इंदिरा गांधी की आवाज में SBI से 60 लाख की ठगी, 1971 का नागरवाला स्कैम और Operation तूफान की कहानी

By अभिनय आकाश | Dec 31, 2020

सितंबर का महीना था साल 2013 की बात है। केंद्र की सत्ता पर काबिज यूपीए सरकार अपने कार्यकाल के 9 वर्ष पूरा करने के बाद दोहरे अंकों की ओर अग्रसर था। लोकसभा चुनाव में कुछ ही महीनों का वक्त शेष रह गया था। बीजेपी की तरफ से 2014 के लोकसभा चुनाव के लिए नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार भी घोषित कर दिया गया था। देश में तेजी से घटित होते घटनाक्रमों के बीच देश के सबसे बड़े वकील कहे जाने वाले अटार्नी जनरल जी वाहनवती तो एक फोन आता है। फोन करने वाले ने खुद को सोनिया गांधी बताकर कहा- आपके पास बहुत काम है इसलिए आप ठीक तरीके से काम नहीं कर पा रहे हैं। कई मामलों में सरकार की किरकिरी हुई है और अगर हो सके तो आप पद से हट जायें। फोन पर हुई बातचीत के बाद तक वाहनवती यही समझते रहे कि फोन पर उनके कामकाज पर नाखुशी जाहिर करने वाली महिला सोनिया गांधी ही हैं। सोनिया के नाराज होने से वाहनवती बेहद चिचिंच भी हुए थे। उन्हें लगा कि सच में फोन सोनिया गांधी ने ही किया था। लेकिन वास्तविकता में यूपीए की चेयरपर्सन सोनिया गांधी अपना इलाज कराने देश से बाहर गईं हुईं थीं और किसी ने उनकी आवाज बनाकर अटार्नी जनरल को फोन मिलाया था। सितंबर की पहली तारीख को ही सोनिया गांधी न्यूयार्क गई हुई थीं। इसके बाद अटार्नी जनरल के आॅफिस में फोन आने शुरू हो गए थे। फोन पर बताया गया कि मैडम बात करना चाहती हैं। महिला ने कहा कि वह न्यूयार्क से बोल रही हैं। सोनिया जैसी हूबहू आवाज में बात करने वाली महिला ने को आवंटन और अन्य हाईप्रोफाइल केस को लेकर नाराजगी जताई। साइबर सेल की जांच में फोन करने वाली महिला की पहचान की गई। लेकिन आज की कहानी सोनिया गांधी से जुड़ी नहीं बल्कि इंदिरा गांधी से जुड़ी है। बात 1971 की है मई का महीना और तारीख थी 24 की। ये वो दौर था जब पाकिस्तान और भारत के बीच तनाव राजधानी के मौसम की तरह ही लगता चढ़ रहा था। पूर्वी पाकिस्तान में रहने वाले लोग एक अलग देश की मांग कर रहे थे और उसके लिए जंग भी जारी थी। पूर्वी पाकिस्तान में आजादी का आंदोलन दिनों-दिन तेज होता जा रहा था। पाकिस्तानी सेना आंदोलन को दबाने के लिए अत्याचार का सहारा ले रही थी। 

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गिरफ्तारी और अत्याचार से बचने के लिए बड़ी संख्या में लोग भागकर भारत आ गए। भारत में शरणार्थी संकट धीरे-धीरे बढ़ने लगा। जिसके बाद भारत पर पाकिस्तान के खिलाफ कार्रवाई करने का दवाब बढ़ने लगा। 31 मार्च, 1971को इंदिरा गांधी ने भारतीय संसद में भाषण देते हुए पूर्वी बंगाल के लोगों की मदद की बात कही थी। 24 मई को भी संसद के सत्र में पाकिस्तान और आने जाने वाले वक्त में जंग की आहटों को लेकर ही चर्चा हो रही थी। लेकिन संसद सदन के कुछ ही दूरी पर स्थित पार्लियामेंट स्ट्रीट इलाके में दिन के 12 बजे स्टेट बैंक ऑफ इंडिया के चीफ कैशियर वेद प्रकाश मल्होत्रा अपनी कुर्सी पर बैठे थे। तभी अचानक उनके फोन की घंटी बजती है। फोन उठाने पर सामने से परिचय दिया जाता है कि पीएमओ से पीएन हक्सर बोल रहा हूं और खुद को प्रघानमंत्री का प्रधान सचिव बताता है। फिर सामने से कहा जाता है कि 60 लाख रूपए सौ-सौ रूपए की शक्ल में आप इंतजाम करें फौरन और उसको लेकर पालर्लियामेंट स्ट्रीट के बाइबल हाउस में आ जाए। ये पैसे बंग्लादेश की खूफिया मिशन के लिए इस्तेमाल होना है। वैसे तो पीएमओ से फोन एक चीफ कैशियर के पास आना एक बड़ी बात थी लेकिन बिना किसी बैंक गारंटी या चेक के इतने पैसे एक फोन पर देना बड़ी बात थी। मल्होत्रा अभी सोच में ही थे कि उधर से कहा गया कि मैडम प्राइम मिनिस्टर बात करेंगी। जिसके बाद महिला ने चीफ कैशियर ने कहा कि आप ये रुपये ले कर खुद बाइबिल भवन पर आइए। वहां एक शख्स आपसे मिलेगा और एक कोड कहेगा, बांग्लादेश का बाबू। आपको इसके जवाब में कहना होगा बार एट लाॅ। इसके बाद आप वो पैसे उनके हवाले कर दीजिएगा और इस मामले को पूरी तरह से सीक्रेट रखने की भी हिदायत दी। मल्होत्रा ने उपमुख्य कैशियर राम प्रकाश बत्रा 60 लाख रुपये रखने के लिए कहा। इसके बाद दो बैंक के स्टाफ ने रुपए बैंक की गाड़ी में लोड किया और फिर बाइबल हाउस ले गए। बाइबल हाउस पर एक व्यक्ति ने कोर्ड वर्ड आकर बोला और बैंक की कार में ही बैठ गया। फिर सभी सरदार पटेल मार्ग और पंचशील मार्ग के जक्शन के टैक्सी स्टैंड पर पहुंचे। जिसके बाद रुपए से भरा बाॅक्स नीचे उतारने के बाद उस व्यक्ति ने मल्होत्रा से इस रकम की रसीद प्रधानमंत्री निवास पर देने को कहा। जब चीफ कैशियर मल्होत्रा इंदिरा गांधी के घर रकम की रसीद लेने गए। उस वक्त इंदिरा गांधी संसद में थी। मल्होत्रा जब पार्लियामेंट पहुंचे तो वहां उनकी मुलाकात प्रधान सचिव हक्सर से हुई। मल्होत्रा ने बताया गया कि मैडम ने तो कोई फोन किया ही नहीं। किसी ने आपको ठग लिया है। पीएमओ की ओर से इस तरह का कोई फोन नहीं किया गया। इस मामले की शिकायत तुरंत पुलिस में करायें। 

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ऑपरेशन तूफान से हुआ खुलासा

इधर प्रधान सचिव की बात सुन चीफ कैशियर के पैरो तले जमीन खिसक गई उधर बैंक में 60 लाख रुपये की रशीद को लेकर चर्चा तेज हो गई। बाद में उच्च अधिकारियों को पता चलने पर संसद मार्ग थाने में एफआईआर दर्ज करवाई गई। मामला सामने आते ही पुलिस ने जांच शुरू कर दी। रात के करीब दस बजे के आसपास दिल्ली गेट के पास से एक शख्स रुस्तम सोहराब नागरवाला को गिरफ्तार किया गया। जिसके बाद उसके दोस्त के घर से 59 लाख 95 हजार रुपये बरामद कर लिए गए। इस पूरे अभियान को ऑपरेशन तूफान का नाम दिया गया। नागरवाला सेना में कैप्टन के पद पर कार्यरत था और भारतीय खुफिया एजेंसी राॅ के लिए काम कर रहे थे। 

केस में कई नाटकीय घटनाक्रम आए सामने

20 नवंबर 1971 को इस केस की जांच कर रहे एएसपी डीके कश्यप की सड़क दुर्घटना में मौत हो गई। फरवरी 1972 में नागरवाला को तिहाड़ जेल के ही अस्पताल में भर्ती कराया गया। 2 मार्च को उसकी तबीयत खराब हो गई और बीच रात को दिल का दौरा पड़ने से मौत हो गई। 

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जगनमोहन आयोग का गठन

इंदिरा हटाओ के नारे के साथ केंद्र में जनता पार्टी की सरकार आई तो नागरवाला की मौत के जांच के आदेश दिए। इसके लिए जगनमोहन रेड्डी आयोग का गठन किया गया लेकिन तफ्तीश में कुछ भी सामने नहीं आया। लेकिन कुछ सवाल ऐसे थे जिनके जवाब आज भी इतिहास के पन्नों तले दब गए। बैंक के कैशियर ने इससे पहले कभी इंदिरा गांधी से फोन पर बात की थी, अगर नहीं तो उन्होंने फोन पर बात कर इंदिरा गांधी की आवाज कैसे पहचान गए। बैंक कैशियर सिर्फ मौखिक रुप से कहे जाने पर इतनी बड़ी राशी की निकासी कर सकते हैं? आखिर ये पैसा था किसका? बहरहाल, इस घटना के बाद 59 लाख 95 हजार की राशी मल्होत्रा को अपनी जेब से देनी पड़ी और नौकरी से भी हाथ धोना पड़ा। लेकिन ठीक दस साल बाद मारुति उद्योग की स्थापना के वक्त वेद प्रकाश मल्होत्रा को इस कंपनी का चीफ एकाउंट्स आफिसर बनाया गया।- अभिनय आकाश


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