By नीरज कुमार दुबे | Apr 22, 2025
कर्नाटक में विवादास्पद सामाजिक-आर्थिक एवं शिक्षा सर्वेक्षण रिपोर्ट जिसे ‘जाति जनगणना’ के नाम से भी जाना जाता है वह एक बार फिर सुर्खियों में है। हम आपको बता दें कि इस तरह की रिपोर्टें हैं कि कंथाराजू आयोग द्वारा तैयार की गयी रिपोर्ट की ऑरिजनल प्रति गायब हो गयी है। इसको लेकर बड़ा राजनीतिक विवाद खड़ा हो जाने के बीच कर्नाटक में सत्तारुढ़ कांग्रेस ने कहा है कि यदि ओरिजनल रिपोर्ट गायब भी हो गयी है तब भी कोई फर्क नहीं पड़ता क्योंकि सारा डाटा सिस्टम में संकलित होगा।
हम आपको बता दें कि के. जयप्रकाश हेगड़े के नेतृत्व में पिछड़ा वर्ग आयोग द्वारा 2023 में प्रस्तुत संशोधित रिपोर्ट मूल कंथाराजू आयोग के सर्वेक्षण की प्रतियों से लिये गये चुनिंदा आंकड़ों पर आधारित थी। हेगड़े ने पत्रकारों से यह कहकर राजनीतिक तूफान खड़ा कर दिया कि यह सच है कि कंथाराजू आयोग के तहत संकलित मूल डेटा का पता नहीं लगाया जा सका। हमें वर्तमान रिपोर्ट को संकलित करने के लिए नमूना-आधारित पद्धति पर निर्भर रहना पड़ा। उन्होंने कहा कि परिस्थितियों को देखते हुए यह एकमात्र व्यवहार्य विकल्प था। उनकी इस स्वीकारोक्ति के बाद कर्नाटक विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष आर. अशोक ने पूछा कि नीतिगत निर्णय उस रिपोर्ट पर कैसे आधारित हो सकते हैं जिसका मूल आधार ही नहीं है। उन्होंने कहा, "यह कर्नाटक के लोगों के साथ घोर अन्याय है। पूरी प्रक्रिया रहस्य में डूबी हुई है और इसमें पारदर्शिता का अभाव है।" उन्होंने सवाल किया कि कांग्रेस सरकार राज्य के लोगों से यह उम्मीद कैसे कर सकती है कि वे ऐसी रिपोर्ट को स्वीकार कर लेंगे जिसे कथित तौर पर मुख्यमंत्री सिद्धरमैया के ‘‘गिरोह’’ ने किसी कोने में तैयार किया है। अशोक ने दावा किया, ‘‘राज्य पिछड़ा वर्ग आयोग के अध्यक्ष एच. कंथाराजू, जिन्हें जाति जनगणना रिपोर्ट तैयार करने का काम सौंपा गया था, ने रिपोर्ट पर हस्ताक्षर नहीं किए और भाग गए। जब जयप्रकाश हेगड़े, जो बाद में अध्यक्ष बने, ने रिपोर्ट की जांच की, तो उन्होंने पाया कि यह मूल नहीं, बल्कि महज एक प्रति थी। हेगड़े ने इस बारे में सरकार को एक पत्र लिखा है।’’ वहीं जेडी (एस) ने भी राज्य सरकार पर संशोधित रिपोर्ट का राजनीतिक लाभ उठाने का आरोप लगाया। पार्टी ने कहा, "यह संशोधित रिपोर्ट कुछ खास वोट बैंकों को खुश करने के लिए एक राजनीतिक हथियार के अलावा कुछ नहीं है। संशोधित रिपोर्ट को आगे बढ़ाने से पहले सरकार को गायब मूल रिपोर्ट के बारे में स्पष्टीकरण देना चाहिए।"
हम आपको याद दिला दें कि सिद्धरमैया के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार (2013-2018) ने 2015 में सर्वेक्षण का आदेश दिया था। तत्कालीन अध्यक्ष एच. कंथाराजू के नेतृत्व में राज्य पिछड़ा वर्ग आयोग को जाति जनगणना रिपोर्ट तैयार करने का काम सौंपा गया था। सर्वेक्षण का कार्य मुख्यमंत्री के रूप में सिद्धारमैया के पहले कार्यकाल के अंत में 2018 में पूरा हुआ था और रिपोर्ट को उनके उत्तराधिकारी के. जयप्रकाश हेगड़े ने फरवरी 2024 में अंतिम रूप दिया था।
हम आपको बता दें कि सोशल मीडिया पर प्रसारित हो रहे हेगड़े द्वारा नवंबर 2023 में सरकार को कथित तौर पर लिखे गए एक पत्र में कहा गया है कि कंथाराजू आयोग के सर्वेक्षण विवरण वाले सीलबंद बक्से 26 अगस्त 2021 को आयोग के अध्यक्ष, सदस्यों और सदस्य सचिव की मौजूदगी में खोले गए थे। पत्र में लिखा है कि बक्से में रिपोर्ट के मुद्रित संस्करण उपलब्ध थे, उनमें सदस्य सचिव के हस्ताक्षर नहीं थे और मूल खाका गायब था। पत्र में कहा गया है कि यह देखते हुए संबंधित अधिकारी को तत्काल ब्लूप्रिंट प्रस्तुत करने का निर्देश दिया गया और अधिकारी ने जवाब प्रस्तुत किया है कि यह गायब है। पत्र में लिखा है कि इस मामले को सरकार के संज्ञान में लाते हुए मैं आगे की कार्यवाही करने का तरीका जानना चाहूँगा। हम आपको यह भी बता दें कि जांच की मांग के बावजूद, खासकर तब जब मूल सर्वेक्षण से राज्य के खजाने को 160 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ, कर्नाटक सरकार ने अभी तक कोई औपचारिक मामला दर्ज नहीं किया है और जांच भी शुरू नहीं की है।
हम आपको यह भी बता दें कि इस रिपोर्ट पर चर्चा के लिए हाल ही में बुलाई गई कर्नाटक की विशेष कैबिनेट बैठक बिना किसी बड़े फैसले के समाप्त हो गई थी। हालांकि, बैठक में शामिल मंत्रियों ने किसी भी आंतरिक मतभेद से इंकार करते हुए कहा कि उन्होंने सर्वेक्षण के लिए इस्तेमाल किए गए मापदंडों पर चर्चा की तथा वरिष्ठ अधिकारियों से अधिक जानकारी और तकनीकी विवरण मांगे। मंत्रिमंडल दो मई को एक बार फिर सर्वेक्षण रिपोर्ट पर चर्चा करेगा। बैठक के बाद कानून और संसदीय मामलों के मंत्री एचके पाटिल ने कहा था, ‘‘मंत्रिमंडल ने रिपोर्ट पर विस्तार से चर्चा की है और यह महसूस किया गया कि चर्चा के लिए अधिक जानकारी और तकनीकी विवरण की आवश्यकता है। इसलिए वरिष्ठ अधिकारियों को इसे उपलब्ध कराने के लिए कहा गया है।’’ वहीं संशोधित रिपोर्ट का बचाव करते हुए गृह मंत्री जी परमेश्वर ने कहा, "डेटा को वैज्ञानिक दृष्टिकोण का उपयोग करके संकलित किया गया था। आयोग ने जनसांख्यिकीय अध्ययनों में व्यापक रूप से स्वीकार की जाने वाली सांख्यिकीय तकनीकों को लागू किया है। सही तरीके से किए जाने पर नमूना-आधारित सर्वेक्षण वैध हैं।"
इस बीच, सूत्रों ने बताया कि कई लोगों द्वारा इसे ‘‘अवैज्ञानिक’’ बताए जाने का हवाला देते हुए कुछ मंत्रियों ने सर्वेक्षण रिपोर्ट पर आपत्ति जताई। इसके बाद, मुख्यमंत्री सिद्धरमैया ने सभी मंत्रियों से लिखित या मौखिक रूप से अपनी राय देने को कहा। हम आपको बता दें कि विभिन्न समुदायों, विशेषकर कर्नाटक के दो प्रमुख समुदायों- वोक्कालिगा और वीरशैव-लिंगायत ने इस सर्वेक्षण पर कड़ी आपत्ति जताई है और इसे ‘‘अवैज्ञानिक’’ बताते हुए मांग की है कि इसे खारिज किया जाए तथा एक नया सर्वेक्षण कराया जाए। समाज के विभिन्न वर्गों द्वारा भी इस सर्वेक्षण पर आपत्ति जताई गई है तथा सत्तारुढ़ कांग्रेस के भीतर से भी इसके खिलाफ आवाजें उठ रही हैं। हालांकि, सभी वर्ग इसका विरोध नहीं कर रहे हैं। दलितों और ओबीसी का प्रतिनिधित्व करने वाले नेता और संगठन इसके समर्थन में हैं और चाहते हैं कि सरकार सर्वेक्षण रिपोर्ट को सार्वजनिक करे और इस पर आगे बढ़े।