिस हृषिकेश रॉय और जस्टिस सीटी रविकुमार की बेंच ने चुनाव आयुक्त अरुण गोयल की नियुक्ति पर आश्चर्य भी जताया। साल 2015 में सुप्रीम कोर्ट में जनहित याचिका दाखिल की गई थी। याचिका में कहा गया था कि चुनाव आयुक्तों और मुख्य चुनाव आयुक्त की नियुक्ति का अधिकार अभी केंद्र के पास है, जो संविधान के अनुच्छेद-14 व अनुच्छेद 324 (2) का उल्लंघन करता है। बाद में दिसंबर के महीने में  मुख्य निर्वाचन आयुक्त (CEC) और निर्वाचन आयुक्तों की नियुक्तियों व उनकी सेवा शर्तों को रेगुलेट करने वाला बिल संसद से पास किया गया और इसमें सीजेआई को   चयन समिति से बाहर रखा गया। 

2024 में इन फैसलों पर होगी नजर

अडानी ग्रुप मामला

अडानी हिंडनबर्ग मामले में सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई के बाद फैसला सुरक्षित रख लिया था। इस दौरान याचिकाकर्ता द्वारा सेबी की जांच और एक्सपर्ट कमिटी के सदस्यों की निष्पक्षता पर उठाए गए सवालों को नकार दिया था और कहा कि ऐसे आरोप अनफेयर है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि ऐसा कोई तथ्य नहीं है जिससे कि सेबी पर संदेह किया जाए। हम बिना ठोस आधार के सेबी पर अविश्वास नही कर सकते। अब फैसला आना है।

अविवाहिता को सेरोगेसी का हक 

सिंगल अविवाहित महिला को सरोगेसी का लाभ मिलेगा? इस संवैधानिक सवाल का सुप्रीम कोर्ट ने परीक्षण का फैसला किया है। कोर्ट ने उस याचिका पर सुनवाई का फैसला किया है जिसमें कहा गया है कि सरोगेसी कानून के उस प्रावधान को खारिज किया जाए जो सिंगल अविवाहित महिला को सरोगेसी के जरिये बच्चे की इजाजत नहीं देता है। । सुप्रीम कोर्ट की जस्टिस बी वी. नागरत्ना की बेंच ने केंद्र से याचिका पर जवाब दाखिल करने को कहा है।

इलेक्टोरल बॉण्ड पर होगा फैसला

इलेक्टोरल बॉण्ड को चुनौती वाली अर्जी पर सुनवाई के वाद सुप्रीम कोर्ट की 5 जजों की वेंच ने फैसला सुरक्षित रख लिया था। इस मामले में फैसला आने वाला है। सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग से कहा था कि ब्योरा पेश करे कि बॉण्ड के जरिये राजनीतिक पार्टियों ने कितना फंड रिसीव किया। कोर्ट ने आयोग के प्रति इस बात को लेकर नाराजगी जताई कि उसके पास अभी इस बारे में डेटा नहीं है। सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार के सामने कई सवाल उठाए। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि कि  गोपनीयता का मुद्दा है।

ईडी के हकों पर रिव्यू पेटिशन

7 जुलाई 2022 को सुप्रीम कोर्ट ने कहा था के ईडी को मनी लॉन्ड्रिंग एक्ट (PMLA) के तहत गिरफ्तारी, संपत्ति जब्ती, कुकर्की के साथ-साथ सर्च करने का अधिकार है। इस फैसले के खिलाफ रिव्यू पिटिशन दाखिल की गई थे। तीन जजों की वेंच के सामने केंद्र ने कहा कि उन्हें जवाव के लिए वक्त चाहिए। तब मामले की सुनवाई टालते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि मामला चीफ जस्टिस के सामने भेजा जाएगा और वह नई बेंच का गठन करेंगे। नई बेंच सुनवाई करेगी।

दिल्ली में सर्विसेज केस पर सुनवाई 

सविसेज मामले में सुप्रीम कोट के फैसले के बाद केंद्र ने नया कानून बनाया। इसके तहत केंद्र ने ब्यूरोक्रेट की पोस्टिंग और ट्रांसफर का प्रावधान किया है। दिल्ली सरकार ने कहा था टैंक संसद ने अब कानून पास कर दिया है ऐसे में में बदलाव चाहते है। अब वह एक्ट को चुनीती देना चाहते हैं। इस पर संवैधानिक बेंच सुनवाई करने वाली है। 

मुफ्त चुनावी वादों को परखा जाएगा

मुक्त उपहार बाटने के खिलाफ दाखिल अर्जी पर जल्द सुनवाह की गुहार लगाई गई है। एक फैसले में कहा गया कि राजनीतिक पार्टी चुनावी घोषणपत्र में जो वादा करती है पर करप्ट प्रक्टिस नही है। यानी ने कहा है कि मुफ्त उपहार देने का वादा करने वाले पटिया को मान्यता को रद्द किया जाए। 

 

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