गौरवशाली गणतंत्र के 72 साल: 26 जनवरी 1950, 10 बजकर 18 मिनट पर हमें हुई थी अस्तित्व की प्राप्ति

By अभिनय आकाश | Jan 25, 2021

यूनान-ओ-मिस्र-ओ-रूमा, सब मिट गए जहाँ से, अब तक मगर है बाक़ी, नाम-ओ-निशाँ हमारा।।

 कुछ बात है कि हस्ती, मिटती नहीं हमारी, सदियों रहा है दुश्मन, दौर-ए-ज़माँ हमारा।।

दिल्ली सज धज कर तैयार है बलिदान समर्पण उपलब्धि के अभूतपूर्व लम्हे को मनाने के लिए। क्या क्या नज़र आएगा राजपथ पर इस परेड में वो सब हम आपके सामने। इसके साथ ही बताएंगे कि भारत गणतंत्र दिवस के लिए मुख्य अतिथि का चयन कैसे करता है? "जितने लोग देश हित के लिए कुर्बान हो गए हैं। जिन्होंने अपना अपना सबकुछ त्याग दिया है। जो जान की बाज़ी लगाकर इस संसार से उठ गए हैं। वो सब उस बीज की तरह आज भारत की स्वतंत्रता के रूप में पल्लवित और प्रफुल्लित होकर हमें फल देने लगे हैं।''

72 साल पहले घड़ी में 10 बजकर 18 मिनट हो रहे थे। जब 21 तोपों की सलामी के साथ भारतीय गणतंत्र का ऐतिहासिक ऐलान हुआ था। डॉक्टर राजेन्द्र प्रसाद भारत के पहले राष्ट्रपति के तौर पर शपथ ले रहे थे। एक महान देश की अद्भुत यात्रा शुरू हो रही थी। वैसे तो राष्ट्रपति भवन से लेकर इंडिया गेट तक जाने वाली सड़क को पूरा देश राजपथ के नाम से जानता है। इसी सड़क पर हर साल देश अपने गणतंत्र की शक्ति और साहस का प्रदर्शन परेड के आयोजन के माध्यम से करता है। आज़ादी से पहले इस मार्ग को 'किंग्स वे' कहा जाता था, जिसका अर्थ है- राजा के गुज़रने का रास्ता। आज़ादी के बाद इसका नाम राजपथ कर दिया गया। लेकिन क्या आप इस बात से अवगत हैं कि 1950 से लेकर 1954 तक परेड का आयोजन स्थल राजपथ नहीं हुआ करता था। इन सालों में 26 जनवरी की परेड का आयोजन इरविन स्टेडियम यानी वर्तमान का नेशनल स्टेडियम, किंग्सवे, लाल किला और रामलीला मैदान से कदमताल करता हुआ साल 1955 में राजपथ की ओर अग्रसर हुआ। पहली बार गणतंत्र दिवस पर अतिथि के तौर पर इंडोनेशिया के राष्ट्रपति सुकुर्णों सन 1950 में भारत पधारे थे। 1954 में भूटान के राजा जिग्मे डोरजी मुख्य अतिथि बने थे। 26 जनवरी की परेड राष्ट्रपति के स्वागत के साथ शुरू होती है। साथ ही 21 तोपों की सलामी भी दी जाती है। लेकिन वास्तव में 21 तोपों से गोला नहीं दागा जाता है बल्कि भारतीय सेना के 7 तोप जिन्हें 25 पौन्डर्स कहा जाता है के द्वारा तीन-तीन राउंड की फायरिंग की जाती है। 1955 में राजपथ पहली बार गणतंत्र के परेड से रूबरू हुआ तो इसके गवाह बने पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान के गवर्नर जनरल मलिक गुलाम मोहम्मद। हर साल गणतंत्र दिवस और बीटिंग रिट्रीट परेड में बाइबल से लिया गया गीत 'अबाइड विथ मी' बजाया जाता था, जिसे महात्मा गांधी का पसंदीदा गीत कहा जाता है। लेकिन साल 2020 से इसका स्थान भारत के राष्ट्रीय गीत वंदे मातरम ने ले लिया। साल 1960 में सोवियत संघ के मार्शल क्लीमेंट येफ्रेमोविक वारोशिलोव गणतंत्र दिवस परेड के मेहमान बने थे। इसके अगले वर्ष ब्रिटेन की महारानी क्वीन एलिजाबेथ भारत आईं। साउथ अफ्रीका के राष्ट्रपति नेल्सन मंडेला साल 1995 में गणतंत्र दिवस के मेहमान बने थे। इसके अलावा लैटिन अमेरिका, ब्राजील, यूनाइटेड किंगडम, मालद्वीव, माॅरीशस और नेपाल को गणतंत्र दिवस में शरीक होने का अवसर मिला।

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वर्ष 2007 में रूस के ब्लादिमीर पुतिन भारत के खास मेहमान बनकर सामने आए। 2015 में अमेरिका के राष्ट्रपति बराक ओबामा भारत आए। 2016 में फ्रांस के राष्ट्रपति फैंकोइस होलांद भारत के गणतंत्र दिवस में आए। फ्रांस ने पांचवीं बार शिरकत की।

भारत के गणतंत्र दिवस में विशेष सम्मान के लिए निमंत्रण क्यों भेजा जाता है

गणतंत्र दिवस परेड में मुख्य अतिथि की यात्रा किसी भी विदेशी उच्च गणमान्य व्यक्ति की राज्य यात्रा के समान है। यह सर्वोच्च सम्मान है जो भारतीय प्रोटोकॉल के मामले में एक अतिथि को दिया जाता है। मुख्य अतिथि को राष्ट्रपति भवन में औपचारिक गार्ड ऑफ ऑनर दिया जाता है। वह शाम को भारत के राष्ट्रपति द्वारा आयोजित स्वागत समारोह में भाग लेते हैं। वह राजघाट पर पुष्पांजलि अर्पित करते हैं। उनके सम्मान में प्रधानमंत्री द्वारा लंच का आयोजन किया जाता है।

इंडियन एक्सप्रेस ने पूर्व भारतीय विदेश सेवा अधिकारी और 1999 से 2002 के बीच प्रोटोकाॅल के प्रमुख के रूप में काम करने वाले मनबीर सिंह के हवाले से अपनी रिपोर्ट में लिखा कि मुख्य अतिथि की यात्रा प्रतीकात्मकता से भरपूर होती है। यह मुख्य अतिथि को भारत के गौरव और खुशी में भाग लेने के रूप में चित्रित करता है। इसके साथ ही भारत के राष्ट्रपति और मुख्य अतिथि द्वारा प्रतिनिधित्व किए गए दो लोगों के बीच मित्रता को भी दर्शाता है।

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भारत गणतंत्र दिवस के लिए मुख्य अतिथि का चयन कैसे करता है

सरकार सावधानी से विचार करने के बाद किसी राज्य या सरकार के प्रमुख को अपना निमंत्रण देती है। यह प्रक्रिया गणतंत्र दिवस से लगभग छह महीने पहले शुरू होती है। इंडियन एक्सप्रेस के अनुसार विदेश मंत्रालय द्वारा कई मुद्दों पर विचार किया जाता है, जिनमें से सबसे महत्वपूर्ण है संबंधित देश के साथ भारत के संबंध। अन्य कारकों में राजनीतिक, आर्थिक और वाणिज्यिक संबंध, पड़ोस, सैन्य सहयोग, क्षेत्रीय समूहों में प्रमुखता शामिल हैं। ये सभी विचार अक्सर अलग-अलग दिशाओं में इंगित करते हैं - और मुख्य अतिथि चुनना, इसलिए, अक्सर एक चुनौती बन जाता है।

अतिथि की उपलब्धता के बाद विदेश मंत्रालय को चाहिए होती है मंजूरी

एमईए को विचार-विमर्श के बाद प्रधानमंत्री की स्वीकृति चाहिए होती है। जिसके बाद राष्ट्रपति भवन की मंजूरी मांगी जाती है। इसके बाद, संबंधित देशों में भारत के राजदूत संभावित मुख्य अतिथियों की उपलब्धता और कार्यक्रम का पता लगाने की कोशिश करते हैं। यह एक महत्वपूर्ण कदम है, संसद का सत्र या महत्वपूर्ण राज्य यात्रा जैसे कोई अन्य महत्वपूर्ण कार्य उच्च गणमान्य व्यक्ति के पास उस समय हो। एक बार यह सारी प्रक्रिया पूरी हो गई उसके बाद विदेश मंत्रालय का प्रादेशनिक विभाग सार्थक वार्ता की दिशा में काम करते हैं। जबकि प्रोटोकॉल के प्रमुख कार्यक्रम के विवरण पर काम करते हैं। प्रोटोकॉल चीफ आगंतुक के विस्तृत कार्यक्रम के बारे में समकक्ष को समझाते हैं। गणतंत्र दिवस समारोह के बारे में इसके साथ ही सैन्य परिशुद्धता के साथ मिनट-दर-मिनट का पालन किया जाता है।

यदि परामर्श प्रक्रिया के दौरान असहमति हो तो क्या होगा?

यह एक महत्वपूर्ण पहलु है क्योंकि समय और बैठकों पर कुछ चर्चाएँ हो सकती हैं। गणतंत्र दिवस समारोह और उनके कार्यक्रम के संबंध में कोई लचीलापन नहीं होता है। कोई मुख्य अतिथि नहीं रहा है जिन्होंने भारत की प्रोटोकॉल आवश्यकताओं या कार्यक्रम के समय का पालन न किया हो। यह गौर करने वाली बात है कि दुनिया के ताकतवर मुल्क अमेरिक के तत्कालीन राष्ट्रपति बराक ओबामा जब मुख्य अतिथि के रूप में गणतंत्र दिवस कार्यक्रम में शामिल हुए तो आवश्यकता अनुरूप वो भी पूरे कार्यक्रम में मौजूद रहे।

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अबकी बार 26 जनवरी को क्या-क्या दिखेगा?

हर साल 26 जनवरी के मौके पर भव्य परेड की तस्वीरों से देश तो अक्सर दो-चार होता है। परेड में अलग-अलग प्रदेशों की कला-संस्कृति की झांकियां दिखती हैं। परेड में भारतीय सेना के सभी कैटगरी की मार्च फास्ट भी देखने को मिलती है। लेकिन इस बार की 26 जनवरी की परेड और भी खास होने वाली है। हवा को चिड़ते जब राफेल की रफ्तार देखकर दुश्मन दहल जाएगा। सुखोई की उड़ान देखकर पाकिस्तान थर-थर कांपेगा। तेजस की उड़ान हिंदुस्तान की ताकत का अहसास कराएगी। शौर्य पराक्रम और साहस का प्रदर्शन होगा राजपथ पर जिसे देख कर हर हिंदुस्तानी का सीना गर्व से चौड़ा हो जाएगा। एयर फोर्स की झांकी में महिला पायलट शामिल होंगी। इस बार गणतंत्र दिवस पर राफेल गरजने के लिए तैयार है। राजपथ पर होने वाली परेड में वायुसेना के 42 एयरक्राफ्ट शामिल होंगे। लेकिन सबकी नज़र राफेल पर ही होगी। क्योंकि पहली बार होगा जब पूरा देश राफेल की ताकत राजपथ पर देखेगा। राफेल ही वर्टिकल चार्ली फॉर्मेशन के साथ फ्लाईपास्ट का समापन करेगा। वर्टिकल चार्ली फॉर्मेशन में विमान कम ऊंचाई पर उड़ान भरता है। सीधे ऊपर जाता है और फिर कलाबाज़ी खाते हुए एक ऊंचाई पर स्थिर हो जाता है। एक राफेल, दो जगुआर और दो मिग-29 विमान होंगे, इनके ठीक पीछे त्रिनेत्र फॉर्मेशन होगा। त्रिनेत्र के पीछे सांरग हेलीकाॅप्टर होंगे जो विजय फॉर्मेशन में फ्लाई पास्ट करेंगे। लास्ट में एक राफेल फाइटर आएगा जो कि आकर ठीक सामने वर्टिकल चार्ली फॉर्मेशन के साथ समापन करेगा। गणतंत्र दिवस पर सिर्फ राफेल ही अपना दम नहीं दिखाएगा बल्कि उसका साथ सुखोई भी देगा। हिन्दुस्तान की वायुसेना के वीर जगुआर और तेजस जब करतब दिखाएंगे तो देखने वाले बस देखते रह जाएंगे। भारतीय वायुसेना की पहली महिला फाइटर पायलट्स में से एक भावना कांत गणतंत्र दिवस परेड में भारतीय वायुसेना की झांकी का हिस्सा होंगी। वो भावना कांत गणतंत्र दिवस परेड में शामिल होने वाली पहली महिला फायटर पायलट होंगी।

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अयोध्या का राम मंदिर

9 नवंबर 2019 को भक्तों की आस पर कार्तिक के मास में आखिरकार रामलला का वनवास खत्म हुआ था। 5 अगस्त 2020 को क्या हिन्दू क्या मुसलमान सभी अपने भगवान अपने इमामे हिन्द के अद्भूत मंदिर के नींव रखे जाने के साक्षी बने। अयोध्या में भगवान राम के दिव्य और भव्य मंदिर के लिए भूमि पूजन किया गया। लेकिन इस बार गणतंत्र दिवस की परेड में अयोध्या पर बन रहे राम मंदिर की झांकी भी दिखाई जाएगी। यूपी सरकार ने केंद्र सरकार को इसके लिए प्रस्ताव भेजा था। केंद्र सरकार ने योगी सरकार के प्रस्ताव पर मुहर लगा दी। जिसके बाद गणतंत्र दिवस के इतिहास में ऐसा पहली बार होगा कि उत्तर प्रदेश से राम मंदिर से जुड़ी झांकी पेश की जाएगी। इसे दो आर्किटेक्ट समेत 25 कारीगरों ने तैयार किया है। पर्यटन विभाग की झांकी में अयोध्या, प्रयागराज और वाराणसी के तीर्थ स्थल को दर्शाया जाएगा।

क्या गायब है

दुनिया में फैला डर, सन्नाटें में शहर, अल्लाह का घर, भगवान का दर, न किसी का आना न किसी का जाना। बच्चों ने पार्क में जाना छोड़ दिया, स्कूलों ने क्लास लगाना छोड़ दिया। छोड़ दिया लोगों ने सिनेमा में जाना, पिकनिक मनाना। सभाएं, आंदोलन, धरना-प्रदर्शन टल गए। कोरोना वायरस ने पूरी दुनिया को चुनौती दी, एक-एक दिन में सैकड़ों जाने ली। वैसे तो कोरोवा वैक्सीन के आने से कोरोना का काउंटडाउन शुरू हो चुका है। लेकिन इस बार के कोरोना काल के बाद इसकी वजह से बदलाव की कुछ झलक गणतंत्र दिवस के परेड कार्यक्रम में भी देखने को मिलेगी।

26 जनवरी यानी गणतंत्र दिवस जब दूसरे देशों के राष्ट्रप्रमुख, प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति को चीफ गेस्ट के तौर पर बुलाया जाता रहा है। इसी तरह इस बार गणतंत्र दिवस पर ब्रिटेन के प्रधानमंत्री बोरिस जाॅनसन को मुख्य अतिथि के तौर पर आमंत्रित किया था। लेकिन ब्रिटेन में कोरोना के नए स्ट्रेन के मद्देनजर बोरिस जाॅनसन ने अपना भारत दौरा रद्द कर दिया है। 1966 के बाद पहली बार ऐसा होगा कि कोई विदेशी अतिथि गणतंत्र दिवस समारोह में शामिल नहीं होगा। 1952 और 1953 में भी गणतंत्र दिवस परेड में कोई मुख्य अतिथि शामिल नहीं हो सका था।

पिछले वर्ष डेढ़ लाख दर्शक गणतंत्र दिवस कार्यक्रम में थे लेकिन अब इस वर्ष इसे कम करके 25 हजार कर दिया गया है। इसके अलावा मीडियाकर्मियों की संख्या में भी कटौती करके 300 से 200 कर दी गई है।

इस बार की परेड इंडिया गेट के सी हेक्सागाॅन में नेशनल स्टेडियम तक ही जाएगी। हां, झाकियां लाल किले तक जाएगी।

इस बार पूर्व सैनिकों और महिलाओं द्वारा परेड और सेना व केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बल के सैनिकों का मोटरसाइकिल स्टंट को रद्द कर दिया गया है।

15 वर्ष से कम आयु के किसी भी बच्चे को इंडिया गेट लाॅन में अनुमति नहीं दी जाएगी और इस बार स्कूली बच्चों के लिए भी कोई परिक्षेत्र नहीं होगा।

बहरहाल, बदलते हिन्दुस्तान का हर पहलु दुनिया के सामने जाने की होड़ में होगा। आत्म निर्भर भारत की झलक, राम मंदिर की झांकी। राफेल की गर्जना के साथ ही राज्यों की झांकियां भी होंगी। वीरता भी होगी और वीर भी रहेंगे। 15 अगस्त को अगर हिन्दुस्तान ने आजादी के रूप में अपनी नियति से मिलन किया था तो 26 जनवरी को हमे अस्तित्व की प्राप्ति हुई थी। - अभिनय आकाश

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