By अभिनय आकाश | Nov 24, 2021
देश की सेना को एक अस्त्र मिलने वाला है, जो उसकी ताकत युद्ध के मैदान में और बढ़ा देगा। रूस की घातक राइफल एके-203 इस साल के अंत तक भारतीय सेना को मिलनी शुरू हो जाएगी। इस राइफल का निर्माण भारत में ही होना है। रक्षा मंत्रालय ने एके 203 असॉल्ट राइफल की करीब 5000 करोड़ रुपये की डील को अंतिम मंजूरी दे दी है। आज आपको इस पूरी डील के बारे में बताते हैं इसके साथ ही बताते हैं कि युद्ध के मैदान में सबसे घातक राइफल माने जाने वाली एके-203 से जुड़ी हर छोटी-बड़ी जानकारी जिसके लिए भारत सरकार ने 5 हजार करोड़ रुपये की डील की है।
भारतीय सेना ने 2018 से ही अपने लिए बेहतर असॉल्ट राइफल की तलाश शुरू कर दी थी। 2018 में रूसी राष्ट्रपति पुतिन के भारत दौरे में साढ़े सात लाख एके-203 राइफलें भारत में बनाने का सौदा हुआ। सत्तर हजार एके-203 राइफल रूस से सीधी खरीदी जा रही हैं। ताकी उन्हें फौरन लाइन ऑफ कंट्रोल और लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल यानी भारत और चीन की सीमा पर तैनात सैनिकों को दिया जा सके। रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह की अध्यक्षता में रक्षा अधिग्रहण परिषद की हुई बैठक में एके-203 असाल्ट राइफल के डील को मंजूरी मिल गई है। हालांकि डील को लेकर अभी तक कोई औपचारिक ऐलान नहीं किया गया है। लेकिन मीडिया रिपोर्ट की मानें तो दिसंबर के पहले हफ्ते में भारत के दौरे पर आ रहे रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के आगमन पर इस डील का ऐलान किए जाने की संभावना जताई जा रही है।
इंसास राइफल की लेगा जगह
भारत ने 90 के दशक में 5.56 इंसास राइफल का इस्तेमाल करती आ रही है। लेकिन अब एके-203 से इसे रिप्लेस किया जाएगा। उत्तर प्रदेश के अमेठी के पास एक प्लांट लगाया गया है। जहां साढ़े सात लाख राइफलें तैयार होंगी। एके-203, इंसास के मामले में काफी हल्की, छोटी और आधुनिक है। इंसास का मैगजीन लगाए बिना वजन 4.15 किलो है, जबकि एके 203 का बिना मैगजीन वजन 3.8 किलो है। इंसास की लेंथ 960 एमएम है जबकि एके-203 की 705 एमएम है, जिसमें भी फोल्डिंग स्टॉक शामिल है। इसलिए यह हल्की, छोटी और खतरनाक बंदूक है। एके 203 में 7.62x39 एमएम की गोली का इस्तेमाल होता है, जबकि इंसास में यह 5.56×45 एमएम ही है। एके 203 से एक मिनट में 200 गोलियां दागी जा सकती है। इसमें इस बात की भी सुविधा है कि गोलियां एक-एक फायर की जाएं या फिर एक साथ।
एके सीरिज की राइफलों की अहमियत
द्वितीय विश्व युद्ध के बाद रूस को एके सीरिज की राइफलों की जरूरत पड़ गई। उस दौर में सेनाओं में लड़ने वाले जवान बहुत ज्यादा पढ़े-लिखे नहीं होते थे। इसलिए रूस ने एक ऐसी राइफल तैयार की जिसकी तकनीक बेहद आसान थी। इस अविष्कार के बाद छह से ज्यादा दशक बीत गए हैं, एके-47 राइफल युद्ध के मैदान में भरोसमंद हथियार बनी हुई है। एके सीरिज की राइफलें आतंकवादियों की भी पसंदीदा हथियार होती है क्योंकि इसका मेंटेनेंस काफी आसान होता है। इसकी मार अचूक है।