अनेक भारतीयों के मन में ये सवाल उमड़ता रहा कि अमेरिका में जो बाइडेन का राष्ट्रपति बनना भारत के लिए ठीक रहेगा या डोनाल्ड ट्रंप का दूसरे कार्यकाल के चुना जाना। दुनिया भर की नजर अमेरिकी चुनाव पर लगी रही। चुनाव के बाद नतीजों को लेकर भी दुनिया के सबसे पुराने लोकतंत्र की तरफ टक-टकी लगाए नजरे परिणाम तलाशती रही। ऐसे में आज के इस विश्लेषण में हम बात करेंगे कि अमेरिका में फाइनल रिजल्ट आने में देरी के पीछे की वजह साथ ही आपको बताएंगे कि कैसे बिना राष्ट्रपति चुने अमेरिका में कितने दिन प्रशासन चल सकता है? इसके अलावा अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव से जुड़े और भी सवाल हैं जो इस चुनाव को समझने के लिए ज़रूरी हो जाते हैं।
अमेरिका में चुनावों की निगरानी कैसे की जाती है?
अमेरिका में संघीय, राज्य और स्थानीय-सभी चुनाव सीधे व्यक्तिगत राज्यों की सत्तारूढ़ सरकारों द्वारा आयोजित किए जाते हैं। व्हाइट हाउस की वेबसाइट के अनुसार, अमेरिकी संविधान और कानून राज्यों को चुनाव जीतने के तरीके में व्यापक अक्षांश प्रदान करते हैं, जिसके परिणामस्वरूप देश भर में अलग-अलग नियम हैं। कई अमेरिकी राज्यों में, चुनाव कराने की ज़िम्मेदारी स्टेट सेक्रेटरी ऑफ स्टेट पर होती है। एक राजनेता जो कुछ राज्यों में सीधे चुने जाते हैं और दूसरों में राज्य के राज्यपाल द्वारा नियुक्त किए जाते हैं।
चुनाव प्रक्रिया भारत से कैसे भिन्न है?
भारत में अनुच्छेद 324 के तहत चुनाव आयोग संसद और प्रत्येक राज्य के विधान-मंडल के लिए कराए जाने वाले सभी निर्वाचनों के लिए तथा राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति के पदों के निर्वाचन में निर्वाचक-नामावली तैयार कराने और उन सभी निर्वाचनों के संचालन का अधीक्षण, निदेशन और नियंत्रण, निर्वाचन आयोग में निहित होगा। इस धारा के अनुसार राष्ट्रपति संसद द्वारा इसके लिए बनाए गये नियमों के अधीन रहते हुए, चुनाव आयोग के मुख्य निर्वाचन आयुक्त और अन्य निर्वाचन आयुक्तों नियुक्ति करता है। इसके तहत मुख्य निर्वाचन आयुक्त निर्वाचन आयोग के अध्यक्ष के रूप में कार्य करता है। बाबासाहेब अम्बेडकर ने 15 जून, 1949 को उक्त अनुच्छेद प्रस्तुत करते हुए कहा था कि “पूरी निर्वाचन मशीनरी एक केंद्रीय निर्वाचन आयोग के हाथों में होनी चाहिए, जो रिटर्निंग ऑफिसर्स, मतदान अधिकारियों और अन्य को निर्देश जारी करने का हकदार होगा।”
भारतीय संविधान के भाग 15 में अनुच्छेद 324 से लेकर अनुच्छेद 329 तक निर्वाचन की व्याख्या की गई है। अनुच्छेद 324 निर्वाचनों का अधीक्षण, निदेशन और नियंत्रण का निर्वाचन आयोग में निहित होना बताता है। संविधान ने अनुच्छेद 324 में ही निर्वाचन आयोग को चुनाव संपन्न कराने की ज़िम्मेदारी दी है। मोहिंदर सिंह गिल बनाम चुनाव आयोग के केस में ही सुप्रीम कोर्ट ने आर्टिकल 324 के तहत मिले चुनाव आयोग सीमाओं से परे बताया गया था।
लेकिन अमेरिका की चुनावी प्रक्रिया जैसे वोट की गिनती, डाक मतदान और निर्वाचन क्षेत्र काफी भिन्न है। अक्सर, अलग-अलग राज्यों पर आरोप लगाया जाता है कि वे एक राजनीतिक दल को गैर-कानूनी तरीके से लाभ पहुँचाते हैं। जिम क्रो युग (19 वीं शताब्दी के अंत से 20 वीं शताब्दी के अंत तक) के दौरान, 1965 के मतदान अधिकार अधिनियम द्वारा नियंत्रित किया गया और अमेरिकी दक्षिण में राज्यों ने सक्रिय रूप से काले लोगों को वोटिंग के अधिकार से रोका गया।
चुनाव 2020 में वोटों की गिनती में समय क्यों लगा
अधिकांश अमेरिकी राज्य इलेक्ट्रॉनिक तरीकों की अनुमति देते हैं, लेकिन देश भर में पेपर मतपत्र आदर्श हैं। गिनती के आगे प्रसंस्करण नामक एक चरण आता है, जिसमें हस्ताक्षर की जांच शामिल है। साथ ही दस्तावेज़ीकरण की पुष्टि करना, और शायद मतपत्रों को स्कैन करना भी। वोटों की गिनती अलग, करना फिर गिनती करना। प्रत्येक राज्य में व्यक्ति या मेल-इन वोटिंग शुरू करने, मेल-इन मतपत्रों को प्राप्त करने, मतपत्रों को संसाधित करने और वोटों को सारणीबद्ध करने की अपनी तिथि है।
उदाहरण के लिए: एरिज़ोना में, 7 अक्टूबर को मतपत्रों का मेल शुरू हुआ जो चुनाव के दिन तक स्वीकार किए जाते हैं। और मतगणना 20 अक्टूबर से जारी है। इसी तरह ओहियो में, प्रसंस्करण 6 अक्टूबर को शुरू हुआ, मेल-इन मतपत्र 13 नवंबर तक प्राप्त किए जा सकते हैं लेकिन उन्हें 2 नवंबर तक पोस्टमार्क किया जाना चाहिए और 3 नवंबर को मतगणना शुरू हुई। अमेरिका के कई राज्य मतदान के दिन ही चुनाण परिणाम घोषित कर देते हैं, जबकि कुछ राज्यों में वोटिंग के कुछ दिन बाद तक मतगणना का कार्य कर सकते हैं। नॉर्थ कैरोलिना, एरिजोना, जॉर्जिया, नेवादा और पेंसिलवानिया ऐसे राज्यों में शामिल हैं, जहां मतगणना का कार्य एक सप्ताह तक चल सकता है। यह संवैधानिक है। राज्यों के पास अनुपस्थित मतपत्र प्राप्त करने पर भी अलग-अलग समय सीमाएं हैं, विशेष रूप से सैन्य या विदेशी नागरिकों से आने वाले मतपत्रों के लिए।
मेल इन वोटिंग प्रक्रिया के चलते चुनाव परिणामों में हुई देरी
कोरोना महामारी के कारण इस बार का अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव ऐतिहासिक है। मेल इन वोटिंग के कारण अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव में रिकॉर्ड मतदान हुआ है। मेल इन वोटिंग के जरिए दस करोड़ से ज्यादा लोगों ने इस मतदान में हिस्सा लिया। इसके चलते भी मतगणना के कार्य में विलंब हुआ है, जिन राज्यों में मेल इन वोटिंग ज्यादा हुई है, वहां मतगणना के कार्य में देरी हुई। मेल इन वोटिंग की प्रक्रिया के कारण चुनाव परिणाम आने में विलंब हुआ। दरअसल, मेल इन वोटिंग से डाले गए मतपत्रों की बारीकी से जांच की जाती है। प्रत्येक मतों को मतदाता के पहचान पत्र से मिलान किया जाता है। इसके बाद यह मत वैध माना जाता है। यह प्रक्रिया काफी जटिल और चुनाव में देरी पैदा करती है।
नेशनल वोट का इलेक्टोरल कॉलेज वोट पर क्या प्रभाव पड़ता है?
अमेरिकी राष्ट्रपति का फ़ैसला पूरे देश में पड़े मतों के आधार पर नहीं होता है। उम्मीदवारों को इसके लिए राज्यों में जीतना ज़रूरी होता है। जो उम्मीदवार राज्यों में इलेक्टोरल कॉलेज मतों का बहुमत हासिल करता है वो अमेरिका का राष्ट्रपति बनता है। इलेक्टोरल वोट मोटे तौर पर वहां की जनसंख्या के आधार पर होते हैं। ये इलेक्टोरल वोट मतदान के कुछ हफ़्तों बाद मिलते हैं और अगले राष्ट्रपति को आधिकारिक तौर पर नामित करने के लिए एक इलेक्टोरेल कॉलेज बनाते हैं। अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव जीतने के लिए 270 इलेक्टोरल वोट मिलना ज़रूरी होता है।
अमरीका में कुल 50 राज्य हैं और 40 से ज़्यादा राज्यों के बारे में पहले से लोगों को लगभग अंदाज़ा होता है कि किस राज्य में किस उम्मीदवार की जीत होगी। बाक़ी 8-10 राज्यों में हर चुनाव में स्थिति बदल जाती है, कभी यह डेमोक्रैट उम्मीदवार का समर्थन करते हैं तो कभी रिपब्लिकन उम्मीदवार को जीता देते है।
अदालती विवाद भी एक बड़ी वजह
चुनावी परिणामों में विलंब होने का एक कारण चुनावी विवाद है। अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव में अदालती विवाद के कारण भी चुनाव परिणामों में देरी हो रही है। अक्सर चुनाव में धांधली को लेकर उम्मीदवार अदालत का दरवाजा खटखटाते हैं। ऐसे में चुनावी मतगणना में देरी होती है। इसके अतिरिक्त मतदान में एक फीसद से कम अंतर होने पर उम्मीदवार दोबारा मतगणना की मांग कर सकते हैं।
बिना राष्ट्रपति चुने अमेरिका में कितने दिन प्रशासन चल सकता है?
अगले राष्ट्रपति का नामांकन करने के लिए इस बार इलेक्टोरल कॉलेज 14 दिसंबर को मिलेगा। हर राज्य से इलेक्टोरल्स अपने विजेता उम्मीदवार को चुनने के लिए आएंगे। लेकिन, अगर कुछ राज्यों में नतीजे तब भी विवादित रहेंगे और इलेक्टोरल्स का फ़ैसला नहीं हो पाएगा तो अंतिम फ़ैसला अमेरिकी कांग्रेस को करना होता है।
अमेरिकी संविधान में राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति के कार्यकाल की समयसीमा निर्धारित की गई है. ये समयसीमा 20 जनवरी को ख़त्म हो रही है। अगर अमेरिकी संसद तब तक राष्ट्रपति नहीं चुन पाती है तो उनके उत्तराधिकारी पहले से तय किए गए हैं। इनमें सबसे पहले हाउस ऑफ़ रिप्रेजेंटेटिव्स के स्पीकर का नाम है जो इस वक़्त नैंसी पेलोसी हैं. दूसरे नंबर पर सीनेट के दूसरे सर्वोच्च रैंकिंग वाले सदस्य आते हैं जो इस समय चार्ल्स ग्रेसली हैं। अमेरिका में ऐसा पहले कभी नहीं हुआ है इसलिए ये कह पाना मुश्किल है कि ऐसी असाधारण परिस्थितियों में क्या प्रक्रिया अपनाई जाएगी।
- अभिनय आकाश