By नीरज कुमार दुबे | May 24, 2019
'मोदी हटाओ, लोकतंत्र बचाओ' का नारा देने वाले विपक्षी दलों ने दशकों पुराने मतभेद भुला कर राज्यों के स्तर पर महागठबंधन बनाये, बड़ी-बड़ी संयुक्त रैलियां कीं, जनता को बड़े-बड़े सब्जबाग दिखाये, जातीय समीकरणों के आधार पर उम्मीदवार उतारे, लेकिन यह भूल गये कि यह 21वीं सदी है और अब 19वीं और 20वीं सदी के तौर-तरीकों से चुनाव नहीं जीता जा सकता। 2019 का लोकसभा चुनाव परिणाम उन लोगों के लिए करारा सबक है जो सिर्फ जाति के गुणा-भाग में लगे रहते हैं। झूठे वादों, परिवारवाद की राजनीति, गठबंधन राजनीति को इस बार के चुनाव परिणाम ने स्पष्ट तौर पर नकार दिया है।
महामिलावट के प्रति मोदी ने किया था सावधान
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी देश की जनता को स्पष्ट बहुमत वाली सरकार की महत्ता समझाने में सफल रहे और यही कारण रहा कि 'महामिलावट' को जनता ने सिरे से खारिज कर दिया। इस बार के चुनावों में यह साफ दिख रहा था कि विरोधी दल अपने सिद्धांतों और विचारधारा को तिलांजलि देकर सिर्फ 'मोदी' को रोकने के लिए साथ आ रहे हैं। लेकिन वह भूल गये कि देश अब आगे बढ़ चुका है और 80 या 90 के दशक वाले दौर में नहीं जाना चाहता जब राजनीतिक अस्थिरता के कारण देश को बड़ा नुकसान हुआ। भाजपा को जो स्पष्ट बहुमत मिला है वह साफ दर्शाता है कि जनता ने मजबूर नहीं मजबूत भारत के लिए मतदान किया है। चुनाव परिणाम दर्शाते हैं कि पहली बार वोट करने वालों की बड़ी संख्या भाजपा के साथ गयी है।
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विपक्ष के सब गणित धरे रह गये
इस बार का लोकसभा चुनाव कुछ इस तरह था- एक ओर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और दूसरी ओर सभी विरोधी दल। जनता ने मोदी को चुना और इस तरह सारे विरोधी दल एक साथ ध्वस्त हो गये। जिन राज्यों में भाजपा के खिलाफ महागठबंधन बना वहां और जिन राज्यों में भाजपा के खिलाफ महागठबंधन नहीं बना, वहां के परिणाम का विश्लेषण करेंगे तो यही पाएंगे कि विपक्ष की इस पूरी कवायद का कोई असर भाजपा की सेहत पर नहीं पड़ा। अपनी प्रचंड जीत में भाजपा ने 13 राज्यों और केन्द्र शासित प्रदेशों में अपने मत प्रतिशत को 50 फीसदी से पार कर लिया और उसकी प्रतिद्वंद्वी कांग्रेस ने केवल एक प्रदेश पुडुचेरी में यह उपलब्धि हासिल की है। भाजपा ने 2014 में मिले 31.34 फीसदी राष्ट्रीय मत प्रतिशत में काफी सुधार करते हुए एक नया रिकॉर्ड बनाया है जबकि कांग्रेस ने पिछले चुनावों के मुकाबले अपने 19.5 फीसदी मत प्रतिशत में मामूली बदलाव किया है। भाजपा का मत प्रतिशत उत्तर प्रदेश में 50 फीसदी के आसपास रहा जबकि हरियाणा, मध्य प्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़, उत्तराखंड, गुजरात, झारखंड, हिमाचल प्रदेश, गोवा, कर्नाटक, दिल्ली, चंडीगढ़ और अरुणाचल प्रदेश में 50 प्रतिशत से अधिक रहा। पश्चिम बंगाल में भी भाजपा ने 40 प्रतिशत के आसपास मत हासिल किये और जम्मू कश्मीर में उसका मत प्रतिशत लगभग 46 प्रतिशत रहा। उन राज्यों में जहां भाजपा ने गठबंधन में चुनाव लड़ा, उनमें से पंजाब में भाजपा का मत प्रतिशत 10 फीसदी, महाराष्ट्र में 27 फीसदी, असम में 35 प्रतिशत, बिहार में 24 प्रतिशत और तमिलनाडु में 3.34 प्रतिशत रहा। तेलंगाना में भाजपा का मत प्रतिशत लगभग 20 फीसदी रहा जबकि आंध्र प्रदेश में उसे केवल 0.9 फीसदी मत मिले। केरल में भाजपा को लगभग 13 प्रतिशत और ओडिशा में 38 प्रतिशत से अधिक मत मिले।
हिन्दी पट्टी में भाजपा की जोरदार वापसी
गत वर्ष हुए पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों के बाद भाजपा ने जिस तरह से जबरदस्त वापसी की है उसने सभी विश्लेषकों को चौंका दिया है। छत्तीसगढ़ में जहां भाजपा का सूपड़ा साफ हो गया था वहां पार्टी ने अपने सभी सांसदों का टिकट काट कर नये उम्मीदवारों को मौका दिया और 9 सीटें हासिल करने में सफल रही। मध्य प्रदेश में भी भाजपा की 15 साल पुरानी सत्ता चली गयी थी लेकिन पार्टी ने ऐतिहासिक प्रदर्शन करते हुए राज्य की 29 में से 28 सीटों पर विजय हासिल की। यही नहीं सिंधिया राजघराने के किसी सदस्य को पहली बार अपने सुरक्षित गढ़ में भाजपा के हाथों हार का मुँह देखना पड़ा। करीब चार दशक पहले देश में लगे आपातकाल के बाद वर्ष 1977 में हुए लोकसभा चुनाव में अविभाजित मध्य प्रदेश (मध्य प्रदेश एवं छत्तीसगढ़) में तत्कालीन भारतीय जनसंघ को कुल 40 सीटों में से 39 सीटें मिली थीं, जबकि तब भी कांग्रेस केवल एक सीट छिन्दवाड़ा को ही अपनी झोली में डालने में कामयाब रही थी। इस बार भी छिन्दवाड़ा पर ही कांग्रेस को जीत मिली है लेकिन जीत का अंतर बेहद मामूली है। राजस्थान जहाँ पांच महीने पहले कांग्रेस की सरकार बनी वहां पार्टी एक भी सीट नहीं जीत पाई। मुख्यमंत्री अशोक गहलोत, उपमुख्यमंत्री सचिन पायलट पूरी तरह विफल रहे। देखा जाये तो हिन्दी पट्टी के लगभग सभी राज्य भाजपा के लिये एक बार फिर सत्ता की कुंजी बनकर उभरे और इन राज्यों में लगभग 90 प्रतिशत के स्ट्राइक रेट के साथ भाजपा लगातार दूसरी बार पूर्ण बहुमत हासिल करने में सफल रही। हिन्दी पट्टी के 10 राज्यों में 2014 चुनाव में भाजपा की जीत का स्ट्राइक रेट 85 प्रतिशत था।
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दक्षिण और पूरब में चमत्कार
इसके अलावा पश्चिम बंगाल और तेलंगाना में भाजपा का प्रदर्शन बेहद प्रभावी रहा। पश्चिम बंगाल में भाजपा दो सांसदों की पार्टी से 18 सांसदों वाली पार्टी बन गयी। यही नहीं भाजपा ने तेलंगाना में चार लोकसभा सीटें जीतकर सबको चौंका दिया। भाजपा की जीत हैरान करने वाली इसलिए भी मानी जा रही है क्योंकि पिछले साल दिसंबर में हुए विधानसभा चुनावों में पार्टी कुल 119 विधानसभा सीटों में से 100 से अधिक पर अपनी जमानत तक नहीं बचा पाई थी। केरल में भाजपा पिछले काफी समय से मेहनत कर रही थी लेकिन वहां उसे कोई सफलता नहीं मिली। इसी तरह तमिलनाडु में भी अन्नाद्रमुक के साथ खड़े रहना उसको भारी पड़ गया। कर्नाटक में भाजपा ने ऐतिहासिक प्रदर्शन किया और वहां के परिणामों ने दिखा दिया कि जनता दल सेक्युलर और कांग्रेस गठजोड़ की सरकार वहां विफल फॉर्मूला सिद्ध हुआ है।
अब विपक्ष का क्या होगा ?
याद कीजिये गत वर्ष कोलकाता में हुई विपक्ष की उस महारैली की जिसमें 22 विपक्षी दलों के नेता शामिल हुए थे। आज देखिये चुनाव परिणाम ने उनका क्या हश्र किया है। अरविंद केजरीवाल, चंद्रबाबू नायडू, ममता बनर्जी, शरद पवार, एचडी कुमारास्वामी, अखिलेश यादव, जयंत चौधरी, सतीश चंद्र मिश्रा, मल्लिकार्जुन खडगे, शत्रुघ्न सिन्हा, यशवन्त सिन्हा, फारुख अब्दुल्ला और एमके स्टालिन ने बड़े जोश के साथ एक दूसरे का हाथ उठाकर तसवीरें खिंचवाई थीं और मोदी सरकार को उखाड़ फेंकने का संकल्प लिया था लेकिन ये जो पब्लिक है ये सब जानती है उसने उन्हें उखाड़ फेंका जो देश की स्थिरता और विकास की राह में रोड़े अटका रहे थे तथा भारत के बढ़ते वैश्विक रुतबे और सेना के शौर्य पर सवाल उठा रहे थे साथ ही भ्रष्टाचार के झूठे आरोप लगाकर जनता को बरगला रहे थे। ये नेता मोदी विरोध करते करते कब राष्ट्र विरोध तक चले गये इन्हें पता ही नहीं चला और चुनावों में इन्हें इस बात की भी सजा मिली।
-नीरज कुमार दुबे