By अभिनय आकाश | Aug 16, 2022
बेहिसाब बदहाली, कंगाली है, तंगहाली है और खून के छीटें भी हैं। आंसुओं का सैलाब, अविश्वास, भुखमरी और नाउम्मीदी के साथ ही एक अजीब सी आशंका है।अफगानिस्तान में तालिबान राज के स्थापना के एक साल का हासिल बस यही सब है। बंदूक की नोक पर हुक्म चलाने के आदी तालिबानी अमन का आवरण ओढ़ कर आवाम को हांक रहे हैं। कंधार से काबुल तक, हर शहर, गांव कस्बे में लोग किश्तों में जीने के लिए मजबूर हैं। अफगानिस्तान से अमेरिकी सेना के जाने के बाद 15 अगस्त के दिन तालिबान ने काबुल की गद्दी पर कब्जा किया था। तालिबान राज का एक साल पूरा हो रहा है। बंदूक के दम पर सत्ता हथियाने वाले तालिबान ने बदले हुए स्वरूप में सरकार चलाने का वादा किया था। लेकिन तालिबान अपने दावे पर कितना खड़ा उतरा? इसके साथ ही वर्तमान स्थिति में पूछे जाने वाले प्रश्नों में से सबसे बड़ा सवाल कि प्रतिरोध और आत्मसमर्पण के अमरुल्ला सालेह और अशरफ गनी जैसे दो चेहरे इस वक्त कहां हैं? अब अफगानिस्तान का भविष्य क्या है?
गोलियों की आवाजों के साथ तालिबानी लड़ाकों का जश्न
तालिबान लड़ाकों ने हवा में अपनी बंदूकें दागीं और काबुल के अपने अधिग्रहण की पहली वर्षगांठ मनाने के लिए अफगानिस्तान की सड़कों पर मार्च करते हुए काले और सफेद झंडे लहराए। लेकिन उल्लास के शोर के पीछे मानवीय संकट की छिपी गहरी तस्वीर भी है। देश अराजकता में और भी नीचे चला गया है। लाखों और लोग अब गरीबी और यहां तक कि भूख से जूझ रहे हैं, कुछ नौकरियों और ढहती अर्थव्यवस्था में बढ़ती मुद्रास्फीति के कारण और लड़कियों और महिलाओं को इस बार अधिक लैंगिक समानता के वादों के विपरीत, शिक्षा और काम तक सीमित पहुंच का सामना करना पड़ता है। हालांकि नागरिकों और पिछली सरकार के लोगों की हत्याओं में थोड़ी गिरावट आई है, लेकिन यह उस अंधकारमय भविष्य को छिपा नहीं है।
संयुक्त अरब अमीरात में ग़नी
अपदस्थ राष्ट्रपति अशरफ गनी संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) में निर्वासित जीवन बिता रहे हैं। सीएनएन के शो में वो बीते दिनों ये कहते हुए दिखाई दिए कि अफगान शांति के लिए पूर्व अमेरिकी दूत जालमे खलीलजाद दोषी हैं। खलीलजाद ने ही दोहा में तालिबान के साथ शांति समझौते किए थे, जिससे अफगानिस्तान से अमेरिका की सेना की पूर्ण वापसी का मार्ग प्रशस्त हुआ। उन्होंने खलीलजाद को भ्रष्ट और अक्षम करार दिया। काबुल पर तालिबान के कब्जे के बाद गनी अफगानिस्तान छोड़कर गए। उनके सैनिकों ने देश भर में आश्चर्यजनक रूप से एकतरफा लड़ाई की लेकिन पाकिस्तानी तत्वों द्वारा कथित रूप से समर्थित तालिबान के भीषण हमले के बाद आत्मसमर्पण कर दिया। पूर्व राष्ट्रपति ने रविवार को यह कहते हुए बचाव किया कि वह भागने का एक विभाजित-दूसरा निर्णय था, यह कहते हुए कि वह विद्रोहियों के सामने आत्मसमर्पण के अपमान से बचना चाहता था। उन्होंने कहा कि मेरे जाने का कारण यह था कि मैं तालिबान और उनके समर्थकों को फिर सेएक अफगान राष्ट्रपति को अपमानित करने और सरकार की वैधता पर हस्ताक्षर करने की खुशी नहीं देना चाहता था। बता दें कि तालिबान और अन्य आतंकी समूहों के खिलाफ दो दशकों के असफल युद्ध के बाद अमेरिका और नाटो बल अफगानिस्तान को संकट में छोड़कर रूकसत हो गए। जिसके अशरफ गनी ने भी देश छोड़ दिया था।
पंजशीर में सालेह?
अपदस्थ उपराष्ट्रपति अमरुल्ला सालेह ने तालिबान के सत्ता अधिग्रहण से पहले ही पंजशीर घाटी के नॉर्दन अलायंस के अहमद मसूद के साथ एक राष्ट्रीय प्रतिरोध मोर्चा (एनआरएफ) के संचालन को चलाने के लिए काबुल छोड़ दिया। अमरुल्लाह सालेह ने तो खुद को अफगानिस्तान का कार्यवाहक राष्ट्रपति घोषित कर दिया था। लेकिन इन सबका कोई खास मतलब नहीं था। पंजशीर घाटी में और उसके आसपास की लड़ाई के बाद, तालिबान ने एनआरएफ को हराने का दावा किया। फिर भी सालेह सक्रिय रहे, लेकिन ट्विटर पर ही। काबुल के अधिग्रहण की पहली वर्षगांठ पर 15 अगस्त को सालेह ने ट्वीट किया कि दर्जनों तालिबान लड़ाकों को पकड़ लिया गया और कुछ एनआरएफ के हमले में मारे गए। सालेह ने कहा कि जल्द ही इस शानदार हमले के फुटेज जारी किए जाएंगे। सालेह ने यह भी कहा कि अफगानिस्तान को पाकिस्तान और उसके प्रतिनिधि निगल नहीं सकते। भारत को स्वतंत्रता दिवस की बधाई देते हुए सालेह ने कहा, “15 अगस्त उन अफगानों के लिए एक कड़वा संयोग है, जो पाकिस्तान समर्थित तालिबान द्वारा अपने देश पर खौफनाक कब्जे का शोक मनाते हैं। इसे ठीक किया जाना चाहिए और यह होगा। यह काला दाग हमारे कैलेंडर से हटा दिया जाएगा। अफ़ग़ान अपनी आज़ादी फिर से हासिल कर लेंगे। जो भी हो, काबुल के अधिग्रहण के एक साल बाद, लाखों अफगानों का भविष्य अंधकारमय है। तालिबान ने खुद को इससे अलग नहीं दिखाया है, जब वे पहली बार 1996 और 2001 के बीच अफगानिस्तान पर शासन कर रहे थे। पश्चिमी ताकतों ने उन्हें सत्ता से हटा दिया और एक स्थानीय सरकार स्थापित की थी।
आम लोगों की बेबसी
एक साल में 2106 लोगों की हत्या।
173 पत्रकारों के अधिकारों का हनन हुआ।
तालिबान सरकार ने 122 पत्रकारों को गिरफ्तार किया।
अर्थव्यवस्था बदहाल
कट्टरपंथियों का दबदबा
अफगानिस्तान में एक साल में बहुत कुछ बदल गया है। आर्थिक मंदी के हालात में लाखों और अफगान नागरिक गरीबी की ओर जाने को मजबूर हुए हैं। इस बीच तालिबान नीत सरकार में कट्टरपंथियों का दबदबा बढ़ता दिख रहा है। सरकार ने लड़कियों और महिलाओं के लिए शिक्षा तथा रोजगार के अवसर मुहैया कराये जाने पर पाबंदियां लगा दी हैं जबकि शुरुआत में देश ने इसके विपरीत वादे किये थे। एक साल बाद भी लड़कियों को स्कूल नहीं जाने दिया जा रहा है और महिलाओं को सार्वजनिक स्थानों पर खुद को सिर से पांव तक ढककर जाना होता है। बिना पुरुष अभिभावक के सार्वजनिक क्षेत्रों में प्रवेश पर रोक लगाने वाले कपड़ों और कानूनों पर विनियम लागू किए गए हैं। अफगानिस्तान में 15 अगस्त, 2021 से अब तक लगभग 800 नागरिकों की मौत हुई है, जो पहले देखी गई संख्या से कम है। इनमें से लगभग आधी मौतें इस्लामिक स्टेट-खुरासान (IS-K) समूह के आतंकी हमलों से हुई हैं। संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट के अनुसार तालिबान द्वारा गैर-न्यायिक हत्याओं, हिरासत और यातना सहित मानवाधिकारों के उल्लंघन में पर्याप्त उछाल आया है। अगस्त 2021 और जून 2022 के बीच, अफगानिस्तान ने पूर्व सरकार और सुरक्षा बल के अधिकारियों की 160 अतिरिक्त न्यायिक हत्याएं देखीं। एक छोटे से समूह ने पूर्व अमेरिकी दूतावास के आगे मार्च किया, इस्लाम जीवित रहें और अमेरिका की मौत का नारा लगाया।
बेड़ियों में जकड़ी बेटियां